क्या पंजाब और हरियाणा भी अब नक्सलियों के निशाने पर है? यह सवाल हाल ही में हरियाणा में कुछ नक्सलियों की गिरफ़्तारी से पैदा हुआ है. गिरफ्तार नक्सिलयों ने जो खुलासे किए हैं, वे बेहद विस्फोटक हैं. वहीं पंजाब के मानसा जिले में शामलात ज़मीन पर एक वामपंथी संगठन के क़ब्ज़े के प्रयास ने राज्य पुलिस की नींद उड़ा दी है. इसके बाद कई लोगों की गिरफ़्तारी भी हुई है. हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में कुछ वामपंथी संगठनों द्वारा दोनों राज्यों के कुछ चुनावी क्षेत्रों में चुनाव बहिष्कार की अपील के बाद मामला गंभीर होता नज़र आ रहा है. हालांकि हरियाणा में हुई गिरफ़्तारी को कुछ संगठन पूरी तरह से ग़लत भी ठहरा रहे हैं. उनका मानना है कि राज्य पुलिस ने जानबूझ कर कुछ नौजवानों को  नक्सली बताकर गिरफ़्तार किया है. उधर पंजाब पुलिस इंटेलिजेंस ने चुनावी बहिष्कार से संबंधित पर्चे लगाए जाने की रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय को भेजी है. अगर उनकी रिपोर्ट पर ही भरोसा किया जाए तो राज्य में इस समय नक्सली विचारधारा वाले 30 संगठन सक्रिय हैं.

सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) सक्रिय
पंजाब और हरियाणा में नक्सली सक्रियता का खुलासा मई 2008 में हुआ. 10 मई 2008 को धनबाद में सीपीआई-माओवादी कीसेंट्रल कमेटी के सदस्य प्रमोद मिश्रा की गिरफ़्तारी के बाद झारखंड पुलिस ने दावा किया कि माओवादी अब पंजाब और हरियाणा में प्रभाव बढ़ाने के प्रयास में लगे हुए हैं. झारखंड के डीजीपी वीडी राम ने इस संबंध में पंजाब पुलिस को सूचना भी दी. प्रमोद मिश्रा से झारखंड पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार पंजाब और हरियाणा में अब सीपीआई-माओवादी के काडर तैयार किए जा रहे हैं. पंजाब में सपोर्ट बेस तैयार करने के लिए जहां भूमिहीन मज़दूरों को मोबलाइज करने की योजना बनाई गई है, वहीं सीमांत किसानों को भी अपने पाले में लेने की योजना तैयार की गई है.
प्रमोद मिश्रा ने गिरफ़्तारी से पहले पंजाब और हरियाणा का दौरा भी किया था. मिश्रा ने पुलिस से पूछताछ के दौरान बताया कि नक्सली संगठनों ने पंजाब के शहरों में रहने वाले बिहार, झारखंड के मज़दूरों को भी अपने पाले में लेने की योजना बनाई है. लुधियाना जैसे औद्योगिक नगर में काफी बड़ी संख्या में बिहार के मज़दूर हैं. वे यहां पर झुग्गियों में रहते हैं. उनके निवास को शेल्टर के तौर पर उपयोग किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि प्रमोद मिश्रा बिहार केऔरंगाबाद जिले के रफीगंज ब्लाक का रहने वाला है. शुरुआत में नक्सलियों के निचले काडर से अपना काम शुरू कर प्रमोद मिश्रा सीपीआई-एमएल की सेंट्रल कमेटी तक में   स्थान बनाने में कामयाब हुआ.
इस साल मार्च में ही फिल्लौर के पास से एक और गिरफ़्तारी हुई. पुलिस ने दावा किया कि वह सीपीआई-माओवादी का झारखंड एरिया का जोनल कमेटी हेड जयप्रकाश है. पुलिस के दावे केअनुसार जयप्रकाश झारखंड में कई नक्सली हमलों में वांटेड था. जयप्रकाश पिछले कुछ समय से जालंधर, फिल्लौर और लुधियाना के इलाक़े का अध्ययन कर रहा था और यहां पर नक्सली बेस को बढ़ाने में लगा हुआ था.

