‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता’ वाले देश में नेताओं के इन बोल वचनों पर गौर फरमाएं ( प्रसंगवश इसमें दो प्रमुख राजनीतिक दल ही शामिल हैं)।
कांग्रेस
-आपको तो पहले ही मुझे सावधान कर देना चाहिए था, ये क्या आइटम है…ये क्या आइटम है (हंसते हुए)।
मप्र में मंत्री इमरती देवी के बारे में कमलनाथ
-सिंगरौली की सांसद रीता पाठक मोदी हवा में लोकसभा चुनाव जीत गईं। ‍फिर वो लौटकर जनता के बीच नहीं आईं, वो ठीक ‘माल’ नहीं हैं।
वरिष्ठ नेता अजय सिंह एक आम सभा में
– कल तक आप पैसे के लिए ठुमके लगा रही थीं और आज आप राजनीति सिखा रही हैं।
नेता संजय निरूपम, मंत्री स्मृति ईरानी के बारे में
– हमारी पार्टी में दलित महिलाओं से भेदभाव नहीं किया जाता है। इन महिलाओं को हमारे घर के अंदर ही नहीं, बेडरूम तक आने की इजाजत है।
राजाराम पाल यूपी के कांग्रेस नेता
भाजपा
-महिलाएं बांझ रहें पर ऐसे बच्चे को जन्म न दें, जो संस्कारी न हो,जो समाज में विकृति पैदा करें।
पन्नालाल शाक्य पूर्व विधायक मप्र
– भगवान राम भी आ जाएं तो रेप की घटनाओं पर नियंत्रण नहीं हो सकता। यह समाज का स्वाभाविक प्रदूषण है, जिससे कोई वंचित रहने वाला नहीं।
विधायक सुरेन्द्र सिंह यूपी
-( हाथरस रेप कांड पर) ये जितनी लड़कियां इस तरह ही मरती हैं, ये कुछ ही जगहों पे पाई जाती हैं। ये गन्ने के खेत में, नाले में, झाड़ियों में पाई जाती हैं। ये गेहूं के खेत में मरी क्यों नहीं मिलती हैं?
भाजपा नेता रंजीत बहादुर यूपी
– अनूपपुर से कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ सिंह ने अपने शपथ पत्र में पत्नी का ‍जिक्र न करते हुए अपनी ‘रखैल’ का जिक्र किया है।
बिसाहूलाल सिंह भाजपा प्रत्याशी व मंत्री
ये चंद उक्तियां इस बात का प्रमाण है कि स्त्री सम्मान को राजनीतिक मुद्दा बनाने वाले राजनेताओं के ‘मन की बात’क्या है। ऐसी अभद्र ‍टिप्पणियां करने वाले बयानवीर देश की दो प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा से हैं ( और भी पार्टियों में हैं)। इन बयानों में एक पैटर्न है और वो है महिलाओं के प्रति असम्मान का निंदनीय भाव। वो कभी तीखे कटाक्ष के रूप में तो कभी स्त्री के प्रति पुरूष के अवचेतन में जमे हिकारत और दे्वष भाव से उपजता है और तमाम दिखावटी आदरभाव के बावजूद सतह पर आ जाता है। यह समझना मुश्किल है कि ऐसे घटिया बयान देकर लैंगिक दृष्टि से राजनेता कौन-सा वोट बैंक सहेज रहे होते हैं। अक्सर राजनेता ऐसे बयान चुनाव के समय या फिर महिला अत्याचार की घटनाओं के बाद देते हैं। कुछ लोग बाद में सफाई भी दे देते हैं कि मैंने ऐसा तो नहीं कहा था, लेकिन तब तक तीर कमान से छूटकर अपना असर दिखा चुका होता है। यानी वो स्त्री को सबला बनाने के लिए कानून भी बनाते हैं और सार्वजनिक रूप से स्त्री की खिल्ली उड़ाने में भी संकोच नहीं करते। इसे स्त्रियों के प्रति पुरूषों का नैसर्गिक द्वेष भाव मानकर दरकिनार करें तो भी ऐेसे मामलों से सबसे ज्यादा हैरान करने वाला व्यवहार उन महिला आयोगों का है,जो खुद भी महिलाओं के मान-अपमान को राजनीतिक चश्मे से ही देखना चाहती हैं। उदाहरण के लिए इमरती देवी प्रकरण में महिला सम्मान की चिंता राष्ट्रीय महिला आयोग को तो हुई,लेकिन मप्र महिला आयोग को इसमें ‘कुछ’ भी अपमानजनक नहीं लगा। क्योंकि एक की निष्ठा भाजपा के प्रति तो दूसरे की कांग्रेस के प्रति है। महिला मान-अपमान का नमक इसी वफादारी से अदा होता है। ‘आयटम’शब्द में कुछ भी गैर न बूझने वाला यही मप्र महिला आयोग 6 माह पूर्व क्या एक्शन लेता,जब इमरती देवी कांग्रेस में थी?
यानी राजनीति में महिलाओं के सम्मान और अपमान की परिभाषा भी दल सापेक्ष होती है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा को कमलनाथ के ‘आयटम’वाले बयान में महिलाओं का अपमान दिखा तो मप्र महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शोभा ओझा ने उसमें डिक्शनरी मीनिंग देखा और कहा कि ‘आयटम’का मतलब तो ‘वस्तु’है। लेकिन मप्र के (अब) भाजपा नेता बिसाहूलाल सिंह द्वारा चुनावी प्रतिद्वंद्वी की पत्नी को रखैल’कहने में राष्ट्रीय महिला आयोग को कुछ भी ‘गैर’महसूस नहीं हुआ। स्त्री जाति के अपमान की स्त्रियों की ही नजर में ही यह ‘अभिधात्मक’और ‘व्यंजनात्मक’व्याख्या हैरत में डालने वाली है।

