राजनीतिक दलों ने देश की तुलना मे अपनी तत्वप्रणाली को बडा मानना शुरू किया तो आजादी खतरे में आये बगैर नही रहेगी ! डॉ बाबा साहब अंबेडकर ने अपने संविधान सभा के आखिरी संबोधन में कहा था ! आज बीजेपी के स्थापना के इकतालीस साल के बहाने मुझे बार-बार बाबासाहब के इस वाक्य की याद आ रही है !
क्योंकि भारत की आजादी के बाद मुस्लिम लीग बटवारे के बाद भारत के इक्का दुक्का जगहो पर बची थी बडी मुश्किल से केरल से बनातवाला जैसे सांसद संसद मे पहुंचते थे !

लेकिन तत्कालीन संघ के प्रमुख श्री एम एस गोलवलकर को हिंदूओकी राजनीतिक ईकाई मुस्लिम लीग की तर्ज पर 21 अक्तूबर 1951 के दिन हिंदू महासभा महात्मा गाँधी जी के भारत के हत्या से दागदार होनेकी वजहसे उनको अलग पार्टी होनेकी आवश्यकता महसूस हुई तो पस्चिम बंगाल के श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ नामसे पार्टी शुरू की गई जो 26 सालों के अंदर 1977 मे जनता पार्टी मे विलीन हो गई थी ! लेकिन दो साल के भीतर ही दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर (एकही समय जनता पार्टी और आर एस एस के सदस्य होने के मुद्दे पर ) जनता पार्टी से अलग होकर 7 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी नामसे पुनः स्थापित कर के और हुबहू मुस्लिम लीग की तर्ज पर हिंदू लीग यानी भारतीय जनता पार्टी !

क्योंकि संघ का हमेशा से दावा रहा है कि वह शुद्ध शैक्षणिक और सांस्कृतिक संघटन है ! राजनीति से उसका कोई संबंध नहीं है !
जनता पार्टी की टूट किस बात का प्रमाण है ? कि जिस कारण 1977 मे जयप्रकाश नारायणजीने अपनी पहल से विभिन्न दलो को तत्कालीन कांग्रेस के खिलाफ चुनाव जीतने के लिए सोशलिस्ट पार्टी,संघठन कांग्रेस और जनसंघ जगजीवन राम की और हेमवती नंदन बहुगुणा की पार्टी को एक पार्टी बनाने की सर्कस भारतीय संसदीय राजनीति मे किये है !
जिस पार्टी के बनने को लेकर मैंने विरोध किया है ! क्योंकी जनसंघ हिंदू महासभा की ही सेकंड एडिशन है ! और हिंदू सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ कर के सावरकर-गोलवलकर के सपनों का हिंदू राष्ट्र बनाने और सभी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को दोयम दर्जे की नागरिक बनाने का काम पहले हिंदू महासभा के नाम से लेकिन गांधी हत्या के बाद अलग नाम देकर पहले जनसंघ नामसे और इकतालीस साल से बीजेपी के नाम से बदस्तूर अघोषित हिंदू राष्ट्र और मुक्त अर्थव्यवस्था पूंजीवाद की समर्थक और राजा-महाराजा और जमींदारों उच्च जाति वालो की पार्टी के साथ समाजवादी,गाँधी वादियोके वैचारिक मतभेद रहते हुए जनसंघ के साथ तात्कालिक चुनावी तालमेल तक ठीक है लेकिन एक पार्टी बनाने की बात मुझे बिल्कुल सही नहीं लग रही थी!और यह बात एस एम जोशी जी के साथ मैंने रखी थी जो आपातकाल में विभिन्न जेलो में जा-जाकर विभिन्न नेताओसे मिलकर जयप्रकाश नारायण जबतक कांग्रेस के खिलाफ चुनाव जीतने के लिए सब विरोधी दल मिलकर एक दल नहीं बनायेंगे तो जयप्रकाशजी चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लेंगे इस कारण एस एम सभी से संवाद करने के क्रम में मुझसे भी बात किये है ! और मैंने साफ तौर पर कहा था कि जनसंघ जैसे हिंदूत्ववादी और मुक्त अर्थव्यवस्था पूंजीवाद की समर्थक और राजा-महाराजा और जमींदारों तथा उंची जातियों की पार्टी के साथ समाजवादी पार्टी ने एक होने की कल्पना भी नहीं कर सकते !