हरियाणा पुलिस ने 20 अप्रैल से 5 जून 2009 के बीच राज्य में अलग-अलग जगहों पर कथित तौर पर 17 नक्सलियों को गिरफ़्तार किया है. इनमें हरियाणा माओवादी संगठन के इंचार्ज डॉ. प्रदीप कुमार भी हैं. पुलिस ने उनकेपास से देसी  रिवाल्वर, 315 बोर के तीन पिस्टल और एक ग्रेनेड और चार डेटोनेटर की बरामदगी भी दिखाई है. पुलिस का दावा है कि हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों केदौरान यमुनानगर के छछरौली क्षेत्र में चुनाव बहिष्कार के पोस्टर भी इन लोगों ने ही लगाए थे. उल्लेखनीय है कि गिरफ़्तार कुल 17 लोगों में से आठ को यमुनानगर पुलिस की स्पेशल टीम ने गिरफ़्तार किया है. पुलिस का दावा है कि इनमें से कुछ लोगों ने झारखंड जाकर प्रशिक्षण लिया है. ये सीधे तौर पर सीपीआई-एमएल से जुड़ कर काम कर रहे हैं.
उधर कुछ संगठनों ने हरियाणा में हुई इस गिरफ़्तारी को ग़लत ठहराया है. पीयूडीआर और पीयूसीआर से जुड़े पंजाब एवं हरियाणा हाई—कोर्ट के वकील राजीव गोदारा केअनुसार चार जून को जिन छह लोगों को कुरुक्षेत्र और यमुनानगर से गिरफ़्तार दिखाया गया, वेे दरअसल कई दिनों से पुलिस हिरासत में थे. उनकी गिरफ़्तारी पर तीन जून को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका डाली गई थी और जब पुलिस को नोटिस गया तो उनकी गिरफ़्तारी दिखा दी गई और उनके पास से हथियारों की बरामदगी भी दिखा दी गई. गोदारा के अनुसार पुलिस ने नरवाना में भी जानबूझ कर कई लोगों को टार्चर किया. उन्हें कई दिनों तक थानों में माओवादी होने के शक में बिठाकर रखा गया और बाद में छोड़ दिया गया. उन्होंने कहा कि 22 मई से लेकर पहली जून तक यमुनानगर और जिंद के इलाक़े में उनकी टीम गई और पता चला कि पुलिस राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है. जो लोग ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की लड़ाई लड़ रहे है उन्हें पुलिस तंग कर रही है.

इंटेलिजेंस केमुताबिक तीस ऩक्सली संगठन सक्रिय
इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक इस समय पंजाब में लगभग 30 नक्सली संगठन सक्रिय हैं. ये संगठन सीपीआई-माओवादी, सीपीआई-एमएल (पार्टी यूनिटी) सीपीआई-एमएल (न्यू डेमोक्रेसी) और सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) से संबंधित है. ये संगठन राज्य के फिरोज़पुर, संगरूर, भटिंडा, पटियाला, मोगा, लुधियाना, मानसा आदि इलाक़ेमें सक्रिय हैं. कुछ संगठनों ने नवांशहर, अमृतसर, जालंधर के इलाक़ेमें भी अपने पांव जमाने शुरू कर दिए हैं. जबकि सीपीआई-एमएल से संबंधित पंजाब राज्य समिति पश्चिमी हरियाणा के कुछ इलाक़ों में भी अपना काम कर रही है. इनके ऑपरेशन एरिया में पंजाब के भटिंडा, मोगा, मानसा, मुक्तसर, फरीदकोट, फिरोजपुर समेत पश्चिमी हरियाणा के सिरसा, हिसार, फतेहाबाद और राजस्थान के गंगानगर जिले भी शामिल हैं. जबकि पंजाब की राज्य समिति  जालंधर, कपूरथला, होशियारपुर, गुरदासपुर, अमृतसर, तरनतारन के अलावा जम्मू-कश्मीर में भी सक्रिय है.

