जिस तरह से 30 जनवरी ( गाँधी जी को गोली मारकर हत्या करने की तारीख भी यही है ! सिर्फ़ पंद्रह साल का अंतराल है ! ) 1933 के दिन हिटलर ने 1933 को जर्मनी के चांसलर पद की शपथ ली थी ! उस समय उसे भी 37% प्रतिशत जर्मनी के मतदाताओं के मत थे ! और मै गलत नहीं तो 26 मई 2014 के दिन नरेंद्र मोदीजी ने पहली बार भारत के प्रधानमंत्री के पद की शपथ ली ! उस समय उनके भारतीय जनता पार्टी को 31 % प्रतिशत लोगों ने वोट दिया था ! मतलब हिटलर से भी छ प्रतिशत कम ! और दोबारा 2019 के चुनाव में 37-36% मतलब हिटलर से 1-36% प्रतिशत ज्यादा ! लेकिन हिटलर ने अपनी कनपटी पर पिस्तौल से खुद को गोली मारकर 30 अप्रैल 1945 को आत्महत्या कर ली ! तब तक बढते – बढते 99 % प्रतिशत तक मतदान उसे मिला था ! ( लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है ! यह संशयास्पद है ! ) उसके बाद संघ के सपनों का भारत जो हूबहू हिटलर और मुसोलीनी के फासीवाद के उपरही आधारित है ! मुख्य मुद्दा हिटलर के फासीस्ट विचारधारा और उसे लागू करने और उसे लागू करने की आड में आने वाली हर चीज को हटाने का संकल्प लेकर ही हिटलर ने अपने विरोधियों की संपत्तियों पर कब्जा करने और उन्हें सलाखों के पिछे डालने का काम किया था !
नरेंद्र मोदीजी ने प्रधानमंत्री का पद सम्हाला है ! हिटलर ने यहुदी कौम के खिलाफ नफरत फैला कर अपनी फासीस्ट विचारधारा का प्रचार- प्रसार किया था ! और जर्मनी की संसद जिसे ड्यूमा बोलते हैं के उपर तिकडमबाजी करके कब्जा किया था !
और संघ की स्थापना ही अल्पसंख्यक समुदाय और उसमे भी मुस्लिम समुदाय नंबर एक पर नफरत फैलाने के लिए विशेष रूप से हुई है ! इसिलिये राममंदिर का आंदोलन, और उसी कडी मे गोधरा कांड, और गुजरात के दंगों को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से हिंदू हृदय सम्राट बनने के लिये इस्तेमाल किया है ! और 56 इंची छाती का जुमला उसी दंगे से पैदा हुआ है ! अन्यथा नरेंद्र मोदीजी की और मेरी बनियन सिर्फ 44 इंच साइजकी है ! यही नरेंद्र मोदीजी को भारत के सब से बडे पदपर बैठाने के लिए विशेष रूप से निमित्त हुआ है और सभी सेक्युलर तथा गाँधी – विनोबा – जयप्रकाश – लोहिया – आंबेडकर को मानने वाले लोगों की भी पराजय है !
और उस काम में सब से बड़ी बाधा महात्मा गाँधी और उनकी विचारधारा है ! क्योंकि बेनिटो मुसोलीनी से डॉ. बी. एस. मुंजे जब 15 मार्च से 24 मार्च 1931को इटली में थे ! ( सेकंड रॉऊंड टेबल कॉंफ्रेस के बाद वह इटली ही गए थे ! ) और 19 मार्च को दोपहर के तीन बजे Palazzo Venezia यह बेनिटो मुसोलीनी के रोम के मुख्यालय का नाम है ! वहां डॉ. मुंजे और मुसोलीनी की मुलाकात हुई है ! (यह खुद डॉ मुंजे ने अपनी डायरी में 19 मार्च 1931 को लिखा है ! ) जो दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू मुजिएम में रखी हुई है ! अब है इसपर मुझे संशय है ! )क्योंकि मुसोलीनी और मुंजे के बीच की बातचीत का निचोड़ है ! “कि इटली की जनता लडाई – झगड़े के बजाय आराम से जीने की आदि है ! और आगे जाकर मुसोलीनी मुसोलीनी डॉ. मुंजे को कहता है !” कि यह आदत मुझे बदलनी है ! और मुझे इटली की जनता को युद्धखोर बनाना है ! ” और लगभग वही बात भारत के संदर्भ में डॉ. मुंजे को भी लगती है ! भारतीय लोगों की भी ऐसी ही आदत है ! जिसे संघ की स्थापना करने के बाद बदलने की कोशिश कर रहा हूँ ! मतलब लोगों को आपस में लडने की शिक्षा ! और वह भी आपसी द्वेष तथा शत्रुओं की भावनाओं को अंकुरित करके ! सभी फासीस्ट इसी प्रकार की सोच के रहे हैं !
