page--3 उड़ीसा का खनन घोटाला गोवा और कर्नाटक से पूरी तरह अलग है. उड़ीसा में अवैध खनन की गतिविधियां ज़्यादातर वन भूमि क्षेत्र, संरक्षित वन, डीएलसी के भूखंडों और कुछ ग्रामीण इलाकों में हो रही हैं. पूर्व में डीएलसी को भूखंड घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वन विभाग, राजस्व विभाग और खनन विभाग पर दबाव बनाया था कि यहां अवैध तरीके से खनन कार्य चल रहा है. कुछ सरकारी भूखंडों को राज्य वन विभाग ने 1996 में राजस्व प्राप्ति की जल्दबाज़ी में खनन कार्य के लिए चयनित भी किया था, लेकिन हालांकि इन भूखंडों पर खनन गतिविधियों का कार्य वर्ष 1930 से चल रहा है. कर्नाटक और गोवा में राज्य खनन और भू-विज्ञान विभागों द्वारा पूरे क्षेत्र में पट्टेदारों को मंजूरी दी गई, जहां आरएमएल का मामला चल रहा है. हालांकि जिन इलाक़ों का स्थानांतरण किया गया, दरअसल वह क़ानून का उल्लंघन है. हालांकि उड़ीसा में ऐसी बातें कभी नहीं हुईं. उड़ीसा में ज़्यादातर खनन माफिया लोहे की खुदाई में सक्रिय हैं. इतना ही नहीं, वे बग़ैर किसी पट्टे के वन क्षेत्र में मैगनीज का खनन कर रहे हैं. दरअसल, खनन माफियाओं की उक्त गतिविधियां बग़ैर किसी मिलीभगत के संभव ही नहीं हैं.

यहां आयोग की नज़र सिर्फ पट्टे वाले इलाक़ों पर ही है, जबकि उसे ग़ैर पट्टे वाले क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. इसके अलावा, आयोग को बिक्रीकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, परिवहन ख़र्च और बैंकिंग लेन-देन का भी सत्यापन करना चाहिए. नियम 37 के अनुसार, किसी भी तरह के वित्तीय लेन-देन के लिए उसे प्रवर्तन निदेशालय के पास भेजा जाता है.

ग़ौरतलब है कि इन इलाक़ों में मैगनीज और लौह अयस्क की चोरी वर्ष 1998 से ही की जा रही है. खनन विभाग ने इस बाबत कई बार आरक्षित वन क्षेत्र, गांवों और खिसरा वन क्षेत्र में चोरी की सूचनाएं दी हैं. अयस्कों की चोरी ठकुरानी, वैतरानी, सिधामाथा और खजुरिद्धि संरक्षित वन क्षेत्रों में की जा रही है. इस बाबत आरएफएस की ओर से कई बार सूचनाएं भी दी गईं, लेकिन वन विभाग इसकी लगातार अनदेखी कर रहा है. ज़्यादातर अवैध खनन वन क्षेत्र के भीतर ही किया जा रहा है, लेकिन वन विभाग उसे रोकने के लिए न तो कोई ठोस क़दम उठा रहा है और न ही कोई मामला दर्ज कर रहा है. वर्ष 2009-10 में सरकार ने खनन घोटाले के संबंध में अधिकारियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया था और इस मामले की शिकायत सतर्कता विभाग को भी मिली थी, लेकिन उक्त अधिकारियों के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि मामले को दबाने और ऱफा-द़फा करने की कोशिश की गई. सरकार के रवैये से सा़फ है कि वह इस मामले में आईएफएस अधिकारियों और इस्पात एवं खनन विभाग के निदेशकों का पक्ष ले रही है.
हक़ीक़त में सरकार ने मानव संसाधन की ज़रूरतों को हमेशा नज़रअंदाज किया है. वन विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने कई बार वेतन वृद्धि की मांग की, लेकिन सरकार ख़ामोश रही. ऐसे में खनन और भू-विज्ञान निदेशालय को पुन: एकीकृत करने की ज़रूरत है, जिसे वर्ष 1996 में विभाजित कर दिया गया था. हालांकि सरकार को इन मुद्दों का कोई ध्यान नहीं है.
