आशा घोष ब्रज श्रीवास्तव का चौथा काव्य संकलन है, जिसके कवर पृष्ठ में रंग भरे हैं हमारी साथी प्रवेश सोनी ने.

ब्रज के इस संकलन में संकलित हैं इस दुनिया के आसपास के माहौल से उपजी उनकी नाइत्तिफ़ाक़ियां उनकी छोटी छोटी खुशियाँ उनके दर्द उनके अपने उनका परिवार उनकी मां की ढोलक की थाप और अनेकों ऐसे भावावेशों की अभिव्यक्ति जिन्हें ज़ाहिर कर उन्हें अगर वे अपनी कविताओं की शक़्ल का ज़ामा न पहनाते तो अब तक अपनी जाने कितनी रातों की नींद उड़ा चुके होते. क्योंकि ब्रज की बैचैनी को मैंने कई बार महसूसा है.

ब्रज कविता के सुख से अनजान नहीं,बल्कि कविता लिखना उनकी दिनचर्या और उनकी सेहत को संतुलित रखने की एक दवा की तरह है.

यहांँ उनकी कुछ कविताओं का ज़िक्र करना चाहूंगा, सबसे पहले प्रेम संवाद एक ऐसी बारीक और असरदार अहसास के रूप में उभरी है जो मनोकामनाओं तक को तौलती है, अद्भुत तालमेल की रचना बन पड़ी है ये.

बग़ीचे में बृद्ध महानगरों के बहुमंजिला मकानों में चमगादड़ की तरह उल्टे लटकने को बेमन से विवश बुजुर्गों के दर्द का आईना है.जो आज की ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसे हम आये दिन देख रहे हैं.ठीक इसी तरह बचपन में किसान बदलते वक्त का दस्तावेज़ है, जो सच के बहुत नज़दीक है.

उनकी कविता टेलीफोन ने बहुत प्रभावित किया.

कविता पुस्तक के शीर्षक पर केंद्रित कविता आशा घोष प्रतिकूल दशाओं में भी उम्मीद जगाती है,ये अपने रास्ते में आने वाली नाउम्मीदियों को ख़ारिज करते हुए बढ़ रही है एक एम्बुलेंस की शक़्ल में.

गांव में दीवाली गांव के अंधेरों की और इशारा करती है जहां हल्का सा भी उजाले का कतरा नज़र नहीं आता, दीवाली की अमावस की रात अमावस ही रहती है.

उस घर में पलकों को भिगो देने वाली रचना है, नए आशियाने बनाते बनाते पुरानी छोटी से छोटी यादों से विछोह हमें कितना तोड़ देता है…उफ़…!!

मां का मोबाइल को सहेजना रिश्तों को सहेजने या यूं कहें सेव करने की कोशिश है, अपने बटुए में मोबाइल रखकर उसका ख़्याल रखने वाली मां का एक तरह से ये भी दर्द ही है जो रचनाकार की नज़र से बच नहीं सका.

आशा घोष में सहजता है, व्यक्त करने का शिल्प सादगी से भरपूर है, सम्प्रेषणीयता इन रचनाओं को ग्राह्य बनाती है, कम शब्दों में बड़े बड़े दर्द को उजागर करने का घोष है उनकी आशा घोष.

हमारी दुआएँ और शुभकामनाएं, वे भरपूर लिख रहे हैं, ये बड़ी बात है वे पूर्णकालिक रचनाकार हैं, जो आसान नहीं, क्योंकि कवि कर्म भारी काम है, जिसे वे कर पा रहे हैं.

*दिनेश मिश्र एडवोकेट
विदिशा*

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