मैं यह बात विश्‍वास के साथ इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि अगर नरेंद्र मोदी अमित शाह की जगह किसी दूसरे को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना देते, तो मुझे उनके इरादे के बारे में कभी शंका ही नहीं होती, लेकिन अभी इसलिए शंका हो रही है, क्योंकि अमित शाह का दिमाग, उनका तरीका, उनका सोचना और उनका इतिहास देश के सामने बहुत साफ है. सुप्रीम कोर्ट अमित शाह के खिलाफ सुनवाई की मंजूरी भी दे चुका है. शायद अमित शाह को लेकर कई सारी अपीलें भी सुप्रीम कोर्ट में प़डी हैं. 
 
Santosh-Sirदेश चुनाव के करीब जैसे-जैसे पहुंच रहा है, राजनीतिक दलों में चुनाव की हलचल उतनी ही तेजी के साथ ब़ढ रही है. भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव की तैयारी सार्वजनिक रूप से करनी शुरू कर दी है. नरेंद्र मोदी लगभग भारतीय जनता पार्टी को नियंत्रित करने की स्थिति में हैं और जान-बूझकर ऐसी तस्वीरें बाहर आ रही हैं, जिनमें लालकृष्ण आडवाणी नरेंद्र मोदी के साथ बैठे दिखाई दे रहे हैं. नरेंद्र मोदी ने अपनी बिसात बिछा दी है, लेकिन उस बिसात पर उन्होंने एक नई रणनीति भी अख्तियार की है. वे खुद नहीं खेल रहे हैं, बल्कि अमित शाह के जरिये खेल खिला रहे हैं. अमित शाह को उत्तर प्रदेश भेजने और उन्हें पहले संसदीय बोर्ड में रखने का फैसला नरेंद्र मोदी का था. अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी के लोग इतने ब़डे रोल में नहीं देखना चाहते थे. इस जगह किसी को होना चाहिए था, अरुण जेटली को होना चाहिए था, लेकिन नरेंद्र मोदी का विश्‍वास न अरुण जेटली पर है और न सुषमा स्वराज पर. उनका विश्‍वास अमित शाह पर है. अमित शाह के जरिये उन्होंने उत्तर प्रदेश को सीधा संदेश भी दे दिया है. संदेश कि अगर मुसलमान भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं आते हैं, तो मुसलमानों के जान-माल की गारंटी न समाजवादी पार्टी, न कांग्रेस और न ही बहुजन समाज पार्टी दे सकती है. मैं यह बात विश्‍वास के साथ इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि अगर नरेंद्र मोदी अमित शाह की जगह किसी दूसरे को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना देते, तो मुझे उनके इरादे के बारे में कभी शंका ही नहीं होती, लेकिन अभी इसलिए शंका हो रही है, क्योंकि अमित शाह का दिमाग, उनका तरीका, उनका सोचना और उनका इतिहास देश के सामने बहुत साफ है. सुप्रीम कोर्ट अमित शाह के खिलाफ सुनवाई की मंजूरी भी दे चुका है. शायद अमित शाह को लेकर कई सारी अपीलें भी सुप्रीम कोर्ट में प़डी हैं.
अमित शाह के बहाने नरेंद्र मोदी सिर्फ मुसलमानों को नहीं धमका रहे हैं, बल्कि उनके बहाने दलितों को भी धमका रहे हैं. अमित शाह एक दबंग किस्म के मंत्री रहे हैं और ऐसे मंत्री रहे हैं, जो कुछ घटनाएं घटवा कर कुछ समुदायों को सीधा संदेश देता है. ऐसे मंत्री जब राजनीतिक नेता के तौर पर उत्तर प्रदेश में जाएगा, तो यह सीधा संदेश उन लोगों के लिए भी है, जो कट्टर हिंदू हैं कि आप लोग ख़डे हो जाएं. आप अगर ख़डे हो जाएंगे, तो आपके सामने न मुसलमान आने की हिम्मत करेंगे और न ही दलित. अमित शाह के जरिये नरेंद्र मोदी का संदेश उत्तर प्रदेश में फैल रहा है, लेकिन इससे ब़डा संदेश उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के समय विश्‍व हिंदू परिषद ने देने काम किया था. दिल्ली में नरसिम्हा राव की सरकार थी और बाबरी मस्जिद शहीद कर दी गई थी, जिसे भाजपा के लोग कहते हैं कि ढांचा गिरा दिया गया था. यह संदेश उत्तर प्रदेश के साथ दूसरे प्रदेशों के कट्टर हिंदुओं के लिए भी था. अब अगर वे ख़डे हो जाएंगे, तो नरसिम्हा राव के बाद जो भी प्रधानमंत्री होगा, वह भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री होगा, क्योंकि मस्जिद गिरा दी गई है और भगवान राम का भव्य मंदिर वहां बनाना है. विश्‍व हिंदू परिषद द्वारा सारे देश को दिए गए इस संदेश के बाद, खासकर उत्तर प्रदेश को दिए गए संदेश के बाद ही चुनाव हुए. उन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को पूरी तरह हार मिली. कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, जब बाबरी मस्जिद गिरी थी. कल्याण सिंह ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दायर करके कहा था कि मस्जिद को कुछ नहीं होगा. सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले की इज्जत करेगी, लेकिन कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की इज्जत नहीं की. पर सवाल यह है कि वह संदेश उत्तर प्रदेश के हिंदुओं ने कैसे लिया. उत्तर प्रदेश के हिंदुओं ने अगले चुनाव में मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाया. उत्तर प्रदेश के या देश के हिंदुओं ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री नहीं बनाया. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ दलों को बहुमत दिया और इंद्र कुमार गुजराल भारत के प्रधानमंत्री बने. इसके बाद अटल जी प्रधानमंत्री अवश्य बने, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के पीछे कारण राम मंदिर नहीं था, या बाबरी मस्जिद का गिरना नहीं था. अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्री बनने के पीछे सिर्फ एक कारण था कि तीसरे मोर्चे के नाम पर देवगौ़डा और इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बनें. उन्होंने देश के लोगों का मोह भंग किया. लोगों की इच्छा भाजपा को सत्ता में लाने की नहीं थी, लेकिन दोनों ने देश के बुनियादी विकास के लिए कुछ नहीं किया. हां, देवगौ़डा को जब कांग्रेस ने सत्ता से हटाया, तो इंद्र कुमार गुजराल को उन्होंने प्रधानमंत्री जरूर बनाया, लेकिन इंद्र कुमार गुजराल को भी कांग्रेस ने सत्ता से अंतत: हटा ही दिया.
