गत चालीस साल से भी ज्यादा समय हो रहा है महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन में यह दो नाम काफी चर्चित रहे हैं और यह महाराष्ट्र की सामाजिक,बौद्धिक अकाल (सुखा) का काल के रूप में मै शुरू से ही देखते आ रहा हूँ !


हालांकि इसी महाराष्ट्र में ग्यारहवीं शताब्दी से संतो से लेकर फुले अंबेडकर जैसे विभूतियों को भी देखा है और जिन्होंने समस्त भारत के दबे-कुचले लोगों को मुक्त करने के लिए विशेष रूप से सांस्कृतिक,सामाजिक और आर्थिक जगत में बदलाव की गति को तीव्र करने के एतिहासिक काम किया है लेकिन इस तरह की गतिशीलता कभी मंद भी होती है ! और वह दौर आजादी के बाद पच्चीस तीस साल से लगातार जारी है ! और अस्सी के दशक में एक आदमी जिसका नाम शरद जोशी था ! अपने तथाकथित विदेशी काफी पैसे देने वाली नौकरी छोड़कर महाराष्ट्र में किसानी करने के लिए विशेष रूप से आया ऐसा सुनने में था !


और दुसरे अण्णा हजारे जी ने अपनी फौज की नौकरी से रिटायर होने के कारण अपने गांव में खेती करने के लिए विशेष रूप से बस गए थे ! भौगोलिक रूप से दोनों के खेत के क्षेत्र में सौ किलोमीटर से भी कम दूरी रही होगी और जहाँ तक मेरी जानकारी है दोनों के खेत एक फसल देने वाले और मुख्यतः बरसात के पानी पर निर्भर क्षेत्र में आते हैं !(हालांकि मै जिंदगी में कभी भी इन दोनों से नहीं मिला हूँ और नाही इनके गाँव गया हूँ !) हालांकि मेरे काफी करीबी मित्र इन दोनों के बहुत करीब रहे हैं और वह हमेशा इनके बारे में बहुत कुछ बताया करते थे ! उनमें से कुछ विरक्त हो कर अलग भी हो गये !
तो फिलहाल अण्णा हजारे जी कल महात्मा गांधी के 73 वा शहादत दिवस से देश की वर्तमान हालत को लेकर काफी चिंतित होने के कारण अनशन पर बैठने वाले थे ! लेकिन शायद परिस्थिति का उनका आकलन गलत है यह किसी ने समझाया या कोई और कारण है कि उन्होंने अपना बहुचर्चित अनशन पर बैठने का निर्णय फिलहाल टाल दिया है !
यह आदमी अल्पशिक्षित है और फौजी ड्राइवर रहे हैं और वह भी हेवी ड्यूटी व्हेईकल के !
लेकिन फौजी नौकरी से रिटायर होने के बाद अपने गाँव की प्रगति के लिए विशेष रूप से पानी के कम उपलब्धता के बावजूद कुछ प्रयोग करने के कारण उनके गांव के खेत तथा पशुपालन और कुछ हदतक पर्यावरण संरक्षण का काम हुआ है ! लेकिन दुनिया के दूसरे नंबर के आबादी को दो समय का खाना नसीब हो उसके लिए यह प्रयोग कितना कारगर सिद्ध हुआ इसका मूल्यांकन होना चाहिये क्योंकि उनके अपने गाँव की प्रगति के बाद वह भारत के कई राज्यों में सलाहकार बनाये गये थे और उनके सलाह से उन राज्यों की क्या प्रगति हुई यह भी देखना चाहिए !
लेकिन इनकी तुलना महात्मा गांधी के साथ होने लगी यह बात मेरे गले नहीं उतर रही है वैसे किसी भी ऐरे गैरे नाथूराम की तुलना आये दिन हमारे देश में होते रहती वह अलग बात है !
