महा-गठबंधन के भविष्य को लेकर बिहार में इन दिनों अटकलों का बाज़ार गर्म है. दोस्ती में कुश्ती होगी या फिर यह नई दोस्ती दुश्मनों के छक्के छुड़ा देगी, इसे लेकर चर्चाओं और नुक्कड़ बहसों का दौर जारी है. लेकिन, दोस्ती की बिसात पर कुछ ऐसे पासे फेंके जाने लगे हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि कहीं महा-गठबंधन की डोर उलझ कर न रह जाए. उपचुनाव के लिए मतदान के ठीक पहले शकुनी चौधरी ने नीतीश कुमार एवं लालू प्रसाद को सीधे निशाने पर लेकर यह संकेत दे दिया कि पार्टी और गठबंधन में सब कुछ उन दोनों की मर्जी से नहीं होगा. शकुनी चौधरी राजनीति के बहुत ही मंझे हुए खिलाड़ी हैं, इसलिए उन्होंने अपना पासा फेंकने के लिए मतदान के ठीक पहले का समय चुना. यह सभी जानते हैं कि शकुनी चौधरी खुद को राज्यसभा न भेजे जाने से बेहद आहत हैं.
बताया जाता है कि नई दोस्ती से पहले खुद नीतीश कुमार शकुनी चौधरी के घर गए और उनसे राज्यसभा भेजने का वादा किया, लेकिन बाद में क्या हुआ, यह भी सब जानते हैं. शकुनी चौधरी खफा थे ही, ऐसे में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद से गठबंधन का ऐलान करके उन्हें और भी नाराज़ कर दिया. शकुनी चौधरी का मत था कि भले ही लोकसभा चुनाव में पार्टी हार गई, लेकिन उपचुनाव में लालू से गठबंधन करने का कोई मतलब ही नहीं है. शकुनी चौधरी कहते हैं कि बेहतर होता नीतीश कुमार अकेले चुनाव मैदान में जाते और जनता का विश्वास हासिल करने की कोशिश करते. उपचुनाव के बाद गठबंधन पर परिस्थितियों के हिसाब से फैसले लिए जा सकते थे, लेकिन गलत सलाहकारों से घिरे नीतीश कुमार ने ऐसा नहीं किया. शकुनी चौधरी कहते हैं कि लालू और नीतीश अहंकार में डूबे हुए हैं, इसलिए उनका विनाश तय है.
शकुनी चौधरी कहते हैं कि नीतीश कुमार कभी नेता नहीं हो सकते, वह स़िर्फ साजिशकर्ता हो सकते हैं. लालू हर रोज उनका अपमान करते हैं, इसके बावजूद वह लालू के पैर पकड़ कर बैठे हैं. नीतीश कुमार में अगर जरा भी शर्म बची है, तो उन्हें राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए. शकुनी बताते हैं कि नीतीश उनके पास आकर गिड़गिड़ाए थे, तब उन्होंने उनका साथ दिया था. उनसे पहले लालू एक माह तक दौड़ते रहे. शकुनी का मानना है कि सत्ता के लिए बना यह गठबंधन सफल नहीं होगा. दरअसल, शकुनी चौधरी ने अपनी भड़ास निकाल कर पार्टी के उन विधायकों एवं नेताओं की भावनाओं को स्वर दे दिए, जो महा-गठबंधन के ख़िलाफ़ तो हैं, लेकिन खुलकर अपनी बात रखने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे. शकुनी चौधरी कहते हैं कि वह अकेले इस मत के नहीं हैं, बल्कि पार्टी के ज़्यादातर लोग ऐसा चाहते हैं, लेकिन एक आदमी की जिद के कारण पार्टी रसातल में जा रही है.
