मध्यप्रदेश डेंटल एंड मेडिकल एडमिशन टेस्ट (डीमेट) की शुरूआत साल 2006 में हुई थी. पहले ही साल यह परीक्षा विवादों में घिर गई थी. इस वजह से कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था, लेकिन बाद में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद परीक्षा को बहाल कर दिया गया. इसके बाद 2007 से 2009 तक हर साल सरकार के पास डीमेट को लेकर शिकायतें आती रहीं. साल 2009 में सरकार ने निर्णय किया कि निजी मेडिकल कॉलेजों की सीटें व्यापमं द्वारा आयोजित प्री मेडिकल टेस्ट(पीएमटी)के जरिये भरी जायेंगी. शासन के इस फैसले के खिलाफ प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करने के बाद निर्णय दिया कि निजी मेडिकल कॉलेजों की 43 प्रतिशत सीटें डीमेट से, 42 प्रतिशत सीटें व्यापमं से और 15 प्रतिशत सीटें एनआरआई कोटे से भरी जायेंगी. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ प्राइवेट मेडिकल कॉलेज सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन सीटों को भरने की यह व्यवस्था आज भी प्रदेश में लागू है.
मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले की जांच अभी चल ही रही थी, तब तक मध्य प्रदेश के निजी चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश में घोटाले का पर्दाफाश हो गया. अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रदेश के निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के होने वाली परीक्षा डीमेट से जुड़ा घोटाला तकरीबन दस हजार करोड़ रुपये का है. शासन के कोटे से निजी डेंटल और मेडिकल कॉलेजों में भरी जाने वाली सीटों को भरने में पिछले 10 सालों में जबरदस्त तरीके से हेराफेरी की गई है. इसके लिए प्राइवेट कॉलेजों ने तरह-तरह के दांव-पेंच का इस्तेमाल किया और करोड़ों रुपये वारे-न्यारे कर दिए.
मध्य प्रदेश डेंटल एंड मेडिकल एडमीशन टेस्ट (डीमेट) की शुरुआत साल 2006 में हुई थी. पहले ही साल यह परीक्षा विवादों में घिर गई थी. इस वजह से कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था, लेकिन बाद में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद परीक्षा को बहाल कर दिया गया. इसके बाद 2007 से 2009 तक हर साल सरकार के पास डीमेट को लेकर शिकायतें आती रहीं. साल 2009 में सरकार ने निर्णय किया कि निजी मेडिकल कॉलेजों की सीटें व्यापमं द्वारा आयोजित प्री मेडिकल टेस्ट(पीएमटी)के जरिये भरी जायेंगी. शासन के इस फैसले के खिलाफ प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करने के बाद निर्णय दिया कि निजी मेडिकल कॉलेजों की 43 प्रतिशत सीटें डीमेट से, 42 प्रतिशत सीटें व्यापमं से और 15 प्रतिशत सीटें एनआरआई कोटे से भरी जायेंगी. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ प्राइवेट मेडिकल कॉलेज सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन सीटों को भरने की यह व्यवस्था आज भी प्रदेश में लागू है.
अब बात आती है कि आखिर घोटाला कहां और कैसे हुआ. मध्य प्रदेश में सात निजी मेडिकल और 18 डेंटल कॉलेज हैं. इन निजी कॉलेजों में 900 सीटें एमबीबीएस की और 198 सीटें पीजी की हैं. निजी कॉलेजों का लालच केवल डीमेट कोटे तक ही सीमित नहीं रहा. ये कॉलेज स्टेट कोटे का सीटों को भी हजम करने में जुटे रहे. व्यापमं मामले में व्हिसिल ब्लोअर आशीष चतुर्वेदी ने चौथी दुनिया से बताया कि कॉलेजों ने इसके लिए नया तरीका इजाद किया. कॉलेज पीएमटी परीक्षा में पैसे देकर कुछ सीनियर छात्रों या कहें स्कोरर को बैठा देते थे. परीक्षा पास करने के बाद इन छात्रों ने निजी कॉलेजों की स्टेट कोटे की सीट पर दाखिला ले लिया और कुछ दिन बाद कॉलेज से नाम कटा लिया. इस तरह उस सीट को कॉलेज बेचने के लिए फिर से स्वतंत्र हो गए. आशीष ने बताया कि जे पी बघेल नाम के छात्र ने साल 2010 में ग्वालियर स्थित गजराराजे मेडिकल कॉलेज(जीआरएमसी) में एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लिया था. साल 2011 में वह व्यापमं द्वारा आयोजित पीएमटी की परीक्षा में बैठा और चयनित हो गया. चयन के बाद उसने भोपाल के चिरायु मेडिकल कॉलेज में स्टेट कोटे की एमबीबीएस की सीट आवंटित करवा ली. कुछ दिनों बाद फीस न होने की बात कहकर अपना एडमीशन रद्द करवा लिया. बाद में चिरायु मेडिकल कॉलेज की इस सीट को डीमेट कोटे में ट्रांसफर कर दिया गया. यह डीमेट से हुई धांधली का एक उदाहरण है. अब तक इस तरह के 50 मामले सामने आए हैं. इसके बाद यदि वह सीट एमबीबीएस की है तो 15 से 20 लाख रुपये और पीजी की सीट 1.5 से 2 करोड़ रुपये में भर दी जाती थी. निजी मेडिकल में स्टेट कोटे की 42 प्रतिशत सीटों के एवज में राज्य सरकार निजी मेडिकल कॉलेजों को अनुदान देती है, लेकिन सीट को मैनेजमेंट कोटे से भरने के बाद भी कॉलेज राज्य सरकार से ग्रांट लेते रहे, यह राज्य सरकार के साथ धोखाधड़ी है.
