अफगानिस्तान में सरकार बन गयी। अधिकांश आतंकवादी हैं। कई तो इनामी आतंकवादी हैं। यानि वहशी दरिंदे हैं। इन वहशी दरिंदों के संदर्भ में मशहूर फिल्म कलाकार नसीरुद्दीन शाह का वीडियो आया। उसका संदेश स्पष्ट है। उस बहाने से नसीर ने जो कुछ कहा वह जिन मुसलमानों के लिए था, वे शायद समझ गये होंगे। जो लिबरल, सेक्युलर और आभिजात्य मुस्लिम वर्ग है वह भी आसानी से समझ गया होगा कि यह सब मुस्लिमों के किस वर्ग को नजर में रख कर कहा गया होगा। हमारा इस्लाम दुनिया के इस्लाम से अलहदा है और अच्छा है, इसका मतलब समझना भी कतई दुरूह नहीं है। और जब वे ‘हम’ या ‘हमें’ का प्रयोग करते हैं तो दरअसल वे एक बार फिर उसी ओर इशारा करते हैं कि हमारी अपनी समूची कौम को अपने भीतर झांक कर देखना होगा। परोक्ष रूप से वे इसी बहाने सरकारिया आयोग के संदर्भ को भी दोहराना चाहते हैं। हमें क्या चाहिए वह एक बात है और हमें क्या करना है अपने और अपनी कौम के उद्धार के लिए वह दूसरी बात है। हम मुसलमानों पर हुई छींटाकशी को हमेशा एक ही नजर और एक ही संदर्भ में देखने के आदी हो गये हैं। विशेष तौर पर जब से यह सरकार आयी है।

नसीर के मात्र एक मिनट से भी कम के वीडियो में मेरे प्रिय चिंतक अपूर्वानंद और शीबा असलम ने नाहक ही बहुत गहरे जाकर खुर्द बुद्ध कर दिया। शीबा को तो महज़ जरा सी बात पर आपत्ति थी। मगर अपूर्वानंद जरा ज्यादा ही गहरे उतर गये जिसकी जरूरत कहीं से भी नहीं लगती। वे स्वयं कहते हैं कि पहली नजर में वीडियो में कुछ भी गलत नहीं है या गलत नहीं लगेगा। तो बस उसे इतना ही क्यों नहीं रहने देना चाहिए। मुझे लगता है आरफा खानम शेरवानी को भी कुल मिलाकर इस वीडियो में आपत्तिजनक कुछ लगा नहीं। ट्विटर पर किसी मुस्लिम शख्स ने ही आपत्ति की थी जिसका जवाब आरफा ने दिया और अलग से ‘वायर’ के लिए कार्यक्रम भी बनाया। अपूर्वानंद और शीबा ‘सत्य हिंदी’ के कार्यक्रम में बोल रहे थे। हालांकि यह विषय पुराना हो गया फिर भी कुछ मित्रों का दबाव था कि मुझे टिप्पणी करनी चाहिए। मुझे सिर्फ इतना ही कहना है कि इस वीडियो पर ज्यादा मीनमेख न की जाती तो कोई बवाल होना ही नहीं था।

इसी तरह जावेद अख्तर ने तालिबान की तुलना आरएसएस से कर डाली। क्या मतलब है इसका। नाजियों से तुलना करते हैं तो बात जमती है। तालिबान वहशी लोग हैं उन्हें इस्लाम से भी कोई लेना देना नहीं। उन्होंने तो ‘तालिबान’ शब्द को भी बदनाम किया है। उनका इस्लाम और उनकी शरियत के मायने क्या हैं यह हर कोई जानता समझता है। वह विचारहीन कौम है। लेकिन आरएसएस एक विचार है। इस मायने में आरएसएस का अपने लिए विचार और आपका विचार अलग हो सकता है जो सरासर है भी। आरएसएस दोगले चरित्र वाला मुस्लिम विरोधी, मनुवाद पर आधारित हिंदू राष्ट्र की कल्पना करता है। वह कट्टर है। उसका संविधान मनुस्मृति है। पर वह स्वयं AK-47 नहीं थामता। वह हिंसा स्वयं नहीं करता। वह हिंसा करवा सकता है या परोक्ष समर्थन दे सकता है। याद कीजिए अटल बिहारी वाजपेयी ने समाजवादी नेता चंद्रशेखर से क्या कहा था – ‘यदि मैं पार्टी छोड़ कर आपके साथ चलूं तो संघ उसी दिन मेरी हत्या करा देगा’ (संदर्भ: संतोष भारतीय की पुस्तक ‘वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं’)। यह कथन आरएसएस के चरित्र को मुखर तौर पर समझने के लिए काफी है। फिर भी वहशी तालिबान, जिसमें अमरीका घोषित इनामी आतंकवादी उसके शीर्ष पर हैं, से आरएसएस की तुलना कुछ अतिवाद है। याद रखा जाए कि फिजूल के विवाद उन लोगों को मौका देते हैं जो भ्रम फैलाने में माहिर हैं। और हम जानते हैं कि जब से यह सरकार आयी है फिजा में भ्रम ही भ्रम फैल रहे हैं। हर मुद्दे पर भ्रम और अकूत प्रचार मोदी को और उठाता है।

