एक व्यंग्यकार ने व्यवस्था पर तंज कसते हुए कहा था कि हमारी सरकार व्यवस्था ठीक करने के लिए हमेशा कड़े कदम उठाती है, लेकिन वे कदम इतने कड़े होते हैं कि उठ ही नहीं पाते. ये बात आज भारतीय रेल व्यवस्था की दशा-दिशा पर सटीक बैठती है. देरी से चलने की तमाम सिमाएं तोड़ती जा रही ट्रेनों की स्थिति सुधारने के लिए जब रेल मंत्री ने अफसरों को फटकार लगाई, तो एक उम्मीद जगी कि अब ट्रेनें सही समय पर लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाएंगी. लेकिन लगभग एक महीने बीत जाने के बाद भी कोई सुधार होता दिख नहीं रहा है. ट्रेनों की लेटलतीफी का आलम ये है कि कई ट्रेनें अब भी 12-12 घंटे की देरी से चल रही हैं. जबकि अभी ना तो धुंध का कहर है और ना ही बरसात बाधा बन रही है, लेकिन फिर भी ट्रेनें लेट होने के सारे रिकॉर्ड तोड़ती जा रही हैं.
गौरतलब है कि बीते 18 अप्रैल को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने लेट हो रही ट्रेनों को लेकर अपने अधिकारियों को फटकार लगाई थी और जल्द से जल्द ट्रेनों को लेटलतीफी से निजात दिलाने के निर्देश दिए थे. उन्होंने कहा था कि अधिकारी समय की पाबंदी में सुधार लाएं या कार्रवाई का सामना करने को तैयार रहें. रेल मंत्री ने जोनल प्रमुखों को ये भी निर्देश दिया था कि रात में 10 बजे से सुबह सात बजे के बीच ट्रेनों के आवागमन की निगरानी के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी की तत्काल तैनाती की जाए. रेलमंत्री के इस निर्देश को लगभग एक महीने बीत गए, लेकिन रेल अधिकारियों की मानें तो अब तक ऐसी कोई तैनाती हुई ही नहीं है.
चौथी दुनिया से बातचीत में समस्तीपुर रेलमंडल के एक अधिकारी ने कहा कि ‘आदेश पर तभी अमल होता है, जब उसके लिए उपयुक्त संसाधन हों. अधिकारियों की संख्या तो उतनी ही है, जितनी पहले थी. इन आदेशों पर अमल के लिए नए अधिकारी तो पैदा नहीं किए जा सकते न. वैसे मंत्री जी के ओदश को अभी एक महीने भी नहीं हुए, रेलवे में आदेश पर अमल की रफ्तार भी वहीं है, जोे रेलवे की रफ्तार है.’ इस रेल अधिकारी की बातों से सहज ही समझा जा सकता है कि वर्तमान में रेलवे की दशा-दिशा क्या है.
ट्रेन सुविधा डॉट कॉम की जिस रिपोर्ट के बाद रेल मंत्री एक्शन में दिखे थे, वो रिपोर्ट सचमुच रेलवे के लिए शर्मिंदगी की बात है. इसके अनुसार 2017 में 15 घंटे से ज्यादा लेट होने वाली ट्रेनों की संख्या 2015 के मुकाबले तीन गुना बढ़ गई है. 2015 में 15 घंटे से ज्यादा लेट होने वाली ट्रेनों की संख्या 479 थी जो 2017 में बढ़कर 1337 हो गई. एक जनवरी से लेकर 15 अप्रैल के बीच के समय में ट्रेनों के समय से चलने की दर घटकर 79 प्रतिशत रह गई है, जो पिछले साल इसी अवधि में 84 प्रतिशत थी. उस रिपोर्ट में जिन ट्रेनों को सबसे ज्यादा लेट बताया गया था वे सभी अब भी लेट चल रही हैं.
जब ये रिपोर्ट लिखी जा रही है तब भी अजमेर-सियालदाह अप एक्सप्रेस सवा 5 घंटे, हावड़ा-आनंद विहार अप एक्सप्रेस 5 घंटे, संपुर्ण क्रांति अप एक्सप्रेस पांच घंटे, कालका एक्सप्रेस साढ़े चार घंटे की देरी से चल रही हैं. 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद रेलवे में बड़े सुधार की बात कही गई थी. मोदी सरकार के पहले रेलमंत्री रहे सदानंद गौड़ा लगभग साढ़ चार महीने ही पद पर रह पाए. उनके बाद रेलमंत्री बनाए गए सुरेश प्रभु से रेलवे के कालाकल्प की उम्मीद थी. लेकिन नियमों में बदलाव और तत्काल टिकट पर सरचार्ज लगाकर यात्रियों पर महंगाई का बोझ लादने से आगे बात बढ़ी नहीं. ट्वीट के जरिए यात्रियों की समस्याएं सुनकर और उनके समाधान का प्रयास कर रेल मंत्री जी अपनी पीठ थपथपाते रहे, इधर ट्रेनें चलते-चलते रेंगने लगीं.
