cowजब से देश में गाय और मंदिर आस्था से हटकर सियासत के केंद्र बने, तभी से गौभक्तों और धर्म के दुकानदारों की पौ बारह है. गौरक्षकों को प्रधानमंत्री की मीठी झिड़की के बाद सूबों में हालात और बिगड़े हैं. हैरानी की बात है कि भाजपा शासित राज्यों में सरकार संरक्षित गौशालाओं में ही सबसे अधिक गायों की मौत हुई है.

भाजपा शासित प्रदेश राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में गौरक्षकों के उत्पात की खबरें आएदिन सुर्खियों में होती हैं. राजस्थान में गायों की देखभाल के लिए बाकायदा गौ मंत्री भी हैं, वहीं हरियाणा में गौ सेवा कमीशन है. हरियाणा में 2015 में गौवंश संरक्षण के नाम से एक कानून बनाया गया, जिसमें गौहत्या या गौ तस्करी पर दस साल की सजा का प्रावधान है. उत्तरप्रदेश के गौप्रेमी मुख्यमंत्री ने भी गायों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं.

लेकिन जमीनी स्तर पर देखें तो आलम यह है कि जिन सूबों में गौरक्षा के लिए कुछ कदम उठाए गए, वहीं बदइंतजामी और लापरवाही से गौशालाओं में सबसे अधिक गायों की मौत हुई है. हरियाणा में कुरुक्षेत्र के मथाना गौशाला में अब तक 37 गायों की मौत हो चुकी है. गौशाला में गायों की देखभाल व रख-रखाव समुचित तरीके से नहीं होने के कारण मौत हुई. वहीं जिला प्रशासन गायों द्वारा प्लास्टिक खाने को मौत की वजह बता रहा है.

इससे अलग ग्रामीणों का कहना है कि कुछ दिनों पहले बारिश के कारण गौशाला में पानी जमा हो गया था. कीचड़ और दलदल में फंसकर गौशाला में गायों ने दम तोड़ दिया. हाल यह है कि उपचार के दौरान एक  दिन में 16 गायों की मौत हुई है. श्री कृष्ण गौशाला के संचालक सोमनाथ बताते हैं कि यहां 250 गायों के लिए शेड बना है, जिसमें 600 से अधिक गायें रखी गई हैं. इनमें भी सिर्फ चार गायें ही दूध देती हैं. इससे इतर हमारे पास इन्कम का कोई अन्य स्रोत नहीं है. यमुनानगर के दामला स्थित बढ़ावा रामा गौशाला में भी 375 गायों को रखा गया है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या सरकार सचमुच गायों को बचाने के लिए गंभीर है या केवल धार्मिक और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण के लिए गौरक्षा के हथियार का इस्तेमाल कर रही है.

जयपुर नगर निगम की हिंगोनिया गौशाला पिछले साल   काफी चर्चा में रही. इस गौशाला में कुछ महीनों के दौरान प्रतिदिन 40 गायों की मौत हुई थी. एक दिन में 85 गायों की मौत की खबर मिलने के बाद भी प्रशासन लापरवाह बना रहा. आलम यह था कि कुछ महीनों में ही 1500 से अधिक गायों ने दम तोड़ दिया. गौरक्षक गायों की मौत के विरोध में हिंगोनिया गौशाला के बाहर प्रदर्शन तो कर रहे थे, लेकिन कीचड़ और दलदल में फंसी गायों को बाहर निकालने के लिए कोई भी मदद करने के लिए आगे नहीं आया. गायों को बचाने में न तो गौरक्षकों ने रुचि दिखाई और न ही गौमंत्री और स्थानीय प्रशासन ने ही कोई इंतजाम किए. हद तो तब हो गई, जब प्रशासन ने फिर वही रटे-रटाए पुराने तर्क गिना दिए. बताया गया कि कीचड़ में फंसकर और भूख-प्यास के कारण गायों की मौत हुई है. इतना ही नहीं, सरकार ने एक विज्ञापन जारी कर लोगों को दिग्भ्रमित करने का भी प्रयास किया. विज्ञापन में बताया गया कि अधिकतर बीमार गायों की मौत हुई है, जो उपचार के लिए यहां लाई गई थीं. पशु चिकित्सकों ने बताया कि गौशाला की एक गाय के ऑपरेशन के दौरान उसके पेट से कई किलो प्लास्टिक की थैलियां और कीलों का ढेर मिला था. या यूं कहें कि प्लास्टिक और कचरा खाने से कमजोर हुईं गायें बारिश की मार नहीं झेल सकीं. गौरतलब है कि इस गौशाला में आठ हजार से अधिक गायें हैं.

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 2016 में राज्य की एक गौशाला में भूख-प्यास से दो सौ गायों की मौत का मामला उठाया था. कांकेर जिले के कर्रामाड गांव के कामधेनु गौसेवा केंद्र में भूख-प्यास से 200 से अधिक गायों की मौत हो गई थी. उन्होंने इसके लिए राज्य के कृषि पशुपालन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष को जिम्मेदार ठहराया था.

128 साल पुरानी और देश की सबसे बड़ी गौशालाओं में से एक कानपुर गौशाला में भी भूख-प्यास से गायों की मौत हो रही है. यह गौशाला सोसाइटी देश की अमीर गौशालाओं में से एक है. इस गौशाला के पास करीब 22 अरब की जमीन है. इस गौशाला में अप्रैल माह में एक हफ्ते के दौरान चार गायों की मौत हो गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी बेहद चौंकाने वाला आया. रिपोर्ट से पता चला कि मृत गायों की आंतों में अन्न का एक दाना भी नहीं था. यूरिनरी और ब्लैडर भी बिल्कुल खाली था. चारा नहीं मिलने से भूखी गायों ने पानी तक नहीं पिया था. पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों ने बताया कि ऐसा तभी होता है, जब कई दिनों से गायें भूखी रही हों. सवाल है कि फिर गौशाला को दान में मिली करोड़ों रुपए की राशि का गौशाला संचालकों ने क्या किया? यहां 5 महीने के दौरान 152 गायों की मौत हो चुकी है. यूपी के शाहजहांपुर की एक गौशाला में भी गौ तस्करी का मामला सामने आया है. यहां की गौशाला से अचानक पशु गायब होने लगे थे. गौ तस्करी का आरोप गोकुल धाम पशुपालन सेवा समिति पर लगा है.

इन दिनों गौरक्षा का मुद्दा गांवों व शहरों में गली-कूचों से लेकर संसद तक गूंजता रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी पिछले साल चेताया था कि गौरक्षक का चोला पहने कुछ लोग असामाजिक गतिविधियों में लिप्त हैं. प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान पर गौरक्षक बौखला गए, लेकिन बाद में वे समझ गए कि यह सिर्फ एक मीठी झिड़की थी. प्रधानमंत्री का यह संदेश समाज के एक तबके को यह दिलासा देना भर था कि सरकार इन गौरक्षकों के साथ नहीं है. क्या प्रधानमंत्री या भाजपा शासित सूबों के मुख्यमंत्री ये बताएंगे कि गौरक्षकों के उत्पात को रोकने के लिए अभी तक क्या कदम उठाए गए हैं?

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