सीबीआई के दुरुपयोग की बात सार्वजनिक होने के बाद केंद्र सरकार सवालों के घेरे में आ गई है. वहीं दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से भी उसकी काफी किरकिरी हो रही है. पेश है एक विश्लेषणात्मक टिप्पणी.
page-8-blogयह बात सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि कांग्रेस या सरकार या सत्ता में जो भी होता है, वह सीबीआई का उपयोग करता है, प्रतिद्वंद्वी को उत्पीड़ित करने और अपने लोगों की रक्षा के लिए. हालांकि इस बात का कोई सुबूत नहीं होता. यह पहला मामला आया है, जिसमें सीबीआई ने यह सा़फ किया कि कैसे सरकार ने रिपोर्ट में बदलाव कराने के लिए दबाव डाला. सीबीआई निदेशक ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को यह बता दिया. मेरे हिसाब से यह पहला मामला है, जबकि सीबीआई ने इस सच को स्वीकार किया है. हालांकि सीबीआई निदेशक ने यह कहकर कि रिपोर्ट की आत्मा नहीं बदली गई, सरकार को बचाने की कोशिश की, लेकिन यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने दया दिखाई. अदालत विनीत नारायण फैसले के आधार पर, जिसमें निर्देश दिया गया था कि कोई भी जांच रिपोर्ट सरकार को नहीं दिखाई जानी चाहिए, बैठक में हिस्सा लेने वाले सीबीआई निदेशक एवं अन्य अधिकारियों पर अवमानना नोटिस जारी कर सकती थी. सुप्रीम कोर्ट ने सभ्य भाषा का इस्तेमाल करते हुए 10 जुलाई की तारीख तय की है. मजेदार बात यह है कि सरकार सोचती है कि मामला न्यायाधीन है, जबकि यह मामला न्यायाधीन नहीं है. यह भाषा का गलत इस्तेमाल है.
कोलगेट का मामला विचाराधीन है, लेकिन सीबीआई निदेशक को बुलाना और उनके साथ बैठक करना विचाराधीन नहीं है. यह सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है कि वह बताए कि किसे मंत्री बनाना है, किसे हटाना है और किसे अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त करना है. कोर्ट की टिप्पणियां पर्याप्त हैं. सच तो यह है कि क़ानून मंत्री को उसी दिन इस्ती़फा दे देना चाहिए था, जिस दिन सीबीआई निदेशक ने यह बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की थी. उस पद पर बने रहने के लिए किसी भी सम्मानित व्यक्ति के लिए कोई आधार नहीं है, फिर भी वह अपने पद पर बने हुए हैं. अफवाह यह भी है कि उन्हें हटाया नहीं जा रहा है, केवल पोर्टफोलियो बदला जाएगा.

कर्नाटक में असली सबक तो जेडीएस के लिए है, इसलिए उसे आत्मविश्लेषण करना चाहिए! भाजपा के हारने के बाद भी वे जीत नहीं सकते. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि अतीत में जब भाजपा को सत्ता देना था, तब उन्होंने भाजपा के साथ समझौते को तोड़ दिया था.

दूसरा मामला पवन बंसल का है. यह सामान्य भ्रष्टाचार के मामलों में से एक है. टीवी रिपोर्ट से पता चल रहा है कि पवन बंसल जाने वाले हैं. उनके मामले में सीबीआई जांच कर रही है. बेशक, उन्हें भी जांच की सुविधा के लिए इस्ती़फा दे देना चाहिए, लेकिन अश्विनी कुमार के मामले में किसी जांच की आवश्यकता नहीं है. भारत में जैसा कहा जाता है कि न कोई दलील और न कोई वकील, लेकिन यह प्रतीत होता है कि वह प्रधानमंत्री के पसंदीदा व्यक्ति हैं, इसलिए उन्हें बख्श दिया जाएगा और पवन बंसल को बर्खास्त कर दिया जाएगा.
इस बीच एक अजीब बात हो गई है. दरअसल, सत्ता विरोधी लहर ने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ काम किया और इसीलिए उसे येदियुरप्पा मामले को ठीक से न संभालने का खामियाजा भी भुगतना पड़ा. उन्होंने एक अलग पार्टी बना ली और दस फीसद वोट पा गए, जो कि आश्चर्य की बात है. ऐसे में कांग्रेस लाभार्थी रही और चुनाव जीत गई. कांग्रेस पार्टी इसे अपने लोकप्रिय होने का संकेत समझ रही है और वह कर्नाटक ़फैसले को भ्रष्टाचार के खिलाफ मान रही है. और अगर ऐसा है, तो कैसे कांग्रेस केंद्र में जीत की उम्मीद पाले हुए है. यहां तो परिणाम दस गुना खराब होगा. केंद्र में तो भ्रष्टाचार कर्नाटक की तुलना में कम से कम दस गुना ज़्यादा है, लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता गोएबल्स की तरह झूठ बोलने के लिए प्रशिक्षित हैं. वे भाजपा के भ्रष्टाचार के बारे में बात कर रहे हैं कि कर्नाटक को देखो. अरे, कर्नाटक में क्या देखना है? वे चुनाव हार गए हैं. यह कांग्रेस की बेहद ही शर्मनाक व अहंकार भरी प्रतिक्रिया है. शरद पवार ने ठीक ही कहा है कि कांग्रेस को कर्नाटक विधान सभा चुनाव परिणाम से ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है.
कर्नाटक में असली सबक तो जेडीएस के लिए है, इसलिए उसे आत्मविश्लेषण करना चाहिए! भाजपा के हारने के बाद भी वे जीत नहीं सकते. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि अतीत में जब भाजपा को सत्ता देना था, तब उन्होंने भाजपा के साथ समझौते को तोड़ दिया था. दरअसल, पर्यवेक्षक यही मानते हैं कि लोगों को  समझ में नहीं आता है. जो ऐसा सोचते हैं, वे गलत हैं, क्योंकि भारतीय लोग बहुत अच्छी तरह से समझते हैं और वे विशेष रूप से अपने अधिकारों को समझते हैं. यह एक आपातकालीन स्थिति है. श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था, लेकिन उसके दो साल बाद ही लोगों ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया था. आज सभी संवैधानिक मानदंडों को तोड़ने एवं उनका दुरुपयोग करने का काम जोर-शोर से हो रहा है, लेकिन इसे लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे. अश्विनी कुमार इस्ती़फा नहीं दे रहे हैं, मेरे हिसाब से यह इस सरकार के ताबूत में सबसे बड़ी कील है.
कांग्रेस अगर अभी भी 2014 के चुनाव के लिए रास्ता बनाना चाहती है, तो वह अपने मतदाताओं के सामने सब कुछ सा़फ-सुथरे ढंग से रखे. प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों, जिन्होंने सीबीआई निदेशक के साथ बैठक की, उनकी गलती नहीं हो सकती है, लेकिन उन्हें तुरंत निलंबित या स्थानांतरित किया जाना चाहिए. लोकतंत्र में मानदंडों को बनाए रखना चाहिए. मनमोहन सिंह एक अच्छे इंसान हैं. पता नहीं क्यों, वह कुछ भ्रष्ट लोगों का पक्ष लेकर अपनी प्रतिष्ठा ़खतरे में डाल रहे हैं. उन्हें यह बात समझने की कोशिश करनी चाहिए.
 

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