आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध कोई नई बात नहीं है. आतंकवाद आज पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या है. इसके विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत कब, कहां और कैसे हुई, इसी पर रोशनी डाल रही है यह टिप्पणी.
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शीत युद्ध की समाप्ति के बाद बहुत सारे लोगों ने सोचा कि अब शांति काल की शुरुआत होगी. शांति के लिए किसने कितना प्रयास किया, इसकी बात होने लगी, लेकिन एक युद्ध ख़त्म होने के तुरंत बाद ही दूसरा युद्ध शुरू हो गया और यह युद्ध था आतंकवाद के विरुद्ध. आलोचकों का कहना था कि अमेरिका का हमेशा से कोई न कोई दुश्मन रहा है, इसलिए उसने एक नया युद्ध खोज निकाला, लेकिन आलोचकों ने उसका इतिहास सही तरीके से नहीं पढ़ा था. हाल में लंदन की गलियों में जिस तरह से उसके सैनिक की हत्या की गई, उसने एक बार फिर से इतिहास की ओर देखने का मौक़ा दिया है. आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध कोई नई बात नहीं है. दरअसल, इसे समझने के लिए सौ साल पूर्व के इतिहास में जाने की ज़रूरत है. बीसवीं सदी के इतिहास को जानने का एक रास्ता यह है कि प्रथम विश्‍वयुद्ध द्वारा उत्पन्न समस्याओं से पर्दा उठाया जाए, जो कि 94 साल पहले की घटना है. पहली समस्या जर्मनी के साथ हुई, जिसके कारण द्वितीय विश्‍वयुद्ध जैसी त्रासदी झेलनी पड़ी, लेकिन प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय पूर्व में रहने वाले लोगों का विकास हुआ, जिसके कारण ब्रिटिश साम्राज्य के विभाजन की शुरुआत हो गई. इसके अगले तीस सालों में भारत से ब्रिटिश साम्राज्य का ख़ात्मा हो गया. इसके साथ ही 1918 में ऑटोमन साम्राज्य का विघटन भी हो गया था, जिससे उत्पन्न समस्याओं का अभी तक समाधान नहीं हो पाया है.
इस युद्ध के समय ब्रिटेन और फ्रांस के विदेश स्थित कार्यालयों ने एक गुप्त संधि (साइक्स-पिकोट पैक्ट) की थी. इस संधि ने ब्रिटेन और फ्रांस के संरक्षण में ऑटोमन साम्राज्य को देशों में बांट दिया. पहली बार जेरूशलम ग़ैर-मुस्लिम शासन के अधिकार में चला गया. सीरिया एवं लेबनान को फ्रांस की देखरेख में रखा गया. जॉर्डन एवं इराक ब्रिटेन की खोज थे. फिलीस्तीन को ब्रिटेन का उत्तरदायित्व बना दिया गया. इससे न केवल भारत प्रभावित हुआ, बल्कि गांधी जी ने भी ख़िलाफ़त आंदोलन शुरू कर दिया. पहली बार हिंदू और मुस्लिम, दोनों ने मिलकर ब्रिटिश सरकार का विरोध किया और वह भी किसी घरेलू मुद्दे पर नहीं, बल्कि इस्तांबुल के मुद्दे पर. चौरी-चौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया गया. ख़िलाफ़त को ब्रिटिश शासन द्वारा समाप्त नहीं किया गया, जिस बात का डर गांधी जी को था, बल्कि उसे कमाल अतातुर्क द्वारा समाप्त कर दिया गया. ऐसे में हिंदू-मुस्लिम के बीच एकता टूट गई और फिर कभी हिंदू-मुस्लिम एकता नहीं बनी. देश के विभाजन को इसी क्रम में रखा जाना चाहिए, क्योंकि ख़िलाफ़त आंदोलन के बाद मुसलमानों को देश में अपनी स्थिति का भान हुआ, हालांकि इसके पहले वे इस्तांबुल को ही सत्ता का केंद्र मानते थे.
कुछ मायनों में पाकिस्तान केवल दक्षिण एशिया का हिस्सा नहीं है, बल्कि वह पश्‍चिम एशिया/मध्य पूर्व एशिया की पूर्वी सीमा भी है. आतंकवाद के विरुद्ध जंग की जड़ मध्य पूर्व के इसी बंटवारे में है. फिलीस्तीन-इजरायल विवाद भी आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध का एक पहलू है, जिसमें मुस्लिम इस विवाद के लिए ब्रिटेन और अमेरिका पर आरोप लगाते हैं. 1945 के बाद मध्य पूर्व में सेक्युलर शासन, यहां तक कि समाजवादी शासन का एक दौर भी आया था, लेकिन तीन बार इजरायल से हारने के बाद अरब ने सेक्युलर विचार छोड़ दिया और वह पुराने विश्‍वास की ओर लौट गया. सऊदी अरब में तेल से आने वाले पैसों के कारण बहाबी आंदोलन पश्‍चिम एशिया के मुस्लिम देशों में फैलाया गया. अब बदला लेने का समय था. ओसामा बिन लादेन का विचार इस बारे में बिल्कुल साफ़ था. वह अपने जेहाद को ख़िलाफ़त टूटने और जेरूशलम को अपवित्र करने के विरुद्ध कार्रवाई मानता था. वह सऊदी अरब में अमेरिकी सेना की मौजूदगी के कारण दु:खी था, जहां मक्का एवं मदीना जैसे पवित्र शहर हैं. सोवियत संघ के अफगानिस्तान के साथ संघर्ष ने तालिबान एवं अलक़ायदा को अमेरिकी संसाधनों का इस्तेमाल करके मजबूत बनने का मौक़ा दिया. जब सोवियत संघ अफगानिस्तान से चला गया, तो उनका ध्यान अमेरिका एवं उसके सहयोगियों की ओर गया. भारत ने अमेरिका का सहयोगी बनना तय किया और उसे आतंकवाद का भुक्तभोगी बनना पड़ा. यही स्थिति यूके की भी है. पिछले बीस सालों से आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध जारी है. यह नब्बे के दशक में पहली बार वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले और यूएस कोल एवं केन्या में बम गिराए जाने से शुरू हुआ. कई मुजाहिदीन, जिन्हें मुस्लिम संगठनों ने प्रशिक्षण एवं हथियार दिए थे, सीमा पार कर कश्मीर पहुंचे और उन्होंने भारत में हमले भी किए. हम यूएसए में 9/11, लंदन में 7/7, मैड्रिड, बाली और कई अन्य जगहों पर हुईं बम विस्फोट की घटनाओं के गवाह हैं. हाल में लंदन में एक सैनिक की हत्या उसी कड़ी का एक छोटा अध्याय है. यह लड़ाई जल्दी ख़त्म नहीं होगी. भारत भी इस युद्ध का उसी तरह हिस्सा बना हुआ है, जैसे यूके या यूएस इसके हिस्से हैं.

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