बंगलुरू में एक माॅडल और कंटेंट क्रिएटर हितेषा चंद्राणी के साथ स्थानीय पिज्जा डिलीवरी ब्वाॅय द्वारा की गई कथित मारपीट और उसके बाद सोशल मीडिया पर मचे बवाल से एक संकेत तो साफ है कि 21 वीं सदी में हम कंपनी-कस्टमर रिलेशन के एक नए दौर में पहुंच गए हैं। हितेषा की शिकायत के बाद पुलिस ने आरोपी डिलीवरी ब्वाॅय कामराज को गिरफ्ताेर कर लिया है और ऑन लाइन फूड डिलीवरी कंपनी जोमातो ने आरोपी को नौकरी से निकाल दिया है। साथ ही इस घटना के लिए हितेषा से क्षमा याचना भी की है।

क्योंकि इससे कंपनी की बदनामी हो रही थी। लेकिन दूसरी तरफ डिलीवरी ब्वाॅय ने जो कहानी पुलिस को बताई है, उससे प्रतीत होता है कि होम डिलीवरी कस्टमर के नाम पर देश में एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया है, जिसके लिए मानवता का कोई अर्थ नहीं है। यह निर्मम, केवल आज व अभी के लिए और पैसे के दम पर सिर्फ अपने लिए जीने वाला वर्ग है। जिसकी दुनिया मुख्यज रूप से वर्चुअल है और खुद तक सिमटी हुई है।

ग्राहक और डिलीवरी ब्वाॅय के बीच मारपीट क्यों हुई, इसका पता पुलिस लगा रही है, लेकिन जो बातें छन कर आ रही हैं, उससे यही लगता है कि ताली एक हाथ से तो नहीं बजी होगी। इस घटना में आगे क्या होगा, यह देखने की बात है, लेकिन बड़ी चिंता की बात यह है कि अब हम एक ऐसा समाज गढ़ रहे हैं, जिसमें सामाजिक रिश्तों के लिए खास जगह नहीं है। हम उस कारपोरेट कल्चर के गुलाम होते जा रहे हैं, जो हमें यह भी बता रहा है कि हम क्या खाएं-कैसे खाएं, क्या पहने-कैसे पहनें, क्या सोचें-कैसे सोचें ? वह हमारे नैतिक मूल्यों के साथ पारंपरिक खाद्य आदतों और संस्कारों से भी विमुख कर रहा है।

अपनी सोच और स्वार्थ हम पर थोप रहा है। यही कारण है कि आज देश की युवा पीढ़ी इटालियन मूल के व्यंजन पिज्जा की इस कदर दीवानी या पागल है कि जिसकी डिलीवरी में देरी भी हिंसा का रूप ले लेती है। बेंगलुरू की घटना में दोनो सम्बन्धित पक्षों के अलग- अलग वर्जन हैं। जो बात सामने आई है, उसके मुताबिक हितेषा ने जोमातो के मार्फत पिज्जा ऑडर किया था। लेकिन डिलीवरी में देरी के चलते वो कंपनी के कस्टमर केयर से ऑडर कैंसिल करने के बारे में फोन पर बात कर ही रही थी कि डिलीवरी ब्वाॅय आ पहुंचा। हितेशा ने ऑडर कैसिंल करने की बात की तो डिलीवरी वाले ने इंकार कर दिया। वह भड़क गया और उसने हितेषा से मारपीट की। जिससे हितेषा की नाक में फ्रैक्चर हो गया। जबकि आरोपी पिज्जा डिलीवरी ब्वाॅय कामराज का कहना है‍ कि ऑडर कैंसिल करने से इंकार पर हितेषा ने उसे अपशब्द कहे। इससे भड़के कामराज ने कहा कि मैं आपका गुलाम नहीं हूं। इसके बाद धक्का-मुक्की हुई, जिसमे हितेषा को चोट आई।
यहां दो बाते हैं।

पहला तो हितेषा का व्यवहार और दूसरा है डिलीवरी ब्वाॅय की प्रतिक्रिया। धंधा चाहे कोई भी हो, ग्राहक सेवा और ग्राहक से सौजन्यपूर्ण व्यवहार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। ग्राहक द्वारा दिए गए ऑडर की डिलीवरी में देरी अस्वाभाविक नहीं है ( फाइव स्टार होटलों में यह आम बात है)। इसके कई कारण हो सकते हैं। यहां तक कि घरों में भी खाना बनने, परोसने और उसे खाने में समय लगता है, लेकिन केवल इस कारण से कोई अन्न को ठुकरा नहीं देता। इसकी वजह यह है कि हम अन्न को ब्रह्म मानकर ग्रहण करते हैं न कि ऑडर पर डिलीवर की गई पेट भरने वाली एक बेजान वस्तु के रूप में।

दरअसल ऑन लाइन फूड डिलीवरी सिस्टम ने खाद्य वस्तुओं से जुड़ी मानवीय सवेदनाओं को मार डाला है। यानी आपने ऑडर क्या दिया, चाही गई वस्तु तुरंत जिन्न की तरह हाजिर हो जानी चाहिए। इसलिए क्योंकि कि आपने फूड डिलीवरी कंपनी के मत्थे पैसे फेंके हैं। हितेषा ने यह स्पष्ट नहीं किया कि डिलीवरी में आखिर कितनी देरी हुई ? क्या इतनी देरी हुई कि ऑडर कैंसिल करना जरूरी हो गया? अगर कंपनी ने ऑडर कैंसिल नहीं किया तो यह उसकी गलती है, लेकिन डिलीवरी ब्वाॅय आधे रास्ते तक पहुंच गया हो तो क्या किया जाए? हो सकता है कि डिलीवरी ब्वाॅय का व्यवहार रूखा हो, लेकिन उसे अपशब्द कहने का अधिकार तो किसी कस्टमर को नहीं मिल जाता।

