भारत में हर जगह किसी न किसी तरह के मेले का आयोजन होता है. उस मेले का केंद्र कोई वस्तु या व्यक्ति होता है. लेकिन इन सबसे अलग राजस्थान के नवलगढ़ में आयोजित होने वाले शेखावाटी उत्सव का केंद्र गांव और किसान हैं. खासकर जैविक खेती करने वाले किसान. इस वर्ष भी 4 से 7 फरवरी के बीच शेखावाटी उत्सव का आयोजन नवलगढ़ के सूर्यमंडल मैदान पर किया गया. शेखावाटी उत्सव ऐसे किसानों की सफलता का उत्सव है जिन्होंने जैविक खेती का रास्ता अपनाया और आज वे खुशहाल जीवन जी रहे हैं. इस उत्सव में भी राजस्थान की परंपरा और संस्कृति की झलक दिखाई देती है, लेकिन इसके केंद्र में सिर्फ और सिर्फ किसान हैं.
इस वर्ष मुख्य अतिथि के रूप में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने शेखावाटी उत्सव में पहुंचकर मेले में चार चांद लगा दिए. कल्याण सिंह ने उद्घाटन समारोह में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं एक किसान हूं और मैं किसान की पीड़ा को समझता हूं. उन्होंने शेखावाटी के किसानों की जैविक खेती के क्षेत्र में मिली सफलता की तारीफ की और कहा कि देश के किसानों को जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए. विभिन्न तरह की रासायनिक खाद भूमि को शराब जैसी ताकत देती है जबकि जैविक खाद दूध-दही व घी जैसी ताकत देता है.
जहां चाह है वहां राह है, यह बात शेखावाटी के किसानों के ऊपर एकदम सटीक बैठती है. शेखावाटी क्षेत्र में मोरारका फाउंडेशन ने जैविक खेती के रूप में किसानों को नई दिशा देने का काम किया है. जैविक खेती के कारण यहां के किसानों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है.
आज शेखावाटी के किसानों के नक्शेकदम पर चलते हुए अब देश के दूसरे क्षेत्रों के किसान भी मोरारका फाउंडेशन के संपर्क में आकर अपने यहां जैविक खेती की शुरुआत कर रहे हैं या कर चुके हैं. जम्मू-कश्मीर से लेकर अंडमान-निकोबार तक और जैसलमेर से लेकर मेघालय नागालैंड तक मोरारका फाउंडेशन 22 राज्यों में काम कर रहा है. शेखावटी का किसान जैविक खेती करने के बाद यदि अपनी उपज को बाजार में नहीं बेच पाता है, तो मोरारका फाउंडेशन उसे बाजार से दस प्रतिशत अधिक दाम में खरीद लेता है. यह मोरारका फाउंडेशन का जैविक खेती के लिए समर्पण है.
शेखावाटी उत्सव सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने का अनूठा प्रयास है. पिछले 20 सालों में शेखावाटी के किसानों की जीवन शैली में बहुत बदलाव आया है. जैविक खेती का आंदोलन एक सामाजिक और क्रांतिकारी आंदोलन है. दुनिया में जर्मनी के बाद एशिया में जैविक खेती की शुरूआत यदि कहीं हुई है, तो वह शेखावाटी में हुई है. आज शेखावटी के 50 हजार किसान जैविक खेती कर रहे हैं.
यहां के किसानों ने गेंहूं, जौ, चना और मसालों की खेती करने के साथ-साथ केसर की खेती राजस्थान में करने का अद्भुत कारनामा भी कर दिखाया है. इसके बाद इन्हीं किसानों ने कश्मीर में केसर की खेती करने वाले किसानों को केसर की खेती का प्रशिक्षण दिया. परिणामस्वरूप भारतीय केसर की गुणवत्ता स्पेन और ईरान की केसर से भी बेहतर हो गई है. साथ ही इसकी कीमत 30 से 50 हजार रुपये प्रति किलो से बढ़कर तीन लाख रुपये प्रति किलो हो गई. ये उपलब्धियां छोटे पैमाने से शुरू हुई एक पहल का नतीजा है.
आज मोरारका फाउंडेशन पूरे देश में लगभग 2 से 2.5 लाख किसानों को जैविक खेती के बारे में जानकारियां दे रहा है. वह किसानों के उत्पाद की मार्केटिंग करता है और किसानों का खरीददारों से समझौता करवाता है. उसकी ब्रैंडिंग करता है और उसे उपभोक्ता तक पहुंचाता है. शेखावाटी की उपज की पूरे विश्व में मांग है और सम्मान है. शेखावाटी के किसानों की गिनती आज देश के सबसे जागरूक किसानों में होती है. यहां के किसानों ने मोरारका फाउंडेशन के सहयोग और अपनी मेहनत से जो मुकाम हासिल किया है. वह काबिले तारीफ है.