आईथ्री एमएस प्रोजेक्ट एक ऑनलाइन सॉफ्टवेयर है, जिसे एक निजी कंपनी ने विकसित किया है. वर्ष 2011 में सरकार ने इसे लागू किया. यह प्रोजेक्ट एक ऑनलाइन सिस्टम है, जो बग़ैर किसी सुरक्षा जांच के निजी कंपनियों के हाथों में चला जाता है. यह बेहद खतरनाक है, लेकिन फिर भी इस विकसित सॉफ्टवेयर की सुरक्षा जांच किए बिना यही कंपनी इसे मैनेज और संचालित कर रही है. कई स्तरों पर इससे ख़तरा है, बावजूद इसके खनन विभाग के निदेशक दक्ष कंप्यूटरकर्मी भर्ती नहीं कर रहे हैं.
ग़ौरतलब है कि जल्द ही शाह कमीशन अवैध खनन के मामले में जांच और पूछताछ करने वाला है. इस बाबत आयोग खनन अनियमितताओं और नियमों में की गई गड़बड़ियों की जांच करेगा. साथ ही वह सीएसआर (कंपनी सोशल रिस्पांसिबलिटीज) की उन गतिविधियों की जांच करेगा, जिनमें लाइसेंस और भू-पट्टों का आवंटन किया गया. उल्लेखनीय है कि आयोग ने इससे पहले भी बड़े पैमाने पर हो रही वनों की कटाई और जंगल के भीतर खनिज अयस्कों की चोरी की जांच की है. आयोग को पूर्व में कामयाबी इसलिए नहीं मिली, क्योंकि एक तो उसके पास तकनीकी विशेषज्ञों की कमी थी और दूसरा इस चोरी के संबंध में वह पूछताछ करने में भी नाकाम रहा. सरकार ने जब डीजीपीएस मानचित्र को पट्टे वाले इलाकों में प्रस्तुत किया, तब काफी अनियमितताओं के बारे में पता चला. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आयोग ने उक्त विसंगतियां दूर करने के लिए अधिक समय क्यों दिया? आख़िर आयोग ने इस बाबत कार्रवाई करने की अनुशंसा क्यों नहीं की? अगर वैज्ञानिक यह जानते थे कि डीजीपीएस सर्वे सही नहीं है और वह भूमि सर्वेक्षण के लिए ठीक नहीं है, तो फिर सर्वेक्षण पर ज़ोर क्यों दिया गया और उसकी अंतिम रिपोर्ट क्यों तैयार की गई. अवैध खनन, प्रसंस्करण, उसकी खपत, अवैध स्रोत एवं ग़ैर लीज के साथ-साथ रेलवे और परिवहन जैसी सुविधाएं किस आधार पर मिल रही हैं? इन सबकी जांच करना बेहद ज़रूरी है. इतना ही नहीं, इसमें कई ऐसे पहलू हैं, जिन पर ग़ौर किया जाना चाहिए.