गांधीजी ने हिटलर को ओपन लेटर में इस प्रवृत्ति के खिलाफ लिखा है ! और हिटलर की वंशश्रेष्ठत्वकी बात को लेकर ही जिसके लिए उसने अपनी जिंदगी दाव पर लगा दी ! वह महात्मा गाँधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए सबसे बड़ी बाधा थे ! इसलिए उनकी हत्या कर दी ! और अब सत्ता हाथों में आनेके बाद उनके वैचारिक अवशेष एक – एक करके खत्म करने की मुहिम नरेंद्र मोदीजी ने अहमदाबाद से शुरु की है ! जो अब देश के सभी जगहों पर जारी है ! वाराणसी के सर्व सेवा संघ की जगह पर कब्जा करने का अभी का ताजा उदाहरण है !
30 जनवरी 1948 को महात्मा गाँधी जी के हत्या के बाद, अब उनकी बची – खुची विरासत जो उनके चार अंधों के जैसे अनुयायी जिसके जितनी समझ में वैसे गाँधी को लेकर, गांधी विद्दा पिठ अमदाबाद, साबरमती- सेवाग्राम, राजघाट दिल्ली – वाराणसी और देश भर में फैले विभिन्न आश्रम तथा संस्थानों को वर्तमान नौ सालों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक ईकाई भाजपा ने, सत्ता में आने के तुरंत बाद एक – एक करके सभी को कब्जे में करने की कोशिश का ताजा उदाहरण, राजघाट वाराणसी के सर्व सेवा संघ के परिसर में, मई महीने से ही सबसे पहले इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला और संस्कृति के केंद्र को, जयप्रकाश नारायण ने स्थापित किया गांधी विद्दा संस्थान के परिसर को सौपने की शुरुआत की गई ! भले ही वाराणसी के आयुक्त या जिलाधिकारी के निर्णय पर की गई कार्रवाई थी ! और हमारे कुछ मित्र इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला संस्कृति केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय से मिलने गए ! और उन्होंने साफ कहा कि “यह सब काफी उपर के हुकुम से किया जा रही है ! और मै इसमें कुछ नहीं कर सकता ! उपर मतलब और कौन हो सकता है ? मै आज खुलकर आरोप कर रहा हूँ ! वर्तमान देश के प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी के शिवाय और कोई दूसरा हो नही सकता !
