आज हमारे देश के स्वतंत्र होने की 74 वीं पूर्व संध्या पर यह पोस्ट लिखना पड रही है ! लोकमान्य तिलक ने अंग्रेज सरकार के 123 साल पहले 1897 मे  प्लेग बीमारी को लेकर जो अफ़रातफ़रि मची थी उसे लेकर 6 जुलाई 1897 के केसरी नामके मराठी अखब़ार के शीर्षक था (सरकार चे डोके ठीकाणावर आहे का?) मतलब सरकार का दिमाग जगह पर है क्या ?

आज लगभग 150  के आसपास दिन हो रहे हैं कोरोना की बिमारी का हौव्वा भी उसी कडी का पार्ट लग रहा है क्यौंकि वर्तमान सरकार अपनी सुविधा से कोरोना का उपयोग कर रही है ! जब मनमे आया एकदम कड़ाई शूरू जब मन करता है तो अपने दलके कार्यक्रम किये जा रहे हैं !

5 अगस्त का दिन उसका सबसे बड़ा और ताजा उदाहरण है ! और उस दिन को प्रधान-मंत्री आजादी का दिन बोल रहे हैं ! फिर 15 अगस्त को आप लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम संदेश मत दिजीये ! संविधानिक पद पर बैठा हुआ आदमी ऐसी हरकत कैसे कर सकते हैं ?

अखिर उन्होने देशके प्रधान-मंत्री पद सह्माल्ने के पहले शपथ ली है कि मैं संविधान की रक्षा करूँगा और भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाये रखने की कोशिश करूँगा अयोध्या में मंदिर बनाना पूरे देश की प्राथमिकता में आता है ? और वह भी कोरोनाके कालमे 123 साल पुराना एपीडेमिक कानून के लागू रहते हुए !

आज देश की प्राथमिकता में क्या होना चाहिए ? लगभग 25 लाख का आकडा कोरोना के मरिजोका होने जा रहा है ! देश का गृह मंत्री,पूर्व राष्ट्रपति और सर्व सामान्य लोगों का तो कोई हिसाब ही नहीं है ! जो कोरोना की चपेट में आ चुके है !

मार्च,एप्रिल,मई और जून,जुलाई तक आपने कडे प्रतिबंध लगा दिये थे और अगस्त आते-आते कोरोना का संकट कम होने की जगह उल्टा कई गुना बढ़ गया है ! उस समारोह के अवसर पर कई सुरक्षा बलों के जवान कोरोना के चपेट में आ गये थे और अब तो महंत नृत्य गोपाल दास प्रधान पुजारिको कोरोना हो गया जिसके पास प्रधान-मंत्री ऊत्तरप्रदेशके,कई पदाधिकारी जिसमें  मुख्यमंत्री,राज्यपाल और किसी भी संविधानिक पद पर ना रहनेवाले ! मोहन भागवत दो घंटे से ज्यादा समय के लिए उस परिसर में रहें है !

क्या यह कार्यक्रम सिर्फ हिन्दुत्व वादी लोगों का कार्यक्रम था ? और था तो प्रधान-मंत्री उसे भारत के आजादिका दिन बोल रहे हैं ! उन्होने 15 अगस्त 2014 लाल किले से अपने पहले ही राष्ट्र को संबोधित करते हुए 135 करोड़ की टिम इंडिया की उपमा देकर देश में रहनेवाले दलित,आदिवासियो,महिला एवं समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का समावेश करके अपने सम्बोधन में बार बार कहा कि हमे सबका साथ सबका विकास करना है !

हालाकि उनका पूर्वईतिहासको देखकर इस बारेमे काफी अविश्वसनीय बने हैं और इसी कारण उनको कई देशोने अपने राष्ट्र में आनेके रस्ते बंद कर के उनके वीसा रद्द कर दिये थे ! क्यौंकि उन्होने गोधरा कांड के बाद 2002 के फरवरी की आखिरी दिन से लेकर मार्च पूरा,कुछ हदतक एप्रिल और माई,जून में भी छुट पुट घटनाओं का सिल सिला जिसे अन्ग्रेजीमे (pogrom) जारी था और वह सब उनकेही शह से था यह बात अब जगजाहीर हो चुका है उस दंगेके इतने सारे रेकार्ड है ! वह लेकर आंतराष्ट्रिय न्यायालय में जाने से (क्यौंकि भारत के न्यायव्यवस्था पर विश्वास उठ गया है इसलिये!) मामला साफ हो सकता है !