पहले विदेशों की बहुत पैसा देने वाली नौकरी छोड़कर महाराष्ट्र में किसानी करने के लिए विशेष रूप से आया अंग्रेजी,संस्कृत में महारत हासिल थी ऐसे शरद जोशी नामके किसान कब महाराष्ट्र के किसानों के पंचप्राण बन गये थे और उनके रहते हुए ही अकेले महाराष्ट्र के एक लाख से भी ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है और वह डंकल प्रस्ताव को लागू करने के लिए विशेष रूप से अपने अपने तरीके से योगदान देने का काम कर रहे थे ! और उनके( गुर्गे! हा गुर्गे ही !! क्योंकि अभी हाल ही में सुरेश खोपडे नामके भारतीय पुलिस सेवा से अवकाश प्राप्त करने के बाद पुणे के पास खेती कर रहे एक मित्र ने शरद जोशी जी के काम की वर्तमान किसानों के आंदोलन के संदर्भ में आलोचना की है तो उन्हें धमकी दी गई है इसलिए मै यह शब्द गुर्गे ! विशेष रूप से इस्तेमाल किया है !)
शरद जोशी जी के पहले भी महाराष्ट्र में किसानों के आंदोलन की परंपरा है ! लेकिन अस्सी के दशक में शुरूआती दौर में ही यह आदमी महाराष्ट्र के मीडिया के आँखो का तारा बन गया था !
जैसे अण्णा हजारे के राळेगण सिद्धि का काम करने के बाद यह दोनों ने महाराष्ट्र के मीडिया में और किसी भी आंदोलन या गतिविधियों के लिए जगह ही नहीं छोडी थी !
और मै खुद उम्र के सोलह-सत्रह साल यानी मॅट्रिक के बाद से ही 1969 यानी आज से पचास साल पहले के समय से राष्ट्र सेवा दल के काम में लगा होने के कारण हमिद दलवाई,नरहर कुरूंदकर,अभि शाह,मेपू रेगे,एस एम जोशी,नाना साहब गोरे,यदुनाथ थत्ते,वसंत पळशिकर,दत्ता सावळे इत्यादि वरिष्ठ मित्रों के मार्गदर्शन में अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय दे रहे थे और उसमें महिला,दलित,अल्प संख्यक समुदाय के लोगों सवालों को लेकर कुछ गतिविधियों में लगे हुए थे और ऐ दो हीरो महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन में आये जिसमें हमारे अच्छे-अच्छे साथी भी इनके साथ हो लिए और महाराष्ट्र के सामाजिक परिवर्तन का बॅकलाॅग बढनेकी शुरूआत हुई ऐसा कहूँ तो गलत नहीं होगा !
क्योंकि इन दोनों महानुभावों ने महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन की संपूर्ण स्पेस को ही दखल कब्जा कर लिया और जो भी कुछ चल रहा था वह तीतर-बितर करने का काम किया है और इनके पूरे दर्शन में दूर-दूर तक कोई दलित आदिवासी महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को छूने वाली बात बहुत दूर उल्टा संघ परिवार के लिये इन सब हाशिये पर रह रहे समाज के खिलाफ जमिन बनाने का काम किया है और आज की बात है कि यह अनशन पर बैठने वाले थे लेकिन नहीं बैठ रहे !
और शरद जोशी जी आज हमारे बीच रहे नहीं है और हमारे संस्कृति मे मरे हुए के बारे में बुरी बात नहीं बोलते हैं !
लेकिन जमातवाद का भस्मासुर किताब लिखने वाले शरद जोशी जी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और आखिरी पर्व जमातवादीयोकी जमातमे शामिल होने बाद ही वह इस दुनिया से गये हैं उनके साथ पाँच लाख से भी ज्यादा की संख्या में किसानों को आत्महत्या कराके लेकर ही गये हैं और उसके बाद भी उनके गुर्गे वर्तमान सरकार के दलाल बनकर वर्तमान बिल की तरफदारी के कशिदे पढ रहे हैं और यह बात मैंने लिखने के कारण मेरे उपर हमला करने के लिए विशेष रूप से तैयार है और यही संघ परिवार की रजनागपुरी करतूत जिसमें अण्णा हजारे से लेकर जार्ज फर्नांडिस,नितीश कुमार और शरद जोशी जी के काम की इतिश्री कर ली अब अण्णा की बारी है !


डॉ सुरेश खैरनार 31 जनवरी 2021,नागपुर

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