वसुंधरा राजे के पुत्र की कंपनी में जिस तरह से ललित मोदी ने पैसा लगाया, वह कहीं पर भी नैतिक नहीं लगता और सुषमा स्वराज की पुत्री को फीस के नाम पर जो रकम काले या सफेद में दी गई, वह रकम भी संदेह पैदा करती है. सवाल स़िर्फ इतना है कि क़ानून को जानने वाले लोग ही जब क़ानून का मखौल उड़ाएं, तब उनके साथ कोई क्या करे.
श्रीमती सुषमा स्वराज देश की विदेश मंत्री हैं और वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं. इन दोनों को लेकर देश में सवाल पर सवाल उठ रहे हैं. सवाल ललित मोदी को लेकर उठ रहे हैं. दोनों अपने-अपने ढंग से उन सवालों के जवाब दे रही हैं. लेकिन ऐसा लग रहा है कि देश उन जवाबों से सच्चाई को समझ नहीं रहा है.
एक सबसे बड़ा सवाल यह है कि सुषमा स्वराज पहले भी केंद्र में मंत्री रही हैं और वसुंधरा राजे राज्य में कई बार मुख्यमंत्री रही हैं. इसलिए यह तो नहीं माना जा सकता कि उन्हें क़ानून नहीं पता है. इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि उन्हें किसी सच्चाई नहीं पता है. इसलिए जब उन्होंने ललित मोदी की मदद करने का फैसला किया, तो उन्हें अच्छी तरह पता था कि वे देश के क़ानून को तोड़ रही हैं. विषय को छिपाकर षड्यंत्रकारी अपराध कर रही हैं. अगर यह काम सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे खुलकर करतीं, तो यह माना जा सकता था कि वे अपने राजनीतिक मित्र या व्यापारिक मित्र की मदद कर रही हैं. पर उन्होंने इस सारी चीज को छिपाने का काम किया और इसे छिपाया भी. इसका मतलब यह कि उन्होंने जान-बूझकर देश के क़ानून के साथ खेल खेला. और, क़ानून और संविधान की शपथ लेकर सत्ता में जाने के बाद उस शपथ को तोड़ दिया. मैं मानता हूं कि इसमें कुछ नहीं होगा, क्योंकि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं अपने अध्यक्ष के साथ उन्हें बचाने में लगे हों, तो फिर किसी भी क़ीमत पर उनका कौन बाल बांका कर सकता है.
पर इससे भी बड़ा सवाल यह है कि आ़खिर वह कौन-सी डील थी, जिसने ललित मोदी को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह स्वयं यह खुलासा करें कि दोनों ने उनकी मदद करने का वादा किया था. अगर ललित मोदी स्वयं इस बात को न कहते, तो देश के सामने यह बात न आ पाती. एक परफेक्ट प्लान था ललित मोदी, सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे के बीच में, जो सामने ही नहीं आता, अगर ललित मोदी उसका खुलासा न करते. वे कौन-से वादे थे, जिन्हें श्रीमती सुषमा स्वराज और श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया ने तोड़ा. यह जानना ज़रूरी है और यह भी कोई और नहीं, ललित मोदी ही बताएंगे, क्योंकि ये दोनों महान नेत्रियां कुछ भी बताने से रहीं.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि सुषमा स्वराज पहले भी केंद्र में मंत्री रही हैं और वसुंधरा राजे राज्य में कई बार मुख्यमंत्री रही हैं. इसलिए यह तो नहीं माना जा सकता कि उन्हें क़ानून नहीं पता है. इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि उन्हें किसी सच्चाई नहीं पता है. इसलिए जब उन्होंने ललित मोदी की मदद करने का ़फैसला किया, तो उन्हें अच्छी तरह पता था कि वे देश के क़ानून को तोड़ रही हैं. विषय को छिपाकर षड्यंत्रकारी अपराध कर रही हैं. अगर यह काम सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे खुलकर करतीं, तो यह माना जा सकता था कि वे अपने राजनीतिक मित्र या व्यापारिक मित्र की मदद कर रही हैं.
इसका मतलब है कि कुछ तो ऐसा था, जो और ज़्यादा गंभीर था. वसुंधरा राजे के पुत्र की कंपनी में जिस तरह से ललित मोदी ने पैसा लगाया, वह कहीं पर भी नैतिक नहीं लगता और सुषमा स्वराज की पुत्री को फीस के नाम पर जो रकम काले या सफेद में दी गई, वह रकम भी संदेह पैदा करती है. सवाल स़िर्फ इतना है कि क़ानून को जानने वाले लोग ही जब क़ानून का मखौल उड़ाएं, तब उनके साथ कोई क्या करे.
यहीं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फिर बात करने की इच्छा होती है. अभी सरकार का एक साल पूरा हुआ था और आपने कहा था कि हमारी सरकार में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ. प्रधानमंत्री जी, क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? प्रधानमंत्री जी, क्या यह क़ानून के साथ छल नहीं है? क्या यह संविधान द्वारा ली गई शपथ का उल्लंघन नहीं है? और इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री जी, अभी तो ये दो किस्से सामने आए हैं. जिस तरह आपसे पहले वाली सरकार में कुछ किस्से सामने आने के बाद किस्सों का सिलसिला शुरू हो गया था. हम आशा करते हैं कि वैसे सिलसिले अब शुरू नहीं होंगे. पर आप अगर इन दोनों के ऊपर कार्रवाई नहीं करेंगे, तो आप देश के प्रधानमंत्री नहीं, आप भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे. जैसे मनमोहन सिंह कांग्रेस के प्रधानमंत्री के नाते परिवर्तित हो गए थे. आपसे आशाएं हैं, आपसे कई नए कामों की अपेक्षा है, लेकिन आप विपक्षियों के उस आरोप की पुष्टि कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी समाधि में चले गए हैं. वह उन सवालों के ऊपर लंबी-लंबी बातें करते हैं, जिनका कोई मतलब नहीं और जिन सवालों के जवाब देने चाहिए, उन पर खामोश रह जाते हैं. पर यह तो ़फैसला आपको करना है प्रधानमंत्री जी.
मैं इस संपादकीय को यहीं समाप्त कर रहा हूं, इस सवाल के साथ कि अगर कोई अनजान आदमी, साधारण आदमी क़ानून तोड़े और अनजाने में क़ानून तोड़े, तो उसे कानून तोड़ने की सजा के बतौर जेल मिलती है. वह कितनी भी मा़फी मांगे, उसे मा़फ नहीं किया जाता, लेेकिन सत्ता के शिखर पर बैठे लोग जब जान-बूझकर क़ानून तोड़ते हैं, तो उसे उनकी मासूमियत मान लिया जाता है. फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तो ऐसा ही किया है. उन्होंने अपनी दो मासूम महिला नेताओं को बरी कर दिया है और किसी भी तरह की कार्रवाई करने से परहेज कर लिया है. तो ठीक है, भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी कांग्रेस की सरकार से बहुत अलग नहीं है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बहुत अलग नहीं हैं. हमें यह मान लेना चाहिए.