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तीस जनवरी का दिन अन्ना की ज़िंदगी और देश के लिए महत्वपूर्ण था. इसके बाद देश भर में घूमने की तैयारी शुरु हुई और अन्ना ने तीस मार्च से पंजाब के जालियांवाला बाग से अपनी जनतंत्र यात्रा शुरु करने की घोषणा कर दी. पंजाब के जालियांवाला बाग से अन्ना अपने साथियों के साथ यात्रा पर निकले और पंजाब से हरियाणा आते-आते और लोगों से बातचीत करते अन्ना को लगा कि इस देश में बड़े बदलाव की जरूरत है. जैसे ही वे उत्तर प्रदेश के नोएडा, मेरठ, म़ुजफ्फ़रनगर होते हुए देहरादून पहुंचे अन्ना के सामने एक नए सत्य का पर्दा खुला. अन्ना ने कई किताबें पढ़ीं, कई लोगों से बातें की और अब तक उन्हें यह मालूम हो चला था कि यह सारा देश संविधान के ख़िलाफ़ चल रहा है.
अन्ना ने फिर एक बार धोखा खाया, क्योंकि अन्ना ने जनरल वीके सिंह और अख़बार के उन संपादक को यह सलाह दी कि उनके साथ लगे हुए पुराने जितने भी साथी हैं, उनको भी अन्ना की राजनीतिक योजना में शामिल करने की कोशिश की जाए. ईमानदारी से यह कोशिश हुई भी कि बिहार में जितने भी पुराने लोग हैं, जिनमें सर्वोदय के पुराने साथी शामिल हैं और अन्ना के इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोग शामिल हैं, उनसे संपर्क किया जाए. सब लोग आए, सबने बातचीत की. तैयारी का फैसला किया गया और सभी खुश-खुश चले गए. अन्ना के पास यह संदेश गया कि सब लोग मिलकर अन्ना की रैली की तैयारी करेंगे, लेकिन तमाशा जनवरी की 15 तारीख को हुआ, जब जनरल वीके सिंह और संपादक महोदय पटना गए तो मालूम चला की वहां के लोगों ने कोई तैयारी ही नहीं की है और न सर्वोदय के लोगों ने न इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोगों ने. बल्कि ऐसा क्या किया जाए कि अन्ना पटना आ ही न सकें, इस योजना पर काम हो रहा था. उन लोगों को लग रहा था कि जनरल वीके सिंह और संपादक महोदय ने अन्ना को बरगला लिया है. अन्ना रालेगण में थे. पटना में तैयारी के नाम पर केवल शून्य था.
यहां से नए सिरे से तैयारी हुई और 14 दिनों के बाद पटना के गांधी मैदान में पौने दो लाख लोगों की रैली हुई. इस रैली के लिए कुल चार लाख रुपये भी नहीं ख़र्च हुए. लोग अपने पैसे ख़र्च कर रैली में शामिल हुए, जबकि बिहार के मुख्यमंत्री ने इसी मैदान पर इतनी ही संख्या के साथ की गई रैली में करोड़ों रुपये ख़र्च किए थे. अन्ना ने इस सभा में घोषणा की कि उनका रिश्ता इंडिया अगेंस्ट करप्शन नाम के संगठन से नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि उनके नाम पर अब कोई संगठन नहीं चलेगा. स़िर्फ जानकारी देने वाली एक वेबसाइट चलेगी, जिसका नाम ज्वाइन अन्ना हजारे है. अन्ना ने जनतंत्र मोर्चा नाम से एक नए संगठन की घोषणा की, उन्होंने यह भी कहा कि यह संगठन वॉलिंटियर का संगठन होगा, इसमें कोई भी पदाधिकारी नहीं होगा और यह जनतंत्र के अनुरूप होगा. यहां अन्ना ने यह घोषणा की कि वे जनतंत्र के लिए ल़डेंगे.
