पायल, ज़ंजीर और घुंघरुओं के अलावा विभिन्न आभूषणों में जड़े जाने वाले नगीनों के उत्पादन में महारत हासिल कर राजस्थान के भरतपुर ज़िले के सिरसिया गांव की महिलाओं ने एक मिसाल कायम की है. इस पहल से एक तऱफ जहां जीविकोपार्जन आसान हो गया, वहीं दूसरी ओर महिलाओं को आत्मसम्मान पूर्ण एवं स्वावलंबी जीवन जीने का अवसर भी मिला है. धाकड़ जाति बहुल सिरसिया की बेहतरी का सूत्र तलाशने वाली इन महिलाओं की बदौलत आज पूरे गांव की दशा और दिशा में सकारात्मक बदलाव आया है.

कृषि की बढ़ती लागत और घटती पैदावार के साथ प्राकृतिक आपदाओं का दंश भी कई बार इस गांव के लोगों को झेलना पड़ा, जिसके चलते स्थानीय लोगों का जीना मुहाल हो गया था. लेकिन आज गांव की महिलाएं, पुरुष और बच्चे सभी खुश हैं. इनकी खुशहाली की एक वजह यह भी है कि कभी अपने ही ज़िले में पहचान के लिए जूझने वाले नगला सिरसिया की ख्याति आज देश की सीमाओं से बाहर विदेशों तक फैल गई है.

खेती पर इनकी निर्भरता अब लगभग समाप्त हो गई है. साठ परिवारों वाले इस गांव की आबादी लगभग एक हज़ार है, जिसमें सभी धाकड़ जाति के हैं. इन लोगों का मुख्य कार्य खेतीबाड़ी रहा है, लेकिन कृषि योग्य ज़मीन की कम उपलब्धता के कारण सिरसिया के लोगों के सामने जीवनयापन के साधन जुटाना एक बड़ी चुनौती थी. एक समय ऐसा भी था, जबकि यहां अधिकांश घरों में फांके पड़ते थे. धाकड़ जाति को मेहनतकश माना जाता है. आज उसी मेहनत के बलबूते प्रत्येक परिवार में स्वरोजगार कामयाबी की बुलंदियां छू रहा है. जो परिवार अपना काम नहीं करते, वे दूसरों के यहां काम करने जाते हैं. इतना ही नहीं, आसपास के गांवों और कस्बों से भी लोग यहां काम करने आते हैं. अधिकतर लोगों ने पूरे बदलाव के सूत्रधार मीना और महादेव के यहां काम सीखने के बाद खुद का काम शुरू कर दिया है. अब सभी सुखी हैं तो गांव में आपसी प्रेम और भाईचारा भी है. बच्चे पढ़ रहे हैं. जिन लड़कियों की शादी हो गई, उन्होंने ससुराल में अपना काम शुरू कर दिया है. शहरों की ओर पलायन के इस दौर में सिरसिया एक उदाहरण बन गया है कि अगर हालात से लड़ने का जज़्बा हो तो अपने घर-गांव में रहकर भी जीवनयापन किया जा सकता है. सिरसिया में बदलाव के मुख्य सूत्रधार मीना और महादेव हैं. इनकी कहानी ग्रामीणों के संघर्ष का एक वृत्तचित्र है, जो दूसरों को जीवनयापन के लिए उद्यमीय कौशल की सीख लेने की प्रेरणा देता है. विश्व प्रसिद्ध ताज़ नगरी आगरा में पली-बढ़ी मीना की शादी राजस्थान के भरतपुर ज़िले के राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ग्यारह के पास स्थित छोटे से गांव नगला सिरसिया में हुई. पति और परिवार के पास मामूली खेती के अलावा आजीविका का कोई सहारा नहीं था. तंगहाल परिवार में बहुत जल्दी ही मीना को अलग रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. ऐसे में मीना को अपने पिता के घर में किया जाने वाला आर्टिफिशियल चेन बनाने का काम याद आया. मीना अपने मायके गई और घरवालों के सहयोग से एक मशीन ले आई. कच्चे माल की व्यवस्था भी उसने वहीं से की. मीना बताती है कि गांव में कुछ लोगों ने ऐतराज़ किया, मगर पति ने उसका पूरी तरह से सहयोग किया. मीना घर में अपना काम करने लगी. देखते ही देखते उसके घर की दशा सुधरने लगी. मीना को देखकर आसपास की महिलाओं के मन में भी यह काम करने की चाह पैदा हुई. मीना ने इस काम को सिखाने और बढ़ाने में किसी प्रकार का संकोच नहीं किया. उसने गांव की महिलाओं को अपने घर पर ही काम देना शुरू कर दिया.
जब काम बढ़ने लगा तो उसने और मशीनें खरीद लीं. इसी बीच ग़ैर सरकारी संस्था लुपिन ह्यूमन वेलफेयर आर्गेनाइजेशन के लोगों ने आकर उससे संपर्क किया. लुपिन की मदद से मीना को 10 हज़ार रुपये का ऋण मिल गया. इसके बाद तो मीना का काम चल निकला. उसने कच्चा माल खरीद कर गांव की महिलाओं को काम पर लगा दिया. जल्दी ही ऋण की अदायगी कर देने पर एक बार फिर उसे 15 हज़ार रुपये का ऋण मिल गया. अब तो मीना से सीखने वाली सविता, कमला, सावित्री एवं साधना ने भी अपना अलग से काम डाल लिया है.