और यह प्रयोग समाजवादी पार्टी के लिए आत्मघाती प्रयोग रहेगा ! और आश्चर्य की बात है कि एस एम मुझे मिलने के पहले तिहाड जेलसे जार्ज फर्नांडीज को मिलकर आये थे ! क्योंकी ऊस समय सोशलिस्ट पार्टी के जाॅर्ज फर्नांडीज राष्ट्रीय अध्यक्ष थे ! और एस एम ने कहा कि जाॅर्ज फर्नांडीज की भी राय तुम्हारी जैसी है ! मेरी उम्र उस समय तेईस-चौबीस साल की होगी ! तो मैंने कहा कि अगर जाॅर्ज फर्नांडीज राष्ट्रीय अध्यक्ष की भी राय मेरे जैसे ही है तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि मैं सही हूँ !

लेकिन इन सबके बावजूद जनता पार्टी की स्थापना हुई और जयप्रकाशजी के आँखो के सामनेही टूटी तो उन्होंने कहा कि चमन मेरा उजड गया ! हालाँकि वह चमन नही था सिर्फ एक गुलदस्ता था जिसे एक न एक दिन उजडनाही था !
और पुराने जनसंघ के लोगों ने सात अप्रैल 1980 के दिन भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की है ! जिसके स्थापना के आज इकतालीस साल पूरे हो रहे हैं ! और स्थापना के पाँच साल के भीतर ही शाहबानो विवाद की आडमे लाल कृष्ण आडवाणी ने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद को हवा दे कर रथयात्राओकी राजनीति करते हुए 6 दिसंबर 1992 के दिन बाबरी मस्जिद के विध्वंस की घटना और मंदिर वही बनायेंगे के नारे के साथ बीजेपी की स्थापना से अबतक कि संपूर्ण राजनीति आस्था के सवाल पर लाकर खडी कर दी ! फिर वर्तमान प्रधानमंत्री के मुख्यमंत्री कालका भारत की आजादी के बाद पहला सरकारी मशीनरी का उपयोग कर के और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ किया गया गुजरात दंगा 28 फरवरी 2002 को शुरू कर के अपने राजनीतिक करियर बनाने की मिसाल कायम की है ! लेकिन डॉक्टर बाबा साहब की संविधान सभा के आखिरी संबोधन के अनुसार अपने दलके अजेंडा को देश पर लादकर हमारे आजादी के साथ खिलवाड़ करने की बात है ! जिसे राष्ट्र-द्रोही कहना ठीक रहेगा ! लेकिन विडंबना है कि भारत के इतिहास में दंगे की राजनीति करके अपने आप को देश के सर्वोच्च पदपर बैठा लिया जोके बाबा साहब के अनुसार देश की आजादी को एकता-अखंडता को खतरे में डालने की बात है ! एक चौथाई आबादी के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को असुरक्षित मानसिकता में डालने का काम कर के कौनसा देश भक्ति का काम कर रहे हैं ? फिर गाय,लव-जेहाद,नागरिकता का कानून और 370 के साथ छेड़छाड़ करने की बात भारत के समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक होने का काम कर के कौनसा देश भक्ति का काम कर रहे हो ?

और देश के रोजमर्रा की जिंदगी से संबंधित मामलों को हाशिये पर डालने मे कामयाब रहे !और सिर्फ आस्था के सवाल पर संपूर्ण राजनीति लाकर खडी कर दी ! तो डॉ बाबा साहब की संविधान सभा के आखिरी संबोधन में कहा था कि देश की जगह राजनीतिक दल अपने दल की बात लादने की कोशिश करेंगे तो देश की आजादी खतरे में आये बगैर नही रहेगी !
बीजेपी ने जबसे सत्ता सम्हाली तबसे नोटबंदी से लेकर,कश्मीर के आर्टीकल 370 को खत्म करने से लेकर तथाकथीत नागरिकता संशोधन कानूनों से लेकर कृषी,मजदूरों के कानूनों को बदलने के निर्णय और लव-जेहाद,गोहत्याबंदी जैसे कानून लाकर क्या मतलब है ?