30जनवरी, 2013 का दिन अन्ना की ज़िंदगी और देश के लिए महत्वपूर्ण था. इसके बाद, देश भर में घूमने की तैयारी शुरू हुई और अन्ना ने 30 मार्च से पंजाब के जालियांवाला बाग से अपनी जनतंत्र यात्रा शुरू करने की घोषणा कर दी. पंजाब के जालियांवाला बाग से अन्ना अपने साथियों के साथ यात्रा पर निकले और पंजाब से हरियाणा आते-आते और लोगों से बातचीत करते अन्ना को लगा कि इस देश में बड़े बदलाव की ज़रूरत है. जैसे ही वे उत्तर प्रदेश के नोएडा, मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर होते हुए देहरादून पहुंचे अन्ना के सामने एक नए सच का पर्दा खुला. अन्ना ने कई किताबें पढ़ीं, कई लोगों से बातें की. अब तक उन्हें यह मालूम हो चला था कि यह सारा देश संविधान के ख़िलाफ़ चल रहा है. अन्ना ने संविधान की किताबें मंगाई. संविधान सभा में क्या-क्या हुआ. चुनाव को लेकर संविधान में क्या कहा गया, इन सारी चीज़ों की जानकारी उन्होंने अपने साथ चलने वाले साथियों से इकट्ठा कीं. इन सबके अध्ययन के बाद अन्ना को लगा कि संविधान में कहीं पर भी राजनीतिक दल या पॉलिटिकल पार्टी शब्द ही नहीं है. तब अन्ना ने तलाश शुरू की कि आख़िरकार यह पार्टियां लोकसभा में पहुंची कैसे? तब इस बात की जानकारी हुई कि यह सारा पार्टी सिस्टम ही देश के संविधान के ख़िलाफ़ है. संविधान में जनता का ज़िक्र है कि वो अपने उम्मीदवार खड़े करेगी. उम्मीदवार चुनकर लोकसभा में जाएंगे. जहां वो जाकर अपने चुनाव क्षेत्र और देश के बारे में बहस करेंगे. समस्याओं का निदान करेंगे और कानून बनाएंगे. लोकसभा के सदस्यों का बहुमत जिसके साथ होगा, वह प्रधानमंत्री बनेगा. वह अपने मंत्रियों का चुनाव करेगा. संविधान में कहीं पर भी पार्टियों का या पार्टियों के गठजोड़ का या सबसे बड़ी पार्टी का नेता ही प्रधानमंत्री बनेगा, इसका ज़िक्र है ही नहीं. अन्ना ने यह भी पाया कि जब यह संविधान बना था, तब राजनीतिक पार्टियां अस्तित्व में थीं. इसके बावजूद, संविधान बनाने वालों ने राजनीतिक दल कैसे होंगे, कैसे काम करेंगे, इस बारे में संविधान में कोई ज़िक्र ही नहीं किया है. तब अन्ना को लगा कि इस देश में बुनियादी परिवर्तन तब तक नहीं आ सकता, जब तक राजनीतिक दल लोकसभा में रहेंगे. साथ ही अन्ना इस नतीजे पर भी पहुंचे कि इस देश से भ्रष्टाचार और महंगाई जैसी मुश्किलें तब तक समाप्त नहीं होगीं, जब तक कि यह पार्टियां लोकसभा में रहेंगी. अन्ना ने यहीं पर यह भी समझा कि जहां पहले लाखों में भ्रष्टाचार होता था, वह बढ़ते-बढ़ते करोड़ों में हो गया. फिर वह पांच हज़ार करोड़, दस हज़ार करोड़, पचास हज़ार करोड़, एक लाख करोड़ अब एक लाख छिहत्तर करोड़ और 26 लाख करोड़ तक पहुंच गया. जिस रकम को कैलकुलेटर में लिख नहीं सकते उस रकम का भ्रष्टाचार पार्टियों ने और सरकारों ने मिलकर करना शुरू  कर दिया. जैसे ही अन्ना को यह पता चला कि इस बड़े भ्रष्टाचार में हर पार्टी का हिस्सा है, तब अन्ना की आंखें खुल गई. अन्ना ने कहना शुरू कर दिया कि जब तक पार्टी सिस्टम रहेगा, तब तक भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं होगा. महंगाई और बेरोजगारी जैसी मुश्किलें ख़त्म नहीं होंगी. अन्ना ने पार्टी सिस्टम को ही भ्रष्टाचार, ख़राब शिक्षा व्यवस्था और ख़राब स्वास्थ्य व्यवस्था का ज़िम्मेदार बताया.
