यह शब्द सुनते-सुनते कान पक गए थे ! फुटबॉल, हाॅकि जैसे खेलों में अक्सर एक दुसरे को जख्मी करने के ,और गाली-गलौज के प्रसंग दिखते रहते है ! और बॉक्सिंग, कुश्ती जैसे खेलों में अक्सर एक दुसरे के साथ शत्रु जैसे लडते हुए दिखाई पड़ते हैं ! और कभी-कभी किसी खिलाड़ी को जान भी गवानी पडी है ! लेकिन कल टोकियो ओलिंपिक में पुरुषों की उंची जंप मे सही मायनों मे बहुत लंबे अरसे के बाद खिलाडू वृत्ती का दर्शन हुआ है !

 

कतार के मुताझ इसा बाराशिम और इटली के जियानमाको तांबोरी यह दोनों स्पर्धक एक दुसरे के खिलाफ उंची जंप मे दोनो ने भी 2-37 मीटर जंप लगाई ! इस कारण दोनों को एक जैसे गुण मिलने के कारण ! पंचों ने दोनों को और तीन बार जंप करने के लिए मौका दिया ! और दोनों ने 2-37 मीटर जंप लगाई ! इस कारण वापस दोनों को और दोनों को दो बार जंप लगाने के लिए कहा ! और इस मौके पर इटली के जियानमाको तांबोरी को घुटने मे चोट लगने के कारण उसने अपने आप को इस स्पर्धा के सुवर्ण पदक से बाहर होने का फैसला लिया !

कतार के मुताझ इसा बाराशिम को शत-प्रतिशत मौका था ,कि एक जंप और लगा कर सुवर्ण पदक जीतने का ! तो उसने उस खेल के अधिकारियों को पुछा कि अगर मै भी सुवर्ण पदक की स्पर्धा से बाहर होने का फैसला लिया तो ? तो उस खेल के अधिकारियों को ओलिंपिक नियमों की किताब खंगालने पडी ! और उन्होंने कहा कि अगर आप अपने आप को इस स्पर्धा से पीछे ले रहे हो तो सुवर्ण पदक दोनों को मिलेगा ! और कतार के मुताझ इसा बाराशिम ने दुसरे ही क्षण अपने आप को इस स्पर्धा से पीछे ले लिया ! और इस तरह उंची जंप मे के सुवर्ण पदक से सही मायनों मे खिलाडू वृत्ती का दर्शन हुआ है ! और उस उंची जंप के सुवर्ण पदक की और उंचाई बढानेका इतिहास दत्त कार्य किया है !

हालांकि कतार हमारे देश की तुलना मे राई के दाने की तरह छोटा देश है ! लेकिन कतार के मुताझ इसा बाराशिम ने हिमालय जैसी उंचाई दिखाई है ! अगर मुताझ इसा बाराशिम चाहता तो दुनिया कि कोई भी ताकत उसे अकेले को सुवर्ण पदक की दावेदारी से रोक नहीं सकता था क्योंकि दुसरा दावेदार इटली के जियानमाको तांबोरी को घुटने मे चोट लगने के कारण उसने अपने आप को इस स्पर्धा से पीछे ले लिया था लेकिन मुताझ इसा बाराशिम को नैतिक रूप से लगा कि जियानम अगर जख्मी नही हुआ होता तो ? शायद वह भी सुवर्ण पदक जीतने के लिए उतना ही हकदारहै जितना कि मैं हूँ इसलिए उसने भी अपने आपको स्पर्धा से पीछे ले लिया था !

लेकिन टोकियो ओलिंपिक के अधिकारियोंने ओलिंपिक नियमों की किताब खंगालने के पस्चात बहुत ही अच्छा निर्णय लिया कि दोनों को सुवर्ण पदक दियां जांय ! सोमवार दो अगस्त की यह घटना संपूर्ण विश्व के खेल जगत के लिए सही मायनों मे खिलाडू वृत्ती का दर्शन हुआ है और यह क्षण ओलिंपिक और समस्त खेल के इतिहास में सुवर्ण अक्षरों से लिखा जाने वाला प्रसंग है ! इस बहाने मुझे खेल जगत के कुछ ऐसे प्रसंग याद आ रहे हैं कि जिसमें खिलाडू वृत्ती का दूर-दूर तक कोई भी संबंध नजर नहीं आता है वह है भारत और पाकिस्तान के बीच खेले जाने वाले खेल !

