सुजाता बजाज का नाम कला जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है. उन्होंने रंगों और लकीरों के सहारे एक ऐसी दुनिया का सृजन किया है, जिसमें सादगी भी है, रंगीनी भी, जो आसान भी है और तहदार भी, जिसमें खुशी भी है और गम भी, जिसमें खोने का एहसास भी है और खुद को पा लेने का बोध भी. हालांकि उन्होंने अपनी चित्रकला और मूर्तिकला में अमूर्त कला (एब्सट्रैक्ट आर्ट) का इस्तेमाल किया है, लेकिन उनकी कला पूरी तरह से भारतीय रंग में डूबी हुई है. अपनी तस्वीरों में उन्होंने शोख रंगों का बेखौफ इस्तेमाल किया है. वह खुद को रंगकार (कलरिस्ट) कहती हैं. वह कहती हैं कि रंगों में
अलग-अलग जज्बातों के चित्रण की ज़बरदस्त शक्ति होती है. इसमें कोई शक नहीं कि तस्वीरों में रंगों का बहुत महत्व होता है और हर रंग के मायने भी अलग-अलग होते हैं. उनमें गुस्सा भी होता है, प्यार भी होता है, अध्यात्म भी होता है और ज़मीन की खुशबू भी. दरअसल, एक ही रंग अलग-अलग पृष्ठभूमि में
अलग-अलग भावनाओं का चित्रण करता है. रंगों से अपने लगाव को ज़ाहिर करते हुए वह कहतीं हैं कि मैं राजस्थान में जन्मी हूं, शेखावाटी की हूं, जयपुर में पढ़ी हूं. रंग तो मेरे खून में है.
सुजाता नेे प्रयोग से भी परहेज़ नहीं किया है. इसलिए उनके चित्रों और मूर्तियों में संस्कृत के श्लोकों के इस्तेमाल के साथ-साथ अंक और संगीत के चिन्ह भी अक्सर देखने को मिल जाते हैं. खास बात यह है कि उनकी तस्वीरों और मूर्तियों को देखने वाले पहली नज़र में ही इन बातों को महसूस कर लेते हैं. इसके बारे में सुजाता का कहना है कि ये सब मेरी ज़िन्दगी की तरह हैं. जैसे मेरे पति नॉर्वे के रहने वाले हैं, मैं पेरिस में रहती हूं, दुबई में रहती हूं, भारत भी आती रहती हूं, तो मेरी ज़िन्दगी चारों तर्रें है. इसलिए मेरे काम में कहीं भुजपत्र दिखाई देता है, कहीं न्यूज़पेपर है तो कहीं वॉलपेपर. इस तरह मेरी ज़िन्दगी के अलग-अलग अनुभवों को मिला कर ये काम बने हैं.
गणपति से सुजाता को खास लगाव है. इस थीम पर वह पिछले 30 वर्षों से काम कर रही हैं. पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सेंटर के विजुअल आर्ट गैलरी में इसी थीम पर सुजाता द्वारा बनाई गई चित्रकृतियों और मूर्तियों की प्रदर्शनी लगाई गई थी. इस प्रदर्शनी में फ्रांस के मशहूर फिल्मकार और ऑस्कर पुरस्कार विजेता
जां-कलौदिया कारिएख द्वारा रचित किताब सुजाता बजाज: गणपति का विमोचन भी हुआ. इंडिया हैबिटैट सेंटर की आर्ट गैलरी कलाप्रेमियों से खचाखच भरी हुई थी. आर्ट गैलरी में इस किताब का विमोचन फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी, गीतकार और शायर जावेद अख्तर और भारत में फ्रांस के राजदूत फ्रांस्वा रिचियर के हाथों हुआ.
कहते हैं कि आर्ट से उसके आर्टिस्ट को अलग नहीं किया जा सकता है. आर्टिस्ट के व्यक्तित्व की झलक उसकी कृति में नज़र आ ही जाती है. सुजाता को बचपन से ही गणपति के आकार ने प्रभावित किया है. वह गणपति को अपना दोस्त मानती हैं. सुजाता कहतीं हैं कि वह हमेशा उनके साथ हैं और इसलिए वह अलग-अलग तरीके से सुजाता की ज़िन्दगी में शामिल हुए. यह बात गणपति पर बनाई गई उनकी कलाकृतियों से भी ज़ाहिर होती है, क्योंकि ललितकला की मामूली समझ रखने वाले व्यक्ति को भी इस प्रदर्शनी को देखने के बाद यह अंदाज़ा हो जाएगा कि गणपति की इतनी सारी तस्वीरों में भी कोई दो तस्वीरें एक जैसी नहीं थीं.
