fddमहाराष्ट्र एवं हरियाणा के विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद शुरू हुई राजनीतिक गहमागहमी थमी भी नहीं थी कि 25 अक्टूबर को मुख्य चुनाव आयुक्त वी एस संपत ने झारखंड एवं जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी. इस संबंध में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, हमें दोनों राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले चुनाव कराने का शासनादेश मिला था. झारखंड विधानसभा का कार्यकाल 03 जनवरी, 2015 को समाप्त हो रहा है. झारखंड में पांच चरणों में 25 नवंबर, 02 दिसंबर, 09 दिसंबर, 14 दिसंबर एवं 20 दिसंबर को मतदान होगा और 23 दिसंबर को मतगणना कराई जाएगी.
जिस तरह दीपावली से पहले महाराष्ट्र एवं हरियाणा के चुनाव परिणाम आए थे, ठीक उसी तरह क्रिसमस एवं नए साल के ठीक पहले झारखंड के लोगों और जीत दर्ज करने वाली पार्टी को दोहरी खुशी मनाने का मौक़ा मिलेगा. क़ानून व्यवस्था के लिहाज से झारखंड बहुत ज़्यादा संवेदनशील है, इसलिए चुनावों में सुुरक्षा के प्रभावी उपाय किए गए हैं. झारखंड के 2.07 करोड़ मतदाता 81 विधानसभा सीटों पर नई सरकार के भाग्य का ़फैसला करेंगे. चुनाव के लिए राज्य में 24,648 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. झारखंड चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा स्थायी सरकार है. 15 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग होकर पृथक राज्य बनने के बाद झारखंड में तीन बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इस दौरान राज्य 9 मुख्यमंत्री और 3 बार राष्ट्रपति शासन देख चुका है. झारखंड के साथ गठित हुए छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे राज्य इससे कहीं आगे निकल गए हैं. यहां प्राकृतिक संपदाओं का बहुत बड़ा भंडार होने के साथ ही राजधानी रांची एवं जमशेदपुर औद्योगिक रूप से विकसित शहर हैं. पिछले 14 सालों से यह राज्य भ्रष्टाचार का लगातार शिकार होता रहा है. इस वजह से विकास यहां रफ़्तार नहीं पकड़ सका. साथ ही नक्सल समस्या लगातार विकराल रूप लेती चली गई. इस वजह से राज्य में निवेश में भी कमी आई और विकास का चक्का थम-सा गया.
मोदी रथ पर सवार भारतीय जनता पार्टी झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर बेहद उत्साहित नज़र आ रही है. उसने सभी 81 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का ़फैसला किया है. इसके लिए पार्टी पंचायत स्तर पर बूथ सम्मेलन करा रही है. भाजपा ने राज्य में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पहली गठबंधन सरकार बनाई थी. इसके अलावा भाजपा अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में भी तीन बार सरकार बना चुकी है. ख़बर यह भी है कि भाजपा राज्य में दो गुटों में बंटी हुई है. एक गुट ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के साथ गठबंधन का पक्षधर है, तो दूसरा गुट अकेले चुनाव लड़ना चाहता है. भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा भी गठबंधन के ख़िलाफ़ हैं. सिन्हा ने हाल में कहा था कि जब जनता हमारे साथ है, तो फिर हम कोई गठबंधन क्यों करें? मोदी फैक्टर पर्याप्त है. फिलहाल भाजपा राज्य में 81 में से 55 सीटों पर जीत हासिल करने के मिशन के तहत काम कर रही है. हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की 14 में से 12 सीटें हासिल की थीं. इस चुनाव में वह 58 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी. वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के पास 18 विधानसभा सीटें हैं. बीते 21 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रांची आए थे. इस दौरान उन्होंने प्रदेश के लोगों से बहुमत वाली सरकार देने की अपील की थी, ताकि झारखंड को विकसित राज्य में बदला जा सके.