उधर पंजाब के मानसा जिले में 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान वामपंथी  संगठनों के नेतृत्व में लगभग दो सौ एकड़ शामलात ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया गया. इन ज़मीन पर भूमिहीन मज़दूरों को बैठा दिया गया, जो काफी समय से हाउसिंग की समस्या से जूझ रहे थे. मानसा के खारा बरनाला गांव समेत लगभग 25 गांवों में शामलात ज़मीनों पर इस तरह की कार्रवाई हुई. चुनाव के दौरान पुलिस वालों ने तो चुप्पी साधे रखी, पर 16 मई को चुनाव परिणाम आते ही पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी. सारे शामलात ज़मीन पर क़़ब्जे को हटाया और लगभग एक हज़ार लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया. गिरफ़्तार लोगों में सीपीआई-एमएल के नेता स्वपन मुखर्जी शामिल थे. पुलिस का मानना है कि क़ब्ज़े में सीपीआई-एमएल समेत कुछ दूसरे नक्सली संगठनों की भूमिका थी. वे राज्य में नक्सली आंदोलन को त़ेज करने की कोशिश में हैं. उधर सीपीआई-एमएल ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ज़मीन से पुलिस ने जबरन क़ब्ज़ा हटवाया है. भूमि सुधार के तहत दलित कृषक मज़दूरों का हक़ शामलात ज़मीन के एक तिहाई हिस्से पर है. उन्होंने अपने अधिकारों का दावा ही किया है. लेकिन पुलिस ने सारी ज़मीन ख़ाली करवा कर  ग़ैरक़ानूनी काम किया है. वामपंथी संगठनों ने बीते 10 अप्रैल को फिरोजपुर जिले के जलालाबाद क्षेत्र के हबून गांव में कांग्रेस नेता गुरदर्शन सिंह बराड़ के लगभग आठ एकड़ ज़मीन पर लगी ़फसल को काटने से रोक दिया था. इसके बाद पुलिस हरक़त में आई और रात में पुलिस की मौजूदगी में ़फसल की कटाई हुई.
उधर लोकसभा चुनावों से ठीक पहले चुनावी बायकाट के पोस्टर लगाए जाने के बाद राज्य में ख़ु़िफया एजेंसियां सतर्क हो गई हैं. इंटेलिजेंस ने पुलिस मुख्यालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि संगरूर और भटिंडा इलाक़े में लोक संग्राम मंच नामक संगठन ने पोल बायकाट की अपील की थी और पोस्टर भी लगाए थे. हालांकि पंजाब और हरियाणा में नक्सली गतिविधियों की शुरुआत के पीछे कुछ सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को भी देखना होगा. इन दोनों राज्यों में दलितों और प्रभावी कृषक जातियों के बीच तनावपूर्ण संबंध ठीक वैसे ही हैं, जैसे बिहार में दलितों और अन्य ऊंची जातियों के बीच रहे हैं. पंजाब और हरियाणा में भी ग्रामीण दलित आर्थिक रूप से ऊंची कृषक जातियों पर निर्भर हैं. इनमें मुख्य रूप से जाट हैं. ग्रामीण इलाक़ों में यहां भी बिहार की तरह ही दलित महिलाओं से बलात्कार की  घटनाएं घटती रहती हैं. आरोप है कि इन मामलों में सामान्य रूप से ऊंची जातियों के लोग अधिक शामिल पाए जाते हैं. पंजाब में जाट सिखों और दलितों केबीच ग्र्रामीण इलाक़ेमें टकराव के कुछ मामले सामने आए हैं. यही टकराव राज्य में नक्सली संगठनों को पांव जमाने में मदद कर रहे हैं.
