नदियों की कोेख से निकली जमीन पर मालिकाना हक जताने के लिए खून सेे लाल होती रही दियारा की धरती एक बार फिर आंदोलित है. एसटीएफ नेे कोसी क्षेत्र के कुख्यात अपराधी रामानंद यादव उर्फ रामानंद पहलवान गिरोेह के साथ मुठभेड़ में पांच सशस्त्र अपराधियों को पकड़ा है. फसल बुआई के समय अक्सर सुलगने वाली कोसी में फिलहाल शांंति है, लेकिन भागलपुर-खगड़िया का दियारा इन दिनों अपराधियों का अखाड़ा बन गया है.
दियारे की जमीन पर कब्जे को लेकर आपराधिक गुटों के बीच जारी गोलीबारी से इलाका दहल रहा है. इस क्षेत्र में पुश्तैनी जमीन पर खेती करनेे वाले किसान भी अपने खेत की ओर ताकना मुनासिब नहीं समझ रहे हैं. इस जमीनी विवाद की पृष्ठभूूमि भागलपुर के तत्कालीन अपर समाहतार्र् द्वारा साठ के दशक में तैयार की गई थी. गंगा की गर्भ मेंं पलनेे वाली सात सौ पचास एकड़ जमीन का न केवल सर्वे कर दिया गया, बल्कि दो-दो पक्षों के नाम मालगुजारी रसीद भी जारी कर दी गई.
कोसी के साथ भागलपुर पुलिस भी इस बात से वाकिफ हैै कि दियारा मेेंं विधि व्यवस्था की स्थिति बिगड़ चुकी है. इस क्षेत्र में एक पखवाड़े से रुक-रुक कर हो रही गोेलीबारी के बीच कोई हताहत तो नहीं हुआ है, लेकिन कभी भी हालात बिगड़ने के आसार बने हैं. पुलिस प्रशासन भौगोलिक स्थिति से अनजान होने के कारण या फिर अपराधियों के राजनीतिक संरक्षण के कारण इन इलाकों में जाने से परहेज करती है.
दरअसल, यहां सात सौ पचास एकड़ जमीन का भागलपुर के तत्कालीन समाहर्ता द्वारा न केवल गलत सर्वे किया गया, बल्कि दो अलग-अलग पक्ष के किसानों के नाम रसीद भी काट दिया गया.
नतीजतन पहले से जमीन पर कब्जा जमाए किसानों का कहना है कि जान दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं छोड़ेंगे. खगड़िया जिले के दक्षिणी छोर पर तीन ओर से गंगा नदी से घिरे परबत्ता प्रखंड अंतर्गत कुल्हड़िया, भरसों तथा लगार पंचायत के सैकड़ों किसान परेशान हैं. उनकी चिंता का मुख्य कारण है तीनों पंचायत की सीमा से सटे भागलपुर के थाना बिहपुर स्थित मौजा शंकरपुर की सात सौ पचास एकड़ जमीन को लेकर उत्पन्न तनाव.
1960 में जब पूरे बिहार में जमीन का सर्वे हुआ था, तब भौगोलिक बनावट और गंगा नदी में इस मौजे की जमीन के डूबे रहने के कारण सर्वे नहीं हो सका था. 1909 की कबूलियत के आधार पर किसान इस जमीन पर जोत करने लगे. जमींदारी उन्मूलन के बाद भागलपुर के तत्कालीन समाहर्ता ने 1959-60 में अपने स्तर पर जमीन का सर्वे कराया.
1964 में प्रकाशित सर्वे में कई गड़बड़ियां सामने आईं. पता चला कि जमीनी स्तर पर सर्वे कराने के बजाय समाहर्ता के टेबल पर ही जमीन का सर्वे करा लिया गया. सलारपुर के किसान महेन्द्र यादव का कहना है कि उक्त मौजे की जमीन 1951 से लेकर 1971 तक गंगा में डूबी थी, इसलिए 1960 के सर्वे को वैधानिक नहीं माना जा सकता है. पहलेे का नक्शा भी किसान की दलील को पुख्ता करता है.
सर्वे को लेकर बिशौनी निवासी तथा आलमनगर विधानसभा क्षेत्र के विधायक यदुनंदन झा ने विधानसभा में मामला उठाया. सर्वे रिपोर्ट को निरस्त करने की मांग को गंभीरता से लेते हुए बिहार सरकार के राजस्व विभाग ने 24 नवम्बर 1965 को अधिसूचना जारी कर शीघ्र सर्वे कराने पर जोर दिया.
इससे पूर्व 1979 में बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में सरकार के उपसचिव सच्चिदानंद प्रसाद ने सभी आयुक्तों तथा समाहर्त्ता के नाम प्रेषित पत्र में स्पष्ट कहा कि यदि जमीन की पहचान समाप्त नहीं होती है, तो बिहार काश्तकार अधिनियम की धारा 52 ए के अनुसार ऐसी जमीन पुराने रैयतों की ही मानी जाएगी.