सुजाता ने गणपति को अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम क्यों बनाया? इसके पीछे भी एक व्यक्तिगत कारण है. वह कहतीं हैं कि एक बार वह अपने पिताजी को गोपुरी से पौनार आश्रम ले जा रही थीं, रास्ते में ही उनका एक्सीडेंट हो गया, जिसके कारण डॉक्टरों ने उन्हें पांच-छह हफ्ते आराम करने की सलाह दी. उस समय वह एक छात्रा थीं. उन्होंने समय गुजारने के लिए ड्रॉइंग बनाना शुरू किया. इस दौरान उनकी पहली और आखिरी ड्रॉइंग गणेशजी की ही थी. यहां से गणपति के साथ उनका जो सफ़र शुरू हुआ, वह आज तक जारी है. गणपति को वह अनंत मानती हैं. उनका कहना है कि वह गणपति के साथ खुद को बहुत स्वतंत्र और आज़ाद महसूस करती हैं और जिस आज़ादी के साथ वह गणपति की आकृति को एब्सट्रैक्ट कर लेती हैं, वह आज़ादी किसी दूसरी विधा में नहीं मिलती. गणपति की तस्वीरों में बने चक्र और एक गणपति में दूसरे गणपति की आकृतियां अनंत की ओर ही इशारा करती हैं.
सुजाता बजाज का जन्म 1958 में जयपुर (राजस्थान) में एक ऐसे माता-पिता के घर हुआ था, जिनकी जोड़ी महात्मा गांधी ने मिलाई थी. जिनके बारे में शबाना आज़मी ने कहा कि वे भारत के आखिरी गांधीवादी थे. सुजाता को आचार्य विनोवा भावे प्यार से चित्रकारनी कहा करते थे. उन्हें बचपन से ही चित्रकारी का शौक़ था. उन्होंने शुरुआती शिक्षा जयपुर में हासिल की. उसके बाद वह पूणे चली गईर्ं, जहां से ललितकला में उन्होंने एमए किया और आदिवासी कला पर पीएचडी की. फिर मशहूर पेंटर एसएच रजा के कहने पर और फ्रांसीसी सरकार के स्कॉलरशिप पर पेरिस गईं, जहां उन्होंने अपनी कला और अनोखी पहचान को निखारा. देश और विदेश में उनकी कई प्रदर्शनियां लग चुकी हैं. कला क्षेत्र में उनकी सेवा के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसमें कोई शक नहीं कि वह रंगों की जादूगर हैं.
आम तौर पर जो आर्टिस्ट यूरोप या अमेरिका जाते हैं तो उन्हें अपनी आवाज़ ढूंढने में वक्त लगता है, लेकिन सुजाता को इसमें बहुत र्सेंलता प्राप्त हुई. वह इसलिए प्राप्त हुई कि उनके जो मां-बाप थे, वे वर्धा में रहते थे, वे गांधीवादी थे, जिनकी वजह से उनकी भारतीयता की जड़ें मज़बूत हैं.
-शबाना आज़मी ( फिल्म अभिनेत्री)
सुजाता की पेंटिंग्स में आधुनिकतावाद और परम्परावाद का अनोखा मिश्रण है, जो बहुत ही खूबसूरत है .
-जावेद अख्तर (शायर और गीतकार)
यह बहुत ही दिलचस्प बात है कि सुजाता पेरिस में रहते हुए पिछले 30 वर्षों से इन पेंटिंग्स पर बड़ी ख़ामोशी से काम कर रही थीं, लेकिन उनकी प्रेरणा भारतीय रही है. गणपति के विषय को उन्होंने अपने खास अंदाज़ में अपनाया है.
फ्रांस्वा रिचियर (भारत में फ्रांस के राजदूत)