इस चुनाव में कांग्रेस की साख एक बार फिर दांव पर होगी. अभी झारखंड में उसके समर्थन से सरकार चल रही है. नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने के लिए बिहार उपचुनाव की तर्ज पर झारखंड में भी महा-गठबंधन बनाने की तैयारी हो रही है, जिसमें झामुमो, कांग्रेस, राजद एवं जदयू शामिल होंगे. बिहार उपचुनाव में मिली सफलता से उत्साहित दल झारखंड में भी इसे अमल में लाना चाहते हैं, लेकिन सीटों का बंटवारा उनके बीच सबसे बड़ी रुकावट बन रहा है. हेमंत सोरेन का कहना है कि भाजपा को रोकने के लिए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ना ज़रूरी है. उन्होंने अपनी पार्टी की सूची कांग्रेस को सौंपी है और यह भी बताया है कि कहां कांगे्रस मजबूत है और कहां झामुमो. अब कांग्रेस बताए कि उसे क्या करना है. दोनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर रस्साकशी चल रही है. कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने से इंकार कर रही है.
कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत का कहना है कि कांग्रेस प्रदेश में 50 सीटों पर बेहतर स्थिति में है. प्रदेश के कांग्रेस कार्यकर्ता चुनाव को लेकर उत्साहित हैं. ऐसी स्थिति में यदि कांग्रेस आलाकमान झामुमो के साथ चुनाव लड़ने का फैसला करता है, तो प्रदेश कांग्रेस में विद्रोह हो सकता है. यूं भी कांग्रेस पार्टी उस डूबते हुए जहाज की तरह हो गई है, जिसे छोड़कर पंछी भागते हैं. भले ही कांग्रेस सत्तारूढ़ झामुमो के साथ सरकार में है, लेकिन दोनों ही पार्टियों के बड़े नेता लगातार भाजपा में शामिल हो रहे हैं. इससे गठबंधन कमजोर होता दिख रहा है. ऐसे में कांग्रेस और झामुमो के अकेले चुनाव लड़ने के आसार बहुत कम दिखाई पड़ रहे हैं. सीटों के बंटवारे में कांग्रेस ने 36-36 सीटों का फॉर्मूला दिया और नौ सीटें राष्ट्रीय जनता दल को देने की बात कही गई, लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस पर असहमति जताई है. झामुमो 42 से ज़्यादा सीटों की मांग कर रहा है. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भी भाजपा के ख़िलाफ़ बनने वाले महा-गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार हैं. इस संबंध में मरांडी ने कहा कि वह झारखंड में जनता के हित में महा-गठबंधन बनाए जाने के पक्ष में हैं और निश्‍चित रूप से इससे धर्मनिरपेक्ष मतों का बंटवारा रोकने में सहायता मिलेगी. हालांकि उन्होंने कहा कि ऐसा कोई गठबंधन बनाने से पहले यह तय होना आवश्यक है कि उसका नेतृत्व कौन करेगा?
राज्य में हर स्तर पर फैला भ्रष्टाचार, आदिवासियों का विकास, रा़ेजगार एवं सड़क आदि इस चुनाव के सबसे बड़े मुद्दे होंगे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का मानना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान स्थानीय मुद्दे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं, राष्ट्रीय मुद्दे नहीं. प्रदेश विधानसभा चुनाव में सुशासन, रा़ेजगार, क़ानून व्यवस्था एवं लोगों का सशक्तिकरण आदि मुद्दे मायने रखेंगे. उनका दावा है कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने 14 महीनों में जो कर दिखाया, वह काम पहले की सरकारें 14 सालों में नहीं कर सकीं. यही मुद्दे इस चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करेंगे. खैर, विभिन्न पार्टियां कुछ भी दावा कर रही हों, लेकिन झारखंड में स्थायी सरकार ही सबसे बड़ा मुद्दा होगी. इसके अलावा विकास के लिए केंद्र सरकार के साथ समन्वय भी ज़रूरी है. ऐसे में झारखंड में पलड़ा हाल में संपन्न हुए चुनावों की तर्ज पर भाजपा के पक्ष में झुका नज़र आ रहा है, बाकी दल अपने अस्तित्व की लड़ाई में उलझे हुए हैं.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here