2भारत के कैलाश सत्यार्थी जो बचपन बचाओ आन्दोलन चलाते हैं, को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है. उनके साथ ही पाकिस्तान की मलाला युसुफजई को भी शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया. कैलाश सत्यार्थी का जन्म 1954 में मध्य प्रदेश के विदिशा में हुआ था. वे भारत में बाल मजदूरी के विरोध में 1990 के दशक से आंदोलनरत हैं. उनकी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन की अगर बात की जाए तो अभी तक इस संस्था ने लगभ 80,000 से ज्यादा बच्चों को बाल मजदूरी के चंगुल से मुक्त कराने में सफलता हासिल की है. उनकी संस्था छोटे बच्चों का इस गंभीर जाल से मुक्त कराने के बाद न सिर्फ ख्याल रखती है बल्कि उनके पुनर्वास और शिक्षा की व्यवस्था भी करती है. भारत में लंबे समय से बाल मजदूरी के मद्दे को लेकर ल़डाई ल़डने वाले कैलाश इस मुद्दे को लेकर विश्‍वस्तर पर भी आंदोलनरत हैं. सन 1980 में वे बोंडेड लिबरेशन फ्रंट के महासचिव बने थे. वे ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर के साथ भी जु़डे रहे हैं. साथ ही वे इस संस्था की सलाहकार शाखा द इंटरनेशनल सेंटर ऑन चाइल्ड लेबर एंड एजूकेशन के साथ भी जु़डे रहे हैं.
उन्हें बच्चों और युवाओं के दमन के ख़िलाफ़ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है. उन्होंने पाकिस्तान की मलाला युसुफ़ज़ई के साथ ये नोबेल पुरस्कार साझा किया है. पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रहे कैलाश सत्यार्थी ने 26 वर्ष की उम्र में ही करियर छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था.
कैलाश सत्यार्थी की वेबसाइट के मुताबिक़ बाल श्रमिकों को छुड़ाने के दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए हैं. 17 मार्च 2011 में दिल्ली की एक कपड़ा फ़ैक्ट्री पर छापे के दौरान उन पर हमला किया गया. इससे पहले 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुड़ाने के दौरान उन पर हमला हुआ.
नोबेल समिति ने बयान जारी करते हुए कहा है, ये पुरस्कार सभी बच्चों के लिए शिक्षा और बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ किए गए उनके संघर्ष के लिए दिया जा रहा है.
पाकिस्तान की मलाला युसुफ़ज़ई को भी कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से इस पुरस्कार से नवाजा गया है. मलाला को बच्चों के अधिकारों की कार्यकर्ता होने के लिए जाना जाता है. 13 साल की उम्र में ही वह तहरीक-ए-तालिबान शासन के अत्याचारों के बारे में एक छद्म नाम के तहत बीबीसी के लिए ब्लॉगिंग द्वारा स्वात के लोगों में नायिका बन गयी. अक्टूबर 2012 में, मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने उदारवादी प्रयासों के कारण वे आतंकवादियों के हमले का शिकार बनी, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गई और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गई. 11 साल की उम्र में ही मलाला ने डायरी लिखनी शुरू कर दी थी. वर्ष 2009 में छद्म नाम गुल मकई के तहत बीबीसी ऊर्दू के लिए डायरी लिख मलाला पहली बार दुनिया की नजर में आई थी, जिसमें उसने स्वात में तालिबान के कुकृत्यों का वर्णन किया था और अपने दर्द को डायरी में बयां किया. मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब से उसे कई बार धमकियां मिलीं. तीन साल पहले स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी थी. लड़कियों को टीवी कार्यक्रम देखने की भी मनाही थी. स्वात घाटी में तालिबानियों का कब्जा था और स्कूल से लेकर कई चीजों पर पाबंदी थी. मलाला भी इसकी शिकार हुई.
वर्ष 2009 में न्यू यार्क टाइम्स ने मलाला पर एक फिल्म भी बनाई थी. स्वात में तालिबान का आतंक और महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध विषय पर बनी इस फिल्म के दौरान मलाला खुद को रोक नहीं पाई और कैमरे के सामने ही रोने लगी. मलाला डॉक्टर बनने का सपना देख रही थी और तालिबानियों ने उसे अपना निशाना बना लिया. उस दौरान दो सौ लड़कियों के स्कूल को तालिबान से ढहा दिया था. पाकिस्तान की न्यू नेशनल पीस प्राइज हासिल करने वाली 14 वर्षीय मलाला यूसुफजई ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा है. तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्ट में ले चुके थे. अक्टूबर 2012 में, स्कूल से लौटते वक्त उस पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें वे बुरी तरह घायल हो गई. बाद में इलाज के लिए उन्हें ब्रिटेन ले जाया गया जहां डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद उन्हें बचा लिया गया.
अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में शांति को बढ़ावा देने के लिए उसे साहसी और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए, पहली बार 19 दिसम्बर 2011 को पाकिस्तानी सरकार द्वारा पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिए राष्ट्रीय शांति पुरस्कार मलाला युसुफजई को मिला था. अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाले समूह किड्स राइट्स फाउंडेशन ने युसुफजई को अंतराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए प्रत्याशियों में शामिल किया, वह पहली पाकिस्तानी लड़की थी जिसे इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. संयुक्त राष्ट्र ने मलाला यूसुफजई को 2013 का मानवाधिकार सम्मान (ह्यूमन राइट अवॉर्ड) देने की घोषणा की. यह सम्मान मानवाधिकार के क्षेत्र में बेहतरीन उपलब्धियों के लिए हर पांच साल में दिया जाता है. इससे पहले यह सम्मान पाने वालों में नेल्सन मंडेला, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर व एमनेस्टी इंटरनेशनल आदि शामिल हैं.

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