कल अचानक मेरे व्हाट्सएप पर एक वीडियो आया जो मेरी एक मित्र ने भेजा था। मैं उसे देख कर चौंक गया। किसी मोदी समर्थक ने भेजा होता तो समझ भी आता। वह वीडियो मोदी की छवि को युग के एक नायक की भांति उठाते हुए आव्हान करता है कि तू सूरज है। ‘जगत भर की जिंदगी के लिए, करोड़ों की रोशनी के लिए सूरज तू जलते रहना, सूरज तू … ‘। आपको याद होगा यह हेमंत कुमार का बेहतरीन गीत है। वीडियो में मोदी की नायक रूप में विभिन्न छवियों के साथ यह गीत पूरे समय बजता है। दूसरे अर्थों में मैं कह सकता हूं बेहद आकर्षक है और दिमाग में एक मंत्र सा फूंकता है। जाहिर है यह बीजेपी आईटी सेल से जारी हुआ है। बीजेपी का एक गुण है अतीत को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ो। साम दाम दंड भेद के साथ आगे बढ़ो। बंगाल की निचोड़ देने वाली हार अतीत हो गयी।

मेरे पास कई लोगों के वीडियो आते हैं। मैं सभी देखता हूं।उसके अलावा रवीश का प्राइम टाइम, वाजपेयी के वीडियो, सत्य हिंदी की चर्चाएं, लाउड इंडिया टीवी, वायर सब पर निगाह रहती है। और हमेशा एक ही बात मन में आती है कि इन तमाम के बाद भी यदि सत्ता में मोदी सरकार दोबारा लौट आयी तो क्या मायने रह जाएंगे इन सबके। पता चला कि रवीश कुमार का प्राइम टाइम इन दिनों खूब देखा जा रहा है। लेकिन बीजेपी को इस सबसे भी अधिक फूहड़ तरीकों से सिर्फ वोट की चिंता है। इस बात को किसान आंदोलन ने बखूबी समझ लिया है। फिर भी वे बीजेपी के प्रचार के सामने कितने टिकेंगे। यह ‘पोस्ट ट्रुथ’ का जमाना है। सत्य से पहले विपरीत दिशा की आंधी भागती है आगे। सारी वेबसाइट्स या वेब पोर्टल अच्छा कर रहे हैं। रोचक भी हैं और ज्ञानवर्धक भी। पर जैसे जड़ इंसान जड़ता की ओर ही बढ़ता है उसी तरह यह विचार से जड़ पार्टी अपनी जड़ता की ओर एक ही दिशा में बढ़ती है संसद और विधान सभाओं में मुंडियों की भरमार करने में। इसीलिए ये कार्यक्रम एक खालीपन भी पैदा करते हैं। सरकार दमदार हो और ऐसे दमदार कार्यक्रम हों तो देश और समाज उठता हुआ लगता है। देश समृद्ध होता और लोकतंत्र मजबूत होता। सरकार बौद्धिक रूप से समृद्ध पार्टी की हो तो चर्चाएं देश के मानस को समृद्ध बनाने देती हैं। लेकिन आज जैसी टुच्ची, भ्रामक और नौसीखिया सरकार हो तो … जरा सोचिए !विपक्ष नहीं सोचेगा, पर आप सोचिए ….!!

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