क्योंकि वह जानबूझकर गुजरात के होने के बावजूद वाराणसी से संसद का चुनाव लढे ! और एक नही दोनों बार लढे ! और भारी बहुमत से चुनकर भी आए ! यह वही वाराणसी है ! जो कभी समाजवादियों का गढ रहा है ! और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में तो बहुत लंबे समय तक समाजवादी युवजन सभा का दबदबा रहा है ! लोकबंधू राजनारायणजी की जन्मभूमि और कर्मभूमि भी रही है ! हालांकि हजारों वर्ष पुरानी वाराणसी में समाजवादी कुछ समय के लिए ही सही लेकिन कुछ हदतक कामयाब रहे थे ! इसका कारण क्या था ? वह अकादमीक रुप से खोजने की जरुरत है ! और आज गुजरात से आकर अपने-आप को गंगापुत्र ( हालांकि उनकी बॉयलॉजिकल मां का नाम तो हरिबा है ! ) कहकर और माँ गंगा ने मुझे बुलाया है ! यह बोलकर वह बनारस में लोकसभा के लिए खडे हुए ! और उन्होंने बनारस अपनी राजनीति के लिए पक्का गढ बनाने के लिए ! तथाकथित कॅरिडॉर बनाने से लेकर, राजघाट पर नमो घाट का निर्माण करना ! और उसी घाट से लगीं हुई जमीन, लगभग तेरह एकड दिखाई देने के बाद ! मुझे लगता है, कि नमो घाट का निर्माण होना और वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ के परिसर पर काकदृष्टि पडना बिल्कुल भी स्वाभाविक है ! और नरेंद्र मोदी को अच्छी तरह से मालूम है “कि गांधी जी के तथाकथित अनुयायियों द्वारा आखिरी लड़ाई 1973-
77 के दौर में हुआ जयप्रकाश आंदोलन है ! उसके बाद जयप्रकाश नारायण भी नहीं रहे ! और वह दमखम भी नहीं रहा ! उल्टा जो विरासत पिछे छुट गई थी ! उसे सम्हालने की जगह संपत्ति के कारण जो भी कुछ होता है ! वह अधिकार की लड़ाई में ही जयप्रकाश और लगभग उसी के आसपास आचार्य विनोबा भावे की मृत्यु के बाद ! पहले ठाकुर दास बंग – आचार्य राममूर्ति, फिर तो विनोबा की भाषा में भांग पिकर, पिछले चालीस सालों का मुल्यांकन करो तो गांधीवादी संस्थाओं में आपसी झगड़े ज्यादा और गांधी – विनोबा – जयप्रकाश के सपनों को लेकर काम कितना हुआ ? यह एक संशोधन का विषय है ! आज कुछ लोगो को दुख कम और खुशी अधिक होने की संभावना है ! क्योंकि मई महीने से मै देख रहा हूँ ! की शुरुआत में एकाध बार तथाकथित दोनों गुटों के लोग इकठ्ठा तो हुए ! लेकिन उसके बाद जो सोशल मीडिया में मुहिम देख रहा था ! उससे लगा कि इन्हें दुष्मनो की जरुरत नहीं है ! यह आपस में लड – झगडकर खत्म हो जाएंगे ! और उसमे सबसे बड़ा नुकसान गाँधी – विनोबा – जयप्रकाश नारायण ने अपनी मेहनत और कल्पना की वजह से जो भी कुछ संस्थागत ढांचे को खडा किया था ! उसे आपसी लड़ाई झगडो में, संघ जैसे फासीवादी लोगों के कब्जे में आसानी से एक – एक करके संस्थान चले जाने की संभावना है ! और हमारे दोनों – तीनों तरफ के मित्रो ने भी संघ की परोक्ष – अपरोक्षरुपसे मदद की है ! वर्तमान समय में संघ के खिलाफ मिल्जुल्कर लडने की जगह एक दूसरे की गलतियाँ गिनाने में लगे रहे !
क्योकि इसी आदमी ने प्रधानमंत्री बनने के सब से पहले अहमदाबाद के गांधी विद्दापिठ, और जब साबरमती के आश्रम की तथाकथित अमेरिका के मार्टिन ल्युथर किंग के नाम से बने हुए मेमोरियल किंग के तर्ज पर साबरमती आश्रम को बनाने की पेशकश की ! और साबरमती आश्रम के कार्यकारी विश्वस्त अहमदाबाद के साराभाई उद्योग समूह के प्रमुख कार्तिकेय साराभाई और नरेंद्र मोदी पुराने मित्र हैं ! और 127 एकड के साबरमती परिसर में नरेंद्र मोदी के कल्पना को साकार करने की मान्यता देने की शुरुआत भारत में गांधी जी की बची – खुची विरासत को खत्म करने की शुरुआत की गई है ! और ऐसे कार्तिकेय और भी हैं !