ग़ौरतलब है कि जदयू के बागी विधायकों ने पहले ही यह ऐलान कर दिया था कि लालू के साथ गठबंधन एक आत्मघाती क़दम है और इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जल्द ही वे लोग पार्टी को टेकओवर कर लेंगे, लेकिन मांझी सरकार को कोई ख़तरा नहीं होगा. दरअसल, शकुनी चौधरी के बगावती तेवरों ने जदयू के बागी विधायकों को नई ताकत दे दी है. ऐसा नहीं है कि महा-गठबंधन का विरोध केवल जदयू में हो रहा है. राजद के भी कई नेताओं को नीतीश से रिश्ता मंजूर नहीं है. राजद के पूर्व सांसद रघुवंश सिंह कहते हैं कि महा-गठबंधन में पार्टी और उसके नेता तो जुड़ गए, पर जनता नहीं जुड़ पाई. राजद, कांग्रेस एवं जदयू के बीच आपसी सामंजस्य की कमी है. राजद के कई नेता कहते हैं कि नीतीश राज में यादव हाशिये पर रहे, अब किस मुंह से नीतीश यादव वोटों की तरफ़ ताक रहे हैं. शकुनी चौधरी की बगावत के बाद विरोधी दलों ने भी महा-गठबंधन पर हमले तेज कर दिए हैं. नेता प्रतिपक्ष नंद किशोर यादव कहते हैं कि वह तो पहले से कहते आ रहे हैं कि यह महा-गठबंधन नहीं, बल्कि महा-ठगबंधन है. यादव ने कहा कि नीतीश में अगर नैतिकता है, तो वह शकुनी के हमले का जवाब दें. शकुनी ने जिस तरह नीतीश पर हमला किया, वह न केवल उनकी पार्टी की कमजोर स्थिति दर्शाता है, बल्कि राजद-जदयू गठबंधन के भविष्य पर भी प्रश्न खड़ा करता है. नीतीश राजनीतिक अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस कहते हैं कि वह जो बात कहते आ रहे थे, वही शकुनी ने भी कह दी. महा-गठबंधन लोभियों का जमावड़ा है. पासवान समाज की जो उपेक्षा नीतीश राज में हुई, उसे कैसे भूला जा सकता है. समाज को बांटने वाले लोग अब बिहार और देश बचाने की बात करते हैं. पारस दावा करते हैं कि जदयू एवं राजद के कई विधायक उनके संपर्क में हैं. ठीक यही दावा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय कर रहे हैं. वह कहते हैं कि 50 से अधिक जदयू विधायक उनके संपर्क में हैं, जो सही समय आने पर पार्टी से अलग हो जाएंगे. पांडेय कहते हैं कि लालू के साथ मिलकर नीतीश जंगलराज लाना चाहते हैं, लेकिन जनता उनके मंसूबे सफल नहीं होने देगी. नीतीश को भाजपा ने आगे बढ़ाया, पर अहंकार के चलते वह गलत ़फैसले लेने लगे. लोकसभा चुनाव में जनता उन्हें सबक सिखा चुकी है, विधानसभा चुनाव में उनका सूपड़ा साफ़ हो जाएगा. पांडेय का दावा है कि बिहार में अगली सरकार एनडीए की बनेगी.
सत्ता के गलियारों में अब यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि लालू प्रसाद का बेवजह हस्तक्षेप कहीं इस महा-गठबंधन को बेमौत न मार दे. चुनाव प्रचार के दौरान लालू ने हमेशा यह एहसास दिलाने की कोशिश की कि वही फ्रंट रनर हैं. पैरों में आकर नीतीश के बैठने संबंधी बयान में लालू का यही अहंकार टपकता है. हालांकि बाद में उन्होंने अपना बयान सुधारा, लेकिन जितना नुक़सान होना था, वह हो गया. जानकार बताते हैं कि नीतीश समर्थक नेताओं ने इस बारे में अपना विरोध उन तक पहुंचा दिया. शरद यादव ने इशारों-इशारों में लालू को हिदायत भी दे दी. मतलब यह कि दोस्ती की बुनियादी शर्तें भी पूरी नहीं की जा रही हैं. चुनाव में हार-जीत अलग बात है, पर एक-दूसरे का सम्मान करने में भी परहेज हो जाए, तो फिर महा-गठबंधन का भविष्य समझा जा सकता है. शकुनी चौधरी ने जो बातें कहीं, उनका जवाब जदयू के पास नहीं है. जदयू के बागी ऐसे ही कुछ और विस्फोटों का इंतजार कर रहे हैं, ताकि पार्टी में एकाधिकार के ख़िलाफ़ जो लड़ाई उन्होंने छेड़ रखी है, उसे मुकाम तक पहुंचाया जा सके. बागी यह मानकर चल रहे हैं कि नीतीश का दौर अब ख़त्म हो चुुका है. लालू से हाथ मिलाकर उन्होंने अपनी अंतिम चाल चल दी है. इसके बाद नीतीश के पास कोई तीर नहीं है. इसलिए बहुत जल्द हालात बदलेंगे और जदयू में एक नया सवेरा होगा. सुशील मोदी कहते हैं कि जंगलराज-2 की वापसी के नायक और सह-नायक जोर लगा रहे हैं, लेकिन उनके नापाक मंसूबे कामयाब नहीं होंगे. बिहार अब विकास चाहता है, इसलिए चुनाव में ऐसी ताकतों का पूरी तरह सफाया हो जाएगा.
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