अन्ना ने मुंबई में जनरल वीके सिंह के साथ मिलकर एक नीति संबधी मसौदा जारी किया, जिसका शीर्षक था, यह संसद संविधान विरोधी है. क्योंकि अन्ना इस नतीजे पर पहुंचे थे कि यह संसद संविधान में दी गई लोक कल्याणकारी राज्य या वेलफेयर स्टेट की अवधारणा के ख़िलाफ़ बाज़ार आधारित क़ानून बनाने लगी है और देश के लोगों की ज़िम्मेदारी को अब अपनी ज़िम्मेदारी नहीं मान रही है. दरअसल, यह संविधान का उल्लंघन है, लेकिन सरकार ने बिना कुछ कहे संविधान की मूल अवधारणा के ख़िलाफ़ देश को चलाना तय किया और नियम और कानून बनाने शुरू किए. इसमें चंद्रशेखर जी के बाद जितनी सरकारें देश में बनी, सभी सरकारों ने हिस्सा लिया और इस देश को एक तरह से बाज़ार के हवाले कर दिया. इसके बाद, अन्ना ने एक 25 सूत्रीय कार्यक्रम बनाया. इस 25 सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने की मांग अन्ना ने सभी राजनीतिक दलों से की और कहा कि इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करें, लेकिन श्रीमती सोनिया गांधी और अखिलेश यादव के अलावा, किसी राजनेता या राजनीतिक दल ने अन्ना के पत्र का जवाब नहीं दिया. सोनिया गांधी ने अपने जवाब में चार लाइन के खत में कहा कि कांग्रेस हमेशा ग़रीबों के लिए लड़ती रही है और अखिलेश यादव ने लिखा कि हम आपके विचारों का स्वागत करते हैं और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आपके संघर्ष में हम हमेशा आपका साथ देंगे. इन दो ख़तों के अलावा, किसी भी पार्टी की तरफ़ से कोई जवाब तक नहीं मिला. यहां तक कि दोनों ख़तों में अन्ना के 25 सूत्रीय कार्यक्रम के ऊपर एक लाइन की प्रतिक्रिया तक नहीं थी.
जब अन्ना इस नतीजे पर पहुंच गए कि यह पार्टी सिस्टम देश के जनत्रंत्र के ख़िलाफ़ है तो उन्होंने इस पार्टी सिस्टम से लड़ने का ़फैसला किया.  उन्होंने देश की जनता का आह्वान किया, कि वह  पार्टी सिस्टम के ख़िलाफ़ दूसरी आज़ादी की लड़ाई में शामिल हों. अन्ना को उत्तराखंड में इन सवालों के जवाब मिल गए कि लोग इस विषय को समझ भी पाएंगे या नहीं. उन्होंने पाया कि जितने भी बुद्धिजीवी हैं, पत्रकार हैं, उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि बिना राजनीतिक दलों के यह देश कैसे चलेगा, जबकि जनता उत्तराखंड में यह कह रही थी कि पार्टियों को हटाना बहुत ज़रूरी है नहीं तो देश से भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं होगा. अन्ना उत्तराखंड की यात्रा समाप्त कर दिल्ली आए और उन्होंने प्रसिद्ध संविधानविद् सुभाष कश्यप से मुलाकात की. सुभाष कश्यप ने कहा कि यह बात सही है कि संविधान में राजनीतिक पार्टियों का जिक्र नहीं है, लेकिन इतने दिनों से राजनीतिक पार्टियों की व्यवस्था चली आ रही है तो बिना राजनीतिक पार्टियों के देश कैसे चलेगा. अन्ना ने बाहर निकलकर अपने मन में दृढ़ फैसला ले लिया लिया कि यह सवाल राजनीतिक है और संवैधानिक है. चूंकि संविधान में राजनीतिक पार्टियों का जिक्र नहीं है, इसलिए वह इस सवाल के ऊपर सियासी पार्टियों से लड़ेंगे. अन्ना ने सारे देश में पार्टियों के ख़िलाफ़ संविधान की दुहाई देकर एक लड़ाई शुरू कर दी. यहीं पर अन्ना द्वारा देश को एक राजनीतिक विकल्प देने के मसले का एक उत्तर भी मिलता है. अन्ना ने कहा कि अगर एक चुनाव क्षेत्र में 20 लोग भी बिना पार्टियों के खड़े होते हैं तो कोई परेशानी की बात नहीं है, जिसे लोग चुनेंगे वो इन पार्टियों के प्रतिनिधियों से अच्छा होगा. उन्होंने यह भी कहा कि पार्टियां अपने ईमानदार कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं देती हैं. पार्टियां या तो वंशवाद और परिवारवाद चला रही हैं या टिकटों को बेच रही हैं. अगर कोई अच्छा व्यक्ति पहुंच भी जाता है तो वह पार्टियों के माफिया स्वरूप से डरकर बोलने की हिम्मत भी नहीं कर पाता. यहीं पर अन्ना ने एक दूसरा रास्ता भी अपने साथियों से बातचीत कर सोचा है. अन्ना अन्य पार्टियों के अच्छे लोगों से भी अपील कर रहे हैं कि वो अपनी पार्टियों को छोड़ कर बाहर आएं और जनता के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ें.
