राज्य में यूपीए और एनडीए, दोनों गठबंधनों के तार उलझ-से गए हैं. विधानसभा चुनाव 2014 के लिए अधिसूचना जारी होने में अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं, लेकिन अभी तक झारखंड में यूपीए और एनडीए गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं द्वारा किसी भी प्रकार का कोई चुनावी प्रारूप तय न करने से असमंजस की स्थिति बरकरार है. यूपीए और एनडीए के घटक दलों को यह भी पता नहीं है कि वे गठबंधन के तहत चुनाव लड़ेंगे या फिर अकेले. झारखंड में एनडीए की लाइन-लेंथ भी अभी तक तय नहीं हो सकी है. बिहार में भाजपा का राम विलास पासवान की लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ गठबंधन है. लोजपा झारखंड में भी सक्रिय है, वहीं उपेंद्र कुशवाहा बीते माह रांची आकर चुनाव लड़ने का संकेत दे गए हैं. भाजपा द्वारा बाबूलाल मरांडी के झाविमो (प्र.) और सुदेश महतो की पार्टी आजसू से गठबंधन की बातें कई स्तरों पर हो रही हैं. भाजपा सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ढिंढोरा ज़रूर पीट रही है, लेकिन वह इसके साथ ही गठबंधन की संभावनाएं भी तलाश कर रही है. संकट यह है कि झाविमो पिछले चुनाव में 11 सीटें जीता था, वहीं आजसू का छह सीटों पर कब्जा है. इनमें से किसी के साथ गठबंधन होने पर भाजपा को इतनी सीटों के अलावा कुछ अन्य सीटें भी छोड़नी पड़ेंगी.
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बीके हरि प्रसाद ने पिछले महीने महा-गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने का संकेत दिया था, लेकिन उन्होंने कोई प्रारूप स्पष्ट नहीं किया था. बिहार में महा-गठबंधन है, जिसमें जदयू, राजद और कांग्रेस शामिल हैं. झारखंड में महा-गठबंधन के अंतर्गत इन तीनों के अलावा झामुमो भी है, जिसके साथ कांग्रेस सरकार चला रही है.
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बीके हरि प्रसाद ने पिछले महीने महा-गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने का संकेत दिया था, लेकिन उन्होंने कोई प्रारूप स्पष्ट नहीं किया था. बिहार में महा-गठबंधन है, जिसमें जदयू, राजद और कांग्रेस शामिल हैं. झारखंड में महा-गठबंधन के अंतर्गत इन तीनों के अलावा झामुमो भी है, जिसके साथ कांग्रेस सरकार चला रही है. सूत्रों का कहना है कि 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा के लिए होने वाले चुनाव में झामुमो 50 से कम सीटें लेने को तैयार नहीं है. झामुमो चाहता है कि वह 50 सीटों पर लड़े और शेष 31 सीटें कांग्रेस रखे तथा उन्हीं 31 में से वह राजद एवं जदयू को भी सीटें दे. फिलहाल यहां राजद के पांच और जदयू के दो विधायक हैं. राजद इन पांच के अलावा उन सीटों पर भी दावा कर रहा है, जहां वह 2009 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहा था. वहीं कांग्रेस चाहती है कि फिफ्टी-फिफ्टी का बंटवारा हो. यूपीए के अन्य घटक दलों के अनुसार, कांग्रेस और झामुमो बिना प्रारूप तय किए सीट बंटवारे की बात कर रहे हैं, जो कि समझ से परे है.
इसी बीच कांग्रेस के अधिसंख्य बड़े नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने गठबंधन में जाने का विरोध शुरू कर दिया है. 2009 के चुनाव में कांग्रेस और झामुमो अलग-अलग चुनाव लड़े थे. कांग्रेस के साथ राजद का गठबंधन था, जबकि जदयू भाजपा के साथ था. अब मामला उलट गया है. झामुमो 18 सीटें जीता था और 13 सीटों पर दूसरे स्थान पर था. कांग्रेस 14 सीटों पर जीती थी और 23 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी. इनमें कई ऐसी सीटें हैं, जहां कांग्रेस और झामुमो आपस में ही उलझे हुए हैं. इसके बाद मामला आएगा राजद और जदयू का. इसी बीच कांग्रेस ने सभी 81 सीटों पर सर्वे शुरू करा दिया है. सूत्रों का कहना है कि जब तक कांग्रेस के साथ लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन की वार्ता नहीं होती है, मामला लटका रहेगा. कम से कम लालू-कांग्रेस की बैठक से पूर्व तो गठबंधन का प्रारूप तय होने की संभावना नहीं दिख रही है. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अपने प्रभाव वाली सीटें नहीं छोड़ेगा. क़रीब दर्जन भर सीटों पर अपनी विजय सुनिश्चित मानकर राजद ने योजनाबद्ध तैयारी शुरू कर दी है. राजद ने पलामू प्रमंडल की नौ सीटों में से आठ के अलावा चतरा, कोडरमा, धनबाद, गोड्डा और रांची ज़िले की कुछ सीटों पर तैयारी शुरू की है. फिलहाल राजद के पांच विधायक हैं.
पलामू राजद का गढ़ माना जाता है. वहां लातेहार ज़िले की दोनों सीटों लातेहार एवं मनिका, पलामू ज़िले की चार सीटों पांकी, छत्तरपुर, हुसैनाबाद एवं विश्रामपुर, गढ़वा ज़िले की दोनों सीटों गढ़वा एवं भवनाथपुर पर तैयारी शुरू कर दी गई है. इनमें गढ़वा सीट से स्वयं प्रदेश अध्यक्ष गिरिनाथ सिंह चुनाव लड़ते हैं. पिछले चुनाव में वह हार गए थे, लेकिन इस बार उनकी पूरी तैयारी है. चतरा ज़िले में भी दोनों सीटें जीतने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. कोडरमा सीट पर स्वयं विधायक दल की नेता अन्नपूर्णा देवी का कब्जा है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि गठबंधन में सीटों के बंटवारे के बाद चाहे जो भी सीट मिले, लेकिन राजद अपने प्रभाव क्षेत्र वाली सीटें छोड़ने के मूड में नहीं है. बताया जाता है कि इस बार राजद ने खूब तैयारी की है. ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ता खड़े किए गए हैं, ताकि अपनी सीटों की संख्या में इजाफ़ा किया जा सके. फिलहाल झारखंड में यूपीए और एनडीए, दोनों ही महा-गठबंधनों के तार उलझ-से गए हैं. यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि कांग्रेस और भाजपा अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगी या फिर कोई और नया गठबंधन सामने आएगा.