जम्मू-कश्मीर की मूलभूत समस्याएं क्या हैं, वहां की जनता क्या चाहती है, उसे राज्य में क्या-क्या कमियां अखरती हैं और ऐसा क्या होना चाहिए, जिससे आम अवाम की खुशियां वापस लौट सकें, उसके चेहरे पर संतुष्टि की चमक दिखे, जैसे तमाम विचार बिंदुओं को लेकर चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा के डिप्टी स्पीकर सरताज मदनी से एक लंबी बातचीत की. पेश हैं, उस बातचीत के प्रमुख अंश…
sartaj-madniआपकी नज़र में जम्मू-कश्मीर की प्राथमिकताएं क्या हैं?
पहली प्राथमिकता जो है, वह है जम्मू-कश्मीर की समस्या, जो राजनीतिक समस्या है. पहली प्राथमिकता वह होनी चाहिए. जम्मू-कश्मीर की समस्या के नाम पर हज़ारों लोग, चाहे वे वर्दी वाले हों या वर्दी के बगैर, उनमें मिलिटेंट हैं, आम लोग हैं, मारे गए. अब इतने सारे लोगों के मारे जाने के बाद, इतना खून बहने के बाद अगर जम्मू-कश्मीर को राजनीतिक तौर पर कुछ न मिले, तो मुझे लगता है कि इससे बड़ी नाइंसाफ़ी और कुछ नहीं होगी. विकास की बात तो इसके बाद है.
तो फिर क्या मिलना चाहिए, सियासी क्या?
कुछ न कुछ ऐसा मिलना ही चाहिए, जिससे जम्मू-कश्मीर के लोगों को यह लगे कि…
जैसे, कुछ एक-दो चीज़ें?
संविधान के अंदर भी उतनी सारी चीज़ें हैं. कश्मीर के हवाले से आप भारत का संविधान देखें. अगर धारा 370 को अक्षरश: वहीं पर पहुंचा दिया जाए, जहां से यह शुरू हुई, तो मुझे लगता है कि कुछ न कुछ मिलेगा जम्मू-कश्मीर को. जहां तक विकास की बात है, तो सबसे पहले बाढ़ है. जो विनाश बाढ़ ने किया है, उसकी भरपाई होनी चाहिए. मेरे अपने चुनाव क्षेत्र की बात ले लीजिए. बाढ़ से पहले और अब की स्थिति को देखते हैं, तो बहुत बड़ा फ़र्क नज़र आता है. पहले जैसी स्थिति लाने के लिए कम से कम 200 करोड़ रुपये की आवश्यकता है. मैंने फ्लड प्रोटेक्शन के एक प्रोजेक्ट पर पांच करोड़ रुपये लगाए थे. आज मैं जब इसके नए प्रोजेक्ट को देखता हूं, जिसे फ्लड कंट्रोल डिपॉर्टमेंट ने बनाया है, तो यह 25 करोड़ रुपये का है. इसका मतलब यह हुआ कि अब इस प्रोजेक्ट को पांच गुना अधिक रकम की आवश्यकता है. इसी प्रकार सड़कों, पुलों एवं लोगों के मकानों, जो इस बाढ़ में तबाह हो गए हैं, को दोबारा बनाना है.
पर अब जो विकास की योजना होगी यानी पुनर्वास का कार्यक्रम होगा, उसमें अगर वास्तविक विकास, जो रा़ेजगार पैदा करे, अगर शामिल नहीं होता है और नए तरीके से कार्यक्रम नहीं बनाए जाते हैं, तो फिर आप नया क्या कर रहे हैं?
देखिए, रोज़गार ज़रूरी है, बेरोज़गारी ख़त्म करना ज़रूरी है, क्योंकि बहुत दिनों से जम्मू-कश्मीर का नौजवान पिसा जा रहा है. जबसे यहां मिलिटेंसी शुरू हुई है, तबसे ज़्यादा ही बेरा़ेजगारी बढ़ी है. लोग यहां से भागने लगे, यहां के लड़के भागने लगे. अब हमारी मुश्किल यह है कि उद्योग विकसित होते हैं जम्मू-कश्मीर में. कश्मीर में तो बिल्कुल ही नहीं है, जम्मू में थोड़ा-बहुत है. लेकिन, वह जिस तरीके से होना चाहिए, उस तरीके से नहीं है. रा़ेजगार भी एक बहुत ही ज़रूरी मुद्दा है
जम्मू-कश्मीर में. अब आप अगर इसे मिलिटेंसी से जोड़ेंगे, तो वह नहीं है. यहां बहुत-से लोग कहते हैं कि मिलिटेंसी इसलिए पैदा हुई, क्योंकि यहां के नौजवान बेरा़ेजगार हैं. मेरे ख्याल में समस्या को इस तरह से देखना सही नहीं है, क्योंकि आप देखेंगे कि मिलिटेंसी में भी कितने उच्च शिक्षित, बड़े ओहदों पर कार्यरत लोग शामिल थे. मैं 12-13 सालों से राजनीति में हूं. मैंने देखा है कि लोग क्या चाहते हैं, लोगों को क्या चाहिए? एक आम आदमी के तौर पर अगर मैं कहूं, तो मेरे चुनाव क्षेत्र में लोग विकास को उतना नहीं देखते हैं, जितना आपकी उपलब्धता को देखते हैं. आप उपलब्ध रहिए, हर एक व्यक्ति के संपर्क में रहिए. उसके बाद विकास खुद-ब-खुद थोड़ा-बहुत हो जाता है, अगर आपके पास योजना है तो. मुझे लगता है कि हमारी पार्टी इसमें थोड़ी सीरियस होगी कि चुनाव होना चाहिए, क्योंकि मौजूदा राज्य सरकार के कुछ ही दिन बचे हैं. एक जनवरी को उसका कार्यकाल ख़त्म हो रहा है. इसके बाद ज़रूरी था, अगर कश्मीर को पुनर्वासित करना है, तो 6 साल के लिए प्लान बनाया जाए और तय किया जाए कि इस काम को इस साल करेंगे और उस काम को अगले साल. रोज़गार भी ज़रूरी है. जम्मू-कश्मीर के नौजवानों को रा़ेजगार देना है. 5-6 लाख पढ़े-लिखे नौजवान बेरोज़गार बैठे हैं, जिन्हें रा़ेजगार चाहिए.
