आप भी स्वीकार करेंगे कि आज की कांग्रेस एक ऐसी टूटी फूटी रेल है जिसके न ड्राइवर का पता है, न 23 डिब्बों का, न इंजन का, न गार्ड का। कांग्रेस के अंधभक्तों को छोड़ कर समूचा पढा़ लिखा वर्ग यह जानता है कि वाकई आज की कांग्रेस ऐसी टूटी फूटी रेल हो गयी है। फिर भी सब यह स्वीकारते हैं कि कोई विकल्प है तो कांग्रेस ही है। गजब के अंतर्ध्यान की गुफा से निकला अंतर्विरोध है। पूरे देश के भीष्म पितामह लाचार होकर लकवाग्रस्त हो गये, लगता है। ‘सत्य हिंदी’ पर आयं बायं शायं, अनाप शनाप बहसें या चर्चाएं होती हैं। समझ किसी को कुछ नहीं आ रहा। अचानक एक दिन प्रियंका गांधी निकलती हैं और यूपी में डंका बजाने लगती हैं। सधे हुए तरीकों से डंका बजने लगता है। तब सब भौचक हो उठते हैं। दो बातें, राहुल से अच्छी तो प्रियंका और दूसरी, कि बहुत देर कर दी मेहरबां आते आते।
पता नहीं कहीं यह चर्चा चल रही है या नहीं कि राहुल के बजाय प्रियंका को आगे बढ़ाया होता तो अब तक कहानी कुछ और ही होती। हमको तो ऐसा ही लगता है। देखिए जनता में ‘परसेप्शन’ क्या बनता है। शुरुआत राहुल ने बहुत निराशाजनक तरीकों से की। ‘नान सीरियस’ और ‘पार्ट टाइम पालिटिशियन’। ‘परसेप्शन’ शुरू से बिगड़ गया। और षड़यंत्रकारी बीजेपी तो पहले से ही ताक में थी कि जैसे भी हो पूरी कांग्रेस का खेल इस कदर बिगाड़ देना है कि पानी भी न मांग सके। बीजेपी सफल रही कांग्रेस समझने में मूढ़ ही रही। क्योंकि वहां समझ न मां में है, न बेटे में और न बेटी ही इस खेल को समझ पायी। बीजेपी का वार लगातार होता रहा। आज भी जारी है। दूसरी बात राहुल के साथ जो नकारात्मक है कि न तो उसकी हिंदी अच्छी, न वाक् चातुर्य है, न शब्द हैं, न वाक्यविन्यास और मुहावरे या प्रसंग हैं। इन सबकी मूढ़ता है। तीसरी बात वह अपनी तारीफ में बहता है।
सारे पत्रकारों और तमाम लोगों ने यह बोल बोल कर कि सब कुछ राहुल ने पहले बता दिया था, उसका दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने सोच लिया कि यह ट्विटर वार ही बड़े काम की है। इसी से सत्ता मिलेगी। लोग मोदी से निराश हो जाएंगे और मुझे सत्ता सौंप देंगे। क्योंकि मेरे सिवा कांग्रेस में है ही कौन। यानि जैसे कांग्रेस गांधी परिवार की निजी प्रापर्टी हो गयी। तो बाकी के कांग्रेसी (क्या उन्हें दिग्गज कहा जाए) किसलिए बचे। किसी ने कुछ नहीं सोचा। सोचने की कूव्वत किसके पास। लोग सोनिया गांधी को बहुत समझदार और प्रबुद्ध महिला मानते हैं। मेरी समझ से राजनीति में वे उतना ही समझती हैं जितना उन्होंने पति और सास की राजनीति को देखा था।
जमीन के धरातल पर उनका अनुभव शून्य था और आज भी ‘लगभग’ शून्य ही समझिए, यदि उन्होंने बिना राहुल की राजनीतिक प्रतिभा को समझे कांग्रेस और देश का नायक बनाने की जिद ठान ली थी। पर कहते हैं न समय अपना खेल खेलता है। यूपी के चुनावों ने प्रियंका की सक्रियता अचानक बढ़ा दी और अब प्रियंका के कदम चुनाव तक तो रुकने वाले नहीं। राजनीति में सफलता का नशा होता ही गजब है। प्रियंका क्या गजब ढाएंगी यह तो देखना बाकी है मगर, यदि सपा से इस बार फिर से तालमेल हो तो हमें लगता है रंग खूब जमेगा। पिछली बार राहुल के साथ अखिलेश थे। राहुल पर खुद कांग्रेसियों का भरोसा नहीं था। उसमें एक लल्लूपन है। इसीलिए उसे बीजेपी ने पप्पू की उपाधि दी। और वह उसका तोड़ आज तक नहीं निकाल पाया। खैर इसे बीती बात कहिए।