उसके बावजूद वह 15 साल के भीतर देशके सर्वोच्च पद पर बैठे हैं ! भले कहनेवाले 31 % वोट लेकर आये हुये हैं बोलते थे लेकिन क्रिकेट की मैच 1 रन्से जीते या 100 से जित जित होती है ! और वर्तमान संसदिय चुनावकी मर्यादा को देखकर लगता नहीं कि आनेवाले समय में कोई बदलाव होगा तो इसी तरह चुनाव जितनेका तकनीक जिसने भी अपने फेवर में कर लिया वह सिकन्दर फिर 31 हो या 3 परसेन्ट हो !

मंदिर,370,और तिन तलाक शत प्रतिशत पोलराइज़ करनेके हथियारो के रुप में इस्तमाल करा के और वह कम पड़ा था तो पुलवामा ने नैया पार लगाने में मदद कर दी ! यह भारतीय संसदिय जनतांत्रिक व्यवस्था की वास्तविकता है और इसिलिए जयप्रकाश नारायण जीने अपने जीवन का काफी समय चुनावी सुधारों के लिए दिया है कुछ कमिटीया भी गठित की थी और विषेश बात 1974 में सिटीजन्स फॉर डेमोक्रसी नामकी प्रक्रिया चलाई थी जिसका मै भी हिस्सा था ! लेकिन बात कुछ आगे बढ़ नहीं पाई

यह जीता वही सिकंदर की कहावत के अनुसार कभी किसिने गरीबी हटाओ,जय जवान जय किसान और पतन होते होते आजादीके चालीस साल के भीतर सिधे सीधे-सीधे सांप्रदाईकता पर आकर बैठ कर जय श्री राम के नारोमे उलझाकर वोट बैंक की राजनीति करके जो सरकार बनाने में कामयाब हो सकता है उनसे कोई और उम्मिद करना भी बेकार है !

फिर उस कारण देश की अखंडता खतरे में आ जाय या देशका और बटवारा हो जाय कोई परवाह नहीं है उल्टा चाहते हैं कि हो जाय तो सदियो तक हिन्दु राष्ट्र की बात करके जो सरकार बनाने में कामयाब हो सकता है वही राज करो की बात है !

1946-47 का बटवारे का कारण क्या था ? हिन्दु-मुसलमान दो राष्ट्र है यह अंग्रेजोने अपनी फोड़ो और राज करो की नीति के अनुसार जो सिलसिला शुरू किया था उसीकी परिनिती बटवारे में हो गई और उसके बाद लगा कि अब झगड़ा समाप्त हो गया लेकिन 20-25 साल भी पूरे नहीं हुए दोबारा सांप्रदाईक राजनीतीने अपना सिर उठाया और आज का वर्तमान अयोध्या में आकर रुका नहीं है यह आने वाले समय की अलग-अलग संकटोकी मालिका शूरू होनेके आसार नज़र आ रहे हैं ! एक सायलेंट मेजोरिटी अपने दिलोमे अंदर ही अंदर किस तरह से आक्रोशमे जल रही है वह देर ना सबेर अपना रंग दिखायेगी यह मेरा 50 साल के सार्वजनीक जिवन के अनुभव के आधार पर मुझे लगता है ! अगर मेरा आकलन गलत निकले तो सबसे ज्यादा खुशी मुझेही होगी !
क्यौंकि जिस तरह 1989 के भागलपुर दंगेके बाद की परिस्तिथि का आकलन कर के मैने 90-91 से लगातार भारतीय राजनीति का मुख्य केंद्रबिंदुमे सिर्फ और सिर्फ सांम्प्रदाईकता ही रहेगी यह मै बोलने लिखनेका काम किया था लेकिन किसिनेभी उसका सज्ञान नहीं लिया उल्टा नाना साहब गोरे,प्रो अम्लान दत्ता जैसे वरिष्ठतम मित्रोने मेरे भाषणोके बाद मेरी बात सुनकर कहा की सुरेशने एक दंगा क्या देख लिया वह काफी जज्बाती हो गया है ! भारत बहुत महान हैं रवींद्रनाथ टैगोर  महात्मा गाँधी,जेपी,बाबा साहब आंम्बेडकरजी,लोहिया,साने गुरूजी के जैसी विभूतियों का भारत है ! मै दिलहि दिल्मे कसमसाकर रह जाता था ! अब 25- 30 सालोमे कौनसा भारत सामने है ?

डॉ सुरेश खैरनार ,नागपुर

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