जिन बैंकों से जनता का सीधा लेन-देन होता है, वहां के घपलों, घोटालों और फर्जीवाड़ों (फ्रॉड्‌स) पर आम लोगों की निगाह रहती है, लेकिन सिडबी जैसी संस्थाएं आम लोगों की निगाह से बची रहती हैं. इसलिए इन संस्थाओं के घपले, घोटाले आम चर्चा में नहीं आ पाते. लेकिन आप तथ्यों में झांकेंगे तो आपको सिडबी में घोटालों की भरमार दिखेगी और घोटालों की लीपापोती के विचित्र किस्म के तौर-तरीके दिखेंगे. घोटाले भी नायाब और उसकी लीपापोती के तौर-तरीके भी नायाब.

हाल में सिडबी के ओखला ब्रांच में भारी-भरकम घोटाला हुआ. दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र के इस ब्रांच में बड़े-बड़े पूंजी घरानों के साथ मिलीभगत करके घोटाला होता रहा. यह शीर्ष प्रबंधन की जानकारी में था, लेकिन दोषी अधिकारियों या दोषी पूंजी घरानों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई. विचित्र तथ्य यह है कि जिन पूंजी घरानों को देश के 21 राष्ट्रीयकृत बैंकों के ‘कन्सॉर्टियम’ ने पहले से ‘फ्रॉड’ घोषित कर रखा था, उन्हीं ‘फ्रॉड’ कंपनियों के साथ मिलीभगत करके सिडबी के अधिकारी घोटाले करते रहे. सिडबी के शीर्ष प्रबंधन पर बैठे अधिकारियों को इतना भोला-भाला (इन्नोसेंट) नहीं समझा जा सकता कि उन्हें घोषित फ्रॉड कंपनियों के बारे में जानकारी नहीं थी. स्पष्ट है कि घोटालों में शीर्ष प्रबंधन की मिलीभगत थी. जब 2,240 करोड़ रुपए के बैंक फ्रॉड में सूर्य विनायक इंडस्ट्रीज लिमिटेड (एसवीआईएल) के मालिकों और मुलाजिमों को अप्रैल 2017 में गिरफ्तार किया गया, तब भी सिडबी ने अपने महकमे में चल रहे घोटाले की सीबीआई को जानकारी नहीं दी. साल भर बाद जब सिडबी को भनक लगी कि सीबीआई सिडबी के फ्रॉड की भी गुपचुप जांच कर रही है तब हड़कंप मचा और आनन-फानन ओखला ब्रांच के डिप्टी जनरल मैनेजर ऋृषि पांडेय के जरिए सूर्य विनायक इंडस्ट्रीज लिमिटेड (एसवीआईएल), इसके मालिक संजय जैन, राजीव जैन, एचआर परफ्यूमरी के मालिक संजय त्यागी, जयन सुगंधी प्रोडक्ट्स के मालिक किशन जैन और सिडबी के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई में औपचारिक शिकायत पेश की गई. सीबीआई ने 18 अप्रैल 2018 को एफआईआर (आरसी-219/2018/ई-0006) दर्ज कर औपचारिक रूप से मामले की जांच शुरू की.

बात यहीं खत्म नहीं होती. असली बात तो यहीं से शुरू होती है. पांच फ्रॉड कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने वाले सिडबी प्रबंधन को अपने महकमे के फ्रॉड अधिकारियों के नाम नहीं पता थे, इसलिए अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई. सिडबी के शीर्ष प्रबंधन की यह हरकत अपने आप में ही एक फ्रॉड है. अब दूसरा पहलू देखिए… उधर सीबीआई की जांच शुरू हुई और इधर सिडबी प्रबंधन ओखला ब्रांच बंद कर उसे नई दिल्ली शाखा में विलीन करने की गुपचुप तैयारी में लग गया. ओखला ब्रांच के जिस डिप्टी जनरल मैनेजर ऋृषि पांडेय ने सीबीआई में कम्प्लेंट दर्ज कराई, उसका तबादला देहरादून कर दिया गया. पांडेय को पुरस्कृत कर देहरादून का हेड बना दिया गया. पेंच अभी और हैं. सिडबी के ओखला ब्रांच के डिप्टी जनरल मैनेजर रहे ऋृषि पांडेय के भाई दुर्गेश पांडेय सिडबी के फ्रॉड्स और अनियमितताओं पर नजर रखने वाले विभागीय महकमे ‘स्ट्रेस्ड असेट्स एंड एनपीए मैनेजमेंट’ के महाप्रबंधक हैं. उसी के मुख्य महाप्रबंधक उमाशंकर लाल हैं, जिन्होंने अपनी बिटिया की सीधी नियुक्ति उस कैडर में करा ली, जिस कैडर को अर्सा पहले खत्म कर दिया गया था. ऐसे अधिकारियों और उन्हें संरक्षण देने वाले चेयरमैन से आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि सिडबी में कोई घोटाला या अनियमितता न हो! उल्लेखनीय है कि सीबीआई 44 विभिन्न बैंकों के जिन 292 बड़े घोटालों (स्कैम्स) की छानबीन कर रही है, उनमें ‘स्मॉल इंडस्ट्रीज़ डेवलपमेंट बैंक’ यानि सिडबी के घोटाले भी शामिल हैं. मुस्तफा के कार्यकाल में जनवरी 2018 से मई 2018 के बीच महज पांच महीनों में सिडबी में 16 फ्रॉड हो चुके हैं.

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