मानना तो यह पड़ेगा कि कांग्रेस में पारखी नजर किसी के पास नहीं। प्रियंका में दो चीजें बाकी के मुकाबले बड़ी प्रबल हैं। एक में तो उनका कोई हाथ नहीं, वह यह कि योगायोग से लोग उनमें इंदिरा गांधी की छवि पाते हैं और किसी हद तक सही ही लगता है। दूसरा उनकी हिंदी। और इसी के साथ दिनों दिन बढ़ता उनका आत्मविश्वास। समय आ गया है कि जी-23 के नेताओं के साथ प्रियंका को लेकर सहमति बनायी जाए। इनमें से एक नेता भी विरोध नहीं करने वाला। दूसरा, सोनिया बेटे का मोह त्यागें और कांग्रेस की सफलता, दृढ़ता और मजबूत भविष्य देखें। पूरा देश, जी हां, वही देश जो कभी कांग्रेस के भष्टाचार से आजिज़ आ चुका था, आज देश को बचाने की खातिर उसी कांग्रेस की ओर आतुर नजरों से देख रहा है। कुछ कुछ उसी तरह जैसे आखिरी ओवर में हमारे बल्लेबाज को पंद्रह रन बनाने हों और हम मन में हर क्षण चौके छक्के की दुआ करते हों। इस कपटी सरकार से देश को कौन बचाएगा। राज्यों के क्षत्रप तो हैं ही। पर ममता अभी बहुत दूर हैं। कांग्रेस विपक्ष की रीढ़ बनेगी। इतना तो तय है। अब सारी बात सूझ बूझ की है।
हम सब समझ रहे हैं। प्रियंका का डंका बज रहा है। ‘वायर’ में आरफा खानम शेरवानी ने प्रियंका के मुद्दे पर नीरजा चौधरी और बिहार की पत्रकार निवेदिता झा से अच्छी चर्चा की। हमें तो लगता है प्रियंका की सारी मेहनत का असली फल तो मिलेगा 2024 के आम चुनावों में। लेकिन तब तक भाग नहीं जाना है। इन कांग्रेसियों से यही डर है। सितंबर तक यही चर्चा थी कि प्रियंका कहां हैं, कब आएंगी। समय बीता जा रहा है। और यदि लखीमपुर खीरी कांड न होता तो क्या पता प्रियंका अगले साल के शुरू में ही निकलतीं।
मोदी से जबरदस्त मोहभंग हो रहा है जनता में। हालांकि मोदी ब्रिगेड, हर चीज में धुंध फैलाने में माहिर है। यही किया भी जा रहा है। फिर भी मजबूत विपक्ष के लिए पूरा मैदान साफ है। स्थितियां ठीक वैसी ही बन रही हैं जैसे कांग्रेस की सत्ता के उत्तरार्ध में बनी हुई थीं। कांग्रेस में सद्बुद्धि कौन लाएगा और उसे साधने का काम कौन करेगा, प्रश्न यही है। प्रशांत किशोर का सुना है मोहभंग हो चुका है। इन्होंने स्वयं खुद को अजीब सा रिंग मास्टर बना कर छोड़ दिया है। तो कांग्रेस किसी को आऊट सोर्स करे ? तवा गरम है सही चोट की दरकार है, पूरी सूझबूझ के साथ। देखें भविष्य में क्या लिखा है।
एक छोटी सी बात पुण्य प्रसून वाजपेयी के लिए। हर दिन या हर प्रसंग आपके विश्लेषण का नहीं होता। जरूरी नहीं कि हर चीज पर आप अपना ज्ञान बांटें ही। 31अक्टूबर को इंदिरा की पुण्यतिथि और सरदार पटेल की जयंती पर सब बेबात था। यूं ही बोलना और बोलते चले जाना।सबसे पहले तो खोलते ही ‘अनूठे सचों’ से डर लगता है। कल्पना और परिकल्पना में अंतर क्या होता है। ये सब कवितानुमा भाषण के ‘साइड अफेक्ट’ हैं। पर तात्कालिक विषयों पर विवेचन बहुत मौजूं होते हैं इसमें कोई शक नहीं। बस इतना खयाल रखें कि श्रोता बोर न हो। कैसे रखेंगे, आप जानें।