यह है, शांतिनिकेतन की श्यामली खस्तगीर ! आज जीवित होती तो 83 वर्ष की होती ! लेकिन 2015 में उन्हें अचानक ब्रेनस्ट्रोक हुआ और वह हमारे बीच में नहीं रही ! शांतिनिकेतन की स्थापना जिस उद्देश्य से रविंद्रनाथ टागौर ने की थी उसके आखिरी कडी के लोगों में से श्यामलीदी थी ! हालांकि वह शांतिनिकेतन की होने के बावजूद विश्वभारती या शांतिनिकेतन के किसी भी पदपर नही थी ! भले उनके पिता सुधीर खस्तगीर या ससुर प्रोफेसर तान चीना भवन के संस्थापकों में से एक थे ! लेकिन अनौपचारिक रूप से वह शांतिनिकेतन की पल्स थी ! इस कारण उनका नैतिक दबदबा कायम बना रहा ! और शांतीनिकेतन के जो भी कर्ताधर्ताओं की भुमिका में समय – समय पर रहे, और जब भी कोई गलत काम हो रहा है ! या रविंद्रनाथ टागौर की विरासत को धक्का पहुंचाकर हो रहा है ! तो श्यामलीदी के हस्तक्षेप के कारण वह गलती रुक जाती थी ! या उसे दुरुस्त कीया जाता रहा है !
आज जबसे केंद्र में भाजपा की सरकार आई है ! तबसे महात्मा गाँधी आंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय हो या, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, या जामिया मिलिया ! अलिगढ विश्वविद्यालय सभी आई आईटी और सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय और विद्यालयों से लेकर आई आई एम तथा केंद्र सरकारके नियंत्रण में जो भी कुछ है ! एनसीईआरटी से लेकर साहित्य अकादमी से लेकर राजघाट के गांधी स्मृति और उसके द्वारा चलाए जा जा रहे सभी गतिविधियों में सरकारी हस्तक्षेप की वजह से पिछले साल के मई महीने का राजघाट गाँधी स्मृति समिति के द्वारा चलाए जा रहे ‘अंतिम जन’ जैसी पत्रिका का सावरकर विशेषांक निकालकर वैचारिक हत्या करने का प्रयास किया गया है ! (पचहत्तर साल पहले शारीरिक हत्या के बाद !) जगहों पर चुन – चुनकर संघी मानसिकता के लोगों को जिम्मेदारी सौंपी गई है ! और वह उन महापुरुषों की विरासतों को मिटाने का काम कर रहे हैं !
जैसा विश्वभारती विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति महोदय के बारे में सुना है ! कि वह लेफ्ट बॅकग्राऊंड के है ! लेकिन वर्तमान निजाम में अच्छे – अच्छे लेफ्टिस्ट और गांधीवादीयोने वर्तमान सरकार के सामने घुटने टेक दिए हैं ! वैसे ही शांतिनिकेतन के कुलपति ने कोरोना के आड में ‘पौषमेला’ जो रविंद्रनाथ टागौर से भी पहले महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने 1863 में यानी ढेढ सौ साल पहले शुरूआत करने का उद्देश्य स्थानीय लोगों के द्वारा निर्मित वस्तुओं की बिक्री हो सके और उनकी कलाकी अभिव्यक्ति को मौका मिलेगा और उसमे जाति-धर्म निरपेक्ष भावना से ओतप्रोत पौष मेला बंद कर दिया ! जो कि कोरोना जाकर आज तीन साल होने जा रहे हैं ! लेकिन वर्तमान कुलपति उसे शुरू करने के लिए तैयार नहीं है ! आज श्यामलीदी होती तो उसने कुलपति के कार्यालय के बाहर भुकहडताल पर बैठ गई होती ! और वर्तमान कुलपति जो – जो गलत काम कर रहे हैं !