आज देश के अधिकांश किसान रासायनिक खाद, कीटनाशकों और हाईब्रिड बीजों का उपयोग करके खेती करते हैं, जो कि अक्सर घाटे का सौदा साबित होती है. इसी वजह से देश भर में किसानों की आत्महत्या की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. भारत में साठ के दशक में अधिक खाद्यान्न उत्पादन के लिए हरित-क्रांति की शुरुआत हुई थी.
हरित क्रांति का प्राथमिक उद्देश्य कम से कम क्षेत्रफल में अधिक से अधिक उत्पादन करना. इसके लिए सरकार ने अंधाधुंध रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के इस्तेमाल के लिए किसानों को प्रेरित किया. नतीजतन, शुरुआती दौर में पैदावार तो बढ़ी, लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे खेतों की उर्वरा शक्ति में भी कमी होती गई. आज हालत यह है कि किसान कर्ज लेकर अपने खेतों में खाद और रासायनिक कीटनाशक डालते हैं, लेकिन उनके खेत में जिससे साल भर खाने के लिए अनाज भी पैदा नहीं हो पाता है.
पिछले 20 सालों से शेखावटी उत्सव का आयोजन हो रहा है. इस आयोजन की परिकल्पना मोरारका फाउंडेशन ने की और वर्ष 1996 में सीकर में इसकी शुरूआत हुई. इसके बाद से इसका आयोजन झुन्झुनू जिला प्रशासन के सहयोग से नवलगढ़ में हो रहा है. इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य शेखावाटी क्षेत्र की संस्कृति, परंपरा, नृत्य, गायन और खेलों के उस पहचान को सहेजना और पुनर्स्थापित करना था जो वक्त के साथ धूमिल हो रहीं थीं. आज दो दशक बाद फाउंडेशन यहां के किसानों को सशक्त बनाने के साथ-साथ शेखावटी की सांस्कृतिक रंगों को सहेजने में सफल रहा है. भारत विविध लोक संस्कृतियों का देश है.
कला संस्कृति के साथ-साथ यहां पारंपरिक खेलों के भी विविध रूप हैं. लेकिन इन खेलों के सामने अपने अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती आ खड़ी हुई है. विलुप्त होते इन खेलों को बचाने के उद्देश्य से मोरारका फाउंडेशन ने वर्ष 1996 में शेखावटी उत्सव की शुरूआत की और राउंडर बल्ला, हरदड़, लूणक्यार, सतौलिया, मटकी दौड़, रस्साकशी जैसे शेखावाटी के पारंपरिक खेलों को इसका हिस्सा बनाया. आज 20 साल बाद क्षेत्र के तकरीबन 1000 स्कूलों में खेल के स्पोट्र्स एक्टीविटी कैलेंडर में ये खेल शामिल हैं.
इन खेलों ने एक बार फिर अपनी जड़ें जमा ली हैं. मोरारका फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक मुकेश गुप्ता कहते हैं कि यदि लोगों से मिलने वाली प्रतिक्रिया को पैमाना माना जाए, तो शेखावाटी उत्सव के पारंपरिक खेलों के संरक्षण के लिए उठाया गया कदम बहुत हद तक सफल रहा है. मोरारका फाउंडेशन के चेयरमैन और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल मोरारका ग्रामीण-पारंपरिक खेलों के सरंक्षण पर खुशी जताते हुए कहते हैं कि ये खेल हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं. हम चाहते थे कि हमारे शेखावाटी की पहचान जीवित रहे और हम इस प्रयास में सफल हुए हैं.
पूरे विश्व में हवेलियों के शहर के रूप में विख्यात राजस्थान के नवलगढ़ की पहचान पिछले कुछ सालों में पूरी तरह बदल गई है. दो दशक पहले सूखे की मार झेलने वाला नवलगढ़ आज पूरे देश में जैविक खेती के अग्रणी केंद्र के रूप में उभरकर सामने आया है. इसका श्रेय जाता है मोरारका फाउंडेशन को. जिसने पिछले दो दशक में शेखावाटी के किसानों को स्वावलंबी, सशक्त और समृद्ध बनाने में मदद की. एक तरफ जहां पूरे देश में लोगों का खेती-किसानी से मोहभंग हो रहा है, उसके इतर शेखावाटी में पढ़े-लिखे युवा जैविक खेती की ओर रुख कर रहे हैं. यह देश में कृषि के नए युग का आगाज़ है.