निजी मेडिकल कॉलेजों ने व्यापमं कोटे की सीटों पर 20 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपये लेकर छात्रों को प्रवेश दे दिया. क्या निजी मेडिकल कॉलेजों में हो रहे एडमीशन के इस खेल की सरकार को भनक नहीं थी या फिर सरकार भी इसमें बराबर की भागीदार थी. साल 2006 में डीमेट की शुरुआत के बाद से अब तब प्रदेश सरकार में पांच चिकित्सा शिक्षा मंत्री रहे हैं, क्या कमल पटेल, अजय विश्नोई, महेन्द्र हार्डिया, अनूप मिश्रा और वर्तमान चिकित्सा शिक्षा मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी इस घोटाले में शामिल हैं, यह बात तो जांच के बाद ही साफ हो पाएगी, लेकिन यहां सवाल उठता है कि क्या उपरोक्तसभी से एसआईटी पूछताछ करेगी? क्योंकि सरकार की शह के बिना निजी मेडिकल कॉलेज इस तरह प्रवेश प्रक्रिया में इस तरह मनमानी नहीं कर सकते थे. इसका सीधा मतलब यह निकाला जा सकता है कि राज्य सरकार को मामले की पूरी जानकारी थी. शिवराज सिंह चौहान और उसके मंत्री डीमेट मामले में जान कर अनजान बने रहे. इस सांठगांठ की वजह से न जाने कितने छात्रों ने अकाल मौत को गले लगा लिया. उस वक्त उसे आत्महत्या करार दिया गया था, लेकिन अब जब पूरी चयन प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आ खड़ी हुई है तो उन छात्रों की आत्महत्या को हत्या मानकर व्यापमं और डीमेट घोटाले के आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुक़दमा भी चलाया जाना चाहिए.
भले ही शिवराज सिंह स्वयं को व्यापमं घोटाले में पाक साफ बता रहे हों, लेकिन जिस तरह इस घोटाले की जांच दिन-ब-दिन उलझती जा रही है और रोजाना नए खुलासे हो रहे हैं, ऐसे में उनके लिए आने वाला वक्त शिवराज सिंह के लिए आसान नहीं होने वाला है. जबलपुर हाईकोर्ट ने डीमेट के संबंध में सरकार को नोटिस जारी कर दिया है ऐसे में शिवराज सरकार का बच पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि लिए इज्जत बचा पाना आसान नहीं होगा.
कैसे हुआ घोटाले का पर्दाफाश
करीब चार महीने पहले व्यापमं घोटाले की जांच के दौरान ग्वालियर एसआइटी ने अतुल शर्मा नामक दलाल को गिरफ्तार किया. तब डीमेट घोटाले की पहली परत खुली. उसने बताया कि 2010 एमएस कोर्स में उसने ऋचा जौहरी का एडमिशन कराया था. ऋचा जबलपुर के मशहूर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. एमएस जौहरी की बेटी हैं. अतुल ने व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपी नितिन मोहिंद्रा के नाम का जिक्र भी किया था. मोहिंद्रा फिलहाल जेल में हैं. जब उनसे पूछताछ हुई, तो खुलासा हुआ कि ऋचा का नाम योगेश कुमार उपरीत ने उनके पास भेजा था. उपरीत 2003-04 में व्यापमं के निदेशक थे. रिटायरमेंट के बाद उपरीत ने जबलपुर में एक डेंटल कॉलेज शुरू किया. वे एपीएमडीसी(एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट मेडिकल एंड डेंटल कॉलेज) के सदस्य और बाद में 10 सालों तक डीमेट के परीक्षा नियंत्रक भी रहे हैं. उन्हें 3 जून,2015 को ग्वालियर एसआइटी ने गिरफ्तार किया. 72 वर्षीय उपरीत ने पूछताछ के दौरान कई बड़े लोगों के नाम उजागर किए हैं. निजी कॉलेज इस जांच को दबाना चाहते थे, ताकि पूरा मामला व्यापमं घोटाले तक ही सिमटकर रह जाए. उपरीत के बयानों को यदि सच माना जाये तो बीडीएस, एमबीबीएस, एमएस और एमडी कोर्स में एडमीशन के नाम पर उगाहे गए. हर साल तकरीबन 1500 सीटें डीमेट के जरिए भरी गईं. इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि यह घोटाला तकरीबन दस हजार करोड़ रुपये का है. योगेश उपरीत ने प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों की अरबों की काली कमाई का राज एसआईटी के सामने खोल दिया है. उन्होंने एसआईटी को बताया कि निजी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए डीमेट परीक्षा तो केवल औपचरिकता के लिए होती है, जिन छात्रों का सलेक्शन होना होता था, उनकी लिस्ट कॉलेज प्रबंधन पहले ही डीमेट को थमा देता था और उन्हीं छात्रों की आंसरशीट के गोले काले किए जाते थे.