गौरतलब है कि कमलनाथ ने मप्र में हो रहे उपचुनावों के दौरान डबरा में प्रचार सभा के दौरान भाजपा प्रत्याशी और मंत्री इमरती देवी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वो ‘आयटम’क्या नाम है,उनका..कहकर खिल्ली उड़ाई थी। जबकि इमरती देवी उन्हीं के मंत्रिमंडल में महिला एवं बाल विकास मंत्री थीं। यह बात अलग है कि वो न तो अपनी शपथ ठीक से पढ़ पाई थीं और न ही गणतं‍त्र दिवस पर भाषण। उस वक्त भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राहुल कोठारी ने इमरती देवी को मंत्री पद से हटाने की मांग इस आधार पर की थी कि उनके खिलाफ अपनी बहू के साथ मारपीट का मामला दर्ज है। वही बीजेपी आज उन्हीं इमरती देवी के ‘अपमान’से इस कदर ‘आहत’है कि ‘आयटम’शब्द उसे ‘रखैल’से ज्यादा अभद्र और स्त्री अस्मिता पर गहरी चोट करने वाला लगने लगा है। इसी के चलते मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ‘स्त्री सम्मान की रक्षा’को लेकर कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख डाली कि महिला के प्रति अभद्र टिपण्णियां करने वाले कमलनाथ को वो सभी पदों से हटाएं और खुद कमलनाथ इसके लिए माफी मांगें। गजब बात यह कि खुद कांग्रेस भी भीतर से इस मामले में दो फांक दिखी। सोनिया गांधी ने शिवराज की राजनीतिक चिट्ठी को गंभीरता से भले न लिया हो,लेकिन राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि कमलनाथ की भाषा ‘ठीक’नहीं थी। सोनिया तो ठीक,इमरती देवी मामले में वो प्रियंका गांधी भी ‘आहत’नहीं दिखीं,जो ‘हाथरस रेप मामले’में योगी सरकार के खिलाफ मोर्चे की अगुवाई करती नजर आई थीं।
कहने का आशय ये कि स्त्री का सार्वजनिक रूप से अपमान हो, उसकी अस्मिता पर हमला हो,क्रूर बलात्कार या हत्या हो, उसके अबला होने का नाजायज फायदा उठाने की बात हो,राजनीति के एरिना में आते ही यह शर्मनाक प्रवृत्ति सत्ता और सत्ताकांक्षा के माइक्रोस्कोप से तय होती है। यानी इमरती को ‘आयटम’कहना तो दो घंटे के ‘मौन उपवास’का कारण बना,लेकिन हाथरस में दलित युवती से रेप मामले में वहां सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं ने ‘उपवास’के बजाए ‘मौन’साधना सुविधाजनक समझा,क्योंकि कटघरे में योगीजी थे। इसी तरह कांग्रेस शासित राजस्थान के बारां में दो नाब‍ालिगों के साथ रेप के मामले में कांग्रेसियों की ‘संवेदनाएं’नहीं जागीं। क्योंकि सरकार उनकी है। यही नहीं, मप्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय सिंह द्वारा एक चुनाव सभा में यह कहने पर कि जनता चुनाव में ‘इमरती’को ‘जलेबी’बना देगी पर तो भाजपाई गरम हो उठे, लेकिन (अब) भाजपाई हो चुके वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भरी सभा सांत्वना भाव से ही सही,कहा ‍कि ‘इमरती मेरी है’तो मातृ शक्ति की रक्षा में कोई आवाज नहीं उठी।

महिलाओं पर ये तंज और उन्हें उनकी औकात दिखाने के भाव से किए गए कमेंट और फिर स्त्रियों के सम्मान की रक्षा के नाम पर की जाने वाली सियासी मार्केटिंग में फड़फड़ाता सच जनता की आंखों से नहीं छुपता। अफसोस इस बात का है कि नारी सम्मान की राजनीति सापेक्ष मान-अपमान की इस व्याख्या के चलते वो मूल बुराई जस की तस है, जहां स्त्री की सामाजिक हैसियत को कमतर और पुरूषों को श्रेष्ठतर आंकने की सोच में कोई खास बदलाव नहीं आया है। सिवाय दिखावटी सहानुभूति के। ऐसे मामलों में महिला आयोगों के अलग-अलग चश्मे सचमुच क्षुब्ध करने वाले हैं। सवाल यह है कि अगर स्त्री सम्मान और उसके अधिकारों की रक्षा को लेकर भी इनकी दृष्टि एक नहीं हैं,उनकी चिंताएं एक-सी नहीं हैं तो ये आयोग बने किसलिए हैं? केवल सुविधाओं और रस्मी सहानुभूति दिखाने के लिए?और यह सब हम उस नव‍रात्रि पर्व में देख और सुन रहे हैं,जिसे हम स्त्री शक्ति का उत्सव मानते हैं।


वरिष्ठ संपादक
‘सुबह सवेरे’

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