भारत-पाकिस्तान के बीच खेले जाने वाले क्रिकेट या हाॅकि सिर्फ खेल नहीं रहे ! जिस तरह से भारत और पाकिस्तान निर्माण होने के बाद 1947 तीन जंगे हुई है ! बिल्कुल यह दोनों खेल जंग जैसे ही खेले जाते है ! और खेल के समय प्रत्यक्ष मैदानमे और दोनों देश के गलि-मोहल्ले में कामेंटरी सुनने-सुनाने का माहौल इतना चार्ज रहता है कि प्रत्यक्ष जंग चल रही है ऐसा उत्तेजित करने वाला माहौल रहता है और इस वातावरण का दबाव खेल खेलने वाले खिलाड़ियों पर भी होता है !

इस कारण कई-कई मौके है कि सालों साल मॅच पर पाबंदी लगाने की नौबत आते रही है ! और जब भी उन खेलों में किसी एक दुसरे की जित होती है, तो दोनों तरफ के मीडिया वाले भारत-पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के जितने के प्रसंग को युद्ध की जित जैसी देशप्रेम के नाम पर मसाला लगा-लगा कर रिपोर्टिंग करने के कई-कई प्रसंगों का कवरेज देखा है !
हिंदी के एक प्रतिष्ठित संपादक जो क्रिकेट के भी शौकीन होने के कारण ! भारत-पाकिस्तान का बंगलौर विश्व कप क्रिकेट टीम के जितने के प्रसंग को अपने संपादकीय में उन्होंने इमरान खान की बोलिंग में दौड़ने की तुलना !

मोगल ,तुर्किस्तान, इराण या अफगान के हमलावर जैसे ,अपने अरबी घोडो पर बैठकर भारत के उपर आक्रमण किया ! उसी तरह के इमरान खान और वसीम अक्रम की बोलिंग का वर्णन अपने संपादकीय पृष्ठ वह भी प्रथम पृष्ठ पर लिखा है!और यह वही संपादक थे जिन्होंने इस खेल के पहले 6 दिसंबर 1992 के दिन बाबरी विध्वंस की घटना के बाद हमारे देश की परंपराओका हवाला देते हुए ! शायद एक हप्ते तक उसी अखबार के प्रथम पृष्ठ पर ! अपने जीवन के सबसे बेहतरीन संपादकीय लिखे थे ! और इस कारण वह सभी लेख मैंने सम्भल कर रखे हुए है ! और भारत-पाकिस्तान के बीच खेले गए क्रिकेट के विश्व कप की जित के बाद का संपादकीय लेख भी मेरे पास सुरक्षित हैं ! और वह उसी समय सेवाग्राम मे हमारे देश की बढती हुई सांप्रदायिक हिंसा के लिए चिंतन बैठक मे आये हुए थे ! तो मैंने कहा कि सांप्रदायिक माहौल बनाने के लिए कुछ संगठन बाकायदा प्रकट रूप से सौ साल से भी ज्यादा समय हो रहा है कोशिश कर रहे हैं ! लेकिन हम अपने आप को गांधी, जयप्रकाश, विनोबा, डॉ राम मनोहर लोहिया के अनुयायियों मे भी जो सांप्रदायिकता के अंश है उसका क्या ?

तो सभा के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश थे ! और शायद काफी गांधींवादी संस्थाओं के अध्यक्ष या सचिव भी थे ! तो वह तपाकसे बोले कि सुरेश आप बहुत ही संगीन आरोप लगा रहे हो ! तो जरा खुलकर बोलो ! तो मैंने कहा कि आपके बगल में हमारे देश के हिंदी पत्रकारिता के बहुत बड़े दिग्गज संपादक बैठे हुए है मै उन्ही का ही उदाहरण देता हूँ ! इन्होंने बाबरी विध्वंस के बाद शायद भारत के पत्रकारों मे सबसे बेहतरीन संपादकीय लिखे थे ! और वह भी उस अखबार के प्रथम पृष्ठ पर ! पर चंद दिनों बाद बंगलौर की क्रिकेट के विश्व कप की जित के सिलसिले में पाकिस्तानी टीम के खिलाड़ियों को लेकर उसी प्रथम पृष्ठ पर संपादकीय लिखकर बाबरी विध्वंस के बाद लिखें लेखो को गुडगोबर कर दिया है !

