संकट की सनसनी के बीच भारतीय नागरिकों को सकुशल स्वदेश लाने के कारण पूरे विश्व में भारत की जय-जयकार हो रही है. जय-जयकार हो भी क्यों न. भारत ने संकट की इस घड़ी में सिर्फ अपने देश के नागरिकों की ही नहीं, बल्कि41 देशों के 960 से भी अधिक नागरिकों की जान बचाकर मानवता की एक नायाब मिशाल जो पेश की है. इस पूरे मिशन के अगुआ थे विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह और उनका साथ दे रहे थे वायुसेना और नौसेना के अधिकारी और जवान. सच मायने में देखा जाए, तो इस अविश्वसनीय सफलता के बाद हमारा यह नारा और भी अधिक बुलंद हो चला है, यस वी कैन…यस वी कैन.
युद्धग्रस्त यमन से भारतीयों को सुरक्षित निकालने का अभियान ऑपरेशन राहत समाप्त हो चुका है. भारतीय वायुसेना और नौसेना के इस संयुक्त अभियान में यमन से 4500 से भी ज्यादा भारतीयों को सुरक्षित निकाला गया. आज चारों तरफ भारत की जय-जयकार हो रही है. यमन से सही-सलामत वापस लौट चुके लोगों के परिवारों में खुशी की लहर है. यह सब संभव हो सका है विदेश राज्यमंत्री वी के सिंह और सेना की सूझबूझ से, जिन्होंने खुद युद्धग्रस्त यमन में बचाव अभियान की कमान संभाल रखी थी और हवाई या अन्य हमलों की परवाह किए बगैर अपनी जान पर खेलकर सीना ताने युद्ध क्षेत्र में डटे रहे.
मुश्किलें कम न थीं
ऐसा नहीं था कि सबकुछ बहुत आसानी से होता चला गया. वहां कैसे हालात थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका सहित 26 से अधिक देशों ने यमन से अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने का भारत से अनुरोध किया था. फायरिंग के बीच अपनों को निकालना बहुत ही मुश्किल था. किसी भी वक्त किसी का भी सीना छलनी हो सकता था. ऐसे हालात में भारतीय सेना के लिए अपना हेडक्वार्टर बनाना जोखिम भरा था. तीन अलग-अलग एयर ट्रैफिक कंट्रोल के साथ बातचीत करके अपने हवाईजहाजों को वहां पर ले जाने की चुनौती अलग थी, क्योंकि भारतीय जहाज से पहले वहां कई देशों की जहाजों को टारगेट किया जा चुका था. अदन की खाड़ी से लोगों को निकालने के लिए नौसेना को बोट तक किराए पर लेने पड़े. हर तीन घंटे में एक फ्लाइट भारतीयों को वापस लेकर आ रही थी. एअर बस ए-380 में बैठने के लिए 180 सीटें थीं, लेकिन सीटों से अधिक लोगों को विमान में मैनेज कर लाया गया.
कुछ का काम है कहना
जिन्हें जनरल और उनके सिपहसालारों की जांबाजी पर गर्व नहीं होता, जो लोग जनरल की बातों पर बयानबाजी कर रहे हैं या उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, उन्हें यमन की तस्वीरें ध्यान से देखनी चाहिए. यमन से बच कर भारत लौटे नागरिकों का कहना है कि एक मिनट की सांस लेना भी वहां मुश्किल हो रहा था. वे किसी तरह से मौत के मुंह से बच निकले हैं, क्योंकि वहां 20 मिलियन लोग थे और 60 मिलियन बंदूकें. यमन के अमनदूत जनरल वी के सिंह, सेना के अधिकारियों और जवानों को पूरी दुनिया सलाम कर रही है. फिर क्यों कुछ लोग सच्चाई को देखना नहीं चाहते.
सरहदों की दीवारों पर भारी मानवता
अगर मानवता की सेवा करने की किसी ने ठान ली हो, तो उसे किसी भी देश की सरहद नहीं रोक सकती. पाक सेना द्वारा यमन से 11 भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालने की घटना कुछ ऐसा ही बयां कर रही है, जिसके लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ का शुक्रिया अदा किया है. नवाज शरीफ ने विशेष विमान से 11 भारतीयों को कराची से नई दिल्ली भेजने की व्यवस्था की थी.
स्थाई एजेंसी की जरूरत
भारत सरकार ने गल्फ वार के वक्त इराक और कुवैत से 1.11 लाख भारतीयों को, इराक से ही साल 2003 में करीब 50 हजार भारतीयों को, साल 2006 में लेबनान युद्ध के दौरान कुल 2280 लोगों को, साल 2011 में लीबिया युद्ध के दौरान 15 हजारों लोगों को, युके्रन से 1000 छात्रों को और सीरिया से 3000 भारतीयों को बचाया. इसे देखते हुए इस बात की जरूरत महसूस होने लगी है कि एक ऐसी स्थाई एजेंसी का गठन भारत सरकार को करना चाहिए, जो संकट के समय विदेशों में फंसे भारतीयों को स्वदेश वापसी के लिए सुनियोजित तरीके से कार्य कर सके.
जनरल की जांबाज़ी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यमन से भारतीयों को निकालने के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन राहत की सफलता के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के समन्वय और उस समय जिबूती में मौजूद विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह के योगदान की काफी प्रशंसा की. जनरल की आखिर प्रशंसा हो भी क्यों न. जहां कदम-कदम पर फायरिंग हो रही हो, बम गिर रहे हों, हर कदम पर कोई कातिल ख़डा हो, वहां भारत सरकार के मंत्री ने जो किया, वो विश्व के किसी भी देश के मंत्री के लिए गजब का चैलेंज था. जनरल सिंह तीन दिनों में कई बार जिबूती से सना के बीच आए-गए. कई देशों से बातें कर अभियान की गति बनाए रखी. वे हिंसा से ग्रसित यमन के सना शहर में स्वयं रहकर अलग-अलग एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित कर रहे थे और भारतीय नागरिकों को बाहर निकाल रहे थे. उन्होंने नौसैनिक पोतों तथा वायुसेना एवं एयर इंडिया के विमानों में यात्रियों से मुलाकात भी की. हवाई हमलों के बीच आज अगर भारतीय नागरिक यमन से जिंदा लौट आए या उन्हें सही-सलामत बचा लिया गया, तो इस सफलता के पीछे सरकार के मंत्री वी के सिंह की सूझबूझ ही है. यमन हिंसा की चपेट में दुनिया के अलग-अलग देशों के नागरिक फंसे हैं. वो यमन से बाहर निकलना चाहते हैं. लेकिन एक-दो मामलों को छोड़ कर भारत के अलावा कोई भी देश अपने नागरिकों को बाहर निकालने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत के रेस्कयू ऑपरेशन का नेतृत्व जनरल वी के सिंह कर रहे थे. इतिहास में पहली बार कोई केंद्रीय मंत्री युद्धक्षेत्र में प्रवेश कर लोगों को बचाने का ऑपरेशन चला रहा था. युद्धग्रस्त यमन में फंसे भारतीयों को निकालने में प्रशासनिक एवं रक्षा अधिकारियों तथा संगठनों के योगदान को भी पीएम ने सैल्यूट किया. सच मायने में देखा जाए, तो विदेश मंत्रालय, नौसेना, वायुसेना, एयर इंडिया, जहाजरानी, रेलवे और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय से नागरिकों के बचाव कार्य में बहुत मदद मिली. प