भोपाल की जरी और जूट कला को दुनिया में मिलेगी पहचान कल से चार दिन का राग भोपाली गौहर महल में। आत्मनिर्भर भारत की तरफ बढ़ते प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने सूबे की फिक्र की और यहां की कला, खूबियों और पहचान को आगे करने की मंशा जताई। आनन-फानन में जानकारी जुटाई गई और उन कलाकारों को जमा किया गया, जिनसे शहर की खास कला का वास्ता है।
शहर की पहचान मानी जाने वाली जरी और जरदौजी कलाकारों को जब इसके लिए बुलाया गया तो उन्होंने अपनी व्यथा सामने रख दी। बात कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री तक पहुंची और इस स्थिति को दूर करने के लिए चटपट राग भोपाली समारोह की तैयारी कर ली गई। चार दिन का यह आयोजन 27 दिसंबर से गौहर महल में आयोजित किया जाएगा। जिसमें शहर और प्रदेश की खास कलाओं की नुमाइश की जाएगी।
कलेक्टर अविनाश लवानिया ने पिछले दिनों कलेक्टर सभागृह में जरी-जरदौजी और जूट के विशेषज्ञों से मुलाकात की और उनकी दक्षता, क्षमता पूछी और इसको आगे बढ़ाने में आ रही बाधाओं पर भी सवाल किया। जरी-जरदौजी कला की स्टेट अवार्डी हुमा खान ने कलेक्टर को बताया कि मेहनत से किए जाने वाले काम का असल फायदा बिचौलिए उठा ले जाते हैं, जबकि शिल्पियों और कलाकारों के हाथ महज चंद सिक्के ही पहुंच पाते हैं।
उन्होंने बताया कि जरूरत के उपकरण, व्यवस्थित वर्कशेड और तैयार किए गए माल को उचित बाजार पहुंचाने की कडिय़ां उनके पास मौजूद नहीं हैं, जिसके चलते उन्हें यह सामान कारोबारियों को सौंपना पड़ता है। व्यापार करने वाले इस कला का महंगा दाम वसूल करते हैं, जबकि कलाकारों के हाथ में उनकी मेहनत और लागत भी बमुश्किल पहुंच पाती है। इस बैठक में भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय के स्थानीय कार्यालय के सहायक निदेशक अर्चित सहारे और जूट सेंटर के प्रभारी अशोक निगम भी मौजूद थे।
बैठक से निकलकर आईं बातों को कलेक्टर लवानिया ने मुख्यमंत्री शिवराज तक पहुंचाया। जिसके बाद सीएम ने शहर की पहचान को दुनिया के कद्रदानों तक पहुंचाने की व्यवस्था करने की मंशा जाहिर की। आनन-फानन में कार्यक्रम तय हुआ और इसके लिए तत्काल तैयारियां करने का फरमान जारी कर दिया गया।
गौहर महल बनेगा साक्षी
27 दिसंबर से राजधानी के ऐतिहासिक गौहर महल में चार दिवसीय कार्यक्रम राग भोपाली में राजधानी भोपाल की पहचान जरी-जरदौजी और जूट के सामान दिखाई देंगे। इसके अलावा भोपाल को पहचान देने वाली और भी कई खास चीजें यहां मौजूद रहेंगी। कलेक्टर लवानिया का कहना है कि मुख्यमंत्री की मंशा है कि शहर भोपाल में एक ऐसा प्लेटफार्म स्थापित हो, जो इस शहर और प्रदेश की पहचान को दुनिया तक पहुंचा सके।
उन्होंने बताया कि शहर के शिल्पियों को काम के दौरान आने वाली बाधाओं को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसके लिए कुछ योजनाएं जल्दी ही आकार लेंगी। इसके साथ ही इन कलाकारों और शिल्पियों द्वारा मेहनत से तैयार किए उत्पादों को उचित बाजार तक पहुंचाने और इसका मुनासिब फायदा कलाकारों को पहुंचाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
17वीं सदी से चलन में है जरी-जरदौजी
जरी-जरदौजी की स्टेट अवार्डी हुमा खान बताती हैं कि जरी-जरदोजी कला वैसे तो करीब 17वीं सदी से चलन में है। पहले ये बनारस में प्रचलित हुई। फिर करीब 1840 के बाद से भोपाल के अंतिम नवाब हमीदुल्ला खान के समय तक ये कला चलन में रही पर उनके बाद इसका पतन शुरू हुआ। जरदोजी एक फारसी शब्द है जिसका संधि विच्छेद जर+दोजी यानी सोने की कढ़ाई है।
भारत में इसका काल ऋग्वेद ही माना जाता है और कहा ये जाता है कि देवी-देवताओं को सजाने के लिए इस कला का उपयोग होता था। बाद में मुगल दरबार राजा अकबर के छत्र-छाया में ईरानी कलाकारों को यहां पनाह मिली और तब से यह भारतीय शाही दरबारों की शान व शौकत मानी जाने लगी। चमकीले धागे को बारीक सुई में लपेट, कपड़े पर करिश्मा बुनने की कला है जरदोजी।
जरदोजी का काम करने वाले कारीगर अपनी उंगलियों के हुनर से सूट और साडिय़़ों को रूहदार कर देते हैं। हुमा कहती हैं कि वैसे तो भोपाल की जरी दुनिया में अपना खास मुकाम रखती है, लेकिन इसके लिए अब यहां काम का अभाव दिखाई देने लगा है। बारीक काम के लिए लगने वाला लंबा समय और इसके बदले मिलने वाली मु_ीभर मजदूरी आज के जरूरी खर्चों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
अपने शौक और कला को लोगों ने दूसरे कमाऊ कामों की तरफ डायवर्ट करना शुरू कर दिया है। वे कहती हैं कि स्टेट अवार्ड होने और काम की बारीकियां पता होने के बाद भी साधनों के अभाव में वे अपना मनमाफिक काम शुरू नहीं कर पा रही हैं। वे बताती हैं कि विश्व प्रसिद्ध बाग प्रिंट के साथ जरी का कॉम्बो करने की उनकी योजना है।
लेकिन इसके लिए जरूरी संसाधनों की कमी ने उनके कदमों को रोक रखा है। वे चाहती हैं कि एक सुव्यवस्थित वर्कशेड और यहां आने वाले कारीगरों को मिलने वाली माकूल मजदूरी का इंतजाम हो सके तो वे अपनी इस कला को देश-विदेश में प्रस्तुत कर भोपाल का नाम आगे बढ़ाने के प्रयास कर सकती हैं।
खान अशु