यहां आयोग की नज़र सिर्फ पट्टे वाले इलाक़ों पर ही है, जबकि उसे ग़ैर पट्टे वाले क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. इसके अलावा, आयोग को बिक्रीकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, परिवहन ख़र्च और बैंकिंग लेन-देन का भी सत्यापन करना चाहिए. नियम 37 के अनुसार, किसी भी तरह के वित्तीय लेन-देन के लिए उसे प्रवर्तन निदेशालय के पास भेजा जाता है. राज्य और केंद्र सरकार के विभागों ने भी आयोग को इस संबंध में पूरी जानकारी नहीं दी है. इसे राज्य सरकार के सतर्कता विभाग की अज्ञानता कही जा सकती है कि उसने उन पहलुओं पर ग़ौर नहीं किया, जिनमें स्पष्ट है कि सुबूतों को मिटाने की कोशिश की गई है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में इसी तरह सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने पर कई अधिकारियों को निलंबित और गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन अभी तक किसी एक को भी दोषी साबित नहीं किया जा सका है. कई विभागों द्वारा ग़ैर पट्टा क्षेत्रों और ख़ासकर वन क्षेत्रों में खनिज अयस्कों से लदे ट्रकों को जब्त किया गया है. कोई भी विभाग वन क्षेत्रों का दौरा नहीं कर सकता, क्योंकि उन्हें वन सीमाओं की जानकारी नहीं है. इतना ही नहीं, वन विभाग के पास अवैध खनन की गतिविधियों से जुड़ी कोई रिपोर्ट भी नहीं है. हालांकि आज भी वन क्षेत्रों में खनन कार्य हो रहे हैं. सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि उड़ीसा सरकार ने पिछले तीन वर्षों में रॉयल्टी के रूप में सिर्फ़ एक हज़ार रुपये प्रतिवर्ष की बढ़ोत्तरी की है, वह भी बिना योजना उत्पादन के. इससे खनिजों के अतिरिक्त खनन और तस्करी को बढ़ावा मिला. सवाल यह है कि वन विभाग के किसी अधिकारी को सतर्कता विभाग ने गिरफ्तार क्यों नहीं किया, वह भी तब, जबकि उनके ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए गए थे?
उपरोक्त सवालों के जवाब में उड़ीसा के इस्पात एवं खान मंत्री रजनीकांत सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने खनन घोटाले के बारे में कई क़दम उठाए हैं और कार्रवाई भी की है. हम अन्य खनन मुद्दों पर चर्चा करेंगे. सरकार भविष्य में खनन घोटाले पर रोक लगाने के लिए कई क़दम उठाने जा रही है. उड़ीसा सरकार के मुख्य सचिव विजय पटनायक को इस मुद्दे पर बात करने से परहेज है और वह बहुत हल्के ढंग से कहते हैं कि सरकार ने खनन घोटाले को नियंत्रित कर लिया है और इसके लिए कई क़दम उठाए गए हैं.
खनन पूरी तरह अवैध है
उड़ीसा में वन क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन के मसले पर प्रस्तुत है इंजीनियर प्रभात रंजन मलिक से हुई बातचीत के मुख्य अंश:-
 आप यह कैसे मानते हैं कि खनन घोटाले की जांच शाह आयोग सही तरीक़े से नहीं कर रहा है?
-अवैध खनन, प्रसंस्करण और उसकी खपत पर कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ग़ौर किया जाना चाहिए. ग़ैर पट्टे वाले क्षेत्रों में जो खनन हो रहा है, वह पूरी तरह अवैध है. वन क्षेत्रों में वर्ष 2010 तक क़रीब 1000 हेक्टेयर क्षेत्र में अवैध तरीक़े से खनन किया गया और खनिज अयस्कों की ढुलाई रेलवे द्वारा की गई. शाह आयोग को चाहिए कि वह पट्टा क्षेत्र में हो रहे खनन पर ग़ौर करे. साथ ही बिक्रीकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और पट्टेदारों के बीच हुए वित्तीय लेन-देन की बारीकी से जांच करे, क्योंकि नियम 37 के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय को इसकी जानकारी होनी चाहिए.
खनन घोटाला और इसमें सरकार की भूमिका को लेकर क्या कहेंगे आप?
-शाह आयोग को केंद्र और राज्य सरकार के विभागों द्वारा पर्याप्त और सही जानकारी नहीं दी जा रही है. यह समझ से परे है कि उड़ीसा सरकार के अधीन राज्य सतर्कता आयोग इस मामले में ढिलाई क्यों कर रहा है. सभी को पता है कि यहां बड़े पैमाने पर खनन घोटाले को अंजाम दिया जा रहा है, फिर भी विजिलेंस के पास सुबूतों का अभाव है. इस संबंध में वर्ष 2009 में कई अधिकारियों को निलंबित और गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन अभी तक इस मामले में किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सका. इसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि घोटाले के सभी पहलुओं पर ग़ौर नहीं किया गया या फिर इस संबंध में जानकारी का अभाव था.
