वो फ़क़त महसूस होता है मुझे दिखता नहीं, हाँ मगर छू कर गुज़रता है हवा की शक्ल में

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हमसफ़र हमराज़ हमदम हमनवा की शक्ल में,
वो मेरे आगे खड़ा है बेवफ़ा की शक्ल में.

कान धर सीने प और तफ़तीश कर क्या शय है ये,
कुछ मेरे दिल से निकलती है सदा की शक्ल में.

वो फ़क़त महसूस होता है मुझे दिखता नहीं,
हाँ मगर छू कर गुज़रता है हवा की शक्ल में.

ज़िंदगी हर सिम्त जीने की तमन्ना है मुझे,
कुछ दुआ की शक्ल में कुछ बद्दुआ की शक्ल में.

अब तेरी ज़ुल्फ़ों तले मेरा ठिकाना हो न हो,
मैं तेरी पलकों में रहता हूँ हया की शक्ल में.

कूजागर तुझ पर यक़ीं करना मुनासिब ही नहीं,
तू किसे भी ढाल सकता है ख़ुदा की शक्ल में.

‘समद’

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