jharkhandमुख्यमंत्री रघुवर दास से झारखंड का आदिवासी समुदाय इन दिनों नाराज चल रहा है. लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री आदिवासी क्षेत्रों में विकास की बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, पर इन क्षेत्रों में विकास के नाम पर लूट की छूट मिली हुई है. आदिवासी गांवों में लगाए गए चौपाल में मुख्यमंत्री ने कहा था कि गांव की जरूरतों के अनुरूप ही योजनाएं लाई जाएंगी, लेकिन ठीक उससे उलटा हो रहा है. अभी भी इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा और पेयजल जैसी बुनियादी चीजों का घोर अभाव है. ग्रामीणों ने तय किया है कि वे अब चंदा एकत्र कर गांव का विकास करेंगे और स्थानीय ग्रामसभा ही नियम कानून बनाएगी.

आदिवासी समाज ने इस बाबत पत्थलगड़ी कर यह ऐलान कर दिया है कि चाहे पीएम हो या सीएम गांव में बिना ईजाजत किसी को भी घुसने नहीं दिया जाएगा. ग्रामीण गांवों में विकास कार्य नहीं होने से आक्रोशित हैं. इस बात को खूंटी के उपायुुक्त सूरज कुमार ने भी स्वीकार किया है. उन्होंने कहा है कि ग्रामीण सरकार के उदासीन रवैये से नाराज हैं, वे सड़क, अस्पताल, बिजली जैसी जरूरी सुविधाएं मांग रहे हैं. आदिवासी धीरे-धीरे पत्थलगड़ी कर पूरे गांव की घेराबंदी कर रहे हैं. राजधानी से सटे खूंटी जिले के गांवों में पत्थलगड़ी के नाम पर अलग सीमा रेखा खींच दी गई है.

यहां केन्द्र और राज्य सरकार का नहीं, बल्कि ग्रामसभा का कानून चलता है. यहां बिना अनुमति के किसी को भी गांव में घुसने की इजाजत नहीं है. चाहे वो राष्ट्रपति हों या प्रधानमंत्री, या मुख्यमंत्री. आदिवासियों के इस पत्थलगड़ी से सबसे ज्यादा भयभीत भाजपा है, क्योंकि आदिवासियों का भाजपा से मोहभंग होता जा रहा है. मुख्यमंत्री रघुवर दास आदिवासियों को गोलबंद करने में पूरी तरफ से विफल साबित हो रहे हैं. राज्य में आदिवासी आबादी लगभग 33 प्रतिशत है. ऐसे में आगामी चुनावों में इसका सीधा असर भाजपा पर पड़ सकता है. इसे लेकर पार्टी आलाकमान भी काफी चिंतित है.

आदिवासियों के आगे पुलिस का समर्पण

आदिवासी समाज ने ग्रामसभा को सर्वोच्च माना है और यह कहा है कि वे अपने संविधान का पालन कर रहे हैं. इनलोगों की ताकत का सहज अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पत्थलगड़ी के आरोपी को जब पुलिस पकड़ने गई, तो ग्रामीणों ने पुलिस को ही बंधक बना लिया. पुलिस को बंधक बनाए जाने की यह दूसरी घटना है. इससे पूर्व भी जब पुलिस पत्थलगड़ी के आरोपी को पकड़ने गई थी, तो ग्रामीणों ने पुलिस के वरीय अधिकारी सहित लगभग सौ जवानों को बंधक बना लिया था. उसके बाद भारी संख्या में पुलिस फोर्स को गांव में भेजा गया, तब जवान मुक्त हो सके थे. इस बार जहां जवानों को बंधक बनाया गया था, वहां आसपास के सभी पेड़ों पर तीर-धनुष लेकर गांव वाले मौजूद थे और निशाने पर थे पुलिसकर्मी.

डीसी, एसपी से वार्ता के दौरान भी अगर कोई तेज आवाज में बोलता तो तीर उसकी तरफ खींच जाती. जिला एवं राज्य के अधिकारियों को आदिवासियों के आगे झुकना पड़ा. जिले के उपायुक्त ने यह लिखित आश्वासन दिया कि अब पत्थलगड़ी के आरोपी सागर मुंडा को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. बंधक बनाए गए पुलिस वालों को छुड़ाने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल बुलाया गया, उसके बाद ग्रामीणों ने पुलिस को छोड़ा. वह भी चेतावनी देकर. सरकारी रोक के बावजूद आठ जिलों में पत्थलगड़ी हो रही है. यहां के गांवों में ग्राम सभाएं खुद ही शासन और कानून चला रही हैं.