देश को फिर ऐसा लगा कि देवगौ़डा या इंद्र कुमार गुजराल जैसे नेता या तथाकथित तीसरा मोर्चा देश में सरकार नहीं चला सकता. देश के एक बहुत ब़डे वर्ग का कनसर्न नीति संबंधी फैसलों में नहीं, बल्कि सुचारू रूप से सरकार चलाने में है. इसीलिए लोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाया. यह बात बहुत लोग नहीं समझते हैं कि उनका प्रधानमंत्री बनना तीसरे मोर्चे की असफलता का प्रमाण है. उस समय अटल जी जब प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के लिए जिन दलों को साथ लिया, उन दलों की सभी शर्तें उन्होंेने मान लीं. शर्तें थीं – धारा 370 के बारे में बात नहीं होगी, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद यथास्थिति बनी रहेगी और कोई बातचीत उस पर नहीं होगी. समान आचारसंहिता लागू करने की मांग नहीं उठाई जाएगी और इन सभी विषयों पर कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा.
अटल जी ने इन बातों को माना और वह लगभग सात साल प्रधानमंत्री रहे. अटल जी ने इन विषयों पर बात तक नहीं की, जबकि विश्‍व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहते थे कि मंदिर भी बने और 370 भी खत्म हों. अटल जी से साफ कह दिया कि जब हमारे दोस्त-भाई दो तिहाई की संख्या में सांसद हो जाएंगे, तभी यह काम हो सकता है.
अब नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश और सारे देश को एक संदेश दे रहे हैं. यह संदेश बहुत खास है. अमित शाह उनके विश्‍वसनीय सिपहसालार हैं और यह मान लेना चाहिए कि अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं, तो गृहमंत्री या उप-प्रधानमंत्री अमित शाह ही होंगे. अमित शाह ने जैसे गुजरात में पुलिस का इस्तेमाल कर मुसलमानों को डराया, धमकाया, ठीक वैसा ही काम गृहमंत्री या उप-प्रधानमंत्री बनने के बाद वह करेंगे. अमित शाह न केवल देश में नरेंद्र मोदी के सबसे ब़डे  अंतरंग सिपहसालार हैं, बल्कि वह नरेंद्र मोदी की नीतियों का जीता-जागता चेहरा हैं.
अब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं बनेंगे, यह अलग बात है. पर मुझे यह लगता है कि नरेंद्र मोदी जिस दिशा में चल रहे हैं, वह कट्टर हिंदुत्व की दिशा है. अगर सारे हिंदू नरेंद्र मोदी की इस दिशा का समर्थन कर देते हैं, तो देश का भाग्य ही बदल जाएगा. फिर मुसलमान यहां दूसरे दर्जे के नागिरक बनकर रहेंगे. और अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनते हैं, तो इस देश में वैसा ही लोकतंत्र चलेगा, जैसा हमारे संविधान में परिभाषित है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर  संविधान बदलने की संभावना दिखाई देती है, लेकिन यह संविधान जनता के पक्ष में नहीं, बल्कि कट्टर हिंदुओ के पक्ष में बदला जाएगा.
सवाल यह उठता है कि क्या देश का सामान्य हिंदू, जिसे हम मॉडरेट हिंदू कहते हैं, क्या नरेंद्र मोदी के साथ जाएगा. अब तक का इतिहास तो यही कहता है कि सामान्य हिंदू कहा जाने वाला नागरिक इतना समझदार है कि वह देश को पहले और धर्म को बाद में देखता है, क्योंकि सामान्य हिंदू नाम से जाने जाना वाला नागरिक जानता और मानता है कि वह धर्म से हिंदू नहीं, बल्कि धर्म से सनातनी है. और सनातन धर्म और हिंदू धर्म में फर्क है. फर्क बहुत साफ है कि हिंदू नाम से कोई धर्म है ही नहीं और सनातन नाम से धर्म है. सनातन धर्म के नारे अलग हैं और हिंदू धर्म के नारे अलग. हिंदू धर्म विश्‍व हिंदू परिषद ने चलाया है और विश्‍व हिंदू परिषद द्वारा चलाए हुए धर्म को अभी भारत के नागरिकों ने स्वीकार ही नहीं किया है. इसीलिए 2014 में जो फैसले लिए जाएंगे, उनमें एक फैसला यह भी होगा कि इस देश का हिंदू इस देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंकना चाहता है या संप्रदायिकता की आग से बचाकर विकास और लोकतंत्र की राह पर पुन: ख़डा करना चाहता है.

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