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में 150 किसान जमीन की लगान रसीद कटाने लगे. लेकिन 2008 में बिहपुर के अंचल अधिकारी ने यह कहकर उन किसानों के नाम रसीद काटने से मना कर दिया कि 1960 में हुए सर्वे के आधार पर आलमनगर के पूर्व विधायक यदुनंदन झा के पुत्र उमेश चन्द्र झा समेत ग्यारह भूधारियों के नाम दाखिल-खारिज कर लगान रसीद निर्गत कर दिया गया है. इस तरह वर्षों से लगान रसीद कटाकर खेती करने वाले 150 किसान और 1960 के सर्वे के आधार पर दाखिल-खारिज का रसीद कटाकर ग्यारह बड़े भूधारी अब आमने-सामने आ गए हैं. 750 एकड़ भूमि पर दखल को लेकर कई बार छिटपुट हिंसा हो चुकी है.
इसके बाद कई किसानों ने पटना उच्च न्यायालय में 1960 में कराए गए सर्वे को चुनौती दी. न्यायाधीश ने इस सर्वे को अवैध करार देकर याचिकाकर्ता को पूर्ण सर्वे के लिए उचित स्तर पर आवेदन देने को कहा. भागलपुर के समाहर्ता ने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के सचिव को पत्र भेजकर बताया कि फिलहाल उक्त मौजे की जमीन पर जमींदारी उन्मूलन के बाद तैयार की गई जमाबंदी से रसीद काटना बंद कर दिया गया है. 1964 में प्रकाशित सर्वे रिपोर्ट व तैयार खतियान के आधार पर मालगुजारी रसीद काटी जा रही है.
नतीजतन भूमि विवाद होने की आशंका पैदा हो गई है. इसलिए भागलपुर के गंगा दियारा क्षेत्र का वृहत सर्वेक्षण के बावत कार्रवाई करने का आदेश दिया जाय. इस बीच भागलपुर के अपर समाहतार्र् ने 150 किसानों के पक्ष में आदेश देते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. भागलपुर के समाहर्ता द्वारा नए सर्वे की मांग पर भू अभिलेख विभाग के निदेशक ने बताया कि केन्द्र सरकार द्वारा आधुनिक तकनीक से सर्वे कराने की प्रक्रिया जारी है. सर्वे कराने के लिए एजेंसी का चयन किया जा रहा है.
तब तक रिविजनल सर्वे के अभिलेख से काम चलाया जाय. वहीं किसानों का कहना है कि इस इलाके में कभी रिविजनल सर्वे हुआ ही नहीं. बहरहाल, स्थिति यह है कि 750 एकड़ जमीन के अलग-अलग दावेदार एक दूसरे से गुत्थम गुत्था होने के लिए कमर कस चुके हैं. एक पक्ष के किसान 1954 से 2008 तक की लगान रसीद लेकर दूसरे पक्ष से भिड़ने को तैयार हैं, तो दूसरे पक्ष के लोग 1975 से लगान रसीद दिखा रहे हैं.
ऐसा कर अधिकारियों ने नरसंहार की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है. दूसरे पक्ष के अहम पक्षकार पूर्व विधायक यदुनंदन झा के परिजनों का कहना है कि उक्त जमीन पर 1970 तक उनलोगों का कब्जा रहा. वर्ष 2000 में 1960 के सर्वे के आधार पर उनलोगों द्वारा मोटेशन कराया गया था. अब भी आधे जमीन पर उनलोगों का ही कब्जा है.
इधर खगड़िया के जिलाधिकारी जय सिंह कहते हैं कि जमीनी विवाद सुलझाने में अधिकारी लगे हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस जमीनी विवाद को सुलझाना भागलपुर जिला प्रशासन का कर्तव्य है.
लाश पड़ी रही, अमीन ने सुलझाया सीमा विवाद
ना पुलिस घटनास्थल को अपने थाना क्षेत्र सेे बाहर बताकर पल्ला झाड़ लेती है. बीते 18 अप्रैल को खगड़िया जिले में मौजा शंकरपुर गोसायदास दियारा मेें भागलपुर जिले के खरीक प्रखंड निवासी 18 वर्षीय कूलो यादव की गोेली मारकर हत्या कर दी गई. घटना की जानकारी मिलते ही परबत्ता थानाध्यक्ष प्रमोद कुमार मौका-ए-वारदात पर पहुंचे जरूर, लेकिन लोकेशन भागलपुर जिला होने के कारण पड़ोसी थाना बिहपुर को सूचना दी गई.
हास्यास्पद स्थिति तब हो गई जब बिहपुर थाना पुलिस इसे खगड़िया जिला पुलिस का मामला बताकर बैरंग लौट गई. सीमा क्षेत्र का विवाद सुलझाने के लिए अमीन तक कोे बुलाना पड़ गया. इसके बाद अगले दिन परबत्ता प्रखंड के अंचलाधिकारी शैलेंद्र कुमार तथा भागलपुर जिले के नारायणपुर से पहुंचे सीओ विनोद कुमार की मौैजूदगी में अमीन द्वारा जमीन की मापी की गई. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेेजना तक गंवारा नहीं समझा. लाश की पहरेदारी के लिए गृहरक्षक जवान तैनात कर दिए गए. आखिर में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम अर्थात जीपीएस से यह प्रमाणित होे सका कि घटनास्थल भागलपुर जिला पुलिस के
अधीन है. प