अब यहां सवाल यह उठता है कि अन्ना हजारे किसे समर्थन देंगे. अगर एक निवार्चन क्षेत्र में 15 लोग खड़े हो जाते हैं तो ऐसे में अन्ना का समर्थन किसे मिलेगा. अन्ना ने कई बार बातचीत में अपने साथियों को यह साफ़ किया है कि जो उनकी बात को ज़्यादा मानेगा. मसलन जो यह कहेगा कि मैं गांवों को सर्वशक्तिशाली बनाने के लिए कानून बनाने की मुहिम में साथ देगा, उसे ही अन्ना का समर्थन प्राप्त होगा. जो यह वायदा करेगा कि मैं जनता के सवालों को लोकसभा में उठाऊंगा, उसे ही अन्ना का साथ मिलेगा. तीसरी शर्त यह होगी कि वह अपना इस्तीफा अपने चुनाव कमेटी के पास शपथ पत्र के रूप में पहले ही जमा कराएगा और उस कमेटी को यह अधिकार देगा कि जिस दिन कमेटी को लग जाए कि यह व्यक्ति लोकसभा में उन सवालों को नहीं उठा रहा है, जिसका वायदा वह देश की जनता से करके गया है, वो कमेटी उस इस्तीफे को सीधे लोकसभा के पास भेजी देगी, जिसमें उस प्रत्याशी के इस्तीफे का शपथ पत्र लगा होगा. यह अन्ना के राइट टू रिकॉल का एक अलग तरह का प्रयोग है, जो अन्ना के 25 सूत्री कार्यक्रमों को लागू करने के लिए संसद में संघर्ष करेगा.
अन्ना ने अभी तक अपने समर्थन की शर्तें सार्वजनिक नहीं की हैं, लेकिन इसके बावजूद उनके पास देश भर से यह संदेश आने लगा है कि अगर वे चुनाव में खड़े हों तो क्या अन्ना उनका समर्थन करेंगे. अन्ना सबसे यह कह रहे हैं कि अगर वे पार्टी से बाहर आकर संविधान के अनुरूप चुनाव लड़ेंगे तो मैं समर्थन करने के बारे में सोचूंगा, लेकिन समर्थन करने की उनकी जो शर्तें हैं उसे जो उम्मीदवार मानेगा, उसी के लिए अन्ना हजारे प्रचार करने जाएंगे.
