ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) में हुई धांधलियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बाद उत्तर प्रदेश के छात्रों, उनके अभिभावकों और कुछ सामाजिक संस्थाओं में साहस का संचार हुआ है और उन्होंने यूपीसीपीएमटी में की गई अनियमितताओं के खिर्लों आवाज उठाना शुरू कर दिया है. परीक्षा रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल कर दी गई है और यूपीसीपीएमटी में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिर्लों प्रदेश व्यापी आंदोलन की भूमिका बनाई जा रही है.
ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिए जाने के बाद अब उत्तर प्रदेश कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट (यूपीसीपीएमटी) की शुचिता पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं. परीक्षा का आयोजन कराने वाले दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सफाई तो दे रहे हैं, लेकिन लोगों ने उनकी सफाई को गलत बताया है. विश्वविद्यालय ने सॉल्वर के पटना में बैठकर नकल कराने का दावे को गलत ठहराया, जबकि विश्वविद्यालय के दावे को अभिभावक बेबुनियाद बता रहे हैं. समय के पहले हड़बड़ी में रिजल्ट घोषित करने के मसले पर विश्वविद्यालय का इतना ही कहना था कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. यूपीसीपीएमटी परीक्षा का परिणाम 15 जून को आना था, लेकिन विश्वविद्यालय की ओर से सात जून को ही परिणाम घोषित कर दिया गया. परीक्षा की मेजबानी कर रहे गोरखपुर विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली इस वजह से भी शक के घेरे में आ गई है. हालांकि विश्वविद्यालय का कहना है कि 2013 में कानपुर यूनिवर्सिटी की मेजबानी में
यूपीसीपीएमटी की परीक्षा हुई थी, तब भी रिजल्ट तय तारीख से पहले घोषित हुए थे. इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि पेपर लीक होने के कारण तीन मई को लिया गया ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट 2015 सुप्रीम कोर्ट के आदेश से रद्द कर दिया गया है. परीक्षा में शामिल हुए लगभग सभी साढ़े छह लाख छात्रों को अब दोबारा टेस्ट देना है.
इसी तरह 25 मई, 2015 को हुए उत्तर प्रदेश सीपीएमटी परीक्षा को रद्द करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में निरुपमा और दो अन्य अभ्यर्थियों की तर्रें याचिका दाखिल की गई है. याचिकाकर्ता की वकील डॉ. नूतन ठाकुर ने कहा कि परीक्षा शुरू होते ही पेपर लीक होने के बात सार्वजनिक हो गई थी और इस सम्बन्ध में एसटीर्ऐं ने थाना गौतमपल्ली में मुकदमा कायम कर 13 लोगों को गिरफ्तार भी किया था. हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में भी यह कहा गया है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में एआईपीएमटी की सुनवाई के समय भी एसपी रोहतक की रिपोर्ट से यह बात उजागर हुई कि विजय यादव, नन्हा और सुजीत नाम के तीन लोगों ने उस परीक्षा के साथ-साथ यूपीसीपीएमटी में भी पेपर लीक किया था. इसके बारे में एसटीर्ऐं को कुछ पता ही नहीं चला. लिहाजा, याचिका में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाते हुए समान मामला होने के कारण यूपीसीपीएमटी परीक्षा को भी निरस्त करने की मांग की गई है. यूपीसीपीएमटी की धांधली के विरोध में स्वराज आन्दोलन ट्रस्ट ने भी व्यापक मुहिम छेड़ रखी है. ट्रस्ट ने भी परीक्षा रद्द कर उसे दोबारा आयोजित करने की मांग की है. स्वराज-आन्दोलन ट्रस्ट के प्रबन्ध ट्रस्टी घनश्याम श्रीवास्तव ने बताया कि इस वर्ष 25 मई को सम्पन्न यूपीसीपीएमटी परीक्षा-2015 में प्रश्नपत्र लीक होने, उसका लाभ पेड अभ्यर्थियों तक पहुंचाने व अनेक अनियमितताओं के कारण प्रदेशभर के छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है. अभिभावकों की गाढ़ी कमाई मिट्टी में मिल गई है. स्वराज-आन्दोलन की पहल पर अभी तक अभ्यर्थियों ने दो याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल की हैं. दिलीप गुप्ता और नवनीत की तर्रें से इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश अरुण टंडन की कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई और दूसरी याचिका निरुपमा और निर्भय चौहान इत्यादि की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में न्यायाधीश राजन राय की कोर्ट में दाखिल की गई है. इस पर 28 जुलाई को सुनवाई होनी है. रितेश व कुछ अन्य ने मिल कर भी एक याचिका हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल की है.
सुप्रीम कोर्ट की ओर से एआईपीएमटी रद्द करने के आदेश के बाद यूपीसीपीएमटी पेपर को भी रद्द करने की मांग आंदोलन की शक्ल में बदलती जा रही है. परीक्षार्थियों का आरोप है कि यूपीसीपीएमटी के पर्चा लीक प्रकरण से कई र्सेंेदपोश भी जुड़े हुए हैं. छात्र तो इतने गुस्से में थे कि उन्होंने प्रेस क्लब पहुंच कर मीडिया के समक्ष अपनी बातें रखीं और यूपीसीपीएमटी रद्द करने की मांग की. एसटीर्ऐं की ओर से भी थाना हजरतगंज में दर्ज कराई गई र्ऐंआईआर में स्पष्ट कहा गया है कि परीक्षा से पूर्व प्रश्नपत्र लीक कराकर यहां पहुंचाया गया और यहां से विभिन्न सॉल्वरों द्वारा इसे साल्व करके पूर्व से निश्चित किए गए परीक्षार्थियों के पास मोबाइल फोन एवं रिसीवर के माध्यम से और भौतिक रूप से छायाप्रति के माध्यम से परीक्षा केंद्रों पर भेजने का कार्य किया गया. इसके एवज में परीक्षार्थियों से 15 से 20 लाख रुपए लिए गए.
