‘आशाघोष’ ब्रज श्रीवास्तव का चौथा काव्य संग्रह है। इसके पहले ‘तमाम गुमी हुई चीज़ें’, ‘घर के भीतर घर’ और ‘ऐसे दिन का इंतज़ार’ ये तीन काव्य-संग्रह कवि का परिचय दे चुके हैं।
‘आशाघोष’ इस नाम ने मुझे खींचा। कविता तक गया तो पता चला, एंबुलेंस के सायरन को आशाघोष कहा गया है। इस महामारी के समय में इस सायरन की आवाज़ बहुत सुनाई पड़ी और हर बार एक खौफ़ तारी होता गया; किंतु ब्रज श्रीवास्तव ने इसके सही अर्थ को‌ पकड़ा है। दरअसल एंबुलेंस तो जीवन बचाए रखने की आशा से जुड़ी है-
हट जा नाउम्मीदी हट जा…
ऐसा नहीं है कि एंबुलेंस की आवाज़ डराती नहीं है। एल दूसरी कविता- ‘सायरन’ में इस सच को भी ईमानदारी से रखा गया है-
एंबुलेंस जब गुजरती है बगल से
हृदय को बेध जाता है सायरन।

इससे यह भी स्पष्ट है कि कवि-दृष्टि जीवन के सामान्य दृश्यों से जुड़ी हैं। कविता के लिए कवि को कल्पनाओं का आकाश नहीं छानना पड़ता, बल्कि जो सामने है, उसी से कविता निकाल लेता है। इस वाक्य‌ को उलट दूँ, तो कहा जाएगा कि सामान्य दृश्यों और चीज़ों में भी कविता का संधान कर लेना कवि की विशेषता है।
मैं कविता पढ़ते हुए अक्सर यह देखना चाहता हूँ कि कवि के बारे में, यानी उसके परिवेश के बारे में कविता कितना बताती है। ऐसा तो नहीं है कि कविता बस यह बताए‌ कि कवि बस कविता करता है। इस संग्रह की रचनाएँ बताती हैं कि‌ कवि कविता ही नहीं करता, बल्कि एक जीवन जीता है। यह संयोग नहीं है कि ‘पिंजरे में’ अथवा ‘प्रार्थना’ जैसी कविताएँ हमें स्कूल के वातावरण तक ले जाती हैं। एक कवि का शिक्षक होना यहाँ देखा जा सकता है।
यह समय ऐसा है कि शोक और उत्सव साथ-साथ चल रहे हैं और हम भी गाहे-ब-गाहे इसकी विद्रूपता के अंग बन जाते हैं। अख़बार हमें रोज़ भयानक-भयानक खबरें देता है और रोज़ हम ऐसा जीवन जीते हैं, जैसे सब कथाएँ मात्र हों। एक संवेदनशील मन इन सबको देखकर विचलित होता है और शर्मिंदा भी-
उस दौर में मैं भी कुछ
मित्रों के साथ
जीवित था
यह एक शर्म की बात थी कि
जितने लोग जीवित थे
वे जीवित होने का जश्न मनाते थे
इस कविता की पहली पंक्ति का ‘कुछ’ ऐसे कोई और अर्थ देता है तथा ‘मित्रों’ के साथ जुड़ कर एक अन्य अर्थ का वाचक हो जाता है। उसी तरह ‘यह एक शर्म की बात थी’ को पहले खंड से भी जोड़ सकते हैं।
माँ, मौसी, बेटी आदि पर लिखी कविताएँ पारिवारिक माहौल को आकार देती हैं, तो चिड़िया, पौधे, पत्थर, बरसात, पंखुड़ी, मिट्टी आदि एक दुनिया रचती जान पड़ती है। इसी में पत्र हैं, खबरें हैं। संदूक, टेलिफोम, चश्मा, राखी आदि आकर उस दुनिया को‌ जीवित कर देते हैं। इस संग्रह का जीवन यही है।
जीवन से जुड़ी और सामान्य बरती गयी भाषा के सौंदर्य से सजी ये कविताएँ हमें अपने आसपास से जोड़ती तो हैं ही, साथ ही एक आशा भी जगाती हैं कि कवि का काव्य-घोष ऐसे ही बना रहेगा। यह कवि का कविता के प्रति एक ‘आशाघोष’ भी है।

अस्मुरारी नंदन मिश्र
सहायक प्राध्यापक(हिन्दी)

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