page10अभी तक हमने आपको सूचना क़ानून से जु़डे ज़्यादातर पहलुओं से परिचित करा दिया है. विभिन्न विषयों से संबंधित आरटीआई आवेदन के बारे में बताया है और उसे प्रकाशित भी किया है. लेकिन अभी तक हमने सूचना क़ानून के एक महत्वपूर्ण भाग की चर्चा नहीं की है. कई बार जब आप किसी सरकारी विभाग में आरटीआई आवेदन देते हैं, तो जवाब में आपको बताया जाता है कि फलां सूचना तीसरे पक्ष से जु़डी है, इसलिए आपको सूचना नहीं दी जा सकती है, या मामला अदालत में विचाराधीन है. इसलिए सूचना का प्रकटीकरण नहीं किया जा सकता है या फिर अमुक सूचना को सार्वजनिक करना देशहित में नहीं है, या फिर सूचना को सार्वजनिक करने से देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है. हालांकि कई बार ऐसा लगता है कि लोक सूचना अधिकारी सूचना न देने के लिए बहानेबाज़ी कर रहा है और कई बार सचमुच ऐसा होता भी है. ऐसे में ज़रूरी यह है कि हमारे पास आरटीआई क़ानून की ऐसी धाराओं की विस्तृत जानकारी, जो सूचना के सार्वजनिक किए जाने से रोकते हैं. इससे ़फायदा यह होगा कि हम आसानी से यह तय कर सकेंगे कि लोक सूचना अधिकारी कहीं उन धाराओं का ग़लत इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है. इस अंक से हम आपको आरटीआई क़ानून की धारा 8, 11, न्यायालय की अवमानना, संसदीय विशेषाधिकार और तीसरे पक्ष के बारे में उदाहरण सहित बताएंगे, जो आवेदक को सूचना उपलब्ध कराने से रोकता है. इस अंक में फिलहाल हम तीसरे पक्ष की बात कर रहे हैं. उम्मीद है कि यह आपके काम आएगा. इसके अलावा, आरटीआई क़ानून का इस्तेमाल करते रहिए. अगर कोई समस्या या परेशानी हो, तो हमें बताएं. हम आपके साथ हैं.

सूचना के अधिकार क़ानून के तहत जो व्यक्ति सूचना मांगता है, वह प्रथम पक्षकार होता है. जिस विभाग या लोक प्राधिकारी से सूचना मांगता है, वह द्वितीय पक्षकार होता है. इस तरह की सूचनाओं में आमतौर पर किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती. लेकिन यदि आवेदक द्वारा मांगी जा रही सूचना आवेदक से सीधे-सीधे संबंधित न होकर किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित हो, तो यह अन्य व्यक्ति तृतीय पक्ष कहलाता है.

सूचना के अधिकार क़ानून के  तहत जो व्यक्ति सूचना मांगता है, वह प्रथम पक्षकार होता है. जिस विभाग या लोक प्राधिकारी से सूचना मांगता है, वह द्वितीय पक्षकार होता है. इस तरह की सूचनाओं में आमतौर पर किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती. लेकिन यदि आवेदक द्वारा मांगी जा रही सूचना आवेदक से सीधे-सीधे संबंधित न होकर किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित हो, तो यह अन्य व्यक्ति तृतीय पक्ष कहलाता है. तीसरे पक्ष से संबंधित व्यक्ति की सूचना को तृतीय पक्ष की सूचना कहा जाता है. सूचना के अधिकार क़ानून में तृतीय पक्ष की गोपनीयता को संरक्षित करने का प्रावधान है. क़ानून की धारा-11 में ऐसी सूचनाएं, जो किसी दूसरे व्यक्ति से संबंधित होती हैं, उन सूचनाओं को आवेदक को दिए जाने से पूर्व तीसरे पक्षकार से इजाज़त लेनी पड़ती है. ऐसे मामलों में लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मदारी होती है कि वह आवेदन प्राप्त होने के पांच दिनों के  भीतर तीसरे पक्षकार को इस आशय की सूचना दे तथा अगले 10 दिनों के  भीतर सूचना जारी करने की सहमति या असहमति प्राप्त करे. लेकिन क़ानून में यह भी स्पष्ट किया गया है कि ऐसी सूचना जिससे सामाजिक हित सधता हो या तीसरे पक्ष की सूचना को जारी करने से होने वाली संभावित क्षति लोक हित से ज़्यादा बड़ी न हो, तो उस दशा में मांगी गई सूचना जारी की जा सकती है. क़ानून में यह एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी लोक सूचना अधिकारी को है कि वह मांगी गई सूचना तृतीय पक्षकार व लोक हित को अच्छी तरह समझ-बूझ कर ही जारी करे. लेकिन कई मामलों में देखने में यह आया है कि लोक सूचना अधिकारी व्यक्तिगत स्वार्थ या विभागीय दबाव के कारण तृतीय पक्ष से संबंधित धारा-11 का ग़लत इस्तेमाल सूचनाओं को जारी करने से रोकने में कर रहे हैं. ऐसे समय में सूचना आयुक्तों की ज़िम्मेदारी का़फी बढ़ जाती है कि वह तृतीय पक्ष से संबंधित सूचनाओं को जारी करने में लोक हित का विशेष ख्याल रखें, जिससे कि क़ानून की मूल भावना, पारदर्शिता और जवाबदेयता पूरी तरह से बची रहे.
तीसरे पक्ष से संबंधित कुछ अहम फैसले
एक कर दाता द्वारा जमा की गई आयकर रिटर्न की सूचना भी तृतीय पक्ष से संबंधित मानी गई है. सूचना आयोग ने एक मामले की सुनवाई के दौरान आयकर रिटर्न की प्रतिलिपि नहीं दिलवाई. आयोग का मानना था कि करदाता द्वारा यह सूचना विभाग को वैश्वासिक संबंधों के तहत दी जाती है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. लेकिन एक दूसरे मामले में आयोग ने आयकर एसेसमेंट की जानकारी सार्वजनिक करने में कोई आपत्ति ही नहीं जताई. इससे समझा जा सकता है कि सूचना दी जाए या नहीं, इसका सारा दारोमदार सूचना आयुक्त पर ही है. एक दंपत्ति ने सूचना के अधिकार क़ानून के तहत एक डॉक्टर के शैक्षणिक प्रमाण-पत्रों की प्रतिलिपि मांगी, जिसे मेडिकल संस्थान ने देने से मना कर दिया. संस्थान का मानना था कि यह किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत सूचना है, जिसे दिए जाने से उसकी निजता का हनन होता है. आयोग में सुनवाई के दौरान दंपत्ति ने यह सूचना लोकहित में जारी करने की दलील दी. उनका कहना था कि जिस डॉक्टर के शैक्षणिक दस्तावेज़ मांगे गए हैं, उसने उनके पुत्र का इलाज किया था और उनके पुत्र की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई थी. इसलिए उन्हें संदेह था कि डॉक्टर के दस्तावेज़ फर्ज़ी हैं. आयोग ने भी इस दलील पर सहमति जताई और सूचना जनहित में जारी करने के आदेश अंतत: दे दिए.

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