nitish-kumarबिहार में लाखों अधूरे पड़े इंदिरा आवास को लेकर न केवल सियासी पारा चढ़ने लगा है, बल्कि नौकरशाहों के साथ-साथ बिहार सरकार की घिघ्घी बंद होने लगी है. गरीब व आवास विहीन परिवारों के लिए आशियाना बनाने के नाम सत्ता पक्ष और विपक्ष की तकरार और समय-समय पर किए गए वादे भी किसी से छिपे नहीं हैं. हकीकत यह है कि बिहार में इंदिरा आवास योजना महज सियायी योजना बनकर रह गई है. गौरतलब है कि समय-समय पर इंदिरा आवास योजना की समीक्षा होती रहती है और उच्चाधिकारियों के द्वारा दिशा-निर्देश भी जारी किए जाते रहे हैं. लेकिन भ्रष्ट नौकरशाहों की वजह से इंदिरा आवास मामले में महज खानापूर्ति के सिवाय कुछ भी संभव नहीं हो सका है. अब जब लाखों इंदिरा आवास अधूरे पड़े हैं, तब विभागीय स्तर पर आवास को पूर्ण करने के नाम पर पसीने बहाए जा रहे हैं. लेकिन यह देखने के लिए किसी के पास समय नहीं है कि आखिर इंदिरा आवास का निर्माण धरातल पर संभव क्यों नहीं हो पा रहा है? यह बात अलग है कि ग्रामीण विकास विभाग के सचिव अरविन्द कुमार चौधरी का दावा है कि सम्पन्न हुए पंचायत चुनाव के साथ-साथ तकनीकी वजहों से तीन-चार माह तक इंदिरा आवास के निर्माण कार्य में प्रगति संभव नहीं हो सकी.

दशकों से लूट परम्परा की शिकार होती रही इंदिरा आवास योजना की बातों को अगर दरकिनार कर पिछले चार वित्तीय वर्ष की चर्चा की जाए तो यह प्रमाणित हो जाएगा कि बिहार में इंदिरा आवास योजना भ्रष्टाचारियों के भेंट चढ़कर रह गई है. चार वित्तीय वर्षों के दौरान 19 लाख 38 हजार 945 इंदिरा आवासों की स्वीकृति तो दी गई, लेकिन महज 3 लाख 43 हजार 249 आवासों का निर्माण ही संभव हो पाया जो कई तरह के सवालों को जन्म देने के लिए काफी है. 15 लाख 95 हजार 696 आवासों को विभागीय स्तर पर अधूरा बताया जा रहा है. बात अलग है कि अधूरे बताए जा रहे आवास वास्तविक तौर पर अधूरे हैं अथवा निर्माण कार्य शुरू हुआ ही नहीं, के सवाल पर अधिकारी बगलें झांकने लगते हैं. ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा अधूरे पड़े इंदिरा आवास को पूरा करने के लिए केवल अभियान चलाया जा रहा है, बल्कि लाभ पाने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का एलान भी किया जा रहा है.

इस वित्तीय वर्ष के दौरान अधिकतम बैकलॉग पूरा करने की जिम्मेदारी जिलों को सौंपी गई है. ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा सभी जिला पदाधिकारियों के साथ बातचीत कर  किसी तरह अधूरे पड़े इंदिरा आवास को पूर्ण करने का प्रयास किया जा रहा है. इतना ही नहीं वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा जिला स्तरीय पदाधिकारियों को अधूरे पड़े इंदिरा आवास को पूर्ण करने के लिए अभियान चलाने का निर्देश भी दिया गया है. उच्चाधिकारियों के आदेश को अमलीजामा कब तक पहनाया जायगा, यह कहना मुश्किल है. लेकिन बिहार के किसी भी इलाके में इंदिरा आवास निर्माण की स्थिति अच्छी नहीं है. कोसी इलाके में आवंटित इंदिरा आवासों में से 13 प्रतिशत इंदिरा आवास का निर्माण संभव हो सका है जबकि सीमांचल में महज 19 प्रतिशत इंदिरा आवास ही बनाए जा सके हैं. मिथिलांचल में 32 प्रतिशत इंदिरा आवास निर्माण का दावा किया जा रहा है, लेकिन मगध का हाल किसी से छिपा नहीं है. यहां चार वित्तीय वर्षों के दौरान इंदिरा आवासों में से महज 31 प्रतिशत इंदिरा आवास का निर्माण बताता है कि सरकार की कथनी व करनी में अंतर है. बिहार के अन्य इलाकों के आंकड़े भी चीख-चीख कर यह कह रहे हैं कि इंदिरा आवास के नाम पर बिहार में महज कागजी घोड़ा दौड़ाया जा रहा है. बिहार में गरीब व आवास विहीन परिवारों को छतदार मकान उपलब्ध कराने के ख्याल से इंदिरा आवास योजना के तहत सरकार के द्वारा राशि उपलब्ध करायी गई है. लेकिन केंद्र व राज्य सरकार के द्वारा लगातार दिशा-निर्देश जारी किए जाने के बाद भी तकनीकी वजहों से इंदिरा आवास का निर्माण संभव नहीं हो सका है. जबकि इंदिरा आवास पाने वालों के बीच प्रथम किस्त की राशि का वितरण भी कर दिया गया है. स्वीकृत आवासों के निर्माण के लिए दो किस्तों में राशि भुगतान का प्रावधान है. शौचालय निर्माण को भी योजना में शामिल कर वित्तीय वर्ष