मैंने पहले भी कहा था कि कुर्सी पर एक तजुर्बेकार आदमी को बैठना चाहिए, जिसका एक विज़न हो. जब 2002 में मुफ्ती साहब आए थे, तो उस समय कश्मीर की स्थिति बहुत खराब थी. एक तरफ़ टास्क फोर्स और आर्मी थी, दूसरी ओर इख्वान था, तीसरी ओर से पोटा था. लोग बाहर नहीं जा पा रहे थे. मुफ्ती साहब आ गए, तो रातोंरात सेना सड़कों से हट गई. सेना की तरफ़ से दमन की कोई कार्रवाई नहीं हुई. मुफ्ती साहब ने तीन सालों में बहुत कुछ किया, क्योंकि उनका एक तर्जुबा था, उनका एक विज़न था कि जम्मू-कश्मीर में क्या चाहिए. उस वक्त जो सबसे ज़रूरी था, वह यह था कि जम्मू-कश्मीर के नौजवानों, बुजुर्गों एवं महिलाओं को सम्मान चाहिए था, उनका सम्मान, स्वाभिमान खो गया था, वह वापस होना चाहिए था. एक बुजुर्ग आदमी को नौजवान आर्मी के साथ आधा-आधा किलोमीटर तक हाथ ऊपर करके चलना पड़ता था. उस वक्त मुफ्ती साहब ने ऐसे माहौल से कश्मीर को बाहर निकाला. मुझे लगता है कि अगर मुफ्ती साहब की सत्ता में वापसी होती है, तो इसमें कोई दिक्कत नहीं होगी कि कश्मीर को किस तरह पुनर्स्थापित करना है. कश्मीर का जो राजनीतिक मसला है, उसे कहां तक पहुंचना है. आपको याद होगा कि जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री की हैसियत से मुफ्ती साहब के दौर में कश्मीर आए थे, तो मुफ्ती साहब ने उनसे एक बात कही थी कि ये लोग जो आपके सामने खड़े हैं, आपसे कोई पैकेज नहीं चाहते, आपसे कोई मांग नहीं करते. ये तो केवल एक सम्मानित और शांतिपूर्ण ज़िंदगी गुज़ारना चाहते हैं. जिस पर वाजपेयी जी ने अपना हाथ निकाला था और कहा था कि मैं पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहता हूं. जम्मू-कश्मीर को इस समय मुफ्ती साहब जैसा कोई आदमी चाहिए, जो इसे राजनीतिक और आर्थिक रूप से आगे ले जाए.
मिलिटेंसी अभी बहुत कम दिखाई देती है, आपको लगता है कि इस बाढ़ से मिलिटेंसी को कोई फ़ायदा या नुक़सान होगा?
मिलिटेंसी कम हो या अधिक, जम्मू-कश्मीर के ज़्यादातर लोग चाहते हैं और मैं अपनी बात करूंगा, मेरे भी दिमाग में है कि जम्मू-कश्मीर को कुछ न कुछ मिलना चाहिए, क्योंकि इतना खून बहा, इतनी कुर्बानियां दीं लोगों ने. अब तो जिद का मामला है. अगर कुछ नहीं मिला, तो जम्मू-कश्मीर ऐसे ही चलेगा. मिलिटेंसी कम है या ज़्यादा है, मिलिटेंसी ख़त्म नहीं होगी. हर कोई कहता है कि सियासी तौर पर जम्मू-कश्मीर को कुछ न कुछ मिलना चाहिए. इसे आप विकास से दबा नहीं सकते हैं, रोज़गार से दबा नहीं सकते हैं, पुनर्वास से दबा नहीं सकते. यह रहेगा, ज़रूर रहेगा.
आपको क्या लगता है कि जितने राजनीतिक ग्रुप हैं, उनमें चार नज़र आते हैं, पीडीपी है, कांग्रेस है, नेशनल कांफ्रेंस है और भाजपा है. इन चारों में किसके कितने लोग जीत सकते हैं, कुछ अंदाज़ा है आपको?
देखिए, अगर लोकसभा चुनावों का नतीजा देखें, तो कश्मीर में तीनों सीटें पीडीपी ने जीतीं. उस वक्त 41 विधानसभा सीटों पर हमारी लीड थी. उस लिहाज से देखा जाए, तो पीडीपी को बहुत कम चाहिए सरकार बनाने के लिए. मेरी नज़र में तो यही है. इंशाअल्लाह, पीडीपी सबसे आगे होगी.
आपकी ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा?
मुफ्ती साहब.

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