लगातार अनसुनी रही आवाज़ के आंदोलन में बदलने के बाद सरकार ने एक परीक्षा में हुई अनियमितता की जांच तो सीबीआई को सौंप दी, लेकिन सैकड़ों परीक्षाओं में हुई धांधली के कारण दोराहे पर खड़े छात्र अब भी न्याय के इन्तजार में हैं. यह रिपोर्ट भ्रष्टाचार मुक्त परीक्षा के लिए आंदोलन करने को मजबूर उस देश के छात्रों की व्यथा कथा है, जहां के प्रधानमंत्री बच्चों को परीक्षा के टिप्स देने के लिए एक मुकम्मल किताब लिख देते हैं…
कर्मचारी चयन आयोग की वेबसाइट खोलते ही सामने गांधी जी की तस्वीर के साथ अंग्रेजी में लिखा उनका एक संदेश दिखता है, जिसका मतलब हुआ- ‘यदि मुझे विश्वास हो कि मैं यह कर सकता हूं, तो मैं इसे करने के लिए वो पूरी क्षमता जुटाऊंगा, जो मरे पास पहले नहीं थी.’ लेकिन शायद गांधी जी की इस सुक्ति को एसएससी ने आत्मसात करना जरूरी नहीं समझा और न ही देश की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठे हमारे उस प्रधानमंत्री ने यह जरूरी समझा कि वे हजारों छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाली संस्था से जवाब तलब करें. जी, हम उसी नरेंद्र मोदी की बात कर रहे हैं, जो बच्चों को परीक्षा के ‘टिप्स’ देने के लिए एक पूरी किताब लिख देते हैं, लेकिन उन परीक्षाओं की अनियमितता और धांधली पर चुप्पी साध जाते हैं, जिनसे छात्रों के भविष्य का बेड़ा गर्क हो रहा है. एसएससी की परीक्षाओं में लगातार हो रही धांधली से आजिज आकर देशभर के छात्रों ने जब पिछले महीने दिल्ली में हल्ला बोला, तो सरकार की तंद्रा भंग हुई और एक परीक्षा में हुई अनियमितता की जांच सीबीआई से कराने की बात कही गई.
लेकिन उन तमाम परीक्षाओं का क्या, जिनमें हुई अनियमितता के बाद नियुक्तियां भी हो चुकी हैं, या जिनकी धांधली पर हो-हल्ला के बाद उनके मामले अदालतों में लंबित हैं. विभिन्न राज्यों के कर्मचारी चयन आयोगों की दशा तो और भी दयनीय है. इसे बिहार एसएससी की अकर्मण्यता के एक उदाहरण से समझा जा सकता है, जिसने 2014 में बारहवीं पास अभ्यर्थियों के लिए फॉर्म निकाला. सभी से 500-500 रुपए लिए गए. 2016 में परीक्षा हुई, लेकिन पेपर लीक के कारण परीक्षा रद्द हो गई और फिर आजतक नहीं हुई. यह भी एक बड़ी विडंबना है कि युवाओं को रोजगार देकर उन्हें देश की व्यवस्था का भाग बनाने वाली संस्था एसएससी पर ही परीक्षाओं में धांधली व अन्य मामलों को लेकर 2200 केस दर्ज हैं. यह उस देश के सबसे बड़े चयन आयोग की हकीकत है, जिसकी वर्तमान सत्ताधारी पार्टी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चार साल पहले सरकार में आई थी.
अनियमितता से आजिज़ छात्रों का आंदोलन
हजारों की संख्या में छात्र 27 फरवरी से दिल्ली के सीजीओ कॉम्पलेक्स के सामने धरना-प्रदर्शन पर बैठे. लेकिन ऐसा नहीं था कि केवल कम्बाइंड ग्रेजुएट लेवल की मुख्य परीक्षा में हुए प्रश्न लीक के कारण ही छात्रों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया. दरअसल, पिछले कई वर्षों से एसएससी के कारनामों की वजह से छात्रों में असंतोष का बारूद भरा पड़ा था, जो इसबार विस्फोट कर गया. सीजीएल 2017 की प्राथमिक परीक्षा की ही बात करें, तो उसमें भी कई अनियमितताएं सामने आई थीं. छात्रों का कहना है कि अगस्त 2017 में शुरुआती दिनों की प्राथमिक परीक्षा में जो सवाल पूछे गए वो उसके बाद की परीक्षाओं की तुलना में काफी कठिन थे.