और रविंद्रनाथ टागौर की विरासत को खत्म करने की सुपारी लेकर ही दिल्ली से भेजे गए हैं ! उन्हें श्यामलीदी ने अमर्त्य सेन के घर को खाली करने के मुद्दे से लेकर पौष मेला तथा विद्यार्थियों की मांगों को लेकर चल रहे संघर्ष में शामिल रही होती ! फिर उसके लिए जो भी किमत चुकाने की नौबत आ जाती ! तो भी मैने जहां तक श्यामलीदी को समझा है ! उससे मुझे पक्का विश्वास है ! कि वर्तमान कुलपति के कई सारे गलत कामों को रोकने के लिए ! श्यामलीदी ने अपनी जान दाव पर लगा कर लडाई की होती ! क्योंकि श्यामलीदी पूरी तरह से रविंद्रनाथ की वर्तमान समय की कांशसकिपर थी !
खुद बहुत ही अच्छी पेंटर तथा विभिन्न कलाविथाओ में पारंगत थी ! क्योंकि नंदलाल बोस आर्ट स्कूल की शांतिनिकेतन के कलाभवन की प्रॉडक्ट जो थी ! लेकिन अपने जीवन में कभी भी उन कलाओ का ब्यापार नही किया ! शुध्द रुप से जनचेतना के लिए अपनी कला का प्रदर्शन किया है ! उदाहरण के लिए वह कठपुतलियों के माध्यम से युद्ध के विरोध से लेकर बालविवाह या अन्य कुरीतियों के खिलाफ जनजागृति करने का काम करती थी ! उनके पिता सुधीर खस्तगीर को रविंद्रनाथ टागौर ने खुद देहरादून के स्कूल से शांतिनिकेतन में कलाभवन के लिए आग्रह कर के लेकर आए थे ! और श्यामलीदी की पढाई तथा कलाकार बनने में उनके पीता के शांतिनिकेतन आने की वजह से संभव हुआ है ! और श्यामलीदी ने शांतिनिकेतन की विरासत को पूरी तरह से अपने भीतर समा लिया था ! उनके जाने से तो मुझे लगता है कि शांतिनिकेतन की जान चली गई है ! और अब सिर्फ एक कलेवर पडा है ! और उसे भी वर्तमान समय के पदाधिकारियों के द्वारा नष्ट करने की कोशिश चल रही है !
आज भारत में अॅन्टी न्यूक्लिअर, लडाई लडने के लिए सी एन डी पी जैसे संघठन बने हुए हैं ! लेकिन साठ और सत्तर के दशक में इसका नाम भी नहीं था ! और तथाकथित शत्रुओं की चर्चा में युद्ध के विरोध में या उसी युद्ध में लगने वाले परमाणु बम के समर्थकों को, युद्ध विरोधी या परमाणु बम विरोधी लोगों को देशद्रोहियों की केटेगरी में डालकर उन्हें गालीबकना या जेल में डालना वैश्विक स्तर पर जारी है ! और श्यामलीदी ने यह सब सहने के बावजूद अपने युध्द विरोधी प्रेरणा में कभी भी कोई कमी नहीं आने दी है ! उसके लिए उन्होंने काफी कुछ सहा है ! और बहुत बडी किमत चुकाई है ! खुद जेल में बंद रही है !
वर्तमान समय में तथाकथित सूडोनॅशनालिझम के समय में ! पाखंड के स्तर पर उठते – बैठते हुए ! देशभक्ति का भौंडा प्रदर्शन के जमाने में ! श्यामलीदी के जैसे जूझारू लोगों की बरबस याद आती है ! उम्र के पचहत्तर भी पूरे करने के पहले उनका चले जाना मेरे जैसे अॅक्टिव्हिस्ट को बहुत अखरता है ! हालांकि पिछले नौ सालों से जिस तरह की सरकार की करतूतों को देखते हुए लगता है कि श्यामलीदी को इन पाखंडीयो के चल रहे एक – एक कारनामे पर भयंकर प्रतिक्रिया आई होती ! और उन्हें विलक्षण मानसिक क्लेश हुआ होता ! अच्छा ही हुआ कि वह यह सब कुछ अपनी आंखों से देखने के लिए इस दुनिया में नहीं है !
श्यामलीदी के 83 जन्मदिन पर विनम्र अभिवादन.
डॉ. सुरेश खैरनार 23 जून, 2023, नागपुर.