डीमेट मामले में कोर्ट ने जारी किया सरकार को नोटिस
रतलाम के पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने मध्यप्रदेश हाइकोर्ट में डीमेट के संबंध में उन्होंने 17 जून, 2015 को याचिका दायर की थी. जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अजय मानिक राव खानविलकर और जस्टिस किशोर कुमार त्रिवेदी की दो सदस्यीय बेंच ने राज्य सरकार, मुख्य सचिव(चिकित्सा), मुख्य सचिव(गृह), मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया, चिकित्सा शिक्षा विभाग के निदेशक, पुलिस महानिदेशक, प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति सहित 60 लोगों को नोटिस जारी किया है. पारस सकलेचा ने चौथी दुनिया से बात करते हुए बताया कि माननीय जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर साल 2007 से 2014 तक निजी चिकित्सा महाविद्यालयों में डीमेट कोटे से भर्ती में फर्जीवाड़े की सीबीआई से जांच कराने, एनआरआई कोटे की भर्ती की सीबीआई जांच कराने तथा 2007 से 2013 के दरम्यान पीएमटी से भरी जाने वाली स्टेट कोटे की सीटों को मैनेजमेंट कोटे से भरने की सीबीआई जांच कराने की मांग की थी. साथ ही उन्होंने 12 जुलाई, 2015 को होने वाली डीमेट परीक्षा माननीय उच्च न्यायालय की निगरानी में कराने की मांग की थी. 12 जुलाई को होने वाली डीमेट परीक्षा पर सुनवाई के लिए अदालत ने 3 जुलाई को सुनवाई करेगी. सकलेचा का कहना है कि शिवराज सरकार मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में धांधली के फर्जीवाड़े को लेकर बिल्कुल गंभीर नहीं है. उन्होंने बताया कि डीमेट में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है. एडमीशन एंड फी रेगुलेटरी कमेटी(एएफआरसी) की अपीलीय कोर्ट ने अपनी जांच में पाया कि 2009 से 2013 के बीच निजी मेडिकल कॉलेजों की स्टेट कोटे की 731 सीटें मैनेजमेंट कोटे से भरी गईं. अपीलीय कोर्ट ने अपनी जांच में यह भी पाया कि वर्ष 2013 में सरकारी कोटे की 198 सीटों पर मैनेजमेंट कोटे से छात्रों के दाखिले आखिरी दिन किए गए थे. यह सब सोची-समझी साजिश थी. सकलेचा ने बताया कि जब वे विधायक थे, तब उन्होंने विधानसभा में डीमेट को लेकर सवाल उठाया था कि इस परीक्षा के माध्यम से जिन छात्र-छात्राओं ने निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेज में प्रवेश लिया था. उनमें से आधे से छात्र-छात्राओं के अंक 12 में 50 से 60 प्रतिशत के बीच थे. उन्होंने कहा कि इन सभी ने पैसे के बल पर प्रवेश लिया है. इससे प्रदेश में गुणवत्ता वाले चिकित्सकीय मानव संसाधन का निर्माण नहीं होगा, जो कि आगे चलकर सीधे तौर पर प्रदेश और देश दोनों को प्रभावित करेगा.
डीमेट के जरिये नेताओं ने भाई-भतीजों को डॉक्टर बनाया
डीमेट के जरिये गलत तरीके से अपने बच्चों और रिश्तेदारों को मेडिकल और डेंटल कॉलेज में एडमिशन दिलाने वालों की सूची लंबी है. इस सूची में नेताओं के अलावा अफसर भी शामिल हैं. मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने पिछले आरोप लगाया था कि प्रदेश के पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने बेटी आकांक्षा और अवंतिका का, अजय विश्नोई ने बेटे अभिजीत का, कमल पटेल ने भतीजी प्रियंका और इंदौर की विधायक मालिनी गौड़ ने कर्मवीर गौड़ का दाखिला कराया. कटारे ने कुछ और नाम लिए थे. इनमें स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्र, शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता, पूर्व मंत्री प्रकाश सोनकर, हरनाम सिंह राठौड़, नेहरू युवा केंद्र के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और पीस कमेटी के अखिलेश पांडे शामिल हैं. हालांकि सरकार के प्रवक्ता और मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पलटवार करते हुए डीमेट का गलत फायदा उठाने वाले कांग्रेसी नेताओं के नाम भी उजागर किए. इनमें आरिफ अकील,पीसी शर्मा, गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी, अरुण यादव, हजारी लाल रघुवंशी और तुलसी सिलावट आदि शामिल हैं.