इन गांवों में बिना अनुमति बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है. ग्राम सभाओं ने बच्चों को सरकारी स्कूलों में न भेजने का भी फरमान जारी किया है. इस कारण ग्रामीण अब सरकारी स्कूलों में बच्चे को नहीं भेज रहे हैं. साथ ही सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से भी ग्रामीणों को मना कर दिया गया है. राजधानी से सटे खूंटी जिले का हाल तो सबसे बदतर है. यहां कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. खूंटी जिले में 86 पंचायत 6 प्रखंड एवं 767 राजस्व गांव हैं. इसमें 680 में ग्राम सभाओं के निर्देशों का पालन हो रहा है. यहां पूछताछ के बाद ही गांवों में प्रवेश की इजाजत मिलती है. यहां सरकारी अमले का तो प्रवेश ही प्रतिबंधित है. इन क्षेत्रों में ग्रामसभाओं का खौफ इतना बढ़ गया है कि हथियार बंद पुलिस भी नहीं जाना चाहती है.

ग्रामसभा की समानान्तर सरकार

इन सबके बावजूद राज्य सरकार चुप्पी साधे बैठी है. अगर सरकार अभी नहीं चेती तो इस राज्य में नक्सल से गंभीर स्थिति बन सकती है. हर हफ्ते एक गांव में औसतन पत्थलगड़ी हो रही है. दरअसल व्यवस्था से गांव वालों का भरोसा उठ चुका है और अब ग्रामसभा अपना अधिकार चाहती है. ग्रामीणों का यह कहना है कि गांवों में विकास के नाम पर लूट मची हुई है, इसलिए सभी सरकारी योजनाओं की राशि ग्रामसभा को ही दी जाय. इसमें हकीकत भी है कि इन गांवों में विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ है. खूंटी के अड़की में ग्रामीण अभी भी पठारी नदी-नाले का पानी पीने को मजबूर हैं.

गांवों से बाहर निकलने के लिए सड़क नहीं है और बच्चे मीलों पैदल चलकर स्कूल जाते हैं. ग्रामीण इलाकों में विकास के सारे वादे फेल हैं. दूर-दराज के गांवों में अभाव और बेबसी है. इस कारण आदिवासी गांवों में ग्रामसभाओं ने एकाधिकार की घोषणा की है. विकास के नाम पर दगा-फरेब और हक की लड़ाई के लिए पूरा इलाका सुलग रहा है और ग्रामसभा ने इन इलाकों में अपना प्रभुत्व कायम कर लिया है. स्थिति यह है कि मुखिया भी ग्रामसभा की इजाजत के बिना कोई योजना नहीं ले सकता है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामसभा ने एक तरह से समानान्तर सरकार कायम कर लिया है.

ग्रामसभा का इस मामले में अपना तर्क भी है. ग्रामसभा का मानना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13(3)(क) के तहत रूढ़ि या प्रथा ही विधि का बल है, यानि संविधान की शक्ति है. अनुच्छेद 19(5) के तहत जिलों या क्षेत्रों में बाहरी गैर रूढ़ि या प्रथा वाले व्यक्तियों का स्वतंत्र रूप से भ्रमण करना, निवास करना, घूमना-फिरना वर्जित है. 19(6) के तहत किन्हीं भी बाहरी व्यक्तियों द्वारा पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में व्यवसाय, कारोबार एवं रोजगार पर प्रतिबंध है. पांचवीं अनुसूचित जिलों या क्षेत्रों में भारत के संविधान अनुच्छेद 244(1) भाग-ख एवं पारा-1 के तहत संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं है.

पत्थलगड़ी की आड़ में अ़फीम का कारोबार

हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि राष्ट्रविरोधी एवं असामाजिक ताकतें पत्थलगड़ी की आड़ में काले धंधे कर रही हैं. लगभग पांच सौ से भी अधिक एकड़ में अफीम की खेती हो रही है और दो लाख रुपए प्रतिकिलो की दर से यहां बाहर के कुछ देशों में अफीम का निर्यात हो रहा है, जबकि खुदरा अफीम का मूल्य लगभग दस लाख रुपए प्रतिकिलो है. इन क्षेत्रों में पहले नक्सलियों का शासन चलता था, तब सरकार नक्सल अभियान के तहत इन क्षेत्रों में जाकर अफीम की खेती नष्ट कर दिया करती थी.