केवल ऑडर कैंसिल करने की बात भर से डिलीवरी ब्वाॅय इतना भड़क गया हो कि नाक तोड़ने की नौबत आ जाए, इस पर भरोसा करना कठिन है। इसके पीछे ग्राहक की मगरूरी भी कारण हो सकता है। इतना तय है कि अन्न को कृतज्ञ भाव से ग्रहण करने का जमाना अब गया। हमारी युवा पीढ़ी जो कुल आबादी का करीब 65 फीसदी है, अब उन खाद्य पदार्थों की गुलाम है, जो आयातित हैं, जो मूलत: चीनी हैं, इटालियन हैं ( इटली के नाम से चिढ़ने वाले भी पिज्जा शौक से खाते हैं !), अमेरिकी हैं, स्पेनिश हैं। वैश्वीकरण के हामियों का तर्क है कि जब दूसरे देश हमारे खाद्य पदार्थों को स्वीकार रहे हैं तो हमे उनके व्यंजनों से परहेज क्यों होना चाहिए? सही है, लेकिन बात केवल विदेशी व्यंजनों को स्वाद की खातिर स्वीकारने तक सीमित नहीं है।

हम उस संस्कृ‍ति के भी दास होते जा रहे हैं, जो हमारी खाद्य और आतिथ्य सत्कार संस्कृ‍ति से मेल नहीं खाती। भारतीय खानो में विदेशी पिज्जा को शामिल हुए ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, लेकिन आलम यह है कि देश में पिज्जा मार्केट सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। तकरीबन देश के सभी शहरों और कस्बों में पिज्जा, नूडल्स और मंचूरियन के ठेलो की तादाद दिन दूनी बढ़ रही है। जानकारों का अनुमान है कि अगले साल तक भारत में पिज्जा मार्केट का आकार 8 अरब डाॅलर ( करीब 560 अरब रू.) का हो जाएगा।

अपने देश में ऑन लाइन फूड डिलीवरी सिस्टम जोमातो ने 2008 में शुरू किया। जोमातो की स्थापना पंकज चड्ढा और दीपेंदर गोयल ने की है। कंपनी का कारोबार 24 देशों में फैला है। शुरू में घाटे में चलने वाली जोमातो ने 2020 में दुनिया भर में 2486 करोड़ रू. का कारोबार किया। वह कई दूसरी कंपनियों का अधिग्रहण कर चुकी है। जोमातो के 8 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं। जोमातो के अलावा स्विगी, अमेजाॅन जैसी और कंपनियां भी इस क्षेत्र में हैं, जो अपने एप के जरिए फूड का ऑन लाइन ऑडर लेकर रेस्टाॅरेंट से माल लेकर सप्लाई करती हैं।

अभी भी हमारे देश में ऑन लाइन फूड डिलीवरी कल्चर मुख्य रूप से समाज के उस वर्ग में लोकप्रिय है, जिनके पास खाना बनाना तो दूर, ठीक से खाने का वक्त भी मुश्किल से है। जिनके पास भरपूर पैसा है, लेकिन खुद बनाकर ताजा खाना खाने का झमेला पालने की गुंजाइश नहीं है। यानी पेट भरने के लिए तुरंत कुछ खा लेना ज्यादा अहम है। स्वाद लेकर आत्मा तृप्त होने तक खाने का युग समाप्ति की ओर है। इसके अलावा रोटी की जगह पिज्जा खाना अब आधुनिकता का प्रतीक है। यह किसी हद उस वैश्विक कल्चर से भी जोड़ता है, जिसका अपना कोई चेहरा नहीं है। यह कल्चर हमारी खाद्य संस्कृति की सुपाच्यता और पौष्टिकता के आग्रह को भी खारिज करता है।

जहां तक ऑन लाइन फूड डिलीवरी की बात है तो उसकी एक अलग दुनिया है। यूं अपने देश में सवा सौ साल पहले दफ्तशरों या घरों तक गर्मागर्म खाना पहुंचाने की नींव मुंबई में डब्बेवालों ने रखी थी। यह सिलसिला अब दूर तलक जा चुका है। कंपनियां डिलीवरी ब्वाॅय भी अलग-अलग श्रेणियों और शर्तों पर रखती हैं। इसी में एक है ऑन लाइन आर्डर की संख्या के हिसाब से डिलीवरी ब्वाॅय ( उन्हें डिलीवरी पार्टनर या डिलीवरी एक्जीक्युटिव भी कहा जाता है) को भुगतान करना। यानी ऑडर कैंसिल तो डिलीवरी ब्वाॅय की कमाई पर भी लात पड़नी है।

बेंगलुरू की घटना के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है। बताया जाता है कि हाल में जोमातो और स्विगी ने डिलीवरी ब्वाॅय को वेतन देने की शर्तों में कुछ बदलाव किया है। ध्यान रहे कि डिलीवरी ब्वाॅय अमूमन वो युवा होते हैं, जो आमदनी के लिए यह काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। वरना ऑन लाइन डिलीवरी कोई दुल्हन के घर से आया नेग तो नहीं ही है। ग्राहक की कुछ खाने की इच्छा हुई, उसने ऑडर दिया और कुछ ही पलों में उसकी डिलीवरी की चाहत ने खाने को बटन दबाते ही सेनिटाइजर टपकने की हैिसयत में ला दिया है। ऑडर देने वाला यह आसानी से भूल जाता है कि ऑडर देने और उसके डिलीवर होने के बीच कितने लोगों की चेन है, जो अपना पेट भरने के लिए ऑडर पर आपका पेट भरते हैं। क्या नहीं ?

वरिष्ठ संपादक

अजय बोकिल

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