वन विभाग को इस घोटाले के लिए आप किस तरह ज़िम्मेदार मानते हैं?
सरकार के कई विभागों ने पट्टा क्षेत्रों, ख़ासकर वन क्षेत्रों में कई बार खनिज अयस्कों से लदे ट्रकों को लावारिस रूप में जब्त किया है. वन विभाग के अधिकारियों को वन क्षेत्रों में गश्त करनी चाहिए, लेकिन दुर्भाग्यजनक बात यह है कि उन्हें वन सीमाओं के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है. इतना ही नहीं, वन क्षेत्रों में या उससे बाहर हो रही अवैध गतिविधियों के बारे में कहीं कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. बड़ी संख्या में अयस्कों से लदे ट्रकों को आज भी देखा जा सकता है.
बड़े घोटाले की अनदेखी अनजाने में या जानबूझकर
बड़ा वन घोटाला खनन घोटाले के अंदर छिपा हुआ है. निम्नलिखित जंगलों में बड़े पैमाने पर खनिज चोरी की घटनाएं हुई हैं, लेकिन सरकार इन अवैध गतिविधियों का पता लगाने और कार्रवाई करने को लेकर तनिक भी परेशान नहीं है.
जोडा खनन सर्किल (क्योंझर जिला)-ठकुरानी रिजर्व फॉरेस्ट ब्लॉक 1 से 5 सरादा/जिंदल माइंस के गेट नंबर 3 से 200 मीटर की दूरी पर 150 मीटर लंबी, 30 मीटर चौड़ी और 5 मीटर ऊंची एक खाई देखी जा सकती है, जिसे माफियाओं ने विकसित किया है. सड़क ड़ेढ किलोमीटर लंबी है और झारखंड के कई क्रशरों से जुड़ी हुई है. इस जगह से उठाया गया अवैध अयस्क झारखंड ले जाया जाता है, जहां प्रोसेसिंग के बाद उसे बेच दिया जाता है और उड़ीसा के संसाधनों पर बिक्रीकर झारखंड कमाता है. प्रसंस्कृत अयस्क फिर से निर्यात के लिए पारादीप और हल्दिया के लिए ले जाया जाता है.
पानी टंकी-150 हेक्टेयर और 5 मीटर गहराई का क्षेत्र. लौह अयस्क के अवैध खनन के लिए यहां माफियाओं ने 150 से 200 साल तक पुराने पेड़ों को काट दिया, लेकिन वन विभाग द्वारा कोई मामला दर्ज नहीं किया गया.
खंड 9-ठकुरानी रिजर्व फॉरेस्ट के अधीन बी-9, टनकुरा और साल वन के बीच 50,000 मीट्रिक टन लौह अयस्क अवैध तरीके से निकाला गया.
बैतरणी आरएफ-(महापर्बत) इंद्राणी पटनायक माइंस के पास 25 हेक्टेयर में 3 मीटर गहराई में अवैध खनन. अवैध रूप से निकाला गया आयरन फूटहिल्स से सटे क्रशर में ले जाया जाता है.
महुलगुड़ा वन-टाटा के आसपास का क्षेत्र. 100 हेक्टेयर. एक मीटर की गहराई. ग्रेड-65.
खांदबंध-रिजर्व फॉरेस्ट के अंदर टाटा सरेंडर एरिया. 200 हेक्टेयर, 50 मीटर बाई 4 मीटर का क्षेत्र, आरएफ-80 प्रतिशत, ग्रेड-67,  3 से 4 फीट के 20 साल पुराने पेड़ काटे गए.
कोइरा सर्किल (सुंदरगढ़)-पाटाबेड़ा, गोनुआ, खजुरिद्धि रिजर्व फॉरेस्ट. अवैध रूप से 3000 टन आयरन ओर का उत्खनन. 3 से 4 फीट के सौ साल पुराने पेड़ काटे गए.