सस्पेंशन के ज़रिए सच्चाई छुपाने की कोशिश!
आरटीआई के जरिए हुए इस खुलासे ने रेलवे को कठघरे में खड़ा कर दिया था कि भारतीय रेल में खान-पान का इंतजाम देखने वाली आईआरसीटीसी 9,270 रुपए प्रति किलोग्राम दही, 1241 रुपए प्रति लीटर रिफाइंड तेल और 49 रुपए प्रति किलोग्राम टाटा का नमक खरीद रही है. आरटीआई में मिले जवाब के आधार पर दावा किया गया था कि आटा 250 रुपए प्रति किलो खरीद कर 450 रुपए प्रति किलो, मैदा 20 रुपए प्रति किलो खरीद कर 35 रुपए प्रति किलो, बासमती चावल 255 रुपए प्रति किलो खरीद कर 745 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बांटा गया. इस खुलासे के बाद चौतरफा घिरे रेलवे ने इसे टाइपिंग मिस्टेक करार दिया और आनन फानन में उन तीन अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया, जिन्होंने उस आरटीआई का जवाब दिया था. रेलवे के पीआरओ अनिल सक्सेना का कहना है कि ये कोई घोटाला नहीं है, जवाब देने वालों ने गलत जवाब दिया है और उनके खिलाफ रेलवे ने एक्शन भी लिया गया है. वहीं, आरटीआई के जरिए ये जवाब हासिल करने वाले अजय बोस का कहना है कि इसमें भयंकर घपला है और रेलवे इस सच्चाई को छुपाना चाहती है. रेलवे ने तो ऐसे भी बहुत कोशिश की कि वे इस आरटीआई का जवाब न दें, क्योंकि मुझे तीसरी बार में ये जवाब दिया गया.
लेट ट्रेन से आजीज़ एक युवक ने खोल दी रेलवे की कलई
उत्तर प्रदेश के बलिया के रहने वाले अजयेन्द्र त्रिपाठी होली में जिस लिच्छवी एक्सप्रेस से घर जा रहे थे, वो 13 घंटे लेट थी. लौटते समय वही ट्रेन 14 घंटे की देरी से दिल्ली पहुंची. इससे पहले भी अजयेन्द्र का सामना कई बार टे्रनों की लेटलतीफी से हुआ था. वेब प्रोग्रामर इस युवक के मन में ख्याल आया कि क्यों न कुछ ऐसा बनाया जाय जिससे रेलवे की लेटलतीफी का पूरा कच्चा चिट्ठा खुलकर लोगों के सामने आ जाय. इसी कोशिश में अजयेन्द्र ने एक वेबसाइट बनाया.
www.trainsuvidha.com नाम की इस वेबसाइट में कुल 2,952 ट्रेनों की पिछले चार साल में जनवरी से अप्रैल के बीच की लेटलतीफी के आंक़डे को दर्शाया गया है. इसमें 400 किमी से ज्यादा की दूरी तय करने वाली एक्सप्रेस, सुपर फास्ट, शताब्दी और राजधानी ट्रेनों को ही शामिल किया गया है. इसमें पैसेंजर ट्रेनें शामिल नहीं हैं. चौथी दुनिया से बातचीत में अजयेन्द्र ने कहा कि मैंने ट्रेनों के परिचालन और समयावधि की जानकारी देने वाली कई वेबसाइट्स से ये डाटा लेकर एक जगह इसे
तुलनात्मक रूप में पेश किया है. जिन ट्रेनों को मैंने इसमें शामिल किया है, उनमें से किसी भी ट्रेन के बारे में आसानी से ये जाना जा सकता है कि वो ट्रेन 2014 से 2017 तक जनवरी से अप्रैल महीने के बीच किस दिन कितने घंटे लेट थी. अजयेन्द्र कहते हैं कि ये वेबसाइट बनाने से पहले मैंने रेलवे के पीआरओ अनिल सक्सेना का बयान सुना था कि लगातार लेट हो रही कई ट्रेनों के तुलनात्कम अध्ययन के लिए रेलवे के पास कोई सेंट्रलाइज्ड डाटा नहीं है. जबकि मैंने कई वेबसाइट्स की मदद से यही डेटा हासिल कर लिया. लेट हो रही ट्रेनों के पीछे के कारणों और इसके समाधान के बारे में जानने के लिए अजयेन्द्र ने एक आरटीआई भी दाखिल किया है, जिसका जवाब रेलवे की तरफ से अब तक नहीं दिया गया है.