दिल्ली के आंदोलन में शामिल रहे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले आशीष पांडेय ने ‘चौथी दुनिया’ से बातचीत में बताया कि यह किसी भी तरह से जायज नहीं है कि एक ही परीक्षा के लिए प्रश्नों का स्तर अलग-अलग हो. इससे छात्रों में नाराजगी बढ़ गई. जिन छात्रों की परीक्षा में कठिन प्रश्न मिले थे, वे कम कटऑफ की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन जब इसका ऐलान हुआ, तो पता चला कि सामान्य वर्ग का कटऑफ 131 तक पहुंच गया है. अंत में परीक्षा दिए छात्रों के लिए तो यह सुकून की खबर थी, लेकिन जिन छात्रों ने शुरू में परीक्षा दी थी, उन्हें पता था कि वे इस कटऑफ तक नहीं पहुंच पाएंगे. नाराज छात्रों ने इस परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन को लेकर एसएससी के खिलाफ केस कर दिया.
प्राथमिक परीक्षा के बाद 16-17 जनवरी को मुख्य परीक्षा होनी थी, लेकिन उसकी तारीख आगे बढ़ा दी गई और एसएससी ने प्राथमिक परीक्षा को लेकर कटऑफ 4 अंक कम कर दिया. इतना करने से ही करीब 50 हजार और परीक्षार्थी मुख्य परीक्षा के योग्य हो गए. इसी बीच 15 जनवरी को प्राथमिक परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन को लेकर छात्रों द्वारा किए गए केस का निर्णय आया और फैसला एसएससी के पक्ष में गया. इसके बाद 17 फरवरी से मुख्य परीक्षा शुरू हो गई, लेकिन यह मुख्य परीक्षा भी अनियमितता की जद में आ गई. 17 फरवरी को ही गड़बड़ी की बात सामने आने पर नई दिल्ली के मोहन कोऑपरेटिव इंडस्ट्रियल एस्टेट स्थित परीक्षा केंद्र की परीक्षा रद्द कर दी गई.
21 फरवरी को पहली पाली में शुरू हुई परीक्षा से पहले पता चला कि उसके सारे प्रश्न पहले ही लीक हो चुके हैं. इसके बाद एसएससी ने अपनी आधिकारिक सूचना में कहा कि ऑनलाइन परीक्षा आयोजित कराने वाली कंपनी ने तकनीकी परेशानी की बात कही है, जबकि यह तकनीकी परेशानी नहीं, पेपर लीक होने का मामला था और बाद में एसएससी ने इसे स्वीकार भी किया. खैर, उस दिन की परीक्षा फिर से दोपहर 12.10 में शुरू हुई, लेकिन पता चला कि उसका भी पेपर लीक हो गया है. उस दिन की परीक्षा को लेकर एसएससी ने 24 फरवरी को आदेश जारी किया कि वो परीक्षा रद्द कर दी गई है. इसके बाद छात्रों ने आंदोलन का बिगूल फूंक दिया और 27 फरवरी से एसएससी मुख्यालय के सामने जमा होने लगे. इन छात्रों को आवााज बुलंद करते देख अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की अनियमितता से परेशान छात्रों को भी हिम्मत मिली और वे भी आंदोलन में शामिल होने लगे.
इस आंदोलन में एमटीएस (मल्टी टास्किंग स्टाफ) वाले उन युवाओं ने भी भाग लिया, जिनकी 150 अंकों की परीक्षा में सामान्य वर्ग के लिए 130 अंक का कटऑफ तय किया गया है. छात्र मणिकांत मिश्रा का कहना है कि यह कटऑफ किसी भी तरह से व्यवहारिक नहीं था. इसमें गौर करने वाली बात यह भी है कि इससे पहले तक एमटीएस परीक्षा का कटऑफ हर राज्य का अलग-अलग होता था, लेकिन इसबार इसे सेन्ट्रलाइज्ड कर दिया गया. इसके अलावा कई अन्य राज्यों के छात्र भी परीक्षा या नियुक्ति में धांधली की शिकायत के साथ इस आंदोलन में शामिल हुए. छात्रों की मांग थी कि हाल के दिनों में जिस तरह से परीक्षा में धांधली और पेपर लीक होने की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए वर्तमान में चल रही सभी परीक्षाएं बंद की जाएं और सबकी निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से जांच हो, फिर परीक्षा शुरू हो. लेकिन आंदोलन का पूरा मुद्दा सीजीएल परीक्षा की अनियमितता पर केंद्रित हो गया. जिन भी नेताओं ने इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया सभी सीजीएल वाली परीक्षा की सीबीआई जांच की मांग तक ही सीमित रहे.