वह अपने संपादकीय पृष्ठ वह भी प्रथम पृष्ठ पर लिखें है कि इमरान खान और वसीम अक्रम की बोलिंग का वर्णन भारत के उपर आक्रमण करने वाले मुसलमान बादशाहों से करते हुए लिखे है ! कि यह दोनों बोलिंग करने वाले बोलरकी दौड देखकर उन हमलावरों के अरबी घोडो पर बैठकर भारत के उपर आक्रमण करने की याद आती है ! यह महाशय क्रिकेट के खेल की बहुत ही अच्छा समझ रखने के लिए मशहूर है ! लेकिन इन्होंने उस मॅच पर जो संपादकीय लिखा है ! वह क्रिकेट के खेल की बनीस्बत एक उग्र हिंदुत्ववादी को भी मात देने वाली शैली में लिखा है ! और आज यह महाशय दिल्ली से इतनी दूर सेवाग्राम मे हमारे देश मे बढ रही सांप्रदायिकता के लिए चिंतन बैठक मे आये हुए है !

तो इनके कौन से रूप को हमारे जैसे जमीनी कार्यकर्ता सही मानें ? क्योंकि फिल्ड शेकडो सालो से संघ परिवार ने अपने मुसलमानों के खिलाफ किया हुआ प्रचार-प्रसार का मजमून मेभी मुस्लिम आक्रमक होते हैं !और उन्हें सबक सिखाने के लिए भागलपुर, मलियाना, और विभिन्न दंगों में शामिल होकर आम आदमी दंगा के समय मुसलमानों के उपर आक्रमण कर रहे हो तो ! उनके मनमें यही जहरीला प्रचार-प्रसार घर कर के बैठने के कारण अब लोग हजारों की संख्या में पारंपरिक हथियारों के साथ शामिल होने के कारण अब दंगो की तीव्रता पहले से कई गुना ज्यादा होने के कारण जान-मालका नुकसान बहुत ज्यादा हो रहा है और 1989 भागलपुर का दंगा उसका सबसे बड़ा उदाहरण है !

क्रिकेट के खेल जो कभी कभार खेला जाता है ! लेकिन हजारों सालों से हिंदु-मुसलमानों का एक साथ रहना है ! उसकी फिजा को बिगाड़ने के कई-कई कारण है ! जिसमें गाहे-बगाहे इतिहास के मुडदो को उखाड़-उखाड़ कर लोगों को भड़काने का काम कुछ सांप्रदायिक राजनीति करने वाले खुले आम कर रहे हैं ! लेकिन हमारे अपने ही लोग जब जाने अनजाने में इस तरह के लेख या बयानबाज़ी करने से सांप्रदायिक लोगों को और संभल मिलता है ! इसलिए संपादक अपने संपादकीय एअरकंडिशन कमरे में बैठकर, लिखने का परिणाम बाहर पाठकों पर क्या हो गया? इसके परिणाम हम एक्टीविस्ट लोगों को भागलपुर, गुजरात की गली-कूचों में फेस करना पड़ता है !

वैसे संपादक महोदय के जेपी आंदोलन के समय की पत्रिका एव्हरीमेन्स मे का योगदान मुझे मालूम है ! और सेक्युलर प्रतिबद्धता के बारे मे भी पता है ! लेकिन कभी-कभी भावनाओं मे बहकर कोई बात हो जाती है ! लेकिन अगर हम महात्मा गाँधी के आश्रम में बैठकर यह चिंतन बैठक कर रहे हैं ! तो उन्होंने दिया हुआ तलिस्मन हमेशा के लिए याद रखना जरूरी है ! और भारत की वर्तमान सांप्रदायिक राजनीति को देखते हुए तो हमारी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ गई है! इसलिए क्रिकेट के खेल में भी राजनीतिक बयानबाज़ी करना यह Sportsman Spirit यानी खिलाडू वृत्ती या खेल भावना से विपरीत है !

आज टोकियो ओलिंपिक में पुरुषों की उंची जंप मे दोनो खिलाड़ियों ने सही मायनों मे खिलाडू वृत्ती का परिचय दिया है ! यह खेल के इतिहास में सुवर्ण पदक की बात सुवर्ण अक्षरों में लिखी जायेगी ! इसलिए मेरी तरफसे कतार के मुताझ इसा बाराशिम और इटली के जियानमाको तांबोरी यह दोनों खिलाड़ियों को शत-शत प्रणाम और हृदय से अभिनंदन !

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