01-(8)केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनते ही 1984 के दंगा पीड़ित सिख परिवारों की सुध लेने की पहल शुरू हो गई. 30 साल हो गए. इन तीन दशकों में देश भर में कई दंगे हुए. इन दंगों पर तमाम सियासी रुदालियां हुईं. मुआवजों की तमाम रेवड़ियां बांटी गईं. लेकिन 84 के दंगा पीड़ित सिख परिवारों की खोज खबर किसी भी सत्ताधारी दल ने ली. सिख संख्या में कम हैं. उनका वोट मुसलमानों की तरह गोलबंद नहीं होता. इसीलिए उनकी राजनीतिक औकात भी कम है. राहत और मुआवजे की जद्दोजहद करते-करते पीढ़ियां बुढ़ा गईं और कई बुजुर्ग चले भी गए. लेकिन सिख परिवारों को मुआवजे के नाम पर केवल धोखा बांटा जाता रहा. उत्तर प्रदेश में तो सिखों की और भी दुर्गत की गई. बसपा और सपा सरकारों ने सिखों से खूब खेला. इधर दौड़ाया, उधर दौड़ाया. कभी यह शासनादेश तो कभी वह शासनादेश. फिर तो यूपी भी बंट गया. उत्तराखंड वाले क्षेत्र के सिखों की तो दुर्दशा कर दी गई. घर उनका उत्तराखंड में, लेकिन मुआवजे की कानूनी लड़ाई चलेगी उत्तर प्रदेश में. और उत्तर प्रदेश में कानूनी लड़ाई का हश्र यह किया गया कि मुआवजे की फाइलें गायब करा दी गईं. दंगा पीड़ित सिख परिवारों के दावे के दस्तावेज गायब करा दिए गए. यहां तक कि दंगे का शिकार हुए गुरुद्वारों की मरम्मती तक सरकारों ने नहीं होने दी. टूटे-फूटे गुरुद्वारों में ही सिख मत्था टेकते हैं और सियासतदानों को कोसते हैं. लखनऊ में अलीगंज स्थित चौधरी टोला संगत श्री गुरुग्रंथ साहब गुरुद्वारा इसका नायाब उदाहरण है. इस गुरुद्वारे को तीन नवंबर 1984 को तहस-नहस कर दिया गया था. हमलावरों ने गुरुग्रंथ साहब को भी जलाकर खाक कर दिया था. उस गुरुद्वारे की आज तक मरम्मत नहीं होने दी गई. स्थानीय असामाजिक तत्वों, भू माफियाओं और पुलिस की मिलीभगत के कारण गुरुद्वारा आज तक उसी तरह खंडहर बना पड़ा है.
गनीमत है कि पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सभी मुख्यमंत्रियों को यह निर्देश भेजा कि 1984 के दंगा पीड़ितों के लिए कम से कम पांच-पांच लाख रुपये जारी किए जाएं और उनका तत्काल भुगतान कराया जाए. सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि सिख विरोधी दंगों के कुल 3325 पीड़ितों में से 2733 पीड़ित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के हैं. जबकि शेष उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के हैं. गृह मंत्री ने दिल्ली में 17 दंगा पीड़ितों को पांच-पांच लाख रुपये के चेक पिछले दिनों खुद वितरित किए. गृह मंत्रालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगा मामलों की फिर से जांच के लिए

1984 के   दंगों के   समय यूपी में रहने वाले कई सिख राज्य का विभाजन होने के   बाद उत्तराखंड के   हो गए. लेकिन उनके   मुआवज़े का मसला भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही अटका रहा. लेकिन उन्हें आज तक मुआवजा नहीं मिला. सरदार अमीर सिंह विर्क कहते हैं कि जिन सिखों को मुआवजा मिला, वह राशि भीख से भी बदतर है. उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य सरकारों ने दंगा पीड़ित परिवारों को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा वर्ष 2006 में दिए गए आश्‍वासन के   बावजूद मुआवजा नहीं दिया.

