दंडीबाग स्टेशन 1962 का है, तो पंचायती अखाड़ा पंपिंग स्टेशन का स्थापना काल 1965-66 है. दंडीबाग में आठ किर्लोस्कर के तीन, धोबियाघाट में एक तथा पंचायती अखाड़ा में दो पंपिंग सेट से गया शहर को जलापूर्ति की जा रही है. इसमें भी कई पंपिंग सेट मोटर के खराब होने से यह बंद पड़ा रहता है. गया नगर निगम क्षेत्र में पुराने पाइप लाइन की लंबाई 72 किलोमीटर तथा नए पाइप लाइन की लंबाई करीब 15 किलोमीटर है. इसके अलावा किर्लोस्कर कंपनी भी अनुग्रहपुरी कॉलोनी में जलापूर्ति कर रहा है.

Imamganjअंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल और मोक्ष व ज्ञान की भूमि गया-बोधगया में गर्मी आते ही पानी की समस्या बढ़ने लगती है. सूबे में गया-बोधगया बेहद गर्म क्षेत्र माना जाता है. इसे सूखा क्षेत्र इस मायने में कहा जाता है कि यहां काफी गर्मी पड़ती है और गर्मी के दिनों में पानी की भी काफी किल्लत हो जाती है. मोक्षदायिनी अंत:सलिला फल्गु का जलस्तर भी काफी नीचे चला जाता है. गर्मी में पिंडदान करने के लिए गया आने वाले तीर्थयात्रियों को भी बहुत परेशानी होती है.

पिंडदान में फल्गु नदी के पानी का बहुत महत्व है. स्थानीय लोग इसके लिए फल्गु में 20-25 फीट गड्‌ढे खोदकर पानी जमा करते हैं और पिंडदान के लिए पानी बेचते हैं. गर्मी में फल्गु नदी के साथ ही गया शहर और बोधगया में चापाकल-बोरिंग भी फेल हो जाता है. बढ़ती आबादी के साथ ही गया शहर में पानी की समुचित व्यवस्था का नहीं होना चिंता की बात है.

इस विषय पर संबंधित विभाग के पदाधिकारी एवं कर्मचारी लापरवाह बने हैं. गर्मी आते ही सिर्फ पानी की व्यवस्था के नाम पर लाखों रुपयों की लूट करने पर विभाग का ध्यान रहता है. यह यथार्थ है कि पिछले दो दशक में गया शहर में पानी के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद पौने पांच लाख की आबादी के हलक आज तक सूखे पड़े हैं. शहर के कई हिस्सों में आज तक जलापूर्ति पाइप लाइन नहीं पहुंच सकी है. गर्मी में शहर के पॉश क्षेत्रों में शामिल अनुग्रहपुरी कॉलोनी में तो पानी की बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है.

गया में प्रतिदिन 63 मिलियन लीटर पानी की जरूरत है, लेकिन आपूर्ति सिर्फ 39 मिलियन लीटर पानी की हो रही है. संग्रहण व आपूर्ति में करीब पांच एमएलडी पानी की बर्बादी हो जाती है. सबसे मजेदार बात यह है कि गया शहर में पानी की आपूर्ति पांच-साढ़े पांच दशक पुराने पंपिंग स्टेशन से ही हो रही है. दंडीबाग स्टेशन 1962 का है, तो पंचायती अखाड़ा पंपिंग स्टेशन का स्थापना काल 1965-66 है. दंडीबाग में आठ किर्लोस्कर के तीन, धोबियाघाट में एक तथा पंचायती अखाड़ा में दो पंपिंग सेट से गया शहर को जलापूर्ति की जा रही है.

इसमें भी कई पंपिंग सेट मोटर के खराब होने से यह बंद पड़ा रहता है. गया नगर निगम क्षेत्र में पुराने पाइप लाइन की लंबाई 72 किलोमीटर तथा नए पाइप लाइन की लंबाई करीब 15 किलोमीटर है. इसके अलावा किर्लोस्कर कंपनी भी अनुग्रहपुरी कॉलोनी में जलापूर्ति कर रहा है.

गया शहर में 1913 में पहली बार पेयजलापूर्ति योजना की शुरुआत हुई थी. उस समय अधिक शक्ति का पंपिंग मोटर नहीं हुआ करता था, इसलिए छह फुट पर ही बोरिंग कर पानी निकाला जाता था. 1956 के जिला गजेटियर के अनुसार फल्गु नदी के पश्चिम तट पर (आज जहां आईटीआई है) बोरिंग से टंकी में पानी जमा किया जाता था तथा उसकी आपूर्ति बिना शोधन की जाती थी. बाद में क्लोरिवेशन का काम शुरू हुआ.

घटते भू-गर्भ जलस्तर के कारण गया जिले के शहर और गांव दोनों जगहों पर जमीन का पानी पहुंच से दूर हो गया है. पंचायत व स्वच्छता विभाग का जलस्तर सर्वे बताता है कि गया का औसत जलस्तर हर साल चार फीट यानी 48 इंच नीचे खिसक रहा है. गया जिले के ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति बहुत ही भयावह है. जिले की 332 पंचायतों में पीएचईडी द्वारा 34840 चापाकल लगाए गए हैं. इसमें आधे से अधिक चापाकलों से पानी नहीं निकलता है. कुएं सूखे पड़े हैं. जिले के पचास से अधिक गांवों में चापाकल से फ्लोराइड युक्त पानी निकल रहा है. जिले के 24 प्रखंडों के लिए पर्याप्त चापाकल मिस्त्री नहीं हैं.

