सांकेतिक तस्वीर :
नई दिल्ली : वैसे तो देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी दिखावे के सख्त खिलाफ हैं और लगातार इसका विरोध भी करते दिखाई देते हैं लेकिन अब उन्हें क्या हो गया है. दरअसल योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को मिलने वाले बैग में प्रधानमन्त्री और अपनी तस्वीर लगवाने का फैसला लिया है.
दरअसल उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 12वीं पास करने वाले विद्यार्थियों को लैपटॉप देने की घोषणा की थी और जब ये लैपटॉप बांटे थे तब पता चला कि इसमें अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की तस्वीर लगी हुई थी जिसके बाद अखिलेश सरकार की जमकर किरकिरी हुई थी.
ठीक वैसे ही अब सूबे के प्राथमिक स्कूलों के छा़त्रों को मिलने वाले स्कूली बैग में इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फोटो प्रकाशित की जाएगी। जबकि पूर्व में अखिलेश यादव की तस्वीर हुआ करती थी। इस फैसले के बाद से अब योगी सरकार को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या योगी सरकार भी अब अखिलेश यादव के नक़्शे कदम पर चल पड़ी है
योगी सरकार के इस फैसले के बाद अब ऐसा लगने लगा है कि वो दिन दूर नहीं जब प्राथमिक विद्यालयों में बच्चो को मिलने वाली थाली और गिलास में भी प्राध्न्मंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी की तस्वीर भी नज़र आ सकती है. क्योकि अखिलेश सरकार ने भी अपने कार्यकाल में ऐसा ही किया था और मिड डे मील के थाली और गिलास में अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की तस्वीरें लगी हुई थीं. इस फैसले से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि योगी सरकार अपने प्रचार का कोई भी मौक़ा हांथ से नहीं जाने देना चाहती है.
योगी सरकार में नहीं थम रहा UP में जुर्म का सिलसिला
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बने हुए दो महीने का वक्त हो चुका है इसके बाद भी अपराधियों के हौसले बुलंद हैं. इस बात का सबूत मथुरा में हुए डबल मर्डर और लूट की वारदात के बाद देखने को मिला। पुलिस अब तक इस मर्डर और लूट के आरोपियों को पकड़ नहीं पायी है. सिर्फ इतना ही नहीं राजधानी लखनऊ में आठवीं कक्षा की छात्रा के साथ चलती गाड़ी में गैंग रेप किया गया और अब तक आरोपियों का कोई अता पता नहीं है.
उत्तर प्रदेश की जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ भाजपा सरकार को अपना बहुमत देकर ऐतिहासिक जीत दिलाई थी लेकिन अगर योगी सरकार के दो महीने के कार्यकाल पर नज़र डालें तो पता चलेगा कि सरकार उत्तर प्रदेश में जुर्म पर लगाम लगाने में असफल साबित हुई है लेकिन इस असफलता पर सोंचने के बजाय सरकार अभी भी अपने प्रचार के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.