इसके कारण जब असामाजिक तत्वों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी, तब इनलोगों ने नया हथकंडा अपनाया और भोले-भाले आदिवासियों को ढाल बनाया. एक रणनीति के तहत इन लोगों को बरगलाया गया और इस तरह से भोले-भाले आदिवासियों को आगे कर ग्रामसभा बनाया गया. अब इसकी आड़ में ही इन क्षेत्रों में अफीम का धंधा फल-फूल रहा है. इन क्षेत्रों में अब अत्याधुनिक हथियारों से लैस पुलिस भी जाने से घबराती है. इनलोगों के खौफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन क्षेत्रों में स्थित पुलिस थानों में शाम होते ही ताला लटक जाता है.

कोई माई का लाल मुझे जाने से नहीं रोक सकता: रघुवर दास

आदिवासियों ने जब ऐलान किया कि कोई भी बाहरी बिना उनकी इजाजत के गांवों में नहीं आ सकता, चाहे तो राष्ट्रपति हों, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री, तो इससे तिलमिलाए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने बड़बोले अंदाज में कहा कि ‘कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ है, जो मुझे जाने से रोक दे’. मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्य में कानून का ही राज चलेगा. किसी को भी कानून हाथ में लेने की छूट नहीं होगी. आदिवासियों की व्यवस्था से बगावत पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रविरोधी व असामाजिक शक्तियां गांवों में अफीम की खेती एवं अवैध कार्यों के लिए भोले-भाले आदिवासियों को बरगला कर अपना उल्लू सीधा करने में लगी हैं.

लेकिन यह सब होने नहीं दिया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा है कि पत्थलगड़ी की आड़ में भोले-भाले लोगों को बरगलाया जा रहा है. इस काम में मिशनरीज भी लगी हुई हैं. उन्होंने कहा कि सरकार के कामों से वे लोग बौखलाए हुए हैं, जो 70 साल से खूंटी में धंधा चला रहे थे. सरकार ऐसे लोगों को सबक सिखाएगी. पुलिस प्रशासन का मनोबल बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि असामाजिक ताकतों से तब तक लड़ते रहें, जब तक उनका सफाया नहीं हो जाता है.

बड़ा सियासी मुद्दा बनने की राह पर पत्थलगड़ी

पत्थलगड़ी का नाम पहले आदिवासी क्षेत्रों में ही सुनने को मिलता था, लेकिन अब प्रदेश की राजनीति में भी इसका शोर सुनाई दे रहा है. विपक्ष के साथ-साथ भाजपा के कई नेता भी ऐसा आरोप लगा रहे हैं कि सरकार पत्थलगड़ी को लेकर गंभीर नहीं है. भाजपा सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री करिया मुंडा ने कहा है कि अभी जो हो रहा है, उसे समान्य पत्थलगड़ी के रूप में देखना भूल होगी. सरकार को इसके पीछे की सोच और उद्देष्यों तक पहुंचना होगा, तभी इसका समाधान मिलेगा. मुंडा समाज के पत्थलगड़ी के रिवाज से कभी किसी ने छेड़छाड़ नहीं की है, लेकिन अभी पत्थलगड़ी के नाम पर मुंडाओं को बरगलाने का काम हो रहा है.

यह गलत है. समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह पूरे राज्य में फैल जाएगा, जो झारखंड की सेहत के लिए ठीक नहीं होगा. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने तो पत्थलगड़ी को लेकर चर्च को कठघरे में खड़ा कर दिया है. उन्होंने कहा कि पत्थलगड़ी के पीछे चर्च का दिमाग और धन काम कर रहा है. वे अपना संख्या तो बढ़ा ही रहे हैं, राज्य और देश के विरोध में प्रचार कर विषाक्त माहौल भी बना रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन ने आदिवासी समुदाय के पत्थलगड़ी को सही बताया है. उन्होंने कहा कि सरकार पत्थलगड़ी पर लोगों को दिग्भ्रमित करने का काम कर रही है. संविधान की रक्षा के लिए आदिकाल से ही पत्थलगड़ी की परंपरा का निर्वहन हो रहा है. आदिवासी समाज का जल, जंगल और जमीन पर हक है और उसके साथ किसी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here