विशेष जांच गठित करने की संभावनाओं की पड़ताल के लिए एक समिति गठित करने का भी फैसला किया है. यह समिति तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. भाजपा पहले से ही 84 के दंगों से जुड़े सभी मामलों की दोबारा जांच कराने की मांग करती रही है. नरेंद्र मोदी सरकार ने इंदिरा गांधी की 30वीं पुण्यतिथि से एक दिन पहले ही फैसला किया था कि 84 के दंगा पीड़ित सिख परिवारों को पांच लाख का मुआवजा दिया जाएगा. इस मुआवजे से सरकारी खजाने पर 166 करोड़ रुपये का भार आएगा.
उत्तर प्रदेश में तो दंगा पीड़ित सिख परिवारों के मुआवजे का मामला वीभत्स हालत में है. दंगों के शिकार सिखों को मुआवजा दिलाने के लिए दाखिल मूल याचिका के संवेदनशील पन्ने और सात-सात अन्य याचिकाएं अदालत से गायब करा दी गई हैं. मूल याचिका के महत्वपूर्ण पन्ने फाड़ कर हटा दिए गए हैं. और तो और, सिखों के मुआवजे पर जिस भी बेंच ने सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया, वह बेंच ही ऐन फैसले के वक्त बदल दी गई. 1984 के दंगों के शिकार ज्यादातर सिखों को अब तक मुआवजा नहीं मिला. सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर 1984 के दंगों के मुआवजे के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सभी मामलों की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में हो रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में दंगों के शिकार सिखों की तरफ से मुआवजे के लिए छह हजार 647 दावे दाखिल किए गए. इनमें रिट संख्या 1582-एमबी-97, 2513-एमबी-97 और 3647-एमबी-97 समेत सात याचिकाएं गायब कर दी गईं. जिस बेस रिट पर पूरा मामला टिका था, उस याचिका (संख्याः 3175-एमबी-96) से 47 महत्वपूर्ण पेज गायब कर दिए गए. मूल याचिका से 30 से 44 नंबर तक के पन्ने गायब हैं. इसी तरह 52 से 55 नंबर, 163 से 175 नंबर, 191 से 205 नंबर और 250 से 251 नंबर पेज गायब कर दिए गए हैं.

उत्तर प्रदेश में तो दंगा पीड़ित सिख परिवारों के  मुआवजे का मामला वीभत्स हालत में है. दंगों के  शिकार सिखों को मुआवजा दिलाने के  लिए दाखिल मूल याचिका के  संवेदनशील पन्ने और सात-सात अन्य याचिकाएं अदालत से गायब करा दी गई हैं. मूल याचिका के   महत्वपूर्ण पन्ने फाड़ कर हटा दिए गए हैं. और तो और, सिखों के   मुआवजे पर जिस भी बेंच ने सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया, वह बेंच ही ऐन फैसले के वक्त बदल दी गई.

