sandeep-pandey-ke-samarthanपूरे देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता को लेकर बहसें चल रही हैं, तमाम साहित्यकार-कलाकार असहिष्णुता के मसले पर सहिष्णुता त्याग रहे हैं, असहिष्णुता के खिला़फ हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, देश के लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि सहिष्णुता क्या है और असहिष्णुता क्या है. सब घालमेल हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने आईआईटी-बीएचयू में पढ़ाने वाले विजिटिंग प्रोफेसर संदीप पांडेय को बर्खास्त कर ऐसी ही विचित्र असहिष्णुता का परिचय दिया है.

देश-प्रदेश के लोग इसे बीएचयू जैसी शीर्ष शैक्षिक संस्था का अबौद्धिक प्रदर्शन बता रहे हैं. मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित गांधीवादी समाजसेवी प्रोफेसर संदीप पांडेय को नक्सल समर्थक, शिक्षा परिसर में राजनीति करने वाला और राष्ट्र विरोधी बताया गया है. संदीप पांडेय की बर्खास्तगी ने देश भर में फिर से असहिष्णुता की बहस गर्म कर दी है.

बहस के केंद्र में इस बार उत्तर प्रदेश है, इसलिए यहां ताप ज़्यादा है. बहस राजनीतिक शक्ल लेती जा रही है. स्वाभाविक है, चुनाव नज़दीक है और बर्खास्तगी जैसी कार्रवाई राजनीतिक लक्ष्य साधकर ही की गई है.संदीप पांडेय पिछले कुछ वर्षों से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की आईआईटी फैकल्टी में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में केमिकल, मैकेनिकल एवं सिरेमिक इंजीनियरिंग के छात्रों को कंट्रोल सिस्टम सहित अन्य विषय पढ़ा रहे थे.

संदीप पांडेय को राष्ट्र विरोधी और नक्सल समर्थक बताते हुए अध्यापन से मना कर दिया गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन ने कार्रवाई करके चुप्पी साध ली है. संदीप पांडेय ने कहा, मैं जो विषय पढ़ाता था, वे मुझसे वापस ले लिए गए हैं. फिलहाल मैं अध्यापन नहीं कर रहा हूं और मुझे वहां से निकालने का फैसला लिया जा चुका है, लेकिन बर्खास्तगी का पत्र अभी नहीं मिला है.

बीएचयू के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप लगाकर मुझे फैकल्टी से बाहर निकालने का फैसला किया है. वे मेरी अकादमिक योग्यता के कारण नहीं, बल्कि मेरी विचारधारा के आधार पर फैसला ले रहे हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने आईआईटी के निदेशक राजीव संगल के ऊपर यह कहकर दबाव बनाया कि मैं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा हूं और सरकार के खिला़फ बातें करता हूं.

संदीप पांडेय बीएचयू के कुलपति को आईआईटी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में शामिल करने को ही राजनीति से प्रेरित बताते हैं. उन्होंने कहा कि जब बीएचयू आईटी था, तब बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में वीसी को शामिल किया जाता था, लेकिन आईआईटी का दर्जा मिल जाने के बाद अब वह स्वायत्त संस्था है और वीसी को बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में शामिल किए जाने की कोई अनिवार्यता नहीं है. पांडेय सा़फ तौर पर कहते हैं कि बीएचयू के वीसी को बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में शामिल करने के पीछे केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी का हाथ है.

बीएचयू आईआईटी से विजिटिंग प्रोफेसर के पद से संदीप पांडेय को हटाए जाने के बारे में आधिकारिक जानकारी देने के लिए कोई तैयार नहीं है. बीएचयू के रजिस्ट्रार बात नहीं करते. कुलपति से तो बात करना ही असंभव है. रजिस्ट्रार कहते हैं कि आधिकारिक जानकारी आईआईटी देगा और आईआईटी प्रबंधन कहता है कि इस बारे में रजिस्ट्रार ही आधिकारिक तौर पर कुछ कह सकते हैं. इस अज़ीबा़ेगरीब कार्रवाई के शिकार संदीप पांडेय कहते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनकी योग्यता पर सवाल उठाने की क्षमता नहीं रखता, इसलिए वह उनकी विचारधारा को निशाना बना रहा है.

संदीप पांडेय की बर्खास्तगी के खिला़फ बीएचयू के छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया है. उन्होंने पिछले दिनों बाकायदा आरटीआई के तहत आवेदन दाखिल करके कार्रवाई के बारे में जानकारी मांगी और आईआईटी के निदेशक राजीव संगल से मुलाकात करने की कोशिश की. छात्रों ने निदेशक कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया और संदीप पांडेय को पुन: नियुक्त किए जाने की मांग की. उन्होंने बीएचयू प्रबंधन और कुलपति के खिला़फ भी नारे लगाए.

मुलाकात का समय मिलने पर छात्रों ने आईआईटी के निदेशक से मुलाकात की. निदेशक राजीव संगल ने छात्रों को बताया कि विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक में संदीप पांडेय को हटाने का निर्णय लिया गया. यह भी बताया गया कि छात्रों की मांगें बोर्ड ऑफ गवर्नर्स तक पहुंचा दी गई हैं. बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष एवं बीएचयू के कुलपति ने छात्रों को मुलाकात का समय नहीं दिया.

