page-10 पिछले अंक में हमने आपको आरटीआई और संसदीय विशेषाधिकार के बीच क्या संबंध है, के बारे में बताया था. हम उम्मीद करते हैं कि आगे से जब भी आपको लोक सूचना अधिकारी की तऱफ से कुछ ऐसा जवाब मिले कि संसदीय विशेषाधिकार से जु़डे होने के कारण आपको अमुक सूचना नहीं दी सकती है, तब आप चुप-चाप नहीं बैठेंगे, बल्कि आप लोक सूचना अधिकारी को पत्र लिखकर या फिर व्यक्तिगत रूप से इनसे मिलकर यह समझाने की कोशिश करेंगे कि कैसे आपके द्वारा मांगी गई सूचना को सार्वजनिक करने से जनसाधारण को लाभ पहुंचेगा. और अगर फिर भी लोक सूचना अधिकारी आपकी बातों से सहमत नहीं होता है, तब आप अपने तर्कों के साथ प्रथम अपील या द्वितीय अपील ज़रूर करेंगे. इसके आगे इस अंक में हम आपको ऐसी सूचना के प्रकटीकरण से संबंधित बातें बताएंगे, जिनका संबंध न्यायालय से है या जिनके बारे में यह कहा जाता है कि अमुक सूचना को सार्वजनिक करने से न्यायालय की अवमानना होती है. यहां हम आपको बता दें कि लोक सूचना अधिकारी न्यायालय की अवमानना की बात कहकर भी कई बार सूचना देने से मना कर देते हैं. हो सकता है कि कई बार यह तर्क सही भी हो, लेकिन ज़्यादातर मामलों में देखा गया है कि लोक सूचना अधिकारी इस तर्क का ग़लत इस्तेमाल करते हैं. इसलिए यह ज़रूरी है कि आवेदक को न्यायालय की अवमानना की सही परिभाषा के बारे में जानकारी हो. इस अंक में हम आपको उदाहरण सहित यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि न्यायालय की अवमानना कब और कैसे होती है और किन-किन स्थितियों में आपको सूचना देने से मना किया जा सकता है और किन-किन परिस्थितियों में नहीं. हमें उम्मीद है कि आप जमकर आरटीआई क़ानून का इस्तेमाल कर रहे हैं और दूसरों को भी इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे होंगे. अगर कोई समस्या या परेशानी हो, तो हमें बताएं. हम हर क़दम पर आपको मदद देने के लिए तैयार हैं.
सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 की धारा 8(1)(बी) में ऐसी सूचनाएं, जिनके प्रकाशन पर किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा अभिव्यक्त रूप से प्रतिबंध लगाया गया हो या जिनके प्रकटन से न्यायालय की अवमानना होती हो, उनके सार्वजनिक किए जाने पर रोक लगाई गई है. अगर कोई मामला किसी कोर्ट में निर्णय के लिए विचाराधीन है, इसका यह कदापि अर्थ नहीं है कि उससे संबंधित कोई सूचना नहीं मांगी जा सकती.
विचाराधीन मामलों के  संबंध में कोई सूचना सार्वजनिक किए जाने से कोर्ट की अवमानना हो, यह बिल्कुल ज़रूरी नहीं है. हां, कोई विशेष सूचना, जो कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर सार्वजनिक किए जाने पर रोक लगा दी हो, अगर उसे सार्वजनिक किए जाने की बात होगी, तो कोर्ट की अवमानना ज़रूर होगी. गोधरा जांच के दौरान उच्च न्यायालय ने अपने एक ़फैसले में रेल मंत्रालय को विशेष तौर पर निर्देश दिए थे कि गोधरा नरसंहार की जांच रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत न करे. न्यायालय ने रिपोर्ट के सार्वजनिक किए जाने पर रोक लगा दी. इस सूचना के दिए जाने से कोर्ट की अवमानना भी हो सकती है और धारा 8(1)(बी) का उल्लंघन भी. ऐसे मुद्दों पर निर्णय देते व़क्त अधिकारियों को केवल वही सूचनाएं देने से मना करना चाहिए, जो न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर सार्वजनिक किए जाने को निषिद्ध कर रखा हो. कुछ मामलों में यह भी देखने में आया है कि सरकारी अधिकारी इस धारा का इस्तेमाल सूचना नहीं देने के बहाने के रूप में धड़ल्ले से कर रहे हैं. अफरोज ने एम्स और दिल्ली पुलिस से बाटला हाउस एनकाउंटर के दौरान मारे गए तथाकथित आतंकियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, एफआईआर की कॉपी, दिल्ली में हुए सीरियल धमाकों की तफ्तीश के दौरान गिरफ्तारी आदि की जानकारी मांगी थी. जवाब में बताया गया कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है और सूचना नहीं दी जा सकती, जबकि कोर्ट द्वारा सूचना सार्वजनिक नहीं किए जाने के  संबंध में दिया गया ऐसा कोई भी आदेश प्रकाश में नहीं आया. ज़ाहिर है, ऐसे समय में जब सूचना न देना एक नज़ीर बनती जा रही हो, तो सूचना आयुक्तों की भूमिका बहुत बढ़ जाती है.
क्या कहता है क़ानून
सूचना के अधिकार क़ानून में कोर्ट की अवमानना को परिभाषित नहीं किया गया है. इसे समझने के  लिए न्यायालय अवमानना अधिनियम-1971 का सहारा लिया जा सकता है. अधिनियम की धारा 2(ए)(बी) और (सी) में बताया गया है कि
ए- दीवानी या फौजदारी दोनों तरह से कोर्ट की अवमानना हो सकती है.
बी- यदि किसी कोर्ट के निर्णय, डिक्री, आदेश, निर्देश, याचिका या कोर्ट की किसी प्रक्रिया का जानबूझकर उल्लंघन किया जाए या कोर्ट द्वारा दिए गए किसी वचन को जानबूझकर भंग किया जाए, तो यह कोर्ट की दीवानी अवमानना होगी.
सी- किसी प्रकाशन, चाहे वह मौखिक, लिखित, सांकेतिक या किसी अभिवेदन या अन्य किसी माध्यम या कृत्य द्वारा-
1- बदनाम या बदनाम करने की कोशिश या अभिकरण या कोर्ट को नीचा दिखाने की कोशिश की जाए या
2- किसी न्यायिक प्रक्रिया में पक्षपात या हस्तक्षेप
3- न्याय व्यवस्था को किसी प्रकार से हस्तक्षेप या बाधित करना या बाधित करने की कोशिश करना न्यायालय की अवमानना हो सकती है.

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