dyhdhसुुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैैसले में कोयला घोटाले की रिपोर्ट को सच साबित कर दिया और उसने चार कोल ब्लॉक को छोड़कर (दो सरकारी कंपनियों एवं दो रिलायंंस पॉवर) बाकी सभी को रद्द कर दिया. जैसे ही सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया, वैसे ही कुछ टीवी चैनलों समेत कुछ लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया कि इस रिपोर्ट को सबसे पहले हमने दिखाया या हमने छापा और हमारी रिपोर्ट को सुुप्रीम कोर्ट ने सच साबित किया. उनकी इस बात को सिर माथे पर लेते हुए हम स़िर्फ एक आग्रह करना चाहेंगे कि ये टेलीविजन चैनल और बाकी मीडिया, जिनमें प्रिंट मीडिया भी शामिल है, यह बताएं कि इन्होंने अपनी पहली रिपोर्ट किस तारीख को छापी-दिखाई और उसके बाद दूसरी रिपोर्ट किस तारीख को छापी-दिखाई तथा उस रिपोर्ट का सार क्या है?
यह बात हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि हिंदुस्तान के पाठकों के साथ हमेशा छल होता है और इस बार भी यही छल हो रहा है. चौथी दुनिया ने इतिहास के सबसे बड़े कोयला घोटाले को 25 अप्रैल, 2011 को चौथी दुनिया की आमुख कथा के रूप में-सरकार ने देश को बेच डाला: 26 लाख करोड़ का महाघोटाला शीर्षक तले छापा था. हमने यह रिपोर्ट भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नितिन गडकरी और उनके सचिव श्याम जाजू को छपी हुई प्रति के साथ भेजी थी. इन लोगों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था, न इस सवाल को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की. मजे की बात यह है कि इस मामले को सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी के ही एक सांसद ने उठाया था, पर अपने ही सांसद की बात को भारतीय जनता पार्टी ने किन्हीं विशेष कारणोंवश अनदेखा कर दिया. हमने इस छपी हुई रिपोर्ट को मार्क्सवादी पार्टी के सांसदों कोे भी भेजा, पर उन्होंने भी इसे अनदेखा कर दिया.
दरअसल, या तो वे समझ नहीं पाए कि यह घोटाला कितना बड़ा है और पढ़कर तो बिल्कुल ही समझ नहीं पाए. या फिर उनके कुछ और स्वार्थ इस सवाल को न उठाने में रहे होंगे. हमने फिर इस रिपोर्ट को जून 2012 में छापा. और, हम ही थे, जिन्होंने इस सवाल को-मनमोहन सिंह जेल जा सकते हैं- हेडिंग लगाकर अपने अख़बार में छापा. कोयला घोटाले को लेकर चौथी दुनिया लगातार रिपोर्ट छापता रहा, लेकिन न संसद ने इसके ऊपर पर ध्यान दिया, न राजनीतिक दलों ने. और आज मीडिया में कुछ लोग अपनी पीठ थपथपा रहे हैं. हकीकत यह है कि चौथी दुनिया के इन सारे अंकों की प्रतियां सुप्रीम कोर्ट जाती रहीं. हमने इन्हें आधिकारिक रूप से सुुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को भेजा. हम यह नहीं कह सकते कि प्रधान न्यायाधीश ने हमारी रिपोर्टों को पढ़कर या सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जजों ने हमारी रिपोर्ट को पढ़कर कोई दिमाग बनाया, लेकिन हम इतना अवश्य कह सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट को बधाई दे सकते हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस घोटाले के ऊपर नज़र न रखी होती, तो यह घोटाला हमारे सामने नहीं आता.