शिकायत यहां तक हुई कि यूपीसीपीएमटी परीक्षा के दौरान राजधानी में परीक्षा केंद्र ही बदल दिया गया. विकासनगर स्थित कैरियर कॉन्वेंट कॉलेज परीक्षा के लिए निर्धारित सेंटर था, लेकिन परीक्षा कैरियर कॉन्वेंट गर्ल्स डिग्री कॉलेज में कराई गई. इसका खुलासा खुद परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों ने किया. यूपीसीपीएमटी की परीक्षा के बाद अभ्यर्थियों से प्रश्न पुस्तिका वापस जमा कराने की प्रक्रिया भी संदेहास्पद बताई जा रही है. परीक्षा समन्वयक प्रो. अजेय गुप्ता का कहना था कि शासनादेश के तहत ऐसा किया गया. परीक्षा के सम्बन्ध में 10 मार्च, 2015 को शासनादेश जारी हुआ था, लेकिन उसमें कहीं भी यह नहीं लिखा हुआ है कि परीक्षा के बाद अभ्यर्थियों से प्रश्न पुस्तिका भी वापस जमा करा ली जाए. ट्रस्ट ने विश्वविद्यालय प्रशासन के इस झूठ को कानूनी चुनौती दी है. घनश्याम श्रीवास्तव ने कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय ने परीक्षा के आवेदन में घोषणा पत्र को किसी राजपत्रित अधिकारी से अटेस्टेड कराने की अनिवार्यता कर रखी थी, जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय से यह सर्कुलर पहले ही जारी हो चुका है कि अब देश में अभ्यर्थियों के लिए स्वप्रमाणन (सेल्फ अटेस्टेशन) ही मान्य होगा.
15 जून को एआईपीएमटी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसके पेज नंबर 14 के पांचवें बिन्दु में लिखा है कि जांच के दौरान नन्हा व सुजीत ने यह रहस्योद्घाटन किया है कि 25 मई, 2015 को आयोजित यूपीसीपीएमटी की परीक्षा के प्रश्नपत्र की उत्तर कॉपी विजय यादव से उसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से प्राप्त हुई थी, जिसका प्रयोग एआईपीएमटी परीक्षा में नकल करने में किया गया था. यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण कन्सील्ड वायरिंग के साथ अन्डरगारमेंट में फिट किए गए थे. स्वराज आन्दोलन ट्रस्ट यह मांग कर रहा है कि प्रदेश के सभी मंडलों में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए इस्तेमाल आने वाले भवनों में जैमर, ऑनलाइन सीसीटीवी कैमरे व अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की गांरटी हो. परीक्षा के लिए अलग से भवन बने तो यह आदर्श होगा, उसी भवन में यूपी लोक सेवा आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, बैंकिंग व अन्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित हों. प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक कराने वाले व अनियमितता करने वालों के लिए सख्त कानून बने और कम से कम छह माह तक अभियुक्त को जमानत न मिल पाए. शीघ्र केस फाइनल हो और दोषी को उम्र कैद की सजा हो.
यह धंधा अब चलन बन चुका है…
उत्तर प्रदेश कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट में प्रश्न पत्र लीक होना, नकल कराना, परीक्षा केंद्र बदलना और पहले से तैयार उत्तर की कॉपी मोटी रकम लेकर बंटवाना पुराना चलन है. पिछले साल भी गाजियाबाद में यूपीसीपीएमटी के पेपर लीक होने से परीक्षा रद्द कर दी गई थी. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तब भी गंभीरता का उपक्रम करते हुए मुख्य सचिव आलोक रंजन को उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर शीघ्र जांच कराने का आदेश दिया था, लेकिन सब गंभीरता ढाक के तीन पात ही निकली. उस बार परीक्षा का आयोजन लखनऊ का प्रतिष्ठित किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज युनिवर्सिटी (केजीएमयू) कर रहा था. गाजियाबाद के इलाहाबाद बैंक में जिस स्ट्रॉन्ग रूम में क्वेश्चन पेपर रखे गए थे, उसी में छेड़छाड़ की गई थी. उस समय भी नोएडा से यूपी एसटीर्ऐं की टीम गाजियाबाद पहुंची थी. खूब गहमागहमी मची. गाजियाबाद के सिटी कोतवाली में पेपर लीक मामले में र्ऐंआईआर दर्ज कराई गई, लेकिन धांधली बंद नहीं हुई. मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग उठी थी, लेकिन अखिलेश सरकार ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया. र्िेंर तो कहा जाने लगा कि एसटीर्ऐं की जांच दोषियों को और उनके राजनीतिक संरक्षकों को बचाने का काम करेगी. उत्तर प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ और अनुभवी नौकरशाह ने कहा 10 साल पहले भी यूपीसीपीएमटी में क्वेश्चन पेपर लीक हुआ था. यह 2005 की बात है. इस घटना के बाद तमाम सख्त नियम बनाए गए और बड़ी गंभीरता के साथ उस नियम के पालन की कसरतें की गईं, लेकिन उसके बाद से हर साल ही प्रदेश में कहीं न कहीं प्रश्नपत्र लीक की घटनाएं सामने आने लगीं. वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि नागरिकों, नेताओं, नौकरशाहों और दलालों की रजामंदी और मिलीभगत से यह धंधा चलता है, इसे कोई रोक नहीं सकता.