सवाल आम आदमी पार्टी का भी सामने है. अरविंद केजरीवाल हर जगह अन्ना के उम्मीदवार के रूप में अपने उम्मीदवारों को खड़ा कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी के लोग हर जगह यह बता रहे हैं कि वो अन्ना के समर्थक हैं, जबकि अन्ना हर जगह यह कह रहे हैं कि कोई भी पार्टी, चाहे वह आम आदमी पार्टी ही क्यों न हो, वह उनके समर्थन की हकदार नहीं है, क्योंकि वह संविधान के ख़िलाफ़ खड़ी है. उन्होंने कहा कि मैं अरविंद केजरीवाल को अच्छा आदमी मानता हूं, लेकिन आज अरविंद केजरीवाल संविधान के ख़िलाफ़ खड़े हैं. इस सवाल पर कि अगर अरविंद केजरीवाल और उनके साथी अपनी पार्टी भंग कर दें तो? अन्ना ने साफ उत्तर दिया कि तब वे अच्छे उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे. अच्छे का तात्पर्य यहां यह है कि उम्मीदवार की सार्वजनिक छवि ठीक हो, उसके ऊपर भ्रष्टाचार और व्यभिचार के आरोप न हों और वो जनता के लिए संघर्ष करने वाला व्यक्ति हो.
दरअसल, अन्ना राजनीति में कार्यकर्ता की हैसियत दोबारा वापस लाना चाहते हैं. अन्ना जो काम करते हैं, उसे संसद में जाना चाहिए के सिद्धांत पर नए राजनीतिक विकल्प की नींव रखना चाहते हैं. इसका मतलब अगर अन्ना इस देश में 500 उम्मीदवार खड़े करते हैं, जो उनके परिभाषा के हिसाब से चरित्रवान हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि ये जनता के लिए काम करने वाले लोग हैं और वे अन्ना के 25 सूत्रीय कार्यक्रम को मानते हैं. साथ ही जो लोग राइट टू रिकॉल के सिद्धांत के तहत पहले ही अपना इस्तीफा अपने क्षेत्र की कमेटी के पास रखते हैं, तो अन्ना उनके प्रचार में जाएंगे. अगर इन 500 उम्मीदवारों में एक से लेकर 300 तक अन्ना की वजह से लोकसभा में पहुंच पाएं तो इस देश का राजनीतिक इतिहास बदल जाएगा. अन्ना के इस राजनीतिक विकल्प में कई पेंच हैं और कई सवाल भी हैं. कई लोगों का मानना है कि जिस तरह की थैलियां हमारी राजनीति में चल रही हैं और जिस तरह बड़े उद्योगपति सांसदों को ख़रीदने की कोशिश करते हैं, अगर वैसा ही हुआ तो क्या होगा, क्योंकि इंदिरा गांधी जी जब प्रधानमंत्री थीं तो एक बार यह ख़बर आई थी कि केके बिड़ला लोकसभा के 80 सांसदों को महीने में पैसे देते थे और उन सांसदों की ईमानदारी के के बिड़ला के प्रति थी. क्या एक हज़ार, दो हज़ार करोड़ का इंतज़ाम करने वाला इन पार्टियों से बाहर रहने वाले लोकसभा सदस्यों को ख़रीदने की कोशिश नहीं कर सकता. अन्ना का इस पर सीधा जवाब है कि नहीं कर सकता, क्योंकि जब हम देश बदलने की बात करते हैं, जनतंत्र लाने की बात करते हैं तो जनता के चुने हुए व्यक्तियों के मन में जनता का डर भी होता है कि अगर उसने कुछ गलत किया तो वह अगली बार जीत भी नहीं पाएगा और उसके चुनाव क्षेत्र के लोग उसे लोकसभा से वापस बुला लेंगे.
देखना है कि अन्ना जिस तरह के राजनीतिक विकल्प की बात कर रहे हैं, उस राजनीतिक विकल्प को राजनीतिक दल कोई महत्व देते हैं या नहीं. और अगर राजनीतिक दल महत्व नहीं देते हैं और जनता अन्ना के इस सिद्धांत को महत्व देती है तो देश में किस तरह की राजनीतिक अग्नि परीक्षा लोगों को देनी होगी, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. हां, इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि देश में जिस तरह की राजनीतिक बयार अभी बह रही है, उसमें एक तरफ़ अन्ना हजारे हैं और दूसरी तरफ अन्ना हजारे. अब जनता के ऊपर है कि वह राजनीतिक पार्टियों को समर्थन देकर भ्रष्टाचार, महंगाई, ख़राब शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था के पक्ष में वोट देती है या अन्ना हजारे के पक्ष में वोट देकर उनसे लड़ने और उन्हें मिटाने का संकल्प व्यक्त करती है.

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