और नरेंद्र मोदी जो उम्र के सत्रहवे साल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बनने के बाद ! जिस संघठन ने महात्मा गाँधी जी के हत्या करने वाले गोडसे को निर्माण किया ! मालेगांव – समझौता एक्सप्रेस विस्फोट करने वाली प्रज्ञा सिंह जैसे आतंकवादी महिला का निर्माण किया ! उस संघठन के नरेंद्र मोदी, रामबहादुर राय भला कैसे महात्मा गाँधी जी के विरासत को बचाने के लिए काम करेंगे ? जिस बच्चे – बच्चियों को उम्र के दस – पंद्रह साल से संघ के शाखाओं में गांधी जी के खिलाफ बदनामी की मुहिम खेल से लेकर गितो – बौद्धिक तथा विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणो में सिखाने की कोशिश की जाती है !
वह नाथूराम गोडसे, प्रज्ञा सिंह, नरेंद्र मोदी, रामबहादुर राय, अमित शाह बाबु बजरंगी, विनय कटियार, नरेश राजकोंडावार, हिमांशू पानसे, प्रमोद मुतालिक, यह फेहरिस्त बनाने जाऊँ तो पूरा लेख सिर्फ संघ के कौन लोग है ? जिन्होंने आजादी के आंदोलन के खिलाफ तथा आजादी के बाद भारत में कौन से दंगों से लेकर कौन कौन सी आतंकवाद में भाग लिया ? और अब सत्ता में आने के बाद कौन सी संस्थाएं कब्जे में करने की कोशिश का कच्चा चिठ्ठा लिखूंगा तो एक किताब का दस्तावेज बन सकता है !
क्योकि नालंदा से अमर्त्य सेन को हटाने से लेकर उनके शांतिनिकेतन के पुश्तैनी घर से बाहर निकालने की साजिश ! और सबसे संगिन बात महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने 1863 में यानी ढेढ सौ साल पहले शुरूआत किया गया पौष मेला जो बंगाल की मिलीजुली सांस्कृतिक गतिविधियों का उत्सव था ! उसे बंद करने से लेकर सिलॅबस बदलने की कवायद ! फिर जेएनयू हो या जामिया मिलिया एनसीईआरटी, आई आईटी, एमबीए, और सभी केंद्रिय विश्विद्यालय में संघी मानसिकता के वीसी और अन्य पदाधिकारियों को बहाल करने की कोशिश किस लिए कि जा रही है ? जब हम लोगों ने इन सब बातों का संज्ञान नही लिया तो यह सब होना ही था ! वाराणसी सिर्फ एक घटना नही है ! जहाँ राष्ट्रपति और राज्यपाल आदिवासी बनाकर मणिपुर जैसे राज्य में क्या हो रहा है यह पूरा विश्व देख रहा है ! क्योंकि मणिपुर के पहाडो के अंदर अकूत खनिज संपदाओं के होने की बात है और प्रायवेट मास्टर्स को सौपना है अन्यथा वहां के मुख्यमंत्री को कबका निकाल बाहर किया होता उसे विश्वास में लेकर ही यह सब हो रहा है ! छत्तीसगढ़, झारखंड, ओरिसा गडचिरोली एक तरह से पूर्ण जंगल के क्षेत्र में कहा नक्सलियों का हौव्वा खडा कर के तो कहा आदिवासी और गैरआदिवासियोके बीच में नफरत फैला कर उन्हें अपनी मुल जगह से हटाने का षडयंत्र जारी है !
यहां दर्दों गम में सभी पल रहे हैं
यहां सभी सभी को छल रहे हैं
हरेक चेहरे पर वहम का असर है !
हरेक जिंदगी में बहुत ही कसर है !
डॉ. सुरेश खैरनार, 23 जुलाई 2023, नागपुर.