बीते 30 मार्च को क्योंझर जिले की बामेबारी पुलिस ने चोरी के लौह अयस्क से भरे दो ट्रक जब्त किए. उनके चालकों ने माना कि अयस्क कंकणा जंगल से चोरी किए गए थे. आखिर, वन विभाग ने कोई क़दम क्यों नहीं उठाया? 2010 के मध्य तक रेलवे की ओर से सही अयस्कों की ढुलाई के लिए कोई नियम या प्रतिबंध नहीं था. फरवरी, 2010 से जनवरी 2011 के बीच 0.1 मिलियन टन अनक्लेम्ड आयरन ओर रेलवे साइडिंग जोडा से जब्त किए गए. इसकी नीलामी की गई और इससे 80-100 करोड़ रुपये मिले. अब तक उड़ीसा सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की और यहां तक कि इन लावारिस अयस्कों के स्रोत की पुष्टि या जांच के लिए भी कोई आदेश नहीं दिया गया है. शाह आयोग ने इस मामले को कभी नहीं देखा है और न ही खाते में इस लावारिस एवं नीलाम अयस्क से मिले पैसों को शामिल किया गया.
अवैध रूप से निकाले गए अयस्क का प्रसंस्करण आसान और सुविधाजनक हो, इसलिए क्रशर और स्पंज आयरन संयंत्र हमेशा अवैध स्रोतों के पास स्थापित किए जाते हैं. खनन घोटाले में क्रशर और स्पंज आयरन संयंत्र की बड़ी भूमिका है और इसमें कई शीर्ष राजनीतिक लोग शामिल हैं. वर्ष 2010-11 के दौरान 100 से अधिक व्यक्तियों को लौह अयस्क के अवैध परिवहन के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, लेकिन आज तक किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सका और न ही सजा मिली.
नवंबर 2009 में ठकुरानी संरक्षित वन क्षेत्र में माफियाओं ने खनन अधिकारियों और खनन निरीक्षकों पर देर रात हमला कर दिया और उनसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों की लूटपाट भी की. हालांकि इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस घटना की जानकारी होने के बावजूद पुलिस शिथिल पड़ी हुई है, जबकि इस तरह की घटनाएं वहां नियमित रूप से हो रही हैं. ग़ौरतलब है कि खनन विभाग की ओर से एमएमडीआर और एमसी जैसे क़ानून स़िर्फ पट्टे वाले इलाक़ों पर ही लागू हैं, लेकिन जो क्षेत्र इसके दायरे में नहीं आते, वहां खुलेआम खनन का कार्य जारी है और उस पर क़ानूनी कार्रवाई भी संभव नहीं है. खनन विभाग उन इलाक़ों को पट्टे पर दे सकता है और वहां खनन कार्य हो सकता है, जो एमएमडीआर, एमसी और ओएमपीटीएस के नियमों के तहत आते हैं. इसलिए पट्टाधारी क्षेत्र से आगे क़ानूनी कार्रवाई करना उसके लिए संभव नहीं है. ऐसे में, जब पट्टेदार प्राधिकृत क्षेत्र में खुदाई की जाती है, तो उसके लिए ईसी-ओएसपीसीबी से मंजूरी लेना आवश्यक होता है. निर्धारित मात्रा से अधिक उत्पादन या खुदाई किया जाना क़ानूनन ग़लत है. जोड़ा इलाक़े से प्रतिदिन 1,36,000 टन के हिसाब से 50 लाख टन लोहा सालाना निकाला जाता है. उसी तरह कोईरा से रोजाना 55,000 टन के हिसाब से 20 मिलियन टन लोहा सालाना निकाला जाता है, जबकि इन क्षेत्रों में खनन प्रतिबंधित है, लेकिन संबंधित विभागों द्वारा अभी तक कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं की गई.
 

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