वर्ष 2015 में एक लाख 36 हज़ार 20 भाग्यशाली लोग हज यात्रा पर जायेंगे. इनमें से 36 हज़ार हाजी निजी टूर से और शेष हज कमेटी के अंतर्गत जायेंगे. हज कमेटी ऑफ इंडिया हाजियों के निवास, सफर और अन्य व्यवस्था से संबंधित समस्याओं की देखभाल करती है. इस काम में जेद्दाह में भारतीय कॉन्सलेट इसकी सहायता करता है. अतीत में हज कमेटी ऑफ इंडिया पर ज़िम्मेदारियों में कोताही, विशेष रूप से प्रत्येक वर्ष सरकार से मिली करोड़ों रुपये की सब्सिडी में हेराफेरी का आरोप लगता रहा है. पिछले साल सरकार ने 691 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी. इस सब्सिडी का मक़सद था हाजियों पर आर्थिक बोझ कम करना. इसके बावजूद हाजी से एक लाख 80 हज़ार रुपये वसूल किये गये थे, जबकि इस सब्सिडी के बाद हाजियों से ली जाने वाली राशि बहुत हद तक कम होनी चाहिए, लेकिन कम होने के बजाए प्रत्येक वर्ष इसमें तेज़ी से बढ़ोत्तरी होती जा रही है. 2015 में हाजियों से प्राप्त की जाने वाली राशि के बारे में दिल्ली हज हाउस के चेयरमैन परवेज़ मियां से बात की तो उन्होंने कहा कि अभी अंतिम निर्णय नहीं किया गया है, लेकिन अनुमान है कि इस वर्ष दो लाख तक वसूल किये जा सकते हैं. हाजियों से जो राशि वसूल की जाती है, उनमें से 2100 रियाल उन्हें मक्का में निजी ख़र्चों के लिए वापस कर दिये जाते थे, लेकिन इस वर्ष केवल 1500 रियाल ही दिये जायेंगे और इसके बाद जो राशि बच जाएगी, उसको मक्का, मदीना और और मिना में निवास और अन्य चीज़ों पर ख़र्च किया जाएगा. सरकार की ओर से सब्सिडी के नाम पर जो राशि दी जाती है, उसका फ़ायदा हाजियों को नहीं मिलता है, क्योंकि हाजियों को एयर इंडिया से सफर कराया जाता है और एयर इंडिया मौके का फ़ायदा उठाते हुए हज के मौसम में अपना किराया बहुत बढ़ा देता है. इस बढ़ाये गये किराये को सब्सिडी की राशि से वसूल किया जाता है. इस प्रकार से सब्सिडी की सभी राशि एयर इंडिया के खाते में चली जाती है. अगर हज कमेटी और कॉन्सलेट इसको लेकर गंभीर होते तो अन्य एयरलाइंस को कॉन्ट्रैक्ट देकर कम क़ीमत पर हाजियों को यात्रा कराने की ज़िम्मेदारी सौंप सकती है, लेकिन वह ऐसा न करके सब्सिडी के पैसों में घोटाले का रास्ता खुला रखना चाहती हैं. अभी हाल ही में तेलंगाना की राज्य हज कमेटी की ओर से अपील की गई थी कि उसे अपने हाजियों को सऊदी एयरलाइंस से सस्ती दरों पर यात्रा कराने की अनुमति दी जाये, जिसको सेंट्रल हज कमेटी ने नामंजूर कर दिया. हज की राशि में होने वाले घोटाले पर एक बार जेडीयू के अध्यक्ष शरद यादव ने कहा था कि बड़े अफसोस की बात है कि हज जैसी पवित्र यात्रा के नाम पर घोटाले किये जाते हैं. उनके बयान के बाद पूर्व राज्यसभा सदस्य मौलाना उबैदुल्लाह आज़मी ने हज कमेटी में होने वाले भ्रष्टाचार पर सीबीआई से जांच कराने की मांग की थी, लेकिन यह मामला दब गया और किसी कार्रवाई की ख़बर नहीं मिली. अगर सरकारी सब्सिडी का सही प्रयोग हो तो हज पर आने वाले ख़र्चों में बहुत हद तक कमी लाई जा सकती है. बहरहाल, हाजियों को जहां व्यवस्था को लेकर अनगिनत समस्याओं का सामना करना होता है, वहीं