2012-2013 और 2013-2014 में प्रति आवास 70 हजार रुपये दो किस्तों में देने का एलान किया गया था. ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा जारी की गई राशि के साथ-साथ लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के द्वारा शौचालय निर्माण के लिए 12 हजार रुपये देना सुनिश्‍चित है. ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा प्रथम किस्त के रूप में 50 हजार रुपये जारी कर दिया गया है, लेकिन प्रावधान के अनुसार दूसरी किस्त की राशि अटकी पड़ी है. इधर जानकारों का कहना है कि लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के द्वारा आवास निर्माण पूर्ण करने के बाद शौचालय की राशि देने की बात कही गई थी. लेकिन राशि उपलब्ध नहीं कराए जाने की वजह से भवनों का निर्माण संभव नहीं हो सका. वित्तीय वर्ष 2014-2015 से 70 हजार रुपये की राशि 35-35 हजार के दो किस्तों में देने का प्रावधान है. लाभ पाने वालों के द्वारा छत तक घर के साथ शौचालय का निर्माण किए जाने के बाद दूसरे किस्त की राशि का भुगतान होना है. लेकिन प्रथम किस्त के रूप में मिली राशि इतनी कम थी कि मंहगाई के इस युग में आवास का निर्माण संभव नहीं हो सका.

मुर्दों को आशियाना सजाने के लिए मिली इंदिरा आवास की राशि : खुले आसमान के नीचे जीवन

गुजर-बसर करने वाले इंसानों को भले ही आशियाना नसीब नहीं हो पा रहा हो, लेकिन बिहार के कई इलाकों में मुर्दों को भी आशियाना उपलब्ध करा दिया गया है. शासक-प्रशासक की दरियादिली का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि इंदिरा आवास पाने की पात्रता नहीं रखने वाले कई धनाढ़्य भी इंदिरा आवास पाने से वंचित नहीं रहे. यहां तक कि कई कुंवारोंें के प्रति दरियादिली दिखाते हुए उनकी मौसी, बहन तथा भाभी को भी पत्नी दर्शाकर इंदिरा आवास का लाभ दे दिया गया है. ऐसी बात नहीं है कि इस तरह का वाक्या पहली बार सामने आया है, दर्जनों बार इस तरह के मामलों को लेकर इलाका सुलगा और मामले की जांच का आदेश भी दिया गया. लेकिन जांच के नाम पर महज खानापूर्ति कर मामले को जमींदोज कर दिया गया. स्थिति अब यह है कि इंदिरा आवास पाने वालों के नाम विभागीय स्तर पर लगातार जारी किए जा रहे हैं, लेकिन फर्जी लाभ पाने वाले सामने आने से कतरा रहे हैं. बात अलग है कि मामले का भांडा फूटने के बाद विभागीय पदाधिकारी फर्जीवाड़ा करने वालों के विरुद्ध नोटिस जारी करते हुए सूद सहित राशि वसूलने की बात कर रहे हैं. अन्य इलाकों की बातों को फिलवक्त दरकिनार करते हुए अगर खगड़िया जिले की बात करें तो इस इलाके के लिए इस तरह का मामला नया नहीं है. लगातार दो-दो बार एक ही व्यक्ति को इंदिरा आवास का लाभ देने के आरोप में चौथम प्रखंड के बीडीओ सहित कई अन्य लोगों के विरुद्ध भी प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है. मामले को खंगालने की कोशिश शुरू होते ही कई पर कानूनी तलवार लटकी पड़ी है. जानकारों की अगर मानें तो पहले कुंवारे व्यक्तियों ने पंचायत सचिव की मिलीभगत से इंदिरा आवास का लाभ लिया. फिर तो परिपाटी ही बन गई और दूसरी की पत्नी को अपनी पत्नी घोषित कर फर्जीवाड़ा करते हुए इंदिरा आवास का लाभ लेना शुरू कर दिया गया. तुर्रा तो यह है कि रिश्ते को ताक पर रखते हुए मौसी और भाभी को भी अपनी पत्नी बताकर इंदिरा आवास का लाभ ले लिया गया है. यहां तक कि बहनों को भी फर्जीवाड़ा करने वालों ने पत्नी बना लिया और इंदिरा आवास की राशि डकार ली.