दंगा पीड़ित सिखों को मुआवजा दिलाने की लड़ाई लड़ रहे गुरु नानक मिशन इंटरनेशनल के अध्यक्ष सरदार अमीर सिंह विर्क कहते हैं कि मूल रिट के महत्वपूर्ण पन्ने और सात सेकेंडरी रिटें गायब किए जाने के बारे में अदालत से शिकायत की गई, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. सिख दंगों के शिकार लोगों को मुआवजा दिलाने का मामला पिछले ढाई दशक से अधिक समय से चल रहा है. सरकार ने दस कमीशन गठित किए, लेकिन एक भी कमीशन की रिपोर्ट लागू नहीं की. यहां तक कि जस्टिस नरूला कमीशन की रिपोर्ट पर रोक लगा दी. अदालत के किसी भी फैसले में किसी कमीशन की रिपोर्ट का जिक्र नहीं किया गया.
सुप्रीमकोर्ट ने यह स्पष्ट आदेश दे रखा है कि 84 दंगों के भुक्तभोगियों को अद्यतन (करंट) दर से मुआवजे दिए जाएं। लेकिन उत्तर प्रदेश में शासनादेशों के मुताबिक मुआवजे दिए जाने का फैसला किया गया. उत्तर प्रदेश सरकार को मुआवजे का जिलेवार ब्योरा देने को कहा गया था, लेकिन राज्य सरकार ने कोई ब्योरा नहीं दिया. इसके बावजूद हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया कि शासनादेशों के मुताबिक मुआवजे दिए जाएं. इस फैसले के मुताबिक मिले मुआवजे का हाल देखिए. कानपुर के मंजीत सिंह आनंद के परिवार को चार करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ था, लेकिन सरकार ने उनकी मां ज्ञान कौर को 27 हजार रुपये देकर निबटा दिया. लखीमपुर खीरी जिले के निघासन स्थित कुन्नू घाट निवासी बलविंदर सिंह के परिवार के पांच सदस्यों को दंगा पीड़ित तो माना गया, लेकिन उन्हें 30 रुपये से 70 रुपये का मुआवजा देकर निबटाया गया. कानपुर के गांधी ग्राम स्थित फौजी सूबेदार दलजीत सिंह का घर दंगे में तबाह कर दिया गया था. उनके पिता को गोली मारी गई. वे विकलांग हो गए. लेकिन मुआवजे में उन्हें पांच हजार रुपये देकर किनारे कर दिया गया. कानपुर में ही तिवारीपुर के रिटायर फौजी सरदार हरबंस सिंह और उनके भाई सरदार कुलवंत सिंह दंगे के दिन लापता हो गए. उनका कुछ पता नहीं चला और न उनकी लाशें बरामद हुईं. मुआवजे का मसला उठा तो कानूनगो ने रिपोर्ट में लिख दिया कि तिवारीपुर में कोई सिख रहता ही नहीं. पांच-पांच गांवों के लोगों और ग्राम प्रधानों ने शपथपत्र दाखिल कर के कहा कि तिवारीपुर में सिख रहते हैं. यह भी लिखा कि दंगे के दिन से ही सरदार अमरजीत सिंह के पिता और भाई गायब हैं, लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी और पीड़ित परिवार का दावा खारिज कर दिया. 1984 के दंगों के समय उत्तर प्रदेश में रहने वाले कई सिख राज्य का विभाजन होने के बाद उत्तराखंड के हो गए. लेकिन उनके मुआवज़े का मसला भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही अटका रहा. लेकिन उन्हें आज तक मुआवजा नहीं मिला. सरदार अमीर सिंह विर्क कहते हैं कि जिन सिखों को मुआवजा मिला, वह राशि भीख से भी बदतर है. उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य सरकारों ने दंगा पीड़ित परिवारों को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा वर्ष 2006 में दिए गए आश्‍वासन के बावजूद मुआवजा नहीं दिया. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 1984 के दंगा पीड़ितों के लिए जो राहत की घोषणा की गई थी. उस पर अभी तक अमल नहीं हुआ. अकेले कानपुर में 141 सिख शहीद हुए थे. 2800 से अधिक सम्पत्तियां जला दी गई थीं या लूट ली गई थीं. उस समय तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल वोरा के साथ दंगा पीड़ितों का समझौता हुआ था. यूपी में बसपा की सरकार रही हो या समाजवादी पार्टी की, किसी ने सिखों के मुआवजे पर कोई ध्यान नहीं दिया. विर्क ने अफसोस जताया कि उत्तराखंड के निर्माण के दौर में हुए संघर्षों में जो लोग मारे गए उन्हें उसी समय दस-दस लाख का मुआवजा मिल गया, लेकिन उत्तराखंड के ही सिख मारे-मारे फिरते रह गए. दंगा पीड़ित सिखों को मुआवजे में खेती के लिए जमीनें ही दे दी गई होतीं, तो आज यह दुर्दशा नहीं रहती।


यूपी सरकार का स्वभाव मुआवजे में भेदभाव

मुआवजे में भेदभाव उत्तर प्रदेश सरकार के स्वभाव में शामिल है. समाजवादी पार्टी के चरित्र में यह भेदभाव का स्वभाव कुछ अधिक ही है. मुस्लिम पुलिस अधिकारी के मरने पर अखिलेश सरकार त्वरित गति से जो मुआवजा और सुविधाएं देने के  लिए दौड़ पड़ती है, वही तेजी किसी अन्य धर्म के पुलिस अधिकारियों के मरने पर नहीं दिखाती. कुंडा के  सीओ की हत्या पर 50 लाख का मुआवजा और दो-दो परिजनों को सरकारी नौकरी इस तेज गति की नायाब मिसाल है. जबकि कई अन्य पुलिस अधिकारी उसके बाद भी शहीद हुए हैं. मुआवजे में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भेदभाव बरतने पर तो सुप्रीम कोर्ट भी अपनी नाराजगी जाहिर कर चुका है. मुजफ्फरनगर दंगे के मामले में भी यूपी सरकार ने यही किया. उस दंगे में दोनों धर्मों के लोग मारे गए थे. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने केवल मुस्लिम पीड़ितों को ही मुआवजा दिया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी और संबंधित अधिसूचना रद्द करके  नई अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि दंगा पी़िडतों के लिए तय मुआवजे में भेदभाव क्यों बरता जा रहा है. जबकि राज्य सरकार को सभी समुदायों के     लिए मुआवजे की घोषणा करनी चाहिए थी. उत्तर प्रदेश सरकार ने यही भेदभाव 84 के  दंगा पीड़ित सिख परिवारों के  साथ भी रखा और उनके  मुआवजे के मामले को सरकार के  गलियारे में आज तक भटकाए रखा गया है.

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