अब उत्तर प्रदेश ने अपनी विदेश नीति बना ली है. आज़म ख़ान ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कूटनीतिक रिश्ते तोड़ लिए हैं. ऐसी स्थिति में लगता है कि उत्तर प्रदेश का कोई मंत्री अब अमेरिका का दौरा नहीं करेगा. आजम खान ने अमेरिका में रहने वाले मुसलमानों से कहा है कि वे उत्तर प्रदेश वापस आ जाएं (आम चुनाव में समाजवादी पार्टी को वोट देने के लिए) और अमेरिका जैसे तुच्छ देश को छोड़ दें. आज़म ख़ान को गुस्सा इसलिए आया, क्योंकि उन्हें लोगान एयरपोर्ट पर दस मिनट तक रोका गया था. वह अखिलेश यादव के साथ बोस्टन गए थे, जिन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में यह बताना था कि उन्होंने किस तरह कुंभ मेले का सफल प्रबंधन किया, लेकिन दोनों वापस आ गए. अफसोस! ऐसे में हार्वर्ड के छात्रों को अब कुंभ मेले के सफल आयोजन की जानकारी से वंचित रहना पड़ेगा. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय मंत्रियों को एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच से गुजरने या ट्रैफिक सिग्नल पर रुकने की आदत नहीं है.
अमेरिका की धरती पर उत्तर प्रदेश के मंत्री के मानवाधिकार को न बढ़ाकर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने देश की आर्थिक संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है. उत्तर प्रदेश के मंत्रियों को यात्रा से वंचित करने से अमेरिका दूसरी आर्थिक मंदी का शिकार हो जाएगा. जब ओबामा स्वयं घुटने के बल चलकर मुलायम सिंह यादव के गांव स्थित एयरपोर्ट पर आएंगे और उन्हें बिना एयरकंडीशन वाले एयरपोर्ट पर दस घंटे रोका जाएगा, तभी उत्तर प्रदेश के मंत्री के अपमान की क्षतिपूर्ति होगी. आजम खान खुशकिस्मत हैं कि उन्हें यूएस का वीजा मिल गया, लेकिन नरेंद्र मोदी तो इस वीजा के लिए कब से इंतज़ार कर रहे हैं. अगर मोदी को आज़म ख़ान की तरह वीजा मिले और उन्हें सुरक्षा जांच से गुजरना पड़े, तो वह बहुत ख़ुश होंगे. अब हम लोग सुनेंगे कि अमेरिका में रहने वाले भारतीयों से वहां का वीजा अस्वीकार करने के लिए कहा जाएगा. गुजरात को भी अमेरिका के साथ कूटनीतिक संबंध खत्म कर लेने चाहिए. उसके बाद मोदी कह सकते हैं कि वह आजम खान के साथ हैं और अब अमेरिका का वीजा नहीं चाहते. यह उत्तर प्रदेश में भाजपा को मुस्लिम वोट दिलाने में सहयोग करेगा.
विदेशी लोग इस बात का अनुभव नहीं करते हैं कि भारत में अगर कोई व्यक्ति एक बार सांसद या विधायक बन जाता है, तो उसे अपने साथ एक राजा की तरह व्यवहार की अपेक्षा होती है और मंत्री बनने के बाद तो कुछ कहा ही नहीं जाना चाहिए कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए. यही तो कारण है कि भारत के बहुत अमीर लोग भी विधायिका के सदस्य बनना चाहते हैं. याद कीजिए, राज्यसभा की सीट के लिए किसी ने 56 करोड़ रुपये दिए थे. कर्नाटक में ग़ैर-क़ानूनी खदान मालिकों ने पिछले चुनाव में अपने निजी हेलिकॉप्टर से चुनाव प्रचार किया, भाजपा के लिए वोट जुटाए और कई सीटों पर जीत भी दिलाई. इस समय उक्त खदान मालिक जेल में हैं, लेकिन इसके लिए किसी सरकार को नहीं, बल्कि न्यायपालिका को धन्यवाद दिया जाना चाहिए. भू-माफिया से लेकर दूसरे ग़ैर-क़ानूनी काम करने वाले लोग टिकट लेते हैं और चुनाव जीतते हैं. आने वाले चुनाव में भी कुछ ऐसा ही होगा, क्योंकि सभी दलों को इनकी ज़रूरत है. चुनाव में बड़े पैमाने पर धन का उपयोग किया जाता है. चुनाव में पैसे बोलते हैं, लेकिन काला धन तो दहाड़ता है. ऐसे में, जबकि ग़लत तरीके से पैसा कमाने वाले लोग सभी पार्टियों में हैं और फिर भी वे जेल जा रहे हैं, तो इसके लिए केवल सर्वोच्च न्यायालय को धन्यवाद देना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट उन बातों को सत्यापित करता है, जिन्हें हम पहले से ही जानते थे या फिर जिन पर शक करते हैं. सीबीआई स्वायत्त संस्था नहीं है, यह एक आश्चर्य की बात है. इस पर किसे विश्वास होगा? कांग्रेस बचाओ संस्था (कांग्रेस बचाओ इंस्टीट्यूशन- सीबीआई) की हकीकत का पता चल गया. यह एक ऐसा पुरस्कार है, जिसे भाजपा या फिर यूपीए गठबंधन के अन्य सहयोगियों को दिया जा सकता है. इसका इस्तेमाल कभी भी किया जा सकता है. कर्नाटक में भाजपा को भ्रष्ट बताया जा रहा है और कुछ भाजपा नेताओं को भ्रष्ट भी साबित किया जा रहा है, लेकिन सीबीआई की हकीकत जानने के बाद तो इसके लिए कांग्रेस पर ही उंगली उठनी शुरू हो जाएगी. अब तो इस बात की दौड़ शुरू हो गई है कि दोनों बड़ी पार्टियों में ज़्यादा भ्रष्ट कौन है? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही न्याय कर दिया, यानी सारी स्थिति स्पष्ट कर दी.
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