7 जनवरी 2006 को मानसा जिले के झब्बर गांव में एक दलित बंत सिंह पर गांव के कुछ जाटों ने हमला किया. बंत सिंह गंभीर रूप से घायल हो गया और बाद में पीजीआई चंडीगढ़ में उसके दोनों हाथ काटने पड़े. बंत सिंह सीपीआई-एमएल का कार्यकर्ता था और इलाक़े में वामपंथी आंदोलन को मज़बूत कर रहा था. साथ ही उसने प्रभावशाली जाटों के खेत में काम करने से मना कर  दिया था. पर बंत सिंह की इस सक्रियता के पीछे भी अलग कहानी थी. बंत सिंह के साथ गांव के दबंगों की यह पहली ज़्यादती नहीं थी. इससे पहले 2002 में उसकी बेटी बलजीत कौर के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. 2004 में इस मामले में तीन लोगों को सज़ा भी हुई. इनमें एक आरोपी जाट था. इस दौरान गांव के दबंगों ने उस पर सामूहिक बलात्कार के मामले में पीछे हटने के लिए दबाव बनाया. पर बंत सिंह नहीं माना, जिसके कारण उस पर जानलेवा हमला कर दिया गया.
पर लड़ाई स़िर्फ आर्थिक मोर्चे पर ही नहीं है. लड़ाई सामाजिक मोर्चे पर भी है. पंजाब जैसे राज्य में विकास के सारे सुख और बड़े सुधार आंदोलन देख लेने के बाद भी दलितों को वह स्थान नहीं मिला है, जो एक सभ्य समाज में मिलना चाहिए. इसका सीधा ़फायदा नक्सली सगंठन राज्य में उठा सकते हैं. राज्य में डेरों के बढ़ते प्रभाव का एक कारण यह भी है. गुरु गोविंद सिंह के संदेश-मानुष की जात सबै एको पहुचानबे-केबावजूद गुरुद्वारों में दलितों के साथ भेदभाव आज भी जारी हैं. पंजाब के मालवा इलाक़े में जाट सिखों के भेदभाव के कारण दलित सिखों ने अपने अलग गुरुद्वारे बना लिए हैं. जबकि भेदभाव से परेशान हो भारी संख्या में दलित सिख डेरों के प्रभाव में आ गए है. इनमें डेरा सच्चा सौदा, डेरा सच खंड बल्ला उदाहरण हैं. हाल ही में वियाना में डेरा सच खंड बल्ला के गुरु की हत्या के बाद पंजाब में भड़की हिंसा इसी का उदाहरण है. कहीं न कहीं इन टकरावों के बीच सामाजिक भेदभाव शामिल हैं. इस सामाजिक भेदभाव की सच्चाई को सिख बुद्धिजीवी स्वीकार करते हैं. वियना की घटना के बाद नौ जून को जालंधर में सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें सिख विद्वानों के अलावा दलित प्रतिनिधि भी शामिल हुए. इस सम्मेलन में जत्थेदार गुरबचन सिंह ने दलितों और जाटों के सामूहिक श्मशान घाट की वकालत की. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ का मानना है कि दलितों के साथ भेदभाव सिख परंपरा के ख़िला़फ है.
उल्लेखनीय है कि पंजाब 1970 के दशक में भी नक्सली आंदोलन का गवाह बना. यहां के बड़े जमींदार नक्सली आंदोलन के निशाने पर आए. उस दौरान पूरे राज्य में हुई हिंसा में लगभग 80 लागे मारे गए थे. नक्सलियों के निशाने पर उस समय जो प्रमुख लोग आए थे, उनमें मालवा इलाक़े के कई बड़े कांग्रे्रेसी और अकाली दल के नेता थे. ये नेता स़िर्फ राजनीतिक रूप से ही सक्रिय नहीं थे, बल्कि उनके पास भारी ज़मीन थी. उस समय ऩक्सलियों केटारगेट में वर्तमान मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी थे. इनके अलावा काफी ज़मीन के मालिक माने जाने वाले कांग्रेसी नेता  जगमीत बराड़, पूर्व मुख्यमंत्री हरचरण सिंह बराड़, गुरदर्शन सिंह बराड़ आदि भी उनके निशाने पर रहे हैं.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here