न्यायपालिका,मिडिया,कार्यपालिका जिसमें आई बी,सीबीआई ईडी एन आई ए और जगह-जगह पुलिस या पैरामिलीटरी तथा सेना की तैनाती जोके विदेशी शत्रुओके साथ लडाई के लिए होती है ! लेकिन भारत के एक चौथाई आबादी के हिस्से में अर्धसैनिक बलों के साथ मुख्य रूप से भारत के आदिवासियों और दलितों को और गरीब जनता को उनके हकोकी लडाई लढने से मना करने के लिए ही यह सब व्यवस्था जारी है !
और सरकारी उद्योग तथा देश के जल,जंगल और जमीन को बेचने की प्रक्रिया प्रारंभ कर के डॉ बाबा साहब की संविधान सभा के आखिरी संबोधन के अनुसार अपने दलके अजेंडा को देश पर लादकर हमारे आजादी के साथ खिलवाड़ करने की बात है !
और बीजेपी की बेशर्मी कहे या बेरहमी लेकिन उसके नेताओं का दावा है कि वह सब कुछ देशहित में कर रहे हैं !और इसको विरोध करने वाले देशद्रोही है ! और सात साल के भीतर ही देशद्रोहके कानून का इस्तेमाल कर के कितने लोगों को जेलों में बंद कर दिया है ?

स्वास्थ्य,शिक्षा अन्न सुरक्षा,पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों को प्रायवेट मास्टर्स के हवाले करना कौनसे राष्ट्र भक्ति में आता है ? रेल,बैंक,विमा,रक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग प्रायवेट और विदेशी निवेश के लिए देनेके निर्णय कौनसे राष्ट्र भक्ति में आता है ?
और सबसे हैरानीकी बात इन गलत नीतियों के खिलाफ बोलने वाले,लिखने वाले और कुछ सडक पर उतर कर आंदोलन करने वाले लोगों को राष्ट्र-द्रोही कहना कितना विरोधाभासी काम बीजेपी सत्ता में आने के बाद लगातार कर रही है और राष्ट्रभक्ती के नाम पर !

मतलब 135 करोड़ आबादी के भारत के बीजेपी अपने पार्टी को चालीस प्रतिशत भी वोट बडी मुश्किल से मिलने के बावजूद अपने आप को भारत के मालिक समझने लगे ! हालाँकि दिल्ली के तख्त पर बैठने के बाद प्रधानमंत्री ने खुद कहना शुरू किया कि मैं प्रधानमंत्री नहीं प्रधानसेवक हूँ ! लेकिन आप का भाव भृकुटी और भंगिमाएं देखकर लगता है कि आप के प्रधानमंत्री नहीं प्रधानसेवक हूँ वाली बात एक जुमले के अलावा कुछ भी नहीं है !

आज नरेंद्र मोदीजीने पार्टी के इकतालीस साल के उपलक्ष्य में कहा कि कुछ लोग हमे सिर्फ चुनावी मशीन समझते हैं ! हालाँकि कौन समझते है यह तो नहीं मालूम लेकिन भारत के चुनाव मे फिर वह गली से लेकर दिल्ली तक एकमात्र प्रधानमंत्री देखा है कि जो सब काम छोड़कर चुनावी दंगल में जिस तरह से शामिल होते हैं इस तरह और कोई प्रधानमंत्री याद नहीं आ रहे ! इसलिये चुनावकी मशीन अगर कोई कह रहा है तो कुछ भी गलत नहीं कह रहा है !


डॉ सुरेश खैरनार 7 अप्रैल 2021,नागपुर

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