कोयले का यह घोटाला बताता है कि 1993 से लेकर 2014 तक जितनी सरकारें रही हैं, वे सब इस घोटाले को अनदेखा करने या इस घोटाले में अपनी भागीदारी साबित करने में किसी से पीछे नहीं रहीं. इसका दूसरा मतलब यह निकलता है कि कोयला घोटाले में कोई एक ऐसा ग्रुप काम कर रहा था, जो सरकारी अधिकारियों को भी बरगला रहा था, मंत्रियों को भी बरगला रहा था और जो साथ नहीं दे रहा था, उसे अपने पक्ष में कर रहा था. विपक्ष के भी प्रभावशाली लोगों को इस ग्रुप ने कोयला घोटाला न उठाने के लिए तैयार कर लिया. सवाल यह है कि सारे सबूतों के साथ छपी हुई रिपोर्ट पढ़कर भी विपक्ष का कोई नेता संसद में इस पर अड़ा क्यों नहीं? इसके पीछे कोई बहुत मासूूम कारण नहीं है कि हमें जानकारी नहीं थी, हम उसे देख नहीं पाए, हमारे पास वक्त नहीं था, हम अपने निर्वाचन क्षेत्र में व्यस्त थे या हम विदेश गए हुए थे. इसीलिए, हमें (चौथी दुनिया) इस पूरे कोयला घोटाले के ऊपर सुप्रीम कोर्ट के ़फैसले पर नाज़ है, हम सुप्रीम कोर्ट को फिर बधाई देते हैं.
सुुप्रीम कोर्ट क्या इस सवाल को स़िर्फ जुुर्माना लगाकर रफा-दफा कर देगा या सीबीआई से कहेगा कि वह इस बात की जांच करे कि कैसे कोयला घोटाला इतने दिनों तक चलता रहा और इसके पीछे कौन-सी ब्यूरोक्रेटिक और राजनीतिक शक्तियां काम कर रही थीं? वह कौन सा ग्रुप था, जिसने सब लोगों को कोयला घोटाला करने वाली कंपनियों के पक्ष में खड़ा कर दिया? हमने अपनी पहली ही रिपोर्ट में सारी कंपनियों के नाम छापे थे कि ये कंपनियां कोयला घोटाले में शामिल हैं. राजनीतिक दलों के कान पर जूं नहीं रगी और ब्यूरोक्रेसी तो शायद इसका साथ दे ही रही थी. कुछ इक्के-दुक्के अफसर थे, जिन्हें किसी न किसी तरह चुप करा दिया गया.
मुझे अब यह लगता है कि इस कोयला घोटाले की इतिश्री यहीं पर नहीं होनी चाहिए. राजनीतिक दल इस सवाल को नहीं उठाएंगे और मीडिया भी इस सवाल को नहीं उठाएगा. तत्कालीन सरकार में शामिल पार्टियों के सांसद, जिनकी कंपनियां इस कोयला घोटाले में शामिल हैं, कह रहे हैं कि गलती सरकार की थी और जुर्माना हमें भरना पड़ रहा है. सरकार से यह गलती कराई किसने? सरकार से यह गलती ताकतवर कंपनियों के मालिकों ने कराई. इनमें से कुछ मालिक राज्यसभा में हैं और कुछ लोकसभा में. अब अगर हम यह कहें कि दरअसल, लोकसभा में एक छोटी संख्या और राज्यसभा में एक बड़ी संख्या देश के कॉरपोरेट घरानों के हितों के लिए लॉबिंग का काम रही है और गांवों की भाषा में कहें कि दलालों का काम कर रही है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. यह राज्यसभा और लोकसभा के उन सांसदों को बुरा लग सकता है, जो कॉरपोरेट घरानों की दलाली में लगे हुए हैं, पर सच्चाई यही है. और, इस सच्चाई के लिए कम से कम सुप्रीम कोर्ट को फिर से बधाई देनी चाहिए कि उसने भ्रष्टाचार के एक सतत चल रहे कैंपेन के ऊपर से पर्दा हटाने का काम किया है.