बीएचयू आईआईटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के चौथे वर्ष के छात्र मनीष बब्बर संदीप पांडेय के खिला़फ की गई कार्रवाई को स्पष्ट तौर पर एक अलोकतांत्रिक फैसला करार देते हुए आश्चर्य जताते हैं कि राजनीतिक विचारधारा के आधार पर किसी को कैसे हटाया जा सकता है? मैकेनिकल इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष की छात्रा स्वाति ने सत्र के बीच किसी प्रोफेसर को हटाए जाने को शिक्षा विरोधी कार्रवाई बताया और कहा कि प्रोफेसर पांडेय को छात्रों का समर्थन हासिल है, क्योंकि उन पर लगे आरोप ग़लत हैं. इंजीनियरिंग के छात्र हेमंत ने कहा कि प्रोफेसर संदीप पांडेय गांधीवादी हैं, न कि नक्सलवादी. उनके खिला़फ हुई कार्रवाई से छात्रों में बहुत नाराज़गी है. उधर, राजधानी लखनऊ में भी धरना-प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया.

प्रदेश के विभिन्न जनसंगठनों एवं बुद्धिजीवियों ने पिछले दिनों लखनऊ में जीपीओ स्थित गांधी प्रतिमा पर धरना दिया. मौक़े पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि संदीप पांडेय जैसे व्यक्ति को राष्ट्रद्रोही बताना एक शर्मनाक मज़ाक है. उन्होंने कहा कि पिछले डेढ़ वर्षों से देश में घोर अवैज्ञानिक और पिछड़े मूल्यों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

जब प्रधानमंत्री खुद वैज्ञानिकों की सभा में आदिकाल में गणेश की प्लास्टिक सर्जरी होने जैसी हास्यास्पद बातें करेंगे, तो शिक्षा-संस्कृति का क्या हाल होगा? अरविंद स्मृति न्यास की अध्यक्ष मीनाक्षी ने कहा कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही तमाम अकादमिक संस्थानों को संघ परिवार के नियंत्रण में लाने के प्रयास जारी हैं.

योग्य लोगों को हटाकर संघ से जुड़े लोगों को वहां बैठाया जा रहा है. ऐसे लोगों को चुन-चुनकर हटाया जा रहा है, जो संघ के एजेंडे के खिला़फ आवाज़ उठाते रहे हैं. संदीप पांडेय अपना शिक्षकीय दायित्व पूरी ज़िम्मेदारी और योग्यता से निभा रहे थे. किसी शिक्षक की वैचारिक एवं सामाजिक प्रतिबद्धताओं के कारण उसे कैसे हटाया जा सकता है? अगर वह राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल थे, तो विश्वविद्यालय प्रशासन उनके विरुद्ध राष्ट्रदोह का मुक़दमा दर्ज कराने की हिम्मत दिखाए.

जागरूक नागरिक मंच के सत्यम ने कहा कि संदीप पांडेय का अपराध यही है कि वह आजीविका के लिए जूझ रहे विश्वविद्यालय के 40 ठेकाकर्मियों के साथ धरने पर बैठे थे, नक्सली बताकर जेल भेजे गए एक विकलांग शिक्षक का जीवन बचाने के लिए नागरिक सुरक्षा कमेटी में शामिल रहे, सामाजिक एवं लैंगिक न्याय की बात करते रहे और प्राकृतिक संसाधनों को दैत्याकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लूट से बचाने के लिए प्रतिरोध की मुहिम में शामिल रहे, इसलिए संघ की भाषा में वह राष्ट्र विरोधी हैं. सत्यम ने कहा कि यह एक व्यक्ति की नौकरी की लड़ाई नहीं, बल्कि नागरिक अधिकारों एवं शिक्षा संस्थानों को बचाने की बड़ी लड़ाई का हिस्सा है.

नौजवान भारत सभा की गीतिका ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में राम जन्मभूमि मसले पर सेमिनार करने के लिए परिसर को फौजी छावनी बना देना, पुणे फिल्म एवं टीवी संस्थान के छात्रों की बर्बर पिटाई, हैदराबाद विश्वविद्यालय से दलित छात्रों का निष्कासन, ऑक्युपाई यूजीसी आंदोलन में छात्रों का बार-बार दमन और संदीप पांडेय की बर्खास्तगी एक ही सिलसिले की कड़ियां हैं.

वक्ताओं ने बीएचयू प्रशासन के इस क़दम की कठोर भर्त्सना करते हुए संदीप पांडेय को विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में फिर से बहाल करने और परिसर में विरोधी आवाज़ों के दमन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की मांग की. रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब ने बीएचयू प्रशासन द्वारा संदीप पांडेय की बर्खास्तगी को प्रगतिशील मूल्यों के प्रति संघ परिवार पोषित असहिष्णुता का ताजा उदाहरण बताया. मंच के राजीव यादव ने कहा कि संदीप पांडेय को हटाने का निर्णय राजनीतिक है और यह अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला है.

उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलाधिपति राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मामले में हस्तक्षेप करने और संदीप पांडेय की पुन: बहाली की मांग की. इंसाफ अभियान के प्रदेश महासचिव एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रनेता दिनेश चौधरी ने कहा कि संदीप पांडेय को हटाया जाना विश्वविद्यालय के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. धरने में स्त्री मुक्ति लीग की शाकंभरी, शिवा, शिप्रा, रूपा शुक्ला, आशीष सिंह, कल्पना, दीपा, जौनपुर से आए आदिल, सलाम, सत्येंद्र सार्थक, सृजन श्रीवास्तव, आदित्य, डॉ. राजीव कौशल एवं संजय श्रीवास्तव सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र-युवा उपस्थित थे.

बीएचयू छात्रसंघ से जुड़े रहे और फिलहाल आईआईएमसी में एसोसिएट प्रोफेसर आनंद प्रधान ने संदीप पांडेय की बर्खास्तगी के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि पांडेय को सब लोग गांधीवादी विचारक के तौर पर जानते हैं. आनंद मानते हैं कि विश्वविद्यालय विभिन्न विचारधाराओं का संगम होता है और उसे किसी एक विचारधारा पर चलाने की कोशिश खतरनाक है.

बीएचयू की पहचान विभिन्न विचारों को जगह देने की रही है और ऐसे में अगर किसी व्यक्ति को उसकी अकादमिक योग्यता के बजाय उसकी विचारधारा के आधार पर विश्वविद्यालय से बाहर किया जाता है, तो यह वैचारिक असहिष्णुता का उदाहरण है. आनंद प्रधान सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहते हैं कि देश में हर किसी को अपनी वैचारिकी रखने की संवैधानिक आज़ादी है.

किसी विचारधारा का समर्थक होना कोई गुनाह नहीं है और वैसे भी संदीप पांडेय गांधीवादी विचारक रहे हैं. गांधी के विचारों से किसी को क्या खतरा हो सकता है? भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने भी संदीप पांडेय के खिला़फ की गई कार्रवाई की कड़ी निंदा की है. पार्टी के राज्य सचिव राम जी राय ने कहा कि बीएचयू प्रशासन की यह कार्रवाई उसकी वैचारिक असहिष्णुता और सांप्रदायिक सोच को दर्शाती है. बीएचयू आईआईटी से डॉ. पांडेय का करार अध्यापन का था और वह पढ़ाने के अतिरिक्त अगर सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेते थे, तो यह कहीं से भी आपत्तिजनक नहीं है. किसी व्यक्ति को उसकी विचारधारा, चाहे वह गांधीवादी हो या नक्सलवादी, के चलते दंडित नहीं किया जा सकता. 

संदीप के खिला़फ कार्रवाई घोर असहिष्णुता का नतीजा

आईआईटी बीएचयू के विजिटिंग प्रोफेसर पद से संदीप पांडेय को हटाए जाने के खिला़फ देश भर के बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों एवं सामाजिक संगठनों ने हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है. अभियान में स्वामी अग्निवेश, प्रोफेसर आनंद कुमार, प्रसिद्ध समाजसेवी मेधा पाटकर, मशहूर फिल्मकार आनंद पटवर्धन, एडमिरल रामदास, ललिता रामदास, डॉ. राम पुनियानी, सुभाषिनी अली, वृंदा ग्रोवर, हर्ष मंदर, प्रफुल्ल सामंतरा, लिंगराज आज़ाद, डॉ. सुनीलम एवं अरुंधति धुरु समेत कई नामचीन हस्तियां शामिल हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है.

हस्ताक्षर अभियान में कहा गया है कि बीएचयू आईआईटी के ही पढ़े हुए संदीप पांडेय ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की और आईआईटी कानपुर में पढ़ा रहे थे. मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पांडेय बुद्धिजीवी होने के साथ-साथ गांधीवादी चिंतनधारा पर चलने वाले प्रसिद्ध समाजसेवी भी हैं. लिहाजा ऐसे व्यक्ति को नक्सल समर्थक और राष्ट्र विरोधी बताकर विश्वविद्यालय से निकाला जाना घोर असहिष्णुता का परिचायक है. उल्लेखनीय है कि संदीप पांडेय केंद्र सरकार के सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड फॉर एजुकेशन के सलाहकार भी रह चुके हैं.

उन्होंने 2005 में नई दिल्ली से मुल्तान तक भारत-पाकिस्तान शांति यात्रा की अगुवाई की थी. वह भ्रष्टाचार के खिला़फ लगातार आवाज़ उठाते रहे और आरटीआई आंदोलन में उनकी अग्रणी भूमिका रही. 1992 में उन्होंने आईआईटी कानपुर में पढ़ाना शुरू किया और इसी दौरान आशा ट्रस्ट की स्थापना की, जो लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण की दिशा में काम करने वाली एक सामाजिक संस्था है. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शिक्षा नीति के ़िखला़फ भी विरोध प्रदर्शन किया था. 

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