ऑनलाइन परीक्षा में सेंधमारी आसान
डिजिटल इंडिया किस तरह से महज एक नारा भर है, इसकी एक कहानी एसएससी की ऑनलाइन परीक्षाओं में होने वाली धांधली के जरिए सामने आ रही है. ऑनलाइन परीक्षाओं का एक उद्देश्य यह भी था कि इससे पेपर लीक जैसी घटनाओं पर लगाम लगेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. कंप्यूटर और नेटवर्किंग में सेंधमारी तो और भी आसान है. दिल्ली में हुए आंदोलन में शामिल रही पूजा द्विवेदी ने ‘चौथी दुनिया’ से बात करते हुए कहा कि ऐसा हाल की कई परीक्षाओं में हो चुका है कि हमारे परीक्षा देने से पहले ही उसके सवाल सोशल मीडिया में घूम रहे थे. उन्होंने एसएससी की ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिस तकनीक से परीक्षा ली जाती है, उसमें सेंधमारी आसान है. इस मुद्दे पर चौथी दुनिया ने कुछ सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स से बात की, जिन्होंने पूजा जैसे कई छात्रों की आशंका को सही बताया. उनका कहना था कि ऑनलाइन परीक्षाएं जिन कंप्यूटर्स और नेटवर्क के सहारे आयोजित की जाती हैं, उनको आसानी से रिमोट एक्सेस किया जा सकता है.
यह सिर्फ आशंका नहीं है. पिछले ही महीने राजस्थान में ऑनलाइन हुई कांस्टेबल भर्ती परीक्षा ऐसी ही सेंधमारी की भेंट चढ़ गई और इसे राजस्थान के वो डीजीपी भी नहीं रोक सके, जिनके पास 7 साल तक सीबीआई में रहने का अनुभव है. राजस्थान पुलिस हेडक्वार्टर (पीएचक्यू) ने इस परीक्षा के लिए जिस सरस्वती इंफोटेक कम्पनी का चयन किया, उसकी शुरुआत महज तीन महीने पहले हुई थी. लेकिन न तो उस कम्पनी की जांच की गई और न ही फुलप्रूफ परीक्षा कराने को लेकर कोई व्यवस्था की गई. पीएचक्यू पूरी तरह से उसी कम्पनी पर निर्भर रही और कम्पनी ने पुलिस को ही चकमा दे दिया. गौर करने वाली बात यह है कि इस परीक्षा में रिमोट एक्सेस के जरिए सेंधमारी करने वाले जिस सज्जन सिंह नाम के शख्स को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, वो उस कम्पनी से भी जुड़ा हुआ है, जो दिल्ली में एसएससी की परीक्षाएं आयोजित कराती है. कांस्टेबल भर्ती की परीक्षा में इस धांधली का पता चलने पर आनन फानन में दूसरे चरण की भर्ती परीक्षा स्थगित कर दी गई, लेकिन सवाल यह है कि एसएससी के उन छात्रों को न्याय कैसे मिलेगा जिनका भविष्य आए दिन रद्द हो रही परीक्षाओं की भेंट चढ़ रहा है.
संसदीय समिति के सवालों पर कठघरे में एसएससी
डीओपीटी (डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग) को सुझाव देने के लिए बनाई गई संसद की स्थायी समिति ने परीक्षाओं में धांधली और छात्रों के आंदोलन को लेकर अपनी रिपोर्ट में एसएससी की पूरी कार्यशैली को कठघरे में खड़ा किया है. 19 मार्च को संसदीय समिति की तरफ संसद में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले चार सालों में जिस तरह से एसएससी को धांधली के कारण परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी हैं, उसने इस संस्थान की साख को बुरी तरह से प्रभावित किया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एसएससी में अभी मात्र 481 कर्मचारी हैं और यहां 115 पद खाली हैं, जबकि 4 साल पहले ही पदों की संख्या में 30 फीसदी वृद्धि की अनुशंसा की गई थी.
एसएससी: सबसे सुस्त सेलेक्शन कमीशन!
एसएससी द्वारा ली जाने वाली परीक्षाओं में हर साल करीब दो करोड़ युवा शामिल होते हैं. लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह से इससे जुड़ी अनियमितताएं सामने आई हैं, उससे छात्रों में घोर निराशा है. लगातार हो रहे प्रश्न लीक से छात्रों का भरोसा इस आयोग से टूटने लगा है. सरकार के ही आंकड़े हैं कि अब तक एसएससी की 10 परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं. लेकिन इसके बावजूद, सरकार ने अपने स्तर पर पहल करते हुए किसी भी मामले की जांच कराने की जहमत नहीं उठाई. गौर करने वाली बात यह भी है कि इससे पहले एसएससी ग्रेजुएट लेवल की परीक्षा भी सवालों के घेरे में रही. उस परीक्षा में सफल होने के बावजूद 10,000 से अधिक छात्रों की अब तक नियुक्ति नहीं हो सकी है.