तथागत की तपोभूमि बोधगया में भी गर्मी आते ही पानी की समस्या खड़ी हो जाती है. यहां लोगों को पानी उपलब्ध कराने के लिए 2012 में नुरूम योजना के तहत 34.01 करोड़ से जलापूर्ति परियोजना की शुरुआत हुई थी. इस परियोजना को 15 माह में पूरा किया जाना था, लेकिन आज तक यह परियोजना अधूरी पड़ी हुई है. जबकि, सूूबे के तत्कालीन नगर विकास मंत्री महेश्वर प्रसाद हजारी ने ठेकेदार को मार्च 2016 तक इस कार्य को पूरा करने का अल्टीमेटम दिया था.

नगर विकास विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा ने भी दिल्ली की कंपनी जिंदल कंपनी को हड़काया था, लेकिन आज तक इस योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका है. यह योजना बोधगया की 2030 की आबादी व जरूरत को सामने रखते हुए शुरू की गई थी. वर्तमान में यहां 3.4 एमएलडी की ही जलापूर्ति हो रही है. बोधगया में वर्तमान में 41.3 फीसदी घरों तक ही जलापूर्ति हो रही है. 65 सौ घरों के बदले 42 सौ घरों तक ही पाइप लाइन बिछी हुई हैं. जलापूर्ति की पाइप 75 किलोमीटर की लंबाई में लगी हुई है. 15 माह में इस योजना को पूरा करने का लक्ष्य था.

बोधगया में जलापूर्ति के लिए चार स्थानों पर जलमीनार बना हुआ है. राजापुर, डहेरिया बिगहा, अमवां एवं सूरजपुरा में क्रमश: 11 लाख लीटर, पांच लाख लीटर, नौै लाख लीटर व 21 लाख लीटर क्षमता के जलमीनार हैं. इसके बावजूद बोधगया के शहरी क्षेत्र में लोगों को गर्मी में पानी की किल्लत का सामना करना पड़ता है. ग्रामीण क्षेत्रों की हालत और भी बदतर है.

गया जिले के नक्सल प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों में तो गर्मी का मौैसम लोगों के लिए आफत लेकर आता है. जलस्तर घटने से चापाकल और कुएं सूख जाते हैं, जिसका सीधा असर लोगों की दिनचर्या पर पड़ता है. जीटी रोड से जुड़े डोभी में भी लोगों को पानी उपलब्ध कराने के लिए एक योजना की शुरुआत की गई थी. जलमीनार बनकर तैयार है, लेकिन लोगों को पानी नहीं मिल पाया है. डोभी मोड़, डोभी-चतरा मोड़, गया रोड में बिछाई गई मुख्य जलापूर्ति के पाइप जर्जर हो गए हैं.

यही हाल शेरघाटी, इमामगंज, बाराचट्‌टी, गुरुआ, आमस, टिकारी, बेलागंज, अतरी आदि ग्रामीण क्षेत्रों की है. गर्मी के मौसम के साथ ही पानी की समस्या शुरू हो जाती है, लेकिन संबंधित विभाग की ओर से कोई सतर्कता नहीं बरती जाती है. जब पानी के लिए हाहाकार मचता है, तब विभाग भी सक्रिय होता है. इस साल पीएचईडी द्वारा जिले में पेयजल समस्या से लोगों को निजात दिलाने के लिए जिले के विभिन्न इलाकों में 664 चापाकलों को लगाने की योजना है. 60 सरकारी स्कूलों में भी चापाकल लगाए जाने हैं. विभाग का दावा है कि प्रत्येक प्रखंड में चापाकलों की मरम्मत के लिए एक-एक चलंत चापाकल मरम्मत दस्ते का गठन किया गया है.

गया शहर की बढ़ती आबादी को देखते हुए जलापूर्ति के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक की सहायता से 375 करोड़ की योजना बनाई गई है. इसके तहत गया शहर के छह ओवर हेड वाटर टैंक, मानपुर के अलीपुर स्थित बुढ़वा महादेव, जोड़ा मस्जिद, अबगीला, भुसुंडा व डेल्हा में बनना है. इसके अलावा ब्रह्‌मयोनि, रामशिला व सिंगरा स्थान में जल भंडार के लिए बड़ी-बड़ी पानी टंकियों का निर्माण कराया जाना है. 17.05 किलोमीटर पाइप लाइन का विस्तार भी किया जाना है.

गया-बोधगया समूत पूरे गया जिले में गर्मी के मौसम में पानी के लिए हाहाकार मचा रहता है. सभी महकमा, संबंधित विभाग एवं जनप्रतिनिधियों को भलीभांति यह मालूम है कि गया जिले में पानी की समस्या है. इसके बावजूद पानी की समस्या का स्थायी समाधान आज तक नहीं हो पाया है. कुछ विभाग तो ऐसे हैं, जिन्हें गर्मी का इंतजार रहता है, ताकि पानी की समस्या उत्पन्न हो और जलसंकट के निजात के लिए मिले फंड का बंदरबांट किया जा सके.

जलसंकट से मुक्ति के लिए यदि अब तक कारगर उपाय किए जाते तो गया में प्रत्येक वर्ष जलसंकट से लोगों को परेशानी नहीं होती. लोगों की परेशानी से स्पष्ट है कि अधिकारियों द्वारा योजनाओं को ईमानदारीपूर्वक मूूर्त रूप नहीं दिया गया है. विभाग द्वारा चापाकल मरम्मत के नाम पर रुपयों का बंदरबांट किया जाता है. गर्मी के मौसम में जलापूर्ति केन्द्र का मोटर भी अक्सर खराब हो जाता है. पानी की बढ़ती समस्या से विभाग को ‘मौज’ करने का सुअवसर मिल जाता है और लूट पर्व में हर कोई लूटने की फिराक में जुट जाते हैं.

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