फासीवाद के लगातार गहराते संकट के बावजूद अधिकांश जनता द्वारा इसके खतरे को महसूस नहीं करने तथा लेखकों ,बुद्धिजीवियों के एक बड़े समूह द्वारा इस मुद्दे पर चुप्पी साधकर प्रतिरोध से विमुख होने की अत्यंत चिंताजनक स्थितियों के बीच एक लेखक होने के नाते मुझे महान साहित्यकार भीष्म साहनी जी का एक कथन याद आया ।उक्त प्रेरक कथन का एक अंश प्रस्तुत है ।

एक लेखक होने के नाते मैं मानवतावादी मूल्यों से जुड़ता हूं और इस तरह समानता ,न्याय संगत व्यवस्था ,स्वाधीन चिंतन , साहचर्य ,सत्यान्वेषण आदि को देश के सामाजिक ,सांस्कृतिक जीवन में प्राथमिकता देता हूं ।ऊंच नीच में विश्वास नहीं करता ।फासीवाद का इन जीवन मूल्यों के साथ कहीं कोई मेल नहीं बैठता ।फासीवाद की दृष्टि घृणा और द्वेष की दृष्टि होती है ,भेदभाव की ,निरंकुश सत्ता की ।एक लेखक मानव समाज के लिए कभी भी हिटलर नहीं हो सकता ।

आलोचना पत्रिका में कई वर्ष पूर्व प्रकाशित भीष्म साहनी जी का यह कथन लेखकों के दायित्व का उल्लेख कर फासीवाद का प्रतिरोध करने हेतु प्रेरित करता है ।यह कथन हमें ऊर्जा देता है ।
लेखक होने के नाते फासीवाद का प्रतिरोध तो करना ही होगा ।

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