हास्यास्पद स्थिति यह है कि जरूरतमंद इंसानों को तो इंदिरा आवास का लाभ नहीं मिला, लेकिन मुर्दों को आशियाना मिल गया. चौथम प्रखंड के अंतर्गत जवाहरनगर के एक नाबालिग लाभार्थी तूफानी सदा ने अपनी भाभी सिरोमणी देवी को अपनी पत्नी बताकर इंदिरा आवास का लाभ ले लिया. प्रथम किस्त के रूप में तीस हजार रुपये लेते ही इस बात की कलई खुल गई और तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी सुरेन्द्र कुमार ने सूद सहित उठाव की गई राशि जमा करने का आदेश जारी किया. सूद सहित राशि वसूलने में आखिर पेंच क्या है? यह तो सरकारी हुक्मरान ही जानें. लेकिन इसी प्रखंड के रोहियार पंचायत के बंगलिया गांव निवासी नाबालिग अंग्रेज सिंह ने अपनी मौसी सकुना देवी को अपनी पत्नी बताकर इंदिरा आवास का लाभ ले लिया. गजब तो तब हो गई जब परबत्ता प्रखंड के अंतर्गत कुल्हरिया निवासी सुनील कुमार ने अपनी सगी बहन उर्मिला को कागज पर पत्नी बनाया और सरकार बाबू की कृपा से इंदिरा आवास ले लिया. जानकारों की अगर मानें तो चौथम प्रखंड सहित अन्य प्रखंड के भी सैकड़ों कुंवारे और नाबालिगों के द्वारा पंचायत सचिव की मिलीभगत से इस तरह के फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया है. मामले का खुलासा होने के बाद तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी सुरेन्द्र कुमार ने तत्कालीन बीईओ संजय चौधरी को जांच करने का आदेश दिया था. बीईओ के द्वारा की गई जांच में मामला सत्य पाए जाने के बाद फर्जी लाभुकों के विरुद्ध विधि सम्मत कार्रवाई करते हुए सूद सहित उठाव की गई राशि जमा करने का आदेश जारी किया गया था. इतना ही नहीं पंचायत सचिव से भी स्पष्टीकरण मांगा गया था. बहरहाल, इस मामले में पंचायत सचिव के विरुद्ध कार्रवाई होगी अथवा अन्य मामलों की तरह यह भी मामला दफन होकर रह जाएगा, यह कहना तो शायद जल्दबाजी होगी. लेकिन इतना तय है कि लाभुकों के मामले में भौतिक सत्यापन बंद कमरे में ही किस तरह कर फर्जीवाड़ा की घटना को अंजाम दिया जाता है, यह बात प्रमाणित हो चुकी है. इधर रालोसपा के खगड़िया जिलाध्यक्ष अमित कुमार मंटू ने कहा है कि इंदिरा आवास मामले की अगर इमानदारी पूर्वक जांच की जाए तो कई सफेदपोशों का चेहरा बेनकाब होना तय है. जरूरतमंदों के बजाय धनाढ़्य और पात्रता नहीं रखने वाले परिवारों को इंदिरा आवास उपलब्ध कराकर नौकरशाहों ने गरीब व आवास विहीन परिवारों की हकमारी की है. बार-बार फर्जी इंदिरा आवास मामले की जांच कर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग होती रही है, लेकिन जांच के नाम पर महज खानापूर्ति कर मामले को दबा दिया जाता रहा है. अगर इस तरह के मामले पर विराम नहीं लगा तो गरीब व आवास विहीन परिवारों के लिए रालोसपा के द्वारा चरणबद्ध आंदोलन किया जाएगा.

दूसरी तरफ खगड़िया के जनसम्पर्क पदाधिकारी कमल सिंह का कहना है कि जैसे-जैसे फर्जीवाड़ा का मामला सामने आता जा रहा है, वैसे-वैसे विधिसम्मत कार्रवाई करते हुए उठाव की गई राशि वसूलने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है. जल्द ही दोषियों की पहचान कर उनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की जाएगी. बहरहाल, फर्जी इंदिरा आवास मामले की जांच होगी अथवा यह मामला भी अन्य मामलों की तरह दफन होकर रह जाएगा, यह आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन अधूरे पड़े इंदिरा आवास मामले को लेकर नीतीश सरकार न केवल घिरती नजर आ रही है बल्कि सियासी पारा भी परवान चढ़ता जा रहा है.

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