अब इसकी आपराधिक जांच होनी चाहिए और सर्वोच्च पदों पर बैठे हुए उन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए, जिनके दस्तखतों से इतना बड़ा घोटाला हुआ. अगर यह नहीं होता है, तो फिर एक नज़ीर बन जाएगी कि अगर बड़े लोग अपराध करें, तो जुर्माना देकर छूट सकते हैं और अगर साधारण जनों से अनजाने में कोई अपराध हो जाए, तो उन्हें जेल जाना पड़ सकता है. यह न्याय का दोहरा मानदंड है, जो नहीं चलना चाहिए. इस सारी प्रक्रिया के दौरान हमारे सामने एक और तथ्य आया कि इस कोयला घोटाले से बड़ा एक और कोयला घोटाला हुआ है यानी इस देश में कोयले ने काफी बड़ी राजनीति की है, बहुत छोटे पूंजीपतियों को बड़ा बना दिया और आज वे पूंजीपति देश के ऊपर राज करने का सपना देख रहे हैं. यह बड़ा कोयला घोटाला कैसे हुआ, इसे भी हम अगले अंकों में लेकर आएंगे.
लेकिन, इस मौजूदा कोयला घोटाले पर हम सुप्रीम कोर्ट से एक निवेदन करते हैं कि यह कोयला घोटाला न एक लाख छिहत्तर हज़ार करोड़ रुपये का है, न एक लाख छियासी हज़ार करोड़ रुपये का है, बल्कि यह कोयला घोटाला 26 लाख करोड़ रुपये का है. और, सुप्रीम कोर्ट से हमारा आग्रह है कि जिस दिन वह चाहेगा, हम उसे सारे काग़जात दे देंगे, जिनमें 26 लाख करोड़ रुपये का कोयला घोटाला साबित होता है और इसे हम नहीं साबित करेंगे. इसे हम संसद की संसदीय समितियों की कार्रवाई और उनके आंकड़ों के जरिये साबित करेंगे. अपनी ही समितियों द्वारा की गई कार्रवाई को संसद और सरकार ने अनदेखा कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट क्यों अनदेखा कर रहा है, यह हमारी समझ में नहीं आता. इसलिए हम एक लोकतांत्रिक देश के लोकतांत्रिक सुप्रीम कोर्ट से यह अपील करना चाहते हैं कि एक लाख छियासी हज़ार करोड़ या एक लाख छिहत्तर हज़ार करोड़ रुपये के कोयला घोटाले की जांच को फिर से खोला जाए और इसे 26 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक अपराध के रूप में देखा जाए. और, जो लोग इस अपराध में शामिल हैं, उनके लिए क्या सजाएं हों, इसका निर्णय किया जाए.
राजनीति अच्छी चीज है और राजनीति बहुत बुरी चीज भी है. जब राजनीति लोगों के लिए हो, तो अच्छी है. और, जब राजनीति भ्रष्टाचार के लिए हो, तो बुरी है. इसलिए वक्त आ गया है कि राजनेता यह तय करें कि उनमें से कौन जनता के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं और कौन कॉरपोरेट की दलाली का काम कर रहे हैं. अगर इसके ऊपर आज ़फैसला न हुआ या बातचीत न शुरू हुई, तो यह मानना चाहिए कि बहुत पहले एक अख़बार ने आरोप लगाया था, जिस पर संसद में बहुत हाय-तौबा मची थी, कि संसद दलालों का अड्डा बन गई है. मेरी प्रार्थना है उस हल्ले-गुल्ले को याद कर संसद स्वयं अपने करेक्टिव मेजर्स ले और उन लोगों को अपने बीच में से चिन्हित करे, जो कॉरपोरेट के लिए, बड़ी कंपनियों के लिए, निहित स्वार्थों के लिए, विदेशी ताकतों के लिए दबाव ग्रुप का काम कर रहे हैं. मंत्रियों के यहां जा रहे हैं, सरकारों पर दबाव बना रहे हैं और ब्यूरोक्रेट्स को भ्रष्ट करने में अपना रोल निभा रहे हैं. अगर इस संसद में कोई ऐसा नहीं है, तो हम चाहेंगे कि संसद कहे कि हमारे बीच में कोई भी ऐसा नहीं है या कोई ग्रुप ऐसा नहीं है. तब हम, कौन लोग हैं और कौन लोग क्या कर रहे हैं, उसके ऊपर खुलासा करेंगे. लेकिन, उसके पहले हमारा विनम्र निवेदन है कि संसद खुद अपने बीच के ऐसे लोगों को चिन्हित करे और उन्हें अपने बीच में बहिष्कृत करने का काम करे.

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