आर्थिक दृष्टि से भी उन पर अनावश्यक बोझ डाल दिया जाता है. जैसा कि हज 2015 के लिए हज कमेटी ने एक ऐसा अतार्किक निर्णय लिया है, जिस कारण उसकी पारदर्शिता और ज़्यादा संदिग्ध हो गई है. इस निर्णय के कारण दारूल उलूम देवबंद से लेकर बरेली मकतबा-ए-फिक्र के मदरसे अशरफुल उलूम तक ने हज कमेटी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. दरअसल, यह निर्णय हज की एक महत्वपूर्ण रस्म ‘कुरबानी’ को लेकर है, जिसे मिना में कंकरी मारने के बाद अंजाम दिया जाता है. उसको अदा करने में हाजियों को धार्मिक दृष्टि से अधिकार प्राप्त है कि जिसने हज-ए-उफराद का अहराम बांधा है, वह कुरबानी नहीं दे और जिसने तमत्तो का अहराम बांधा है, अगर वह ग़रीब है तो कुरबानी की जगह रोज़े रख ले. यह एक धार्मिक मामला है, जिसका सही स्पष्टीकरण उलेमा करा सकते हैं और इस संबंध में किसी प्रकार का निर्णय हज कमेटी या कॉन्सलेट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, लेकिन पिछले दिनों हज कमेटी ने अपने इस निर्णय से धार्मिक मामले में हस्तक्षेप करके देवबंद से लेकर बरेलवी उलेमा तक को अपना कड़ा विरोधी बना लिया. इस निर्णय में हज कमेटी ने कहा है कि जो भी भारतीय नागरिक हज पर जाना चाहते हैं, उनके लिए कुरबानी की राशि हज कमेटी के खाते में जमा करानी होगी. इसका मतलब यह हुआ कि हज कमेटी के तहत एक लाख 20 हाजियों को प्रत्येक कुरबानी 469 रियाल के हिसाब से यह राशि जमा करनी होगी और जो ऐसा नहीं करेंगे, उनका पुष्टीकरण रद्द किया जा सकता है.

हज कमेटी ने हाजियों से पैसा कमाने के लिए एक और रास्ता तलाश कर लिया है और वह है सूटकेस की उपलब्धता का रास्ता. विदेश मंत्रालय ने हज कमेटी से जाने वाले सभी हज यात्रियों के लिए निर्धारित वज़न के अनुसार दो सूटकेस उपलब्ध कराने का निर्णय किया है. इसकी ज़िम्मेदारी सेंट्रल हज कमेटी को दी गई है और प्रत्येक हज यात्री से 5100 रुपये वसूल करने का निर्णय किया गया है. हैरानी की बात यह है कि जिस सूटकेस की क़ीमत बाज़ार में मुश्किल से एक हज़ार से 1200 रुपये तक है, उसकी क़ीमत हज कमेटी ने 5100 रुपये लगाई है. ज़ाहिर है, इस लूट पर कई राज्य हज कमेटियों ने विरोध किया. इस विरोध की वजह से सूटकेस की क़ीमत में कमी तो नहीं की गई, लेकिन हाजियों को मक्का पहुंचने के बाद जो 2100 रियाल दिये जाते हैं, अब उसी राशि से सूटकेस की रक़म काट ली जायेगी. ज़ाहिर है उन्हें मक्का पहुंचने के बाद केवल 1500 रियाल ही दिये जायेंगे, जिसमें उन्हें अपने सभी ख़र्चे पूरे करने होंगे. अगर वह खजूर, मुसल्लाह और तस्बीह आदि ख़रीदना चाहेंगे तो उसी राशि में से ख़रीदना होगा. इस सिलसिले में यह बात कही जा रही है कि इस जबरन क़ानून में हज कमेटी का कहीं न कहीं आर्थिक फ़ायदा है और हो सकता है कि जिस कंपनी को सूटकेस बनाने का ठेका दिया जाता है, उस कंपनी से सेंट्रल हज कमेटी को अच्छा-ख़ासा कमीशन मिल जाए. हालांकि हज कमेटी का गठन हाजियों की परेशानियों को दूर करने के लिए किया गया था, लेकिन मामला इसके बिल्कुल उलट दिखाई देता है.

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