आज गांव की अधिकांश महिलाएं खेती और परिवार देखने के साथ ही चेन बनाने का काम कर रही हैं. गांव में घुंघरू और पायल बनाने का काम भी बड़े स्तर पर किया जा रहा है. कभी इन महिलाओं को खुद श्रृंगार का सामान बड़ी मुश्किल से मिल पाता था, आज वही अपने हाथों से वह सब कुछ दूसरों के लिए तैयार करते समय सुख का अनुभव करती हैं. उन्हें अपने इस काम में परिवार के अन्य सदस्यों का भी सहयोग मिलता रहता है. जिन लोगों के पास ज़मीन है, वे साथ में खेती का काम भी करते हैं.
सिरसिया के महादेव सिंह 1990 में वाणिज्य स्नातक की डिग्री लेने के बाद 1996 तक एक प्राइमरी विद्यालय में 400 रुपये मासिक पगार पर अध्यापन करते रहे. एक दिन बीमार महादेव के घर प्रबंधक का यह फरमान पहुंचा कि आज विद्यालय नहीं आ सकते तो कल से आने की कोई ज़रूरत नहीं है. बीमार महादेव करते भी क्या? अगली सुबह तक उनकी नौकरी जा चुकी थी. महादेव ने अपने मित्र सुरेश को परेशानी बताई और दोनों ने दूसरे दिन जयपुर जाकर कोई काम तलाशने की योजना बनाई. राजधानी की चकाचौंध में कई दिनों तक खाक छानने के बाद दोनों दोस्त जब थक गए तो जौहरी बाज़ार के एक व्यापारी ने इन्हें अपने नगीने की मशीन पर काम दे दिया. एकदम अनजाने काम को दोनों ने कुछ दिनों तक मन लगाकर किया. धीरे-धीरे जब इन्होंने उस काम को करने की दक्षता हासिल कर ली तो फिर अपने गांव में ही एक मशीन खरीद कर ले आए. आज इनके पास 30 कारीगर यह काम कर रहे हैं. लुपिन संस्था के सहयोग से महादेव ने अपने कारखाने को प्रशिक्षण केंद्र में तब्दील कर लिया है. आज यहां दूसरे स्थानों से आने वाले लोगों के लिए प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं. इस तरह नगीने की घिसाई का काम सिरसिया से आसपास के गांवों में भी फैल गया.
400 रुपये मासिक की नौकरी करने वाले महादेव धाकड़ अब महीने में चालीस हज़ार रुपये तक कमाने लगे हैं. साथ ही दर्ज़नों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का संतोष भी इनके चेहरे पर सा़फ झलकता है. मीना और महादेव के प्रयासों से सिरसिया में बदलाव की ऐसी बयार बही कि बेरोजगार युवकों का पलायन रुक गया है. न केवल आसपास के कस्बों के कई बेरोजगार युवक यहां इन कामों को सीख रहे हैं, बल्कि दूसरे गांवों से सिरसिया आकर मज़दूरी करने वालों की भी तादाद अच्छी-खासी है.
महादेव सिंह का कहना है कि यदि दलालों से मुक्ति मिल जाए तो इस काम का मुना़फा बढ़ सकता है. इससे कारीगरों को मिलने वाली मज़दूरी भी बढ़ाई जा सकती है. आज नगीने तराशने वाले एक कारीगर को सौ से लेकर ड़ेढ सौ रुपये तक मिल जाते हैं. वही चेन का काम करने वाले दो सौ से लेकर तीन सौ रुपये तक कमा लेते हैं. सिरसिया में तराशे गए नगीनों को जयपुर के जौहरी बाज़ार में हाथोंहाथ लिया जाता है. गांव के कारीगर जयपुर से कच्चा माल लाते हैं और तराशने के बाद वापस जौहरी बाज़ार के सेठो के यहां देकर अपना मेहनताना ले आते हैं. इसी तरह से चेन निर्माण के काम में कच्चा माल मुख्यत: आगरा से लाया जाता है और चेन बनाने के बाद वापस वहीं भेज दिया जाता है. आगरा में चेन पर सुंदर पॉलिशिंग एवं पैकिंग होने के बाद उसे देश भर के बाज़ारों में बिकने के लिए भेज दिया जाता है. अपने कारोबार के लिए कच्चा माल लाने और बिक्री की बेहतर संभावनाएं तलाशने के लिए कुछ लोगों का रोजाना बाहर आना-जाना लगा ही रहता है.
आज पूरा गांव महादेव और मीना के मुरीद हैं. बुज़ुर्ग रामकिशन कहते हैं कि कम खेती और बढ़ती लागत से जीवनयापन मुश्किल होता जा रहा था, लेकिन गांव की महिलाओं ने अपनी मेहनत से घर-परिवार का कायाकल्प कर दिया है. गांव के लोग मीना के बारे में यह कहते नहीं थकते कि आगरा की इस बेटी ने गांव को एक नयाजीवन दिया है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here