माधवाश्रम महाराज को हिमालयी जनता की ओर से जबरदस्त समर्थन-सम्मान हासिल है. उनका सा़फ-सा़फ कहना है कि जिसे पिया मानै, वही सुहागिन. इस तरह देखा जाए, तो ज्योर्तिपीठ पर तीन-तीन शंकराचार्यों की दावेदारी जनता में लगातार भ्रम पैदा कर रही है. इस पूरे विवाद के इतिहास पर नज़र डालने पर पता चलता है कि बहुत पहले से इस पीठ पर स्वरूपानंद आसीन चले आ रहे हैं. शुरू से कांग्रेस के नेहरू परिवार से उनका लगाव होने के कारण वह विश्व हिंदू परिषद की आंख की किरकिरी बन गए. 

देश में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित शंकराचार्य का पद विभिन्न पीठों पर आसीन संतों के आपसी मतभेद के कारण इन दिनों विवादों में है. इलाहाबाद के एक सिविल न्यायालय से ज्योर्तिपीठ पर चर्चित संत स्वरूपानंद सरस्वती के पक्ष में फैसला आने के बाद भी यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. अदालत के फैसले पर प्रतिवादी एवं विहिप समर्थित संत वासुदेवानंद ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह अंतिम फैसला नहीं है, इसे चुनौती दी जाएगी. वासुदेवानंद द्वारा जन समर्थन के बल पर खुद के पीठाधीश्वर होने की बात कहने से विवाद थमता नज़र नहीं आ रहा है.
इन दो संतों के विवाद के बीच मा़ैके का फायदा उठाते हुए स्थानीय संत माधवाश्रम महाराज ने स्वयं को शंकराचार्य घोषित कर दिया है. माधवाश्रम महाराज को हिमालयी जनता की ओर से जबरदस्त समर्थन-सम्मान हासिल है. उनका सा़फ-सा़फ कहना है कि जिसे पिया मानै, वही सुहागिन. इस तरह देखा जाए, तो ज्योर्तिपीठ पर तीन-तीन शंकराचार्यों की दावेदारी जनता में लगातार भ्रम पैदा कर रही है. इस पूरे विवाद के इतिहास पर नज़र डालने पर पता चलता है कि बहुत पहले से इस पीठ पर स्वरूपानंद आसीन चले आ रहे हैं. शुरू से कांग्रेस के नेहरू परिवार से उनका लगाव होने के कारण वह विश्व हिंदू परिषद की आंख की किरकिरी बन गए.
विहिप ने सनातन धर्म की इस सर्वाधिक मान्य पीठ पर वासुदेवानंद को समर्थन देकर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया. दरअसल, सारा विवाद हिमालय स्थित ज्योर्तिपीठ को लेकर है, जो मोक्ष धाम बद्रीनाथ के पास स्थित है, जहां पूरे देश से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और इस पीठ की आमदनी करोड़ों रुपये सालाना है. इस पीठ को ज्ञानपीठ की मान्यता भी प्राप्त है. इसी स्थल पर तप के दौरान आदि शंकराचार्य को ज्ञान-ज्योति मिली थी. हिमालय की कोख में प्राकृतिक वैभव के कारण यह पीठ जप-तप-सिद्धि के लिहाज से आदि शंकराचार्य की नज़र में भी श्रेष्ठ थी, इसलिए उन्होंने यहीं अपनी साधना का समय व्यतीत किया था.
अदालत के फैसले से मजबूत आधार पाकर पहली बार धर्मनगरी हरिद्वार पहुंचे शारदा और ज्योर्ति (ज्योतिष) पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि आदि शंकराचार्य की ओर से स्थापित सिद्धांतों का पालन होना चाहिए. जनता का दायित्व है कि वह फर्जी शंकराचार्यों को खुद सबक सिखाए और उनका बहिष्कार करे. ग़ौरतलब है कि देश में शंकराचार्यों की केवल चार पीठें हैं और इस समय तीन संत उन चार पीठों पर आसीन हैं. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने बताया कि हाल में प्रयाग एवं दिल्ली में संपन्न हुई धर्म संसदों में संत समाज ने फर्जी शंकराचार्यों के बहिष्कार की घोषणा की. उन्होंने कहा कि देश की जनता को धर्म संसद के निर्देशों का पालन करना चाहिए. आदि शंकराचार्य ने धर्म के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए उत्तर में ज्योर्ति मठ, दक्षिण में श्र्ृंगेरी मठ, पश्चिम में शारदा मठ और पूर्व में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी. शारदा और ज्योर्तिपीठ पर वह स्वयं (स्वरूपानंद सरस्वती) आसीन हैं. दक्षिण की श्र्ृंगेरी पीठ पर स्वामी भारती पीठ और पूर्व की पुरी पीठ पर स्वामी निच्छलानंद सरस्वती आसीन हैं. उन्होंने कहा कि चार पीठों के इन तीन संतों के अलावा देश में और कोई शंकराचार्य नहीं है. यह सनातन धर्म के लिए दुर्भाग्य का विषय है कि कई लोगों ने स्वयं को शंकराचार्य घोषित कर रखा है. देश का संत समाज चाहता है कि सनातन जगत में फैला यह भ्रम मिटना चाहिए. उन्होंने कहा कि अदालत का ़फैसला आने के बाद बहुत कुछ सा़फ हो गया है, लेकिन फिर भी कुछ राजनेताओं की गंदी चाल के चलते यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि शंकराचार्य पद की एक महत्ता है और उसका उल्लेख स्वयं आदि शंकराचार्य ने मठाम्नाय महानुशासन में किया है. देश में कोई भी व्यक्ति स